भूत का किस्सा – रीवा के गिरमिट गांव में सरकटे भूत की कहानी

भूत का किस्सा – रीवा के गिरमिट गांव में सरकटे भूत की कहानी

यह किस्सा बहुत पुराना है। 1890 के आसपास की बात है। यह किस्सा रीवा के गिरमिट गांव की हैं, अब यह कहानी कितनी सही है और कितनी गलत है, यह भगवान ही जानता होगा। इस कहानी को हमने अपने गांव के बड़े सायनो से सुना है। 1890 की एक रात राम बहोर देसोका गांव का चौकीदार था, वास्तव में वह नेपाल से आया था और इसी गांव में बस गया था। उसका काम गांव में पहरेदारी करना था, बदले में गांव वाले उसे जीवन यापन के लिए कुछ पैसे और साल भर का अनाज दे दिया करते थे। राम बहोर नेपाल के एक ऐसे इलाके से था जहां के लोग चाइना के प्रभाव में थे और पूरा का पूरा गांव नास्तिक हो गया था और भगवान पर विश्वास नहीं करते थे, ना ही किसी भी प्रकार की पूजा पद्धति का अनुसरण करते थे।

राम बहोर रीवा के गिरमिट गांव में 1886 में आया था, और अपने परिवार के साथ यहीं पर स्थाई रूप से रहने लगा था। गांव के जमींदार ने जमीन का एक छोटा टुकड़ा घर बनाने के लिए दे दिया था।

राम बहोर पिछले 4 सालों से बिना किसी समस्या के गांव में पहरेदारी करता आ रहा था। इस दौरान उसे चौकीदारी के दौरान किसी भी प्रकार की कोई समस्या का सामना नहीं करना पड़ा । लेकिन पिछले तीन चार दिनों से वह बहुत परेशान था, क्योंकि गांव में लगातार किसानों के मवेशी गायब हो रहे थे, गांव के बहुत से लोग राम बहोर पर शंका करने लगे और मवेशियों के गायब होने का इल्जाम राम बहोर के ऊपर ही डालने लगे।

इसलिए राम बहोर के ऊपर बहुत ज्यादा दबाव था की या तो चोरी का जुर्म को स्वीकार कर ले या फिर अपने आप को निर्दोष साबित करने के लिए मवेशियों के गायब होने के रहस्य को उजागर करें।

राम बहोर अब ज्यादा सजग होकर गांव में चौकीदारी करने लगा,राम बहोर ने अपनी चौकसी को और ज्यादा बढ़ा दिया था। तभी एक रात उसने देखा की एक आहट जो कि धुधली सी दिख रही थी। वह गांव के अंदर की ओर बहुत तेजी से प्रवेश किया। राम बहोर भी उस आहट की ओर लपका, तो उसने पाया की आहट किसी इंसान की है जो कि घोड़े पर बैठा हुआ है। ज्यादा ध्यान से देखने पर उसे समझ में आया की घोड़ा भी है और घोड़े के ऊपर बैठा हुआ एक इंसान भी है।

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लेकिन उस इंसान का सर गायब है। राम बहोर डर गया और बात की सच्चाई को पता करने के लिए हिम्मत करके वह आहट के सामने कूद गया। अब वह उस आकृति के सामने खड़ा हुआ था और वह आकृति रामबहोर के सामने खड़ी हुई थी। राम बहोर ने बिल्कुल सही देखा था, सामने घोड़े पर बैठा एक इंसान का धड़ था और सर वहां पर नहीं था।

वह आहट अचानक से हवा में उड़कर कहीं गायब हो गया, राम बहोर जान गया कि यह एक आत्मा है, ना कि कोई जीवित इंसान। लेकिन पिछले 4 वर्षों से वह हर रात, इस गांव में पहरेदारी करता आ रहा है। लेकिन कभी भी उसकी मुलाकात इस आहट से नहीं हुई थी।

उसने अगली सुबह यह बात चौपाल पर पूरे गांव वालों को बताया, गांव के अधिकांश लोग राम बहोर की बात पर विश्वास नहीं कर रहे थे और सब उसे चोरी छिपाने के लिए मनगढ़ंत कहानी बनाकर लोगों को गुमराह करने की बात कह रहे थे।

लेकिन गांव के एक मास्टर साहब थे, उन्होंने बताया कि पिछले ही महीने की बात है, कुछ अंग्रेजों की एक छोटी सी टुकड़ी पास के ही एक जंगल में रुकी हुई थी और क्रांतिकारियों के साथ उनका मुठभेड़ हुआ था, जिसमें सभी अंग्रेज मारे गए थे। उन टुकड़ी के सरदार की मृत्यु भी सर कटने की वजह से हुई थी।

अब मास्टर की बात सुनकर गांव के अन्य लोगों को भी राम बहोर के द्वारा सुनाई गई बात पर कुछ कुछ विश्वास होने लगा था। मास्टर की बात सुनकर राम बहोर अब और डर गया था। पहले तो उसने सोचा कि भूले भटके, यह कोई आत्मा है, जो इस गांव आ गई है और जल्दी वापस चली जाएगी। लेकिन जब उसे पता चला कि यह आत्मा इसी गांव के पास मरी थी तो उसके हाथ पैर फूल गए क्योंकि इसका सीधा मतलब था, की अब यह जो सर कटा भूत था, वह कहीं नहीं जाने वाला, इसी गांव के आसपास भटकता रहेगा।

अगली रात को राम बहोर डर डर कर चौकीदारी कर रहा था और पूरा प्रयास कर रहा था कि वह ज्यादातर किसी स्थान पर छुपा रहे और उसका सामना उस सरकटे भूत से ना हो, परंतु जिस स्थान पर चौकीदार छिपा हुआ था, उसी के पास मवेशियों का कुछ झुंड गर्मी के रात की सुकून देने वाली ठंडक का आनंद ले कर जुगलबंदी कर रहे थे। तभी वहां पर वह सर कटा भूत आ गया और एक बकरे के बछड़े को पकड़कर अपने घोड़े पर टांग कर जाने लगा। इसी दौरान राम बहोर की आहट जान कर भूत वहीं पर रुक गया। राममोहन ने छिपते हुए भूत की तरफ देखा, लेकिन वहां पर उस सरकटे भूत का घोड़ा बस खड़ा था। तभी रामबहोर को अपने कानों के पास किसी की सांस लेने की आवाज आई, राम बहोर डर गया था।

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उसको पूरा विश्वास था कि इस समय वह सर कटा भूत ठीक उसके पीछे खड़ा हुआ है। तभी वह ना चाहते हुए भी पीछे पलटा और भूत ने उसके पैर को पकड़कर बड़ी तेजी के साथ उसे जमीन पर पटक दिया। माहौल में अजीब सी डरावनी आवाजें गूंजने लगी, वह भूत हवा की तरह राम बहोर के चारों तरफ घूम रहा था और बहुत ही डरावनी आवाजें निकाल रहा था। राम बहोर का डर के मारे बुरा हाल था। वह अपनी सुध बुध खो चुका था। तभी उसे गांव के पंडित रासबिहारी तिवारी की एक बात याद आई, जो आज सुबह ही पंडित जी ने राम बहोर से कहा था। रासबिहारी तिवारी ने राम बहोर को बताया था अगर भूत का सामना फिर से हो तो तुरंत हनुमान चालीसा का पाठ करना।

राम बहोर 4 सालों से इस गांव में रह रहा था, गांव का हर आदमी शाम को हनुमान चालीसा पढ़ता था। इसलिए ना चाहते हुए भी राम बहोर को हनुमान चालीसा याद हो गया था। राम बहोर ने तुरंत हनुमान चालीसा का जोर जोर से पाठ करना चालू किया और जैसे ही राम बहोर ने हनुमान चालीसा का पाठ किया। वह सर कटा भूत वहां से बकरी का बच्चा ले कर गायब हो गया।

भूत के चले जाने के बाद राम बहोर के सांस में सांस आई, उसने भगवान को धन्यवाद दिया। और ठान लिया कि अब वह इस गांव में नहीं रहेगा और सुबह होते ही वह गांव छोड़कर चला जाएगा। कहते हैं राम बहोर जिस जिस गांव पर गया, वह सर कटा भूत भी राम बहोर के पीछे पीछे गया।

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अंत में कई सालों बाद पता चला कि राम बहोर किसी गांव के एक मंदिर में पूजा पाठ करने लगा और उस गांव के मंदिर में पुजारी बनकर रहने लगा और जब से वह उस हनुमान मंदिर में पुजारी बनकर रहने लगा, तब से उसे उस सरकटे भूत ने परेशान नहीं किया। लेकिन रीवा के गिरमिट गांव में फिर कभी उस भूत को नहीं देखा गया और राम बहोर के जाने के बाद कभी भी उस गांव से कोई मवेशी गायब नहीं हुआ।

दोस्तों यह कहानी अक्सर बचपन में हमने अपने बड़े सायनो से जरूर सुना होगा। अब इस भूत की कहानी में कितनी सच्चाई है यह भगवान ही जाने पर आप इस भूत की कहानी के बारे में क्या सोचते हैं नीचे कमेंट करके जरूर बताएं।

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