धार्मिक कहानी : सती कौशकी और उनके पति को श्राप

प्राचीन समय में एक सती थी, उनका नाम कौशिकी था, उनके पति का नाम कौशिक था जो की पैर से अपंग थे। वह चल-फिर नहीं पाते थे। इस लिए जब कौशिक को कही जाना होता था तो उनकी पत्नी कौशिकी उन्हे अपने पीठ में लाद कर ले जाया करती थी। एक रात किसी काम से कौशकी अपने पति को अपने पीठ में लाद कर कही ले जा रही थी। और जिस रास्ते में कौशकी चल रही थी उसी रास्ते में ऋषि मांडव्य को उस राज्य के राजा ने सजा के रूप में सूली मे चढ़ा दिया था। जब कौशकी उस रास्ते से गुजरी तो कौशिक का पैर ऋषि मांडव्य को लग गया। ऋषि मांडव्य सिद्ध ऋषि थे इसलिए सूली पर चढ़ाने के बावजूद उनकी मृत्यु नहीं हुई थी। जब कौशिक का पैर ऋषि मांडव्य को लगा तो ऋषि मांडव्य ने कौशिक को श्राप दे दिया और श्राप मे कहा की जिस अधम ने मुझे पैर से मारा हैं वह कल का सूर्य नहीं देख पाएगा।

कौशिक की पत्नी ने श्राप सुनते ही मांडव्य ऋषि को अपने पति के अपंगता के बारे मे बताया, परंतु मांडव्य ऋषि ने कहा की मेरा श्राप वापस नहीं होगा, लेकिन माता पार्वती से आप प्रार्थना करे, निश्चित ही उनके पास कोई उपाय होगा।

सती कौशकी माता पार्वती का आवाहन करके अपनी समस्या का समाधान पुछने लगी। तभी माता पार्वती की प्रेरणा से आकाशवाणी हुई की अगर सूर्य ही नहीं उगेगा तो तुम्हारे पति की मृत्यु नहीं होगी।

ऐसा सुनते ही कौशकी ने पृथ्वी को स्थिर कर दिया। क्योंकि पृथ्वी स्थिर हो गई तो सूर्य का उगना असंभव हो गया। कई दिन बीत गए, सूर्य नहीं उगा, जिससे पृथ्वी में हाहाकार मचने लगा। तब सभी देवता माता अनुसूइया के पास पहुंचे। माता अनुसूइया ने माता पार्वती की प्रेरणा से देवताओ को आश्वासन दिया की वह पृथ्वी को संकट से निकाल लेंगी। और इसके बाद माता अनुसूइया सती कौशकी के पास गई।

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सती काशौकी ने माता अनुसूइया को देखा तो उन्हे देख कर वो अपनी पीड़ा नहीं रोक पाई और उनके सामने रो-रो कर अपने दुख और पीड़ा को व्यक्त किया क्योंकि सती कौशकी भी जानती थी की सूर्योदय को बहुत दिनो तक नहीं रोका जा सकता हैं। तब माता अनुसूइया ने सती कौशकी को सात्वना दी और कहाँ की मैं तुम्हारे सभी दुख और संताप को दूर कर दूँगी, लेकिन तुमने जो पृथ्वी को रोक दिया हैं उसे फिर से घूमने दो जिससे सूर्योदय हो सके।

तब कौशकी ने देवी धरा का ध्यान कर उन्हे फिर से चलायमान कर दिया। पृथ्वी फिर से पहले की तरफ घूमने लगी, कुछ ही देर मे सूर्योदय हो गया। और सूर्योदय होते ही कौशिकी के पति की मृत्यु हो गई। लेकिन जैसे की माता अनुसूइया ने कहा थी की वह सती कौशकी के संताप को दूर कर देंगी, माता अनुसूइया ने अपने सतीत्व के तप की शक्ति से कौशिक को जिंदा कर दिया और उनके जीर्ण शरीर को भी युवा कर दिया था। कौशिक की अपंगता दूर हो गई थी।

बोलिए माता पार्वती की जय, बोलिए माता अनुसूइया की जय।

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