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MP GK : मध्यप्रदेश के किले और दुर्ग (Excellent New article For MPPSC 2022)

मध्यप्रदेश में कई किले हैं, किलो को दुर्ग भी कहते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख किलो एवं दुर्ग के बारे में आज हम mp gk मे  पढ़ेंगे मध्य प्रदेश के प्रमुख किले और दुर्ग

MP GK : ग्वालियर का दुर्ग

राजा सूरजसेन द्वारा यह किला बनवाया गया था, मध्य प्रदेश के इतिहास में ग्वालियर के किले का स्थान प्रमुख किलो में से एक हैं।

यह इतना विशाल भव्य और मजबूत किला है कि इसे हम भारत के किलो का रत्न या भारत के किलो का सिरमौर भी कह सकते हैं।

संभवत इस दुर्ग का निर्माण 525 ईस्वी में राजा सूरज सेन के द्वारा करवाया गया था। यह दुर्ग उत्तर भारत के इतिहास में विशेष महत्व रखता है। ग्वालियर दुर्ग में उन राजवंशों की स्मृतियां सुरक्षित है जिन्होंने यहां राज्य किया और समय के गर्भ में समा गए। 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन में ग्वालियर दुर्ग का महत्वपूर्ण योगदान है।

MP GK : धार का किला

मध्य प्रदेश के पश्चिम भाग में धार नाम का एक जिला है। जहां एक छोटी पहाड़ी पर यह किला स्थित है। इसका पुनर्निर्माण 1344 ईस्वी में सुल्तान मोहम्मद तुगलक ने अपनी दक्षिण विजय के दौरान देवगिरी जाते समय, यहां ठहरने के उद्देश्य से कराया था।

मुगल सम्राट शाहजहां के बड़े बेटे दाराशिकोह ने भी औरंगजेब के साथ युद्ध के दौरान यहां आश्रय लिया था। 1732 ईशा में मराठा पवार नरेशो का इस किले पर आधिपत्य हो गया था।

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MP GK : असीरगढ़ का किला

मध्य रेलवे की इटारसी-भुसावल लाइन पर, बुरहानपुर स्टेशन से 20 किलोमीटर दूर महेश्वर के निकट असीरगढ़ एक छोटा सा कस्बा है। यही एक पहाड़ी पर यह किला बना हुआ है। किले का निर्माण आशा नाम के एक अहिर राजा ने करवाया था।

किले के दीवारें काफी ऊंची है, किले में आशा देवी की प्रतिमा और मंदिर है। किले के तीन भाग हैं। किले के मध्य में कमरगढ़, मलाईगढ़ भागों का निर्माण आदिल खान फारुकी ने कराया था।

MP GK : चंदेरी का किला

चंदेरी का यह किला मध्य प्रदेश के बीना-कोटा राजमार्ग के मुंगावली स्टेशन से 38 किलोमीटर और ललितपुर से 34 किलोमीटर दूर स्थित है। बेतवा नदी के किनारे मौजूद चंदेरी एक किले का निर्माण प्रतिहार नरेश कीर्ति पाल ने प्यार प्यार 11वीं शताब्दी में कराया था। यह दुर्ग बहुत ही मजबूत है और पहाड़ में मौजूद होने की वजह से यह एक पहाड़ी दुर्गे है जो 70 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना है। किले की दीवारों का निर्माण चंदेरी के मुस्लिम शासको ने कराया था।

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गिन्नौरगढ़ का किला

भोपाल से 60 किलोमीटर दूर गिन्नौर है। जहां 390 मीटर लंबी और 50 मीटर चौड़ी पहाड़ी पर एक किला बना हुआ है। किले को गिन्नौरगढ़ दुर्ग कहते हैं। करो

इसका निर्माण तेरहवीं शताब्दी में महाराजा उदय बर्मन ने करवाया था। इस दुर्ग का अंतिम गौंड शासक कमलापति था। इस किले के निकटवर्ती क्षेत्र में तोते बहुत पाए जाते हैं। इसलिए इसे शुक अर्थात तोतो का क्षेत्र कहते हैं। यहां के तोते संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। यह किला किस पहाड़ पर हुआ है उसे असरफी पहाड़ी कहते हैं।

रायसेन का दुर्ग

भोपाल के 46 किलोमीटर दूर रायसेन नाम का जिला है। यहीं पर एक पहाड़ी के शिखर पर रायसेन का दुर्ग 16 वीं शताब्दी में राजा राज बसंती ने बनवाया था। सैनिक दृष्टि से यह दुर्ग बहुत ही महत्वपूर्ण था। इसी कारण मुस्लिम राजाओं ने इस दुर्ग को अपना मुख्यालय बनाकर अनेक वर्षो तक मालवा पर राज्य किया था।

इस दुर्ग में तीन राज महल बादल महल, राजा रोहित महल और इत्र दार महल मौजूद है।

बांधवगढ़ का किला

यह दक्षिण पूर्व रेलवे के कटनी बिलासपुर मार्ग पर उमरिया स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर स्थित है। यह अजेय, मजबूत और भक्त दुर्ग विंध्याचल पर्वत के घने जंगलों में 900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। 14 वीं शताब्दी में इस किले का निर्माण किया गया था।

यह किला भीतर से बहुत विशाल, ऊबड़-खाबड एवं डरावना लगता है़। इसके अंतर्गत अनेक इमारतें ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती है।

अजयगढ़ का किला

पन्ना नगर से 34 किलोमीटर दूर उत्तर में अजयगढ़ एक छोटा सा नगर है। जहां एक विशाल, मजबूर और दुर्गम किला मौजूद है । इस किले का निर्माण राजा अजय पाल ने कराया था। 18 वीं शताब्दी में पन्ना रियासत के राजाओं ने इस किले का पुनर्निर्माण कराया था। इस किले में राजा अमन का महल विशेष रूप से दर्शनीय स्थल है। इस महल में बारीक पत्थरो की पच्चीकारी का सुंदर नमूना है। किले के अनेक खंडहर पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

ओरछा का किला

मानिकपुर झांसी रेल मार्ग पर बेतवा नदी पर झांसी से अगला स्टेशन ओरछा है। यहां एक विशाल एवं मजबूत किला बुंदेला वंश के राजाओं के सौर्य, पराक्रम और वीरता पूर्ण गौरव गाथाओं का यशोगान कर रहा है। दूर्ग के अंदर अनेक प्राचीन मंदिर है। जिनमें चतुर्भुज मंदिर, राम मंदिर तथा लक्ष्मी नारायण मंदिर बुंदेल राजाओं की कला प्रियंका का प्रतीक है।

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चतुर्भुज मंदिर का निर्माण राजा वीर सिंह जूदेव 17 वीं शताब्दी में कराया था। उन्हीं ने आगे चलकर राम मंदिर और लक्ष्मीनारायण मंदिरों का भी निर्माण कराया था। यही बेतवा नदी के द्वीप में राजा वीरसिंह जूदेव द्वारा बनवाया विशाल महल भी स्थित है। राम मंदिर और जहांगीर महल के पुराने खंडहर अनुपम कला के उदाहरण हैं।

मंडला का दुर्ग

जबलपुर से 96 किलोमीटर दूर माहिष्मती नामक एक प्राचीन नगर है जिसे वर्तमान में मंडला कहते हैं। यह बंजर वा नर्मदा के संगम पर एक दुर्ग विद्यमान है। इस दुर्ग को मंडला का दुर्ग कहते हैं। नर्मदा नदी इसे तीन तरफ से गिरी हुई है तथा चौथी तरफ से एक गहरी खाई बनी हुई है।

पहले यह दुर्ग चारों ओर से पानी से घिरा था। दुर्ग के नीचे कभी एक सुरंग थी जो मदन महल को जोड़ती थी।

मदन महल का निर्माण 1200 ई 0 में राजा मदन शाह ने करवाया था। यह महल गोंड कला का उत्कृष्ट नमूना है और पुरातत्व की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण धरोहर है। यह दुर्ग गोंड राजाओं की राजधानी और शक्ति का प्रमुख केंद्र रहा है, मंडला के इस दुर्ग का निर्माण प्रख्यात गोंड नरेश राजा नरेंद्र शाह में अनेक वर्षों में कराया था।

MPGK : मंदसौर का किला

मध्य प्रदेश के पश्चिम उत्तर भाग में मालवा की हरी-भरी भूमि में शिवना नदी के किनारे मंदसौर नाम का एक जिला स्थित है। इसे प्राचीन काल में दसपुर भी कहा जाता था। नगर के पूर्वी भाग में चौदहवीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी ने एक किले का निर्माण कराया था जिसे मंदसौर का किला कहा जाता है। इस किले की दीवारें बहुत से स्थानों पर टूट-फूट चुकी हैं। इस दुर्गे की दीवारों में लगाए गए पत्थरों पर हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां बनी है। जिससे यह सिद्ध होता है की हो ना हो इस किले का निर्माण किसी हिंदू राजा ने कराया हो जिसे बाद में अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा कब्जा कर लेने के बाद पूर्ण निर्माण कराया गया हो।

नरवर का किला

शिवपुरी से उत्तर में 19 किलोमीटर दूर सतनवाड़ा स्टेशन से 25 किलोमीटर उत्तर में नरवर नाम का स्थान है। यहीं पर एक पहाड़ी पर बना हुआ मजबूत किला है। जो राजा नल की राजधानी था। राजा नल और दमयंती की प्रेम कथाएं हिंदी साहित्य जगत के चाहने वालों के बीच पर काफी विख्यात है। यह ग्वालियर दुर्ग के समान ही महत्वपूर्ण एक दुर्ग है। इस दुर्ग का संबंध कछवाहो, तोमारो और जयपुर के राजघरानों से है।

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दतिया का किला

इस किले का निर्माण बुंदेलखंड के राजा वीर सिंह जूदेव ने 1626 ईशा में कराया था। दतिया के राजा महाराज भवानी सिंह के शासनकाल में दुर्ग के मुख्य द्वार पर अंग्रेजी का एक वाक्य लिखवाया गया था। यह वाक्य जस्टिस इज द जेम ऑफ क्राउन हैं।
किले के अंदर के दीवारों पर गेंडा, हाथी और उसके विपरीत दिशा में हिप्पो चिड़िया का सर टंगा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि नरेश गोविंद सिंह ने अपनी अफ्रीका यात्रा के दौरान इस हिप्पो चिड़िया का शिकार किया था तथा इसका सर अपने साथ ले आई थी।

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