बांग्लादेश के दूरदराज़ पहाड़ियों में बसे मंडी जनजातीय समुदाय की जीवनशैली अपने आप में अनूठी और आकर्षक है, लेकिन उसी सामाजिक ढांचे के भीतर एक ऐसी परंपरा जीवित है जो आज की आधुनिक सोच और मानवीय मूल्यों को चुनौती देती है। यह परंपरा सौतेले पिता द्वारा अपनी सौतेली बेटी से विवाह करने की है। सुनने में यह जितनी अजीब लगती है, असल में यह उतनी ही जटिल सामाजिक और मनोवैज्ञानिक परतें समेटे हुए है। इस लेख में हम मंडी जनजाति की इस प्रथा की पृष्ठभूमि, इसके सामाजिक-आर्थिक तर्क, विरोध के स्वर, और कानूनी एवं नैतिक पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
मंडी जनजाति: एक परिचय
मंडी, जिन्हें गारो भी कहा जाता है, बांग्लादेश और भारत के मेघालय राज्य में निवास करने वाला एक मातृसत्तात्मक समाज है। इस समाज में महिलाओं को विशेष अधिकार प्राप्त हैं — वे न केवल संपत्ति की उत्तराधिकारी होती हैं, बल्कि पारिवारिक निर्णयों में भी निर्णायक भूमिका निभाती हैं। विवाह, संपत्ति, और उत्तराधिकार जैसे विषयों पर महिलाएं ही प्रमुख होती हैं, जो इसे बाकी पितृसत्तात्मक जनजातियों से अलग बनाता है।
लेकिन इसी सामाजिक ढांचे के बीच एक ऐसी परंपरा पनपी है जो आधुनिक मानवाधिकारों की धारणा से सीधे टकराती है—और वह है सौतेले पिता और सौतेली बेटी का विवाह।
इस प्रथा की उत्पत्ति और औचित्य
मंडी जनजाति में जब कोई महिला विधवा हो जाती है और दूसरी शादी करती है, तो परंपरा के अनुसार उसका नया पति उसकी पहली शादी से हुई बेटी से भी विवाह कर सकता है, जब वह लड़की वयस्क हो जाए। इस विवाह को समुदाय द्वारा सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के रूप में देखा जाता है। उनका तर्क है कि इससे संपत्ति का बंटवारा नहीं होता और एक ही पुरुष के संरक्षण में महिला और उसकी बेटी दोनों सुरक्षित रहती हैं।
यह भी कहा जाता है कि इस व्यवस्था से परिवार में सामाजिक अस्थिरता नहीं आती, और महिलाओं को पुरुष सत्ता की आवश्यकता से मुक्ति मिलती है क्योंकि वह ‘अपना’ परिवार बनाए रखने में सक्षम रहती हैं।
मौजूदा विरोध और आलोचनाएं
हालांकि मंडी जनजाति के कुछ वरिष्ठ जन इस प्रथा को पारिवारिक संरचना की मजबूती के रूप में देखते हैं, लेकिन युवा पीढ़ी और मानवाधिकार संगठन इसे महिलाओं की इच्छा, आत्मनिर्णय और स्वतंत्रता का सीधा उल्लंघन मानते हैं। कई युवतियों के बयान सामने आए हैं, जिन्होंने बताया कि उन्हें मानसिक और सामाजिक दबाव में इस विवाह के लिए मजबूर किया गया। एक युवती के अनुसार, जब उसके पिता की मृत्यु के बाद उसकी मां ने दूसरी शादी की, तो कुछ वर्षों बाद वही पुरुष उससे विवाह करने लगा और उसे यह मानने के लिए बाध्य किया गया कि यह सामान्य है।
यह अनुभव उनके लिए न केवल मानसिक पीड़ा का कारण बना, बल्कि उनके आत्म-सम्मान और भावनात्मक विकास को भी चोट पहुंचाई। यही कारण है कि अब मंडी समुदाय के कई युवक-युवतियां शहरी क्षेत्रों में जाकर आधुनिक जीवनशैली अपनाने लगे हैं, ताकि वे इस तरह की कुप्रथाओं से दूर रह सकें।
संस्कृति बनाम अधिकारों की लड़ाई
यहां एक बुनियादी सवाल खड़ा होता है—क्या किसी सांस्कृतिक परंपरा को इसलिए जीवित रहने दिया जा सकता है क्योंकि वह सदियों पुरानी है, भले ही वह आज के नैतिक और कानूनी मूल्यों के खिलाफ हो? मंडी जनजाति की यह परंपरा इसी सवाल के केंद्र में है। एक ओर समुदाय का दावा है कि यह एक पारंपरिक संरचना है जो महिलाओं को सुरक्षा देती है, वहीं दूसरी ओर आलोचकों का कहना है कि यह वास्तव में पुरुष सत्ता का विस्तार है जो महिलाओं की इच्छा को गौण मानती है।
सांस्कृतिक परंपराएं तब तक ही जीवंत रहती हैं जब तक वे मानवीय गरिमा और अधिकारों के साथ टकराव में न हों। जब कोई प्रथा किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता, मानसिक स्वास्थ्य और जीवन के चयन को बाधित करने लगे, तो उस पर पुनर्विचार आवश्यक हो जाता है।
कानूनी स्थिति और सरकारी रवैया
बांग्लादेश में यह परंपरा किसी भी तरह से कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है। यह पूरी तरह सामाजिक-परंपरागत व्यवस्था पर आधारित है, जो मुख्यतः जनजातीय क्षेत्रों में प्रचलित है और कानूनी निगरानी से दूर रहती है। हालांकि सरकार और कुछ गैर-सरकारी संगठनों द्वारा शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और मानवाधिकार जागरूकता के प्रयास किए गए हैं, फिर भी मंडी समुदाय के कई दूरस्थ क्षेत्रों में आज भी यह प्रथा जारी है।
मानवाधिकार संगठनों की मांग है कि सरकार को इस परंपरा के खिलाफ कठोर कानूनी कदम उठाने चाहिए, और साथ ही जनजातीय समाजों में शिक्षा और जागरूकता का विस्तार करना चाहिए ताकि महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति सजग किया जा सके।
समाज में बदलाव की संभावनाएं
मंडी जनजाति की सामाजिक संरचना और उसकी सांस्कृतिक विरासत में कई ऐसे तत्व हैं जो सराहनीय हैं—जैसे महिलाओं का संपत्ति पर अधिकार, मातृसत्तात्मक व्यवस्था, और सामूहिक जीवन प्रणाली। लेकिन इसके साथ ही यदि कुछ परंपराएं आज की नैतिकता और मानवाधिकारों के विरुद्ध जाती हैं, तो उन्हें चुनौती देना और सुधारना भी जरूरी है।
नई पीढ़ी में यह बदलाव देखा जा रहा है। कई मंडी युवतियां अब स्कूल और कॉलेज में शिक्षा प्राप्त कर रही हैं, सामाजिक मुद्दों पर चर्चा कर रही हैं और आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ रही हैं। यही परिवर्तन भविष्य में इस तरह की कुप्रथाओं को खत्म करने की आशा जगाता है।