धार्मिक कहानी- भगवान के 10 अवतार

धार्मिक कहानी- भगवान के 10 अवतार

आज इस पोस्ट मे हम हिन्दू धर्म के प्राचीन hindi kahani को पढ़ेंगे, जब पश्चिम के लोग जानवरो की तरह रहते थे, तब हम विकास और आधुनिकता की आसमान मे थे, पर हम सब कुछ खो दिये, क्योकि, हमने बाहर से आए लोगो के साहित्य को पढ़ा, और उसे सही माना। वो हमसे सब चोरी करके ले गए, और हमे पिछड़ा बताया, और अनरगाल चीजे पढ़ाई। और हमारे प्राचीन इतिहास को झूठा साबित करके उसे mythology बोलने लगे, इस लिए हम सब हिन्दुओ का यह धर्म बंता हैं की हम अपने इतिहास के प्रति जागरूक बने, उसे पढे, जिससे उसके बारे मे जन सके। और लोगो के झूठ को पकड़ सके। आज इस पोस्ट मे हम भगवान विष्णु के 10 अवतारो के बारे मे जानेंगे। धर्म की कहानी को hindi story मे बदला गया है जिससे बच्चे भी इसे पढे और थोड़ा-थोड़ा करके अपने धर्म के बारे मे जान सके।

Hindi Story – मत्स्यावतार (प्राचीत इतिहास)

प्राचीन काल में सत्यव्रत नाम के एक राजा थे। वह बड़े ही उदार और भगवान के परम भक्त थे। एक दिन वह कृतमाला नदी में तर्पण कर रहे थे। उसी समय उनकी अंजलि में एक छोटी सी मछली आ गई। उसने अपनी रक्षा के लिए सत्यव्रत से अनुरोध किया। उस मछली की बात सुनकर राजा ने उसे, समुद्र में वापस नहीं छोड़ा, और उसे अपने कमंडल मे रखकर आश्रम ले आए। कमंडल में वह इतनी बड़ी हो गई, की उसे एक मटके में रखना पड़ गया। थोड़ी देर बाद उसका आकार फिर बढ़ गया, और मटके में अब वह छोटी पड़ने लगी। अंत में राजा सत्यव्रत हार मान कर उस मछली को समुद्र में छोड़ने गए। समुद्र में डालते समय उस मछली ने राजा से कहा- राजन समुद्र में बड़े-बड़े मगर रहते हैं, वह मुझे मार कर खा जाएंगे। इसलिए मुझे समुद्र में ना छोड़े।

मछली कि यह मधुर वाणी सुनकर राजा मोहित हो गए, अब उन्हें मत्स्य भगवान की लीला समझ में आने लगी थी। वह हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगे।

मत्स्य भगवान ने अपने प्यारे भक्त सत्यव्रत से कहा- “सत्यव्रत! आज से सातवे में दिन यह पृथ्वी लोक प्रलयंकारी जल राशियों में डूबने लगेंगे। उस समय मेरी प्रेरणा से, तुम्हारे पास एक बहुत बड़ी नाव आएगी, तुम सभी जीवों, पौधों और अन्न आदि के बीज को लेकर सप्तऋषियों के साथ उस पर बैठकर, तूफान से बचने का प्रयास करना। जब तेज आंधी चलने के कारण नाव डगमगाने लगेगी। तब मैं इसी रूप में आकर तुम लोगों की रक्षा करूंगा। “

भगवान सत्यव्रत से यह कहकर अंतर्ध्यान हो गए

अंत में वह समय आ पहुंचा, राजा सत्यव्रत के देखते ही देखते सारी पृथ्वी पानी में डूबने लगी, राजा ने भगवान की बात याद की, तभी उन्होंने देखा कि नाव भी आ गई है। वह बीजों को लेकर सप्तऋषियों के साथ तुरंत नाव पर सवार हो गए।

सप्तऋषियों की आज्ञा से राजा ने भगवान का ध्यान किया। उसी समय उस महान समुद्र में मत्स्य के रूप में भगवान प्रकट हुए। तत्पश्चात भगवान ने विनाश के समय, नाव को तूफानों से बचाते हुए, विहार करने लगे और सत्यव्रत को ज्ञान भक्ति का उपदेश दीया।

हायग्रीव नाम का एक राक्षस था, वह ब्रह्मा जी के द्वारा उत्पन्न वेदों को चुराकर पाताल में छिपा हुआ था। भगवान मत्स्य ने हयग्रीव को मारकर वेदों का भी उद्धार किया।

समस्त जगत के परम कल्याण के लिए भगवान मत्स्य को हम सब नमस्कार करते हैं

(मत्स्यावतार कथा समाप्त)


 

Hindi Story – कच्छपावतार (हिन्दू प्राचीन इतिहास)

पुराने समय की बात है, देवताओं और राक्षसों में आपसी मतभेद के कारण शत्रुता बढ़ गई थी। आए दिन दोनों पक्षों में लड़ाई होती रहती थी। एक दिन और राक्षसों के आक्रमण से सभी देवता भयभीत हो गए। वह भागते भागते ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी की राय से सभी लोग जगत गुरु की शरण में जाकर प्रार्थना करने लगे। देवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान ने कहा- हे देवताओं तुम लोग दानव राज बली से प्रेम पूर्वक मिलो। उनको ही अपना नेता मान कर, समुद्र मंथन करने की तैयारी करो। समुद्र मंथन के अंत में अमृत निकलेगा। उसे पीकर आप लोग अमर हो जाओगे। यह कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए।

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इसके बाद देवताओं ने बलि को नेता मानकर वासुकी नाग को रस्सी और मंदराचल नाम के पर्वत को मथानी बनाकर समुद्र मंथन शुरू किया। परंतु जैसे ही मंथन शुरू हुआ, मंदराचल पर्वत समुद्र में डूबने लगा, सभी लोग परेशान हो गए, अंत में निराश होकर लोगों ने भगवान विष्णु का सहारा लिया। भगवान विष्णु तो सब जानते ही थे, उन्होंने हंसकर कहा- सब कार्यों के प्रारंभ में गणेश जी की पूजा करनी चाहिए, बिना उनकी पूजा के कोई कार्य सिद्ध नहीं होता है। यह सुनकर वहां मौजूद सभी देवता और राक्षस गणेश जी की पूजा करने लगे। उधर गणेश जी की पूजा हो रही थी, इधर लीलाधारी भगवान विष्णु ने कच्छप रूप धारण कर मंदराचल को अपनी पीठ पर उठा लिया।

तत्पश्चात समुद्र मंथन शुरू हुआ, समुद्र मंथन करते बहुत देर हो गई, लेकिन अमृत नहीं निकला। तब भगवान ने सहस्त्रबाहु होकर स्वयं ही दोनों तरफ से समुद्र का मंथन प्रारंभ कर दिया। उसी समय हलाहल विष निकला। जिसे पीकर भगवान शिव नीलकंठ कहलाए। इसी प्रकार कामधेनु, उच्चै: श्रवा नाम का घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, अप्सराएं, भगवती लक्ष्मी, वारुणी, धनुष, चंद्रमा, शंख, धनवंतरी और अंत में अमृत निकला।

अमृत के लिए देवता और दानव दोनों झगड़ने लगे। सब भगवान ने अपनी लीला से अमृत देवताओं को ही दिया। अमृत पीकर देवता लोग अमर हो गए, और युद्ध में विजयी हुए।

युद्ध जीतने के बाद देवता बार-बार कच्छप भगवान की स्तुति करने लगे। उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर, भगवान ने कहा – देवताओं! जो लोग भगवान के आश्रित होकर कर्म करते हैं, वही देवता कहलाते हैं। उन्हें ही सच्ची सुख शांति और अमृत या अमृत तत्व की प्राप्ति होती है। किंतु जो अभिमान के सहारे कर्म करते हैं, उन्हें कभी भी अमृत की प्राप्ति नहीं हो सकती। यह कहकर भगवान कच्छप अंतर्ध्यान हो गए।

भक्तों के परम हितैषी कच्छप भगवान को हम सब नमस्कार करते हैं

(कच्छप अवतार की कथा समाप्त)


Hindi Story – वराह अवतार (हिंदू प्राचीन इतिहास)

अनंत भगवान ने जल में डूबी हुई पृथ्वी का उद्धार करने के लिए वराह शरीर धारण किया था। कहां जाता है कि एक दिन स्वयंभू मनु ने बड़ी नम्रता से हाथ जोड़कर अपने पिता ब्रह्मा से कहा- हे पिताजी! एकमात्र आप ही समस्त जीवो के जन्मदाता हो। आप ही जीविका प्रदान करने वाले भी हैं, हम आपको नमस्कार करते हैं। हम ऐसा कौन सा कर्म करें, जिससे आपकी सेवा बन सके? हमे सेवा करने की आज्ञा दीजिए।

मनु की बात सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा- पुत्र! तुम्हारा कल्याण हो, मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं। क्योंकि तुमने मुझसे आज्ञा मांगी है और आत्मसमर्पण किया है। पुत्रों को अपने पिता की इसी रूप में पूजा करनी चाहिए। तुम धर्म पूर्वक पृथ्वी का पालन करो। यज्ञ द्वारा श्री हरि की आराधना करो, अगर तुम कर्मठता और ईमानदारी से अपनी प्रजा की सेवा करते हो, तो यही मेरी सेवा होगी। इस बार मनु ने कहा- पूज्य पाद! मैं आपकी आज्ञा का पालन अवश्य करूंगा। किंतु सब जीवो का निवास स्थान पृथ्वी इस समय भयंकर जल में डूबी हुई है, तो मैं कैसे पृथ्वी का पालन करूं?

पृथ्वी का हाल सुनकर ब्रह्मा जी बहुत चिंतित हुए। वह पृथ्वी के उद्धार की बात सोच ही रहे थे कि उनके नाक से अंगूठे के आकार का वराह शिशु निकला। देखते ही देखते वह पर्वताकार होकर गरजने लगा। ब्रह्मा जी को भगवान की माया समझते देर नहीं लगी। भगवान की गर्जना सुनकर ब्रह्मा जी और स्वयंभू मनु, वराह रूपी भगवान विष्णु की स्तुति करने लगे।

ब्रह्मा जी की स्तुति से भगवान वराह प्रसन्न हुए। वह जगत कल्याण के लिए जल में घुस गए। थोड़ी देर बाद वह जल में डूबी हुई पृथ्वी को अपनी थूथन पर उठाकर, जल से बाहर निकल आए। उनके मार्ग में विघ्न डालने के लिए महा पराक्रमी हिरण्याक्ष ने जल के भीतर ही उन पर गदा से आक्रमण कर दिया। इससे वराह भगवान का क्रोध चक्र के समान तीष्ण हो गया। उन्होंने उसे अपनी लीला से ही इस प्रकार मार डाला, जैसे सिंह हाथी को मार डालता है।

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जल से बाहर निकले हुए भगवान को देखकर ब्रह्मा आदि देवता हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे। इससे प्रसन्न होकर वराह भगवान ने, पृथ्वी को उसके सही कक्ष में रख दिया।

पृथ्वी का उद्धार करने वाले वराह भगवान को हम सब पवित्र धर्म मानने वाले लोग नमस्कार करते हैं

(वराह अवतार कथा समाप्त)


 

Hindi Story – नरसिंह अवतार ( हिंदू प्राचीन इतिहास)

हिरण्याक्ष के बाद से उसका भाई हिरण्यकशिपु बहुत दुखी हुआ। वह भगवान का घोर विरोधी बन गया। उसने अजय और अमर बनने के लिए ब्रह्मा जी का कठोर तप किया। ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया कि उसे देवता, मनुष्य या पशु नहीं मार पाएंगे, ना ही कोई उसे दिन में मार पाएगा और ना शाम को मार पाएगा। और ना उसे भवन के अंदर और ना भवन के बाहर मार पाएगा। इस प्रकार का वरदान पाकर हिरण्यकशिपु लगभग अमर हो गया।

हिरण्यकशिपु का शासन इतना कठोर था कि देव दानव सभी उसके चरण वंदन किया करते थे। भगवान की पूजा करने वालों को वह कठोर दंड दिया करता था। उसके शासन से सब लोग और लोकपाल घबराते थे। जब उन्हें और कोई सहारा ना मिला तब वह भगवान की प्रार्थना करने लगे। देवताओं की स्तुति सुनकर भगवान नारायण ने देवताओं को आश्वासन दिया कि वह हिरण्यकशिपु का वध जरूर करें।

दैत्य राज का अत्याचार दिनों दिन बढ़ता ही गया। यहां तक की वह अपने ही पुत्र प्रहलाद को भगवान का नाम लेने के कारण तरह-तरह का कष्ट देने लगा।

प्रहलाद बचपन से ही खेलकूद छोड़कर भगवान विष्णु के ध्यान में खोया रहता था। वह भगवान का परम प्रेमी भक्त बन चुका था। वह समय-समय पर असुर बालकों को धर्म का उपदेश दिया करता था।

असुर बालकों को उपदेश देने की बात सुनकर हिरण्यकशिपु बहुत क्रोधित हुआ। उसने प्रहलाद को दरबार में बुलाया। प्रहलाद बड़ी नम्रता से हाथ जोड़कर चुपचाप दैत्य राज के सामने खड़ा हो गया। प्रहलाद को देखकर दैत्य राज ने डांटते हुए कहा- हे मूर्ख! तू बड़ा उद्दंड हो गया है। तूने किसके बलबूते पर मेरी आज्ञा के खिलाफ जाकर उस विष्णु की कथा का प्रचार मेरे राज्य में कर रहा है?

इस पर प्रह्लाद ने कहा- पिताश्री, ब्रह्मा से लेकर एक छोटे तिनके तक सब छोटे बड़े, चर-अचर, जीवो को भगवान ने ही अपने वश में कर रखा है। वही परमेश्वर ही अपनी शक्तियों के द्वारा, इस विश्व की रचना, रक्षा और संघार करते हैं। आप अपना यह आसुरी भाव छोड़ दीजिए। अपने मन को सबके प्रति उदार बनाइए। प्रहलाद की बात को सुनकर हिरण्यकशिपु का शरीर क्रोध से थरथर कांपने लगा। उसने प्रहलाद से कहा- हे मूर्ख! तेरे बहकाने कि अब हद हो गई है, यदि तेरा भगवान हर जगह है। तो बता इस खंभे में क्यों नहीं दिखता?

यह कहकर क्रोध से तमतमाया हुआ, वह स्वयं गदा लेकर सिंहासन से कूद पड़ा। उसने बड़े जोर से उस खंभे को एक गदा मारा। वह खंभा धराशाई हो गया, और उसके अंदर से नरसिंह भगवान प्रकट हो गए। उनका आधा शरीर सिंह का, और आधा शरीर मनुष्य का था। क्षण मात्र में ही नरसिंह भगवान ने हिरण्यकशिपु की जीवन लीला समाप्त कर दी, जब हिरण्यकशिपु अपनी अंतिम सांसे गिन रहा था, तभी आकाशवाणी हुई, जिसने हिरण्यकशिपु को वरदान के सत्य के बारे में बताया कि तुझे मारने वाला ना तो पशु है और ना ही मनुष्य, ना ही देवता है। ना तू घर के बाहर मारा है और ना तू घर के अंदर मरा है, तेरी मृत्यु इस समय तेरे महल के दहलीज में हो रही है। ना तू दिन में मार रहा है और ना तू रात में मर रहा है। तेरी मृत्यु दिन और रात के मिलन वाले समय यानी संध्या में हो रही है। और आकाशवाणी खत्म होने के तुरंत बाद ही हिरण्यकशिपु भी खत्म हो गया। भगवान नरसिंह ने प्रहलाद की रक्षा की, और उसे दैत्यो का राजा बना दिया।

इस प्रकार हम सब नरसिंह भगवान को नमस्कार करते हैं

(नरसिंघ अवतार कथा समाप्त)


Hindi Story – वामन अवतार (हिन्दू प्राचीन इतिहास)

एक समय की बात है। युद्ध में इंद्र से हार कर दैत्यराज बलि गुरु शुक्राचार्य की शरण में गए। शुक्राचार्य उनके अंदर देव भाव को जगाया। कुछ समय बाद गुरुकृपा से बलि ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। प्रभु की महिमा कितनी विचित्र है कि कल तक देवराज रहे इंद्रा आज भिखारी हो गए।

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वह दर-दर भटकने लगा ,अंत में अपनी माता अदिति के पास गये। इंद्र की दशा देखकर मां का हृदय दुखित हो गया। अपने पुत्र के दुख से दुखी, अदिति ने पयोव्रत का अनुष्ठान किया। व्रत के अंतिम दिन भगवान विष्णु प्रगट हुए और आदित्य से कहा- हे देवी, चिंता मत करो, मैं तुम्हारे गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लूँगा और इंद्र का छोटा भाई बन कर, उनका कल्याण करूंगा।
यह कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए, आखिरकार वह शुभ घड़ी आ ही गई, जब भगवान आदित्य के गर्भ से बालक के रूप में अवतरित हुए। भगवान का यह अवतार वामन रूप कहलाया। भगवान को पुत्र रूप में पाकर आदित्य की प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा।

भगवान को वामन ब्रह्मचारी के रूप में देखकर देवताओं और महर्षि और को बड़ा आनंद हुआ। उन लोगों ने कश्यप जी को आगे करके भगवान का उपनयन संस्कार करवाया। उसी समय भगवान ने सुना कि राजा बलि अश्वमेघ यज्ञ कर रहे हैं। उन्होंने वहां के लिए प्रस्थान किया। भगवान वामन ने कमर में मूंज की मेखला और यज्ञोपवीत धारण किए हुए थे। बगल में मृगचर्म था। सिर पर जटा थी, इसी प्रकार भगवान विष्णु वामन के वेश में बाली के यज्ञ में प्रवेश किया। वामन को देखकर बलि का ह्रदय गदगद हो गया। उन्होंने भगवान को ब्रांहण समझ कर एक उत्तम आसन दिया। बलि ने नाना प्रकार से वामन की पूजा की,उसके बाद बलि ने प्रभु से कुछ मांगने का अनुरोध किया।

तब भगवान वामन ने राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी, यह सुनकर शुक्राचार्य भगवान विष्णु की लीला समझ गए थे। उन्होंने दान देने से राजा बलि को मना किया। परंतु राजा बलि नहीं माना, क्योंकि वह दिए हुए वचन को वापस नहीं लेता था। और घर आए हुए ब्राह्मण को वह कैसे खाली हाथ जाने देता। इसलिए उसने गुरु शुक्राचार्य की बात को नहीं माना। उसने संकल्प लेने के लिए जल पात्र उठाया। जिसकी वजह से शुक्राचार्य नाराज हुए और राजा बलि को श्राप दिया कि तेरा इंद्रासन, अब तेरा नहीं रहेगा। राजा बलि ने वामन भगवान को तीन पग भूमि देने का संकल्प पूरा किया। भगवान ने अपने शरीर को बढ़ाना प्रारंभ किया, और इतने बड़े विशाल हो गए, कि वहां मौजूद अन्य दैत्य थरथर कांपने लगे। भगवान ने एक पग में पृथ्वी आपली नाप ली, दूसरे पग में स्वर्ग नाप लिया। तीसरे पग को रखने के लिए कोई स्थान ही नहीं मिला, तब राजा बलि ने तीसरे पग के लिए अपने आप को ही समर्पित कर दिया। बलि के इस समर्पण भाव से भगवान बहुत प्रसन्न हुए, उन्होंने उसे सुतल लोक का राज्य दे दिया। इंद्र को स्वर्ग का स्वामी बना दिया।

कहा जाता है, कि भगवान द्वारपाल के रूप में राजा बलि को, और उपेंद्र के रूप में इंद्र को नित्य दर्शन देते हैं

परम दयालु वामन भगवान को हम सब नमस्कार करते हैं

(वामन अवतार कथा समाप्त)


 

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