Chudailon ki Kahani- डरावनी चुड़ैल और आँगन मे मैं अकेला

Chudailon ki Kahani- डरावनी चुड़ैल और आँगन मे मैं अकेला

एक बार की बात है, मैं अपने घर के बाहर खटिया में लेटा हुआ था. गर्मी के महीने चल रहे थे, इसलिए अक्सर हम लोग घर के बाहर वाले आंगन में सो जाया करते थे. उस दिन घर में भैया और पापा नहीं थे, तो मैं आंगन में अकेला सोया हुआ था.

तभी मुझे किसी के आहट की आवाज सुनाई दी. मैं नींद में ही आंखें खोल कर देखा, आंगन के पास लगे एक बेर के पेड़ में, ऐसा लगा जैसे कोई ऊपर चढ़ रहा हो, फिर नीचे उतर रहा हो. मैंने आंखें बंद करके, फिर सोने लगा. तभी मेरे मन मे एक शंका उत्पन्न हुई, मैं डर गया, मुझे लगा, जो मैंने देखा है, अगर वह सच है तो मैं बहुत बड़ी मुश्किल में हूं।

क्योंकि निश्चित रूप से यह कोई आत्मा है, जो इतनी फुर्ती के साथ उल्टा शरीर होकर, पेड़ को चढ़ रही है और फिर उतर रही है। उसकी मुंडी पीठ की तरफ है। अब मैं क्या करूं, मेरे पूरा शरीर पसीने से लथपथ हो गया। लेकिन मैंने अभी आंखें नहीं खोली। फिर से आहट हो रही थी, अब उसके गुर्राने की आवाजें भी आने लगी थी। शायद उसको पता चल गया था, कि मैंने उसको देख लिया है। और अब सोने का नाटक कर रहा हूं।

क्या किया जाए, तभी मेरे को ध्यान आया कि मेरे दादा ने एक बार बताया था, कि जब भी कोई आत्मा से भेंट हो जाए तो हनुमान चालीसा पढ़ना चाहिए। लेकिन मैं तो हनुमान चालीसा भी याद नहीं किया हूं, क्योंकि मैं बहुत लापरवाह हूँ, मैं दिन भर मोबाइल चलाता रहता हूं, एक पगलेट नेता का चमचा बन गया हूं। और कूल दिखने के चक्कर में हिंदू धर्म को उटपटांग बोलता रहता था। मन ही मन जिस धर्म को मैं मानने लगा था, उसके मंत्र मैंने मन ही मन कहे, पर वह मंत्र तो फुस्स साबित हुये। अब क्या किया जाए,

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अब धीरे-धीरे वह आत्मा, मेरे नजदीक आने लगी, मैंने एक आंख खोल कर चुपके से देखा, तो वह आत्मा अब मेरी ओर ही आ रही थी। उसका सर उल्टा था, और उसके पैर भी उल्टे थे।

अब मैं क्या करूं, मेरे तो हाथ पैर हिलना ही बंद हो गए थे, मैं चिल्लाना चाह रहा था पर चिल्ला नहीं पा रहा था। अचानक कोई, आता है, और चिल्ला कर चुड़ैल से बोलता हैं- भाग यहां से शैतान, दूर हो जा यहां से। दोबारा अगर यहां दिखी तो जला कर तुझे भस्म कर दूंगा। और वह आत्मा खूब तेज आवाज मे फुसकारने लगती है। तभी उस आदमी ने संस्कृत का कोई मंत्र बोला, उस मंत्र को सुनकर वह चुड़ैल चिल्लाकर हवा में उड़ गई।

मैंने तुरंत अपनी आंखें खोली, तो यह विशंभर पंडित जी थे, जो मेरे घर के सामने वाली मंदिर में ही पुजारी के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे थे। मैं तुरंत खटिया से उठा, और विशंभर पंडित जी के चरणों में लेट गया। उस दिन मुझे, पहली बार हिंदू होने में बहुत खुशी हो रही थी। मैं जिस धर्म को मन ही मन मान रहा था, मैंने उसका परित्याग कर दिया। और फिर से सनातन धर्म की ओर बढ़ चला। अब मैं सुबह और शाम मंदिर जाया करता हूं। हनुमान चालीसा पढ़ता हूं, दुर्गा चालीसा पढ़ता हूं।

इस से भी बढ़कर, जब भी मुझे समय मिलता है तो मैं गीता का पाठ करता हूं। अपने धर्म को समझता हूं, मेरे धर्म के जो बुराई करते हैं, वह वास्तव में मेरे धर्म से डरते हैं। इसलिए उसे झूठा साबित करके, बदनाम कर रहे हैं।

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जब से मैंने गीता का पाठ करना चालू किया था, तब से मेरी एकाग्रता बढ़ गई। और मेरा पढ़ाई में मन लगने लगा। और इसी वजह से नासा का वैज्ञानिक बन गया। आप इंटरनेट में आसानी से देख सकते हैं जो लोग गीता का अध्ययन करते हैं, बहुत बड़े पद वाली नौकरी करते हैं, मैंने तो कई नासा वैज्ञानिकों को देखा है जो गीता की किताबे हमेशा अपने साथ लिए रहते हैं। वैज्ञानिक के साथ-साथ , मैं अब लोगों को मोटिवेट करता हूं। और बचपन की उस भयानक रात के बाद कभी भी किसी भूत ने मुझे परेशान नहीं किया।

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