चिराहुला नाथ मंदिर रीवा के दक्षिण मे स्थित चिराहुला कालोनी के पास गूढ़ रोड मे मौजूद हैं। इस मंदिर मे हनुमाज जी विराजमान हैं। रीवा के लोगो की मान्यता हैं की इस मंदिर में मांगी गई सभी मुरादे पूरी होती हैं। चिराहुला मंदिर मे रोजाना भक्तो का तांता लगा रहता हैं, इसके साथ साथ लगभग रोज यहाँ भंडारे का आयोजन भी होता रहता हैं। चिराहुला मंदिर नए बस स्टेंड से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी मे स्थित हैं, जबकि रेलवे स्टेशन से मंदिर मंदिर की दूरी 7 से 8 किलोमीटर की हैं। इस मंदिर मे मंगलवार और शनिवार को काफी ज्यादा भीड़ होती हैं।
इस मंदिर की स्थापना लगभग 500 वर्ष पहले की गई थी। इस मंदिर मे विराजे हनुमान जी को चिराहुला नाथ के नाम से पुकारते हैं। इस मंदिर की स्थापना चिरौल दास के एक संत ने अपने गुरु देव संत रामदास जी के निर्देश मे की थी। यह मंदिर काफी भव्य हैं, तथा मंदिर के सामने एक सुंदर सा तलाब मदिर और तालाब का नाम चिरौल बाबा के नाम पर ही रखा गया था जिनहोने इस मंदिर की स्थापना कराई थी। इस मंदिर के बगल मे ही मौजूद चिराहुला तालाब का सौन्दर्यकरण का काम क्षेत्रत्र के विधायक एवं मंत्री श्री राजेंद्र शुक्ल जी के दिशा निर्देश मे पर्यटन की दृष्टि से किया गया हैं। हनुमान जी के मंदिर के पीछे भगवान शिव का मंदिर हैं। यह मंदिर अपने आप मे बहुत ही अनूठा हैं क्योंकि इस मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग को स्थापित किया गया हैं। सावन के पूरे महीने मंदिर का प्रांगण भक्तो से भरा रहता हैं। इस मंदिर मे दूर दूर से श्रद्धालु बजरंग बलि जी के दर्शन करने केलिए आते हैं।
चिराहुला नाथ मंदिर को जिला कोर्ट के रूप मे पहली बार रीवा के तत्कालीन राजा महाराज भाव सिंह ने दिया था। ऐसा माना जाता हैं की इस मंदिर में भगवान हनुमान जी अपने भक्तों की समस्याओं को सुनते हैं और उन्हें न्याय दिलाते हैं। इस मान्यता के आधार पर, रीवा के राजा ने चिराहुला नाथ मंदिर को जिला कोर्ट का दर्जा दिया। इस मंदिर में, भक्त अपने मामलों को हनुमान जी के सामने रखते हैं और उनसे न्याय की गुहार करते हैं।
धीरेंद्र शास्त्री जी भी आ चुके हैं चिराहुला नाथ जी के दरबार में
बाघेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री जी महाराज रीवा के रास्ते बनारस जा रहे थे। जब उन्हे पता चला की वह रीवा पहुँच चुके हैं तो उन्होने चिराहुलानाथ स्वामी के दर्शन के लिए अपनी इच्छा प्रकट की। रात को 1:30 मिनट पर वह मंदिर आए और भगवान हनुमान जी के दर्शन करने के बाद ही उन्होने अपनी आगे की यात्रा प्रारम्भ की। उनके आने की बात तो अगले दिन सीसीटीवी के माध्यम से पता चली क्योंकि उन्होने अपने आने की सूचना किसी को नहीं दी थी। क्योंकि उनका मकसद सिर्फ भगवान के दर्शन करना था और उनके आशीर्वाद लेना था।