हिन्दी कहानी: सच्ची प्यास और जीवन की सच्चाई

हिन्दी कहानी: सच्ची प्यास और जीवन की सच्चाई

एक बार की बात है, गर्मी का मौसम था और दोपहर का समय था। एक रेलवे प्लेटफ़ॉर्म पर गाड़ी आकर रुकी। धूप तेज़ थी और ट्रेन के यात्री अपने-अपने डिब्बों में बैठे थे। तभी एक छोटा लड़का, सिर पर पानी का घड़ा लेकर, “पानी… ठंडा पानी!” पुकारता हुआ प्लेटफ़ॉर्म पर दौड़ते हुए आया।

ट्रेन के एक डिब्बे में एक अमीर सेठ बैठे थे। पसीने से लथपथ सेठ ने लड़के को आवाज़ दी, “ऐ लड़के, इधर आ!” लड़का तुरंत दौड़ता हुआ आया और पानी से गिलास भरकर सेठ को दिया।

सेठ ने गिलास को हाथ में लेकर पूछा, “कितने पैसे में पानी मिलेगा?”

लड़के ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “पच्चीस पैसे, साहब।”

यह सुनकर सेठ थोड़ा सा हंसा और कहा, “10 पैसे में देगा क्या?”

लड़का बिना किसी तकरार के हल्की मुस्कान के साथ पानी वापस घड़े में उड़ेलने लगा और बिना कुछ कहे आगे बढ़ गया। उसके चेहरे पर कोई नाराजगी या गुस्सा नहीं था, बस एक शांति और हल्की मुस्कान थी।

उसी डिब्बे में एक महात्मा भी यात्रा कर रहे थे। वे ध्यान से यह पूरा दृश्य देख रहे थे। जब उन्होंने लड़के को मुस्कुराते हुए सेठ से बिना कुछ कहे चले जाते देखा, तो उन्हें यह घटना कुछ खास लगी। महात्मा के मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि आख़िर लड़के ने ऐसा क्यों किया।

महात्मा ट्रेन से उतरकर लड़के के पीछे-पीछे चलने लगे और उसे आवाज़ दी, “ऐ लड़के, ठहर जरा। मुझे कुछ पूछना है तुझसे।”

लड़का रुक गया और बड़े ही आदर से बोला, “कहिए महाराज, क्या पूछना है?”

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महात्मा ने गंभीरता से पूछा, “तू मुस्कुराया क्यों? जब सेठ ने तुझसे दस पैसे में पानी मांगा, तब तूने कोई बहस नहीं की, न ही नाराज हुआ, बल्कि मुस्कुरा कर चला गया। आखिर क्यों?”

लड़का मुस्कुराते हुए बोला, “महाराज, मुझे हंसी इसलिए आई क्योंकि सेठजी को असल में प्यास लगी ही नहीं थी। वे तो सिर्फ़ पानी के गिलास का रेट पूछ रहे थे। जब किसी को सच में प्यास लगती है, तो वह कभी भी पानी की कीमत नहीं पूछता। वह पहले प्यास बुझाता है, फिर कीमत की चिंता करता है।”

महात्मा ने उत्सुकता से पूछा, “तुझे कैसे पता चला कि सेठ को प्यास नहीं लगी थी?”

लड़के ने आत्मविश्वास से कहा, “महाराज, जिसे सच्ची प्यास लगी होती है, वह सीधे पानी मांगता है और उसे पीकर राहत पाता है। वह कीमत के बारे में बाद में पूछता है। लेकिन जिसने पहले रेट पूछना शुरू कर दिया, उसकी प्यास केवल दिखावटी होती है।”

महात्मा ने सिर हिलाया और मुस्कुराते हुए बोले, “तूने सही कहा। यह बात केवल पानी की नहीं, बल्कि जीवन की हर चीज़ में लागू होती है।”

लड़के ने सहमति में सिर हिलाया और महात्मा से कहा, “जी महाराज, ठीक वैसे ही, जिन्हें सच में ईश्वर की चाहत होती है, वे बहस में नहीं पड़ते। वे बिना किसी सवाल या तर्क के ईश्वर के प्रति समर्पण कर देते हैं। लेकिन जिनकी ईश्वर के प्रति सच्ची प्यास नहीं होती, वे हमेशा वाद-विवाद में उलझे रहते हैं।”

महात्मा की आँखों में चमक आ गई। वे सोचने लगे कि कितनी गहरी बात इस छोटे से लड़के ने कह दी। जीवन में जब हमारी इच्छाएँ सच्ची होती हैं, तब हम वाद-विवाद में नहीं उलझते, बल्कि अपना ध्यान केवल उस दिशा में केंद्रित करते हैं। चाहे वह ईश्वर हो या जीवन की कोई बड़ी मंजिल, सच्ची चाहत व निष्काम भाव से हमें उसे पाने की कोशिश करनी चाहिए। वाद-विवाद में समय व्यर्थ करने वाले लोग साधना के पथ पर कभी आगे नहीं बढ़ पाते।

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महात्मा ने लड़के को आशीर्वाद दिया और आगे बढ़ गए। चलते हुए महात्मा के मन में लड़के की बात बार-बार गूंज रही थी। उन्होंने मन ही मन सोचा, “यह लड़का सही कहता है। अगर हमें जीवन में कुछ सच्चे अर्थों में पाना है, तो हमें अपने प्रयासों में सच्चाई और निस्वार्थता लानी होगी।”

उस दिन महात्मा को इस छोटी सी घटना से एक बड़ी सीख मिल।

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