indira gandhi: इन्दिरा गांधी, भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री  | Essay – Indira Gandhi

Indira Gandhi : इन्दिरा गांधी, भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री

इन्दिरा गांधी का परिचय (Who is Indira Gandhi?):

Indira Gandhi : इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर सन 1917 में इलाहाबाद में स्थित मोतीलाल नेहरू के द्वारा बनवाए आनंद भवन में हुआ था। इन्दिरा गांधी के पिता श्री जवाहरलाल नेहरू एक कश्मीरी पंडित थे। इंदिरा गांधी जी बहुत ही भाग्यशाली थी कि वह बचपन से ही सदैव आसाधारण व्यक्तियों के बीच में रही है। उनके पैदा होने पर उनकी दादी स्वरूप रानी नेहरू ने सामान्य परिवारों की तरह पुत्र लाभ की इच्छा जताई तो मोतीलाल नेहरू ने इस बात पर अपना असंतोष व्यक्त करते हुए कहा की हमारे परिवार में बेटे और बेटियों में कोई भेदभाव नहीं होता है। और आगे चलकर जवाहरलाल नेहरू की यह पुत्री जिसका नाम इंदिरा था आगे चलकर हजार पुत्रों की अपेक्षा कहीं अधिक यशस्वी सिद्ध हुई। पंडित मोतीलाल नेहरू की यह भविष्यवाणी कितनी सत्य सिद्ध हुई, यह आप स्वयं ही जान गए होंगे।

इन्दिरा गांधी का नाम इन्दिरा क्यो पड़ा (Why Indira Gandhi name was Indira)

मोतीलाल नेहरू ने अपनी माता के नाम पर जवाहरलाल नेहरु की पुत्री का नाम इंदिरा रखा था। मोतीलाल नेहरू इंदिरा गांधी के दादाजी थे। जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू इंदिरा का नाम प्रियदर्शनी रखना चाहते थे जिसका अर्थ होता है जो देखने में प्रिय लगे। इस प्रकार उनका नाम इंदिरा प्रियदर्शनी हो गया। उनकी माताजी कमला नेहरू ने उनके पालन पोषण और शिक्षा दीक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कमला नेहरू मजबूत इरादों वाली महिला थी। अपनी माता के गुणों का इंदिरा जी पर बहुत प्रभाव पड़ा।

इन्दिरा गांधी का बचपन (Indira gandhi Ka Bachpan)

बचपन से ही इंदिरा प्यार और और दुलार में रही, क्योंकि वह जवाहरलाल नेहरू की एकलौती संतान थी, इसलिए उन्हें बहुत ही लाड प्यार से पाला गया था लेकिन इस लाड प्यार में भी वह बिगड़ी नहीं थी। उनके दादाजी उनके पालन पोषण में नियम निष्ठा में विश्वास रखते थे परंतु इंदिरा के दादा इंदिरा की हर इच्छा की पूर्ति करते थे। उनके माता-पिता भी उनके प्रति दिन के कार्यों में नियम निष्ठा का पालन करते थे।

Indira Ji का जन्म जिस परिवार में हुआ था और जिस समय हुआ था, उस समय स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था और आनंद भवन सभी स्वतंत्रता सेनानियों के कार्यों का मुख्य केंद्र था। उनके पिता तथा दादा और परिवार के सभी लोग इस आंदोलन में काफी सक्रिय भूमिका निभा रहे थे। indira gandhi के बचपन में एक महत्वपूर्ण घटना हुई महात्मा गांधी जी के कहने पर पूरे भारत में विदेशी कपड़ों की होली जलाई जा रही थी। नेहरू परिवार के सदस्यों ने भी अपने सुंदर कीमती कपड़ों तथा अन्य एकत्रित विदेशी कपड़ों को छत पर जमा किया, यह कपड़े छत में इसलिए एकत्रित किए जा रहे थे जिससे बाद में इन्हें भी आग के हवाले किया जाए।

उस समय बच्ची इंदिरा को इन कपड़ों के ढेर पर कूद कूद कर खेलने में बड़ा आनंद आता था। उस समय में इंदिरा जी के एक रिश्तेदार पेरिस से आई थी तथा वह इंदिरा के लिए उपहार स्वरूप एक विदेशी सुंदर फ्रॉक लाई थी। कमला नेहरू ने अपनी रिश्तेदार से कहा कि अब हम विदेशी कपड़े नहीं पहनते हैं। सिर्फ खादी के हाथ से बने वस्त्र ही पहनते हैं। परंतु उस रिश्तेदार को यह बात अच्छी नहीं लगी। वह छोटी इंदिरा को वह फ्रॉक देना चाहती थी, उनके बार-बार आग्रह करने पर कमला नेहरू ने इंदिरा को बुलाया तथा उनसे कहा कि आपकी आंटी आपके लिए विदेशी फ्रॉक लाई हैं। उस फ्रॉक को देखकर छोटी इंदिरा बाल मन के कारण मुक्त हो गई। फिर उन्हें ख्याल आया कि इन्हीं विदेशी कपड़ों की होली जलाई जा रही है तथा घर के सभी सदस्य भी इस तरह के वस्त्र नहीं पहनेंगे। उन्होंने तुरंत उस फ्रॉक को लेने से मना कर दिया। इस पर उस रिश्तेदार ने कहा कि तुम्हारे पास जो विदेशी गुड़िया है उसका क्या करोगी? इंदिरा जी को गुड़िया से बहुत लगाव था। वह उसे अपना दोस्त मानती थी। उसके बिना इंदिरा अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती थी। कुछ दिन तक इंदिरा जी अपनी गुड़िया के प्रति लगाओ तथा देश के प्रति कर्तव्य को लेकर काफी द्वंद में रही। इस वजह से वह काफी परेशान भी रहती तथा उनका किसी काम में मन नहीं लगता था। आखिर इंदिरा ने निर्णय नहीं लिया, उन्होंने अपनी प्रिय गुड़िया को छत पर कपड़ों के ढेर के साथ रख दिया और उसमें आग लगा दी। इसके बाद में काफी दिन तक रोती रही तथा दुख से उन्हें बुखार तक आ गया।

अब आनंद भवन में राजनीतिक गतिविधियां भी ज्यादा होने लगी जिसका प्रभाव इंदिरा गांधी पर पड़ने लगा। टेबल पर चढ़कर अपने घर के नौकरों को इकट्ठा कर उन्हें भाषण देना इंदिरा को बहुत अच्छा लगता था।

जब इंदिरा 6 वर्ष की हो गई तब उनके दादा ने उनकी माता के परामर्श से इंदिरा को इलाहाबाद के ही एक स्कूल में प्रवेश दिला दिया। इंदिरा के पिता और दादा को बार-बार गिरफ्तार किया जाता था, जिसके कारण उनकी औपचारिक शिक्षा में कई बार विघ्न पड़ा। जब उनके पिता जेल में रहते तो इंदिरा को विविध विषयों की पुस्तकें खरीदने के लिए मार्गदर्शन किया करते थे। इंदिरा बचपन से ही पढ़ाई की शौकीन रही उन्होंने अपने धार्मिक ग्रंथों के साथ ही कई विदेशी, देसी सभी लेखकों की कृतियां को पढ़ा। उनके ऊपर जॉन ऑफ आर्क की कहानियों का बहुत प्रभाव पड़ा। किस प्रकार जॉन ऑफ आर्क ने किस प्रकार अपने देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। इससे इंदिरा जी को बड़ी प्रेरणा मिली। इसी दौरान कमला नेहरू का स्वास्थ्य खराब हो जाने की वजह से मार्च 1926 में जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पत्नी तथा पुत्री को लेकर यूरोप चले गए।

इन्दिरा गांधी की विदेश मे पढ़ाई (Indira Gandhi ka videsh me adhyayan)

स्विट्जरलैंड में 9 वर्षीय इंदिरा को बेक्स में एक स्कूल में दाखिला दिया गया। वहां इंदिरा ने सरलता से फ्रेंच भाषा सीख ली और बोलना भी शुरू कर दिया। इंदिरा अपने पिता के साथ काफी समय वहां बिताई। माताजी के इलाज के दौरान पर काफी नए-नए देशों में गई। यूरोप में इनके माता पिता जब तक ठहरे जब तक अलग-अलग स्कूलों में इन्होंने शिक्षा प्राप्त की।

कुछ समय बाद नेहरू अपने परिवार के साथ भारत लौट आए। क्योंकि दिसंबर 1927 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का मद्रास में अधिवेशन होने वाला था। भारत के राजनीतिक वातावरण में भी तीव्र गति से बदलाव हो रहा था।

ऐसे समय में जब गांधी जी ने भारतीय महिलाओं से भी आंदोलन में और अधिक सक्रियता के लिए अपील की तो श्रीमती कमला नेहरू की अध्यक्षता में इलाहाबाद में महिलाओं को एकत्रित किया गया, विदेशी कपड़ों को जलाने तथा शराब की दुकानों पर धरना देने के लिए। नमक सत्याग्रह आंदोलन के दौरान जब नेहरू जी को गिरफ्तार किया गया तो कमला नेहरू को इलाहाबाद शहर और जिले में इस आंदोलन के मार्गदर्शन और संचालन के लिए कार्यभार सौंपा गया। इस समय इंदिरा के पास दूसरे बच्चे भी आने लगे। बच्चों ने गिरासे अनुरोध किया कि वह जुलूस में उनके दल का नेतृत्व करें। इस जुलूस पर प्रतिबंध के बाद भी बच्चों ने जुलूस निकाला, उन्हें सजा भी मिली, इस समय कमला नेहरू अत्यधिक व्यस्त हो गई। उनके ऊपर बहुत सी जिम्मेदारियां आ गई थी। वह शहर में जिधर भी जाते बच्चे उनके जय कारे करते नहीं थकते थे। उसी समय एक वृद्ध के सुझाव पर कमला नेहरू ने बच्चों की एक वानर सेना अपने कार्य में सहयोग के लिए बनाने की घोषणा की। इस वानर सेना के संगठन का कार्य इंदिरा गांधी को सौंपा गया। इंदिरा ने कार्यक्रम बनाकर सभी शैक्षिक संस्थाओं मे जाकर बच्चो को इसमें शामिल होने की अपील की। बच्चों का यह आंदोलन अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ। जवाहर लाल नेहरू ने इस बात से प्रसन्नता और गौरव महसूस कर रहे थे की उनकी बेटी ने वानर सेना का संगठन किया है। इस समय में इंदिरा के दादा गंभीर रूप से बीमार हो गए, उपचार के बावजूद उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना से उनका परिवार लंबे समय तक उबर नहीं पाया।

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इन्दिरा जी 13 वर्ष की हो गई तो उनके वर्षगांठ के दिन उनके पिता जवाहर लाल नेहरू ने इंदिरा जी के लिए जेल से पत्र लिखा। नेहरू जी को यह चिंता सदैव रहती थी कि उनके और परिवार के सदस्यों के बार बार जेल जाने से इंदिरा जी की औपचारिक शिक्षा की प्राप्ति उचित रूप में नहीं हो पा रही थी। वह स्वयं जेल से लिखे अपने पत्रों द्वारा इंदिरा का पूरा पूरा मार्गदर्शन करने का प्रयास करते थे। नेहरू जी के पुणे शहर के एक बोर्डिंग स्कूल में गांधीजी के सुझाव पर इंदिरा जी को भेज दिया। इन्दिरा भले ही एक समृद्ध परिवार से थी, परंतु उन्होंने स्कूल के सादे जीवन को अपना लिया था। इस स्कूल में छात्र प्रत्येक कार्यकलाप में एवं प्रोग्राम में भाग लेते थे। इंदिरा ने भी सभी कार्यक्रमों में भाग लिया। वह बड़े उत्साह से अपने कर्तव्यों को निभाती थी। वह स्कूल के छोटे बच्चों के प्रति बड़ी बहन की भूमिका निभाती थी। उस आयु में भी इंदिरा में महान संगठन और नेतृत्व क्षमता थी।

कुछ समय बाद इंदिरा जब 16 वर्ष की हुई, इसके बाद उन्होंने विश्व भारती में प्रवेश लिया। जहां वह गुरुदेव टैगोर के सानिध्य में रहकर ज्ञान प्राप्त करने लगी। शीघ्र ही इंदिरा ने 1934 में शांति निकेतन के कॉलेज में प्रवेश लिया, यहां का जीवन कठोर था, गुरुदेव ने जानबूझकर ऐसे कार्यक्रम बनाए थे। छात्रावास में बिजली का प्रबंध भी नहीं था परंतु इंदिरा ने कभी कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने आश्रम में पूर्ण निष्ठा और परिश्रम से दैनिक कार्यों को संपन्न किया और एक आदर्श छात्र के रूप में अपने को ढाल लिया।

इन्दिरा गांधी की माँ की बीमारी (Indira Gandhi ki Maa ki Bimari)

अप्रैल 1935 में कमला नेहरू के खराब स्वास्थ्य के कारण उन्हें इलाहाबाद वापस बुला लिया गया, नेहरू जी जेल में थे आता इंदिरा जी ही मई 1935 में अपनी माता को लेकर विदेश इलाज कराने गई। बाद में नेहरू जी को रिहा कर दिया गया तो वह भी जर्मनी चले गए। क्षय रोग से कमला नेहरू का स्वास्थ खराब होता जा रहा था, परंतु नेहरु जी के आने से उनकी सेहत में सुधार होने लगा, इसके बाद जनवरी 1936 के अंत में कमला नेहरू को स्विट्जरलैंड ले जाया गया, इस बीच जवाहरलाल नेहरू दूसरी बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उन्हें बार-बार भारत बुलाया जा रहा था। इंदिरा भी स्वीटजरलैंड के निकट वैक्स स्थित एक स्कूल में अध्ययन कर रही थी। वह उन अंतिम दिनों में अपने माता पिता के साथ रहने आने वाली थी। कमला जी का स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण नेहरू जी ने भारत आने का कार्यक्रम रद्द कर दिया। 28 फरवरी 1936 को प्रातः में कमला नेहरू का स्वर्गवास हो गया उस समय इंदिरा जी भी उनके पास थी। गांधीजी इंदिरा जी को और नेहरू जी को एक एक पत्र लिखकर सांत्वना दी। गांधी जी ने इंदिरा को लिखा की उनकी माता के स्वर्गवास से उनके उत्तरदायित्व और बढ़ गए हैं, परंतु वह इतनी बुद्धिमान हैं कि वह कमला नेहरू के सभी गुण अपना लेंगे। इस प्रकार गांधी जी ने इंदिरा को सांत्वना देते हुए प्रोत्साहन भी किया।

इन्दिरा गांधी का विदेशी कालेज दाखिला (Indira gandhi Ka College me Addmission)

समय बीतता गया, अपनी 20 वर्षीय पुत्री इंदिरा को जवाहरलाल ऑक्सफोर्ड में पढ़ाना चाहते थे, इंदिरा अपनी पढ़ाई के लिए स्विट्जरलैंड से इंग्लैंड चली गई ताकि वह लंदन विश्वविद्यालय में मैट्रिकुलेशन की परीक्षा दे सकें। इंदिरा ने ब्रिस्टल में बैडमिंटन स्कूल में भी दाखिला लिया, तत्पश्चात 1936 में ही ब्रिस्टल में अध्ययन पूरा कर वह ऑक्सफोर्ड में समरविले कॉलेज में प्रवेश ले लिया। फिरोज गांधी उस समय लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में विद्यार्थी थे।

इंदिरा जी जब 16 वर्ष की थी, उस समय उनकी दादी की इच्छा पर उनके विवाह के लिए जो प्रस्ताव आए थे, उसमें से एक प्रस्ताव फिरोज गांधी का भी था। परंतु यह विवाह संबंधी बात वहीं समाप्त हो गई थी, क्योंकि इंदिरा गांधी के माता-पिता उन्हें पढ़ाना चाहते थे। कमला जी की मृत्यु के समय फिरोज गांधी इंदिरा गांधी के पास ही थे।

जब इंदिरा ऑक्सफोर्ड में प्रवेश की तैयारी कर रही थी, उस समय लंदन में छात्रा के रूप में इंदिरा को बहुत सीमित मासिक राशि मिलती थी। यह राशि उनके पिता अपनी लिखी पुस्तकों की बिक्री से मिली रॉयल्टी से भेजा करते थे। 1937 में गर्मी ऋतु के समय इंदिरा भारत वापस आ गई, साथ में अपने पिता के साथ दक्षिण पूर्वी एशिया की यात्रा पर जा सकते हैं। 11 सितंबर 1937 में वह फिर से ऑक्सफोर्ड के समरविले कॉलेज में अध्ययन करने के लिए आ गई। वहां अभियान के दौरान इंदिरा गांधी का स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण वह स्विट्जरलैंड चली गई। परंतु अप्रैल 1939 में वह समरविले कॉलेज वापस आ गई। भारत में भी इस समय तक स्वतंत्रता संघर्ष का दूसरा दौर प्रारंभ हो गया था।

इन्दिरा गांधी का वापसी और विवाह (Marriage of Indira Gandhi)

कालेज मे पढ़ाई करते हुये वह भी अपने देश वापस आना चाहती थी। इसलिए जून 1941 में मुंबई होते हुए देहरादून जेल में अपने पिता से मिलकर वह अपने जन्म स्थान इलाहाबाद आ गई। परंतु आनंद भवन अब पहले जैसा नहीं रह गया था। अपने परिवार के सदस्यों की अनुपस्थिति से दुखी थी। इसलिए नेहरु जी ने जेल से ही इंदिरा गांधी जी के लिए मसूरी में एक कॉटेज किराए पर लेने का प्रबंध कर दिया था। यद्यपि आनंद भवन में फिरोज गांधी आते थे क्योंकि वह भी इलाहाबाद के ही एक पारसी परिवार से थे।

नेहरू जी को जब यह ज्ञात हुआ की इंदिरा जी की इच्छा फिरोज गांधी से विवाह की है तो वह कुछ परेशान हुए, इसलिए नहीं किए दोनों दिन में धर्म के थे, क्योंकि नेहरू परिवार के सदस्य जाति प्रथा में विश्वास नहीं करते थे और इंदिरा जी की दोनों बुआ विजय लक्ष्मी पंडित तथा कृष्णा हठी सिंह ने भी गैर कश्मीरियों से विवाह किया था। नेहरू जी की इच्छा थी कि इंदिरा अभी अपने विवाह के निर्णय को स्थगित कर दें तथा अन्य भारतीय युवकों से भी मिले। दोनों परिवारों का परिवेश अलग अलग होने के कारण वह कुछ हिचकी चाह रहे थे। अंतः अपने पिता के कहने पर इंदिरा गांधी अपनी दोनों बुआ से इस विषय पर परामर्श कर रही थी। इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी का विवाह वाद विवाद का विषय बन गया था। ईदगाह पर कट्टरवादीयों ने खूब आपत्ति की, परंतु प्रबुद्ध लोगों ने यह महसूस किया कि यह एक अच्छी बात है और भविष्य में भी ऐसे अंतर जाति विवाह होने चाहिए।

गांधीजी ने सुझाव दिया कि यह सार्वजनिक वाद विवाद का विषय बन चुका है, इसलिए मेहमानों के सामने सार्वजनिक रूप से विवाह संपन्न किया जाना चाहिए। रामनवमी के दिन 26 मार्च 1942 को शुभ मुहूर्त में इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी का विवाह संपन्न हुआ। विवाह में प्रसिद्ध फ्रेंच वैज्ञानिक मैडम क्यूरी की पत्रकार पुत्री इव क्यूरी भी उपस्थित थे

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विवाह के कुछ समय बाद ही इंदिरा गांधी और फिरोज दोनों ही मुंबई के उस ऐतिहासिक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में उपस्थित थे, जिसमें भारत छोड़ो आंदोलन का निर्णायक प्रस्ताव पारित किया गया था। इंदिरा गांधी और फिरोज दोनों ही स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। दोनों ही इस कारण विवाह के बाद भी जेल गए। इस प्रस्ताव के पास होते ही सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, जिसमें जवाहर जी उनकी बहन विजयलक्ष्मी पंडित भी शामिल थी। फिरोज गांधी के लिए भी वारंट था परंतु है फरार हो गए थे।

इंदिरा गांधी की आजादी मे सक्रियता (Indira Gandhi in Freedom Movement):

एक कॉलेज में झंडा फहराने के अवसर के दौरान इंदिरा गांधी को भी अंग्रेजों की लाठियां पड़ी, जिसमें उनके शरीर पर कई गांव भी हो गए, परंतु उन्होंने तिरंगे को जमीन पर गिरने नहीं दिया। उन्हें गर्व था कि वह भी अपने माता, पिता तथा दादी के समान कसौटी पर खरी उतरी है। जल्दी इंदिरा को उनकी गिरफ्तारी की सूचना भी मिली। जेल में भी वह अपने सामाजिक उत्तरदायित्व और कर्तव्यों को अच्छी तरह निभाती रही। कुछ समय बाद वह जेल में काफी अस्वस्थ भी हो गई, दिन बीतने के साथ सितंबर 1942 में उन्हें नैनी जेल में भेज दिया गया, जहां उनकी बुआ विजय लक्ष्मी पंडित पहले से मौजूद थी। उनकी पुत्री भी वहां मौजूद थी। सितंबर 1942 में सभी लड़कियों ने मिलकर जेल में ही अध्ययन का एक कार्यक्रम चलाया। इंदिरा गांधी ने इस कार्यक्रम में फ्रेंच भाषा सिखाने का काम किया, इस समय तक फिरोज को भी गिरफ्तार कर लिया गया था।

मई 1983 में 9 माह बाद उनकी बुआ के साथ उन्हें भी रिहा कर दिया गया। इस समय तक इंदिरा को देशवासियों का बहुत अपनापन मिलने लगा था, इसलिए रिहाई के 1 सप्ताह बाद जब श्रीमती विजया पंडित, फिरोज गांधी और जवाहरलाल नेहरू को फिर से जेल जाना पड़ा, उस समय इंदिरा गांधी को पहले जैसा अकेलापन आनंद भवन में नहीं लगा। रिहाई के बाद इंदिरा गांधी अस्वस्थ थी तथा वह भी अपने वैवाहिक परिवारिक जीवन व्यतीत करना चाहती थी। परंतु वह अपना सुखी गृहस्थ जीवन शुरू करती, इसके पहले ही देश की स्थिति और भी खराब हो गई और उन्हें पुनः नैनी जेल अपने पति के साथ जाना पड़ा। 1943 के मध्य में इंदिरा जी को फिर से रिहा किया गया तथा फैजाबाद जेल से कुछ महीने के बाद फिरोज गांधी को भी रिहा कर दिया गया। कुछ समय तक शांति में परिवारिक जीवन व्यतीत करने के बाद उनके बड़े पुत्र राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944 में मुंबई में हुआ। इसी बीच नेहरू जी को अंतरिम सरकार का प्रधानमंत्री बनाया गया। उनके सामाजिक दायित्व बढ़ गए, इंदिरा को भी मेजबानी के लिए बार बार दिल्ली जाना पड़ता था। यद्यपि फिरोज गांधी और इंदिरा जी अब लखनऊ में एक किराए के मकान में रहने आ गए थे। फिरोज गांधी नेशनल हेराल्ड नाम के अंग्रेजी समाचार पत्र में प्रबंधन संपादक के रूप में काम करने लगे। वह बहुत परिश्रमी इंसान थे तथा वह नहीं चाहते थे कि उन्हें सिर्फ नेहरू के दामाद के रूप में पहचाना जाए। वह अपनी अलग पहचान बनाना चाहते थे, किसी भी कार्य को पूरा करने की अद्भुत क्षमता उड़ने थी। अपने कड़े परिश्रम से उन्होंने नेशनल हेराल्ड को वित्तीय अस्थिरता से बचा लिया था।

कुछ समय बाद 14 अगस्त और 15 अगस्त 1947 के मध्य रात्रि में संसद भवन में उत्सव का आयोजन किया गया क्योंकि यह दिन भारतीय स्वतंत्रता का सबसे महान और पावन पर्व का था।

जिसके लिए संपूर्ण भारत वासियों ने लंबे समय तक कड़ा संघर्ष किया था। इंदिरा में बहुत पास से भारत का भाग्य बदलते देखा था। उन्होंने अपने परिवार तथा पिता का भारत को स्वतंत्र कराने में जो बलिदान तथा योगदान था, बहुत अच्छे से जानती थी। अपने पिता की सफलताओं और असफलताओं का ऐसा कोई पक्ष ना था जिसे इंदिरा गांधी ने ना देखा हो। दौरान इंदिरा जी के दूसरे पुत्र संजय गांधी का जन्म 14 दिसंबर 1946 को दिल्ली में हुआ।

कुछ ही दिनों बाद महात्मा गांधी ने उन्हें नई दिल्ली के उन क्षेत्रों में जाने को कहा जहां मुसलमान रहते थे। इंदिरा उस समय अस्वस्थ थे और गांधीजी को भी यह बात पता चल गई थी। फिर भी गांधी जी को उनकी संप्रदायिक सद्भाव के लिए उनकी कार्यक्षमता पर विश्वास था। इंदिरा गांधी दिल्ली और उसके समस्त सड़कों और क्षेत्रों से अनजान थी। इसलिए उन्हें थोड़ी चिंता हुई, परंतु बाबू के आग्रह पर उन्होंने एक महिला की सहायता से पूरी निष्ठा, समर्पण के साथ इस कार्य को पूरा किया।

1947 का उस समय का माहौल बहुत ही संप्रदायिक हो गया था और थोड़ा असुरक्षित भी था, आजादी के समय लाखों हिंदुओं को पाकिस्तान से काटकर टुकड़ों टुकड़ों में भेजा जा रहा था। वैसे भारत में आक्रोश था, फिर भी इंदिरा जी ने कूट-कूट कर निर्भीकता भरी हुई थी, उन्होंने इस कार्य को पूरे साहस के साथ किया। गांधी जी ने इस कार्य के लिए इंदिरा को इसलिए चुना था, क्योंकि उन्हें पता था कि इंदिरा ने बड़े साहस के साथ एक बार एक वृद्ध को भीड़ से उस समय अपनी कार से कूदकर 200 सशस्त्र लोगों से अकेले सामना करके बचाया था। इंदिरा का आगामी समय बड़ी उत्तेजना, शिक्षा और अनुभवों से भरपूर था। इस समय देश और अपने पिता की जिम्मेदारी के साथ वह अपने दोनों बच्चों की अच्छी परवरिश की जिम्मेदारी भी निभा रही थी। वह कई बार अपने पिता के साथ विदेश यात्राओं पर गई थी। एशिया, यूरोप, अमेरिका और अफ्रीका के कई देशों का भ्रमण कर चुकी थी तथा कई युग प्रवर्तक विभूतियों से भी मिल चुकी थी। व्हाई 1948 में लंदन में आयोजित राष्ट्रमंडल प्रधानमंत्रियों की बैठकों में भी उपस्थित रही कथा वह 1949 में पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र मंडल प्रधानमंत्रियों की बैठकों में भी उपस्थित रही। इन सभाओं में जवाहरलाल नेहरू ने अपने भाषण दिए थे। इंदिरा गांधी ने 1953 में लंदन में महारानी एलिजाबेथ के राजतिलक समारोह को भी देखा था और वह अप्रैल 1955 में इंडोनेशिया में आयोजित बाडूग सम्मेलन में भी शामिल हुई थी। 1960 में वह तारीख स्थित यूनेस्को कार्यकारी बोर्ड की सदस्य निर्वाचित कर ली गई थी। 1952 में पहले आम चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवारों के प्रति समर्थन जुटाने के लिए इंदिरा गांधी ने आम सभाओं को संबोधित किया। 1955 में उन्हे कांग्रेस कार्यकारिणी समिति का सदस्य भी नियुक्त कर दिया गया था तथा उन्हें महिलाओं के विभाग का कार्यभार सौंपा गया था। परंतु दूसरे आम चुनाव में उनका कार्यभार और बढ़ गया था।

इंदिरा गांधी को वीरता की अवतार माना जाने लगा क्योंकि 1957 में जब गुजरात में चुनाव अभियान की समय पार्टी के नेताओं और पत्थरबाजी की जा रही थी तो इंदिरा से सहायता की अपील की गई, तो उन्होंने हवाई अड्डे से आवास तक तथा उसके बाद सार्वजनिक सभा में खुली जीप में जाकर इस संकट का सामना किया था।

इसी प्रकार 1967 में उड़ीसा चुनाव दौरे के समय भुवनेश्वर में जनसभा को संबोधित करते समय भी उनके ऊपर पत्थर फेंके गए जिससे उन्हें चोट लग गई और वक्त भी निकलने लगा, परंतु जब तक उनका भाषण समाप्त नहीं हुआ वह मंच से हटी नहीं। ऐसे ही भारत चीन युद्ध के समय जब असम के तेजपुर में भगदड़ मची और जिले के अधिकारी और प्रमुख नागरिक वहां से भाग रहे थे, उस समय इंदिरा गांधी अपने पिता से आग्रह करके शीघ्रता से वहां के लिए प्रस्थान किया। शास्त्री जी भी उनके साथ वहां गए। हालांकि शास्त्री जी ने उन्हें तेज को जाने से मना किया, क्योंकि वहां की हालात सही नहीं थी, फिर भी उन्होंने नजर में पहुंचकर वहां की स्थिति को नियंत्रित कर लिया।

इंदिरा जी ने शहर भर में नुक्कड़ सभाओं का आयोजन किया तथा शिकायतों को सुना। वहां के लोगों को आराम और सहायता पहुंचाने के लिए काफी प्रयत्न इंदिरा जी ने किया। अपने शीघ्र किए हुए दूसरे दौरे में उन्होंने डिब्रूगढ़ के समीप सादिया में, जो युद्ध क्षेत्र से मुश्किल से आधे घंटे की उड़ान भर था, इंदिरा ने एक स्कूल भवन का उद्घाटन किया। इस प्रकार दक्षिण भारत के दौरे के समय एक शहर में उनका विरोध किया गया परंतु उन्होंने उसका भी पूरी दृढ़ता और विश्वास से सामना किया तथा सभी का सम्मान तथा प्रेम प्राप्त किया।

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इसी दौरान फिरोज गांधी 1952 के आम चुनाव में बरेली से कांग्रेस टिकट पर लोकसभा का चुनाव भारी मतों से जीत गए। इसके बाद उनका दिल्ली में रहना आवश्यक हो गया। इसलिए उन्होंने नेशनल सैराट के प्रबंध संपादक पद से त्यागपत्र दे दिया और दिल्ली आकर रहने लगे। उन्होंने संसद सदस्य के रूप में पूरे उत्साह से काम करना प्रारंभ कर दिया, जिसकी उनके सभी सहयोगियों ने सराहना की। फिरोज अत्यंत ईमानदार और कर्तव्य निष्ठा वाले व्यक्ति के रूप में पहचाने जाने लगे। जब फिरोज लोकसभा के सदस्य के रूप में अपने कार्य में व्यस्त थे, उस समय इंदिरा भी काफी व्यस्त थी। 1957 के आम चुनाव में फिरोज गांधी ने फिर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और विजय प्राप्त की। व्यस्त सार्वजनिक जीवन के लगातार बढ़ते तनाव से फिरोज जी का स्वास्थ्य अत्यंत खराब हो गया। 1958 में जंतर मंतर लेन स्थित अपने घर जाने के कुछ समय बाद उन्हें हार्ट अटैक आ गया। उस समय इंदिरा जी नेपाल की यात्रा पर गई थी, यह समाचार मिलते ही वैश्विक दिल्ली आ गई। फिरोजी के स्वस्थ होते ही कुछ दिन के बाद सारा परिवार कश्मीर गया। इसके 2 वर्ष बाद फिरोजी को दूसरी बार दिल का दौरा पड़ा। परंतु फिरोज जी ने चिंता ना करते हुए संसद जाना चालू रखा। आखिरकार वह अत्यधिक अस्वस्थ हो गए, उस समय इंदिरा जी केरल की यात्रा पर थी। शीघ्र ही दिल्ली आई तथा उस दिन सारी रात फिरोज गांधी के पास चिंता में बैठी रही। अंततः 8 दिसंबर 1960 को फिरोज गांधी इस संसार को छोड़कर चले गए। इस घटना से इंदिरा जी अत्यंत दुखी हो गई तथा कई दिनों तक स्वयं को संभाल न सकी। का दुख और उनकी वेदना उनके अंतर्मन में गहराई में समा गया था परंतु धीरे-धीरे वह स्वयं को कार्यों में व्यस्त कर ली, उनके ऊपर उस समय अत्यधिक कार्यभार था।

इस दौरान जबकि नेहरू जी पर भी अधिक कार्यभार था, उनकी सेहत भी बिगड़ने लगी थी। वह तेजी से वृद्धि और दुर्बल होते जा रहे थे। इस समय 1962 के चीन युद्ध से उन्हें बहुत आघात लगा। जनवरी 1964 में जब वह भुवनेश्वर में कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने गए थे, उस समय उन्हें दिल का दौरा पड़ा। नेहरू जी को बहुत धीमी गति से स्वास्थ्य लाभ हो रहा था। लेकिन 27 मई 1964 को उन्हें फिर से दिल का दौरा पड़ा जिसकी वजह से उनका स्वर्गवास हो गया।

इंदिरा जी का दुख और गहन हो गया, फिरोज जी और नेहरू जी की मृत्यु के बाद वह स्वयं को बहुत बेसहारा और असहाय महसूस कर रही थी। परंतु कुछ समय पश्चात उन्होंने स्वयं को संभाला और फिर से कार्यों में व्यस्त हो गई। इंदिरा गांधी बहुत तेज बुद्धि वाली और दृढ़ संकल्प वाली महिला थी। उनके यह गुण भारत की प्रगति की योजनाओं को क्रियान्वयन के लिए बहुत ही आवश्यक थे।

अगस्त 1964 में इंदिरा गांधी को राज्यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित किया गया तथा 19 जनवरी 1966 को उन्हें संसद में कांग्रेस पार्टी के नेता पद पर निर्वाचित किया गया। 23 फरवरी 1967 को रायबरेली के लोक सभा के लिए इंदिरा गांधी जी को चुना गया, इंदिरा गांधी जी ने अपनी श्रेष्ठ गुणों से शीघ्र ही अपनी योग्यता सिद्ध कर दी थी। जबकि एक विदेशी लेखक वैलेस हेगन ने इंदिरा गांधी की आलोचना करते हुए अपनी पुस्तक आफ्टर नेहरू हूं में लिखा था कि बिना पिता के सहयोग के वह अपना राजनीतिक कैरियर नहीं बना सकती। यह उनका दुर्भाग्य था कि उन्होंने अपनी सबसे कीमती चाबी तब खो दी जब उसकी उन्हें सबसे ज्यादा जरूरत थी। जब उनके पिता की मृत्यु की वजह से स्थान खाली हो गया।

लेकिन इंदिरा गांधी ने अपने कर्तव्य निर्वहन और समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व को निभा कर अंग्रेजी लेखक हेगन की पूर्व धारणा को गलत सिद्ध कर दिया। मोहम्मद अली जिन्ना की बहन अपने भाई की मृत्यु के बाद गायब हो गई इसी तरह सरदार वल्लभ भाई पटेल की पुत्री भी अपने पिता की मृत्यु के बाद राजनीतिक अस्तित्व खो दिया था। लेकिन इंदिरा गांधी के साथ ऐसा नहीं हुआ।

इंदिरा गांधी का मामला इससे अलग रहा, वह शास्त्री जी की उत्तराधिकारी बनी, जोकि पूरे भारत की अपील पर सर्वोत्तम राष्ट्रीय पसंद थी। उनके साथ अब संख्या भी सुरक्षित महसूस करते थे एवं जिसने अपने पिता की राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय नीतियों का पालन करने का वादा किया था।

अपने पिता के जीवित रहते इंदिरा गांधी ने केवल अपने पिता की सुख सुविधाओं का ध्यान रखा, साथ में उनकी समस्याओं को सुलझाने में भी पूरा सहयोग दिया। जब शास्त्री जी प्रधानमंत्री थे तो उन्हें मंत्रिमंडल में स्थान दिया गया था। शास्त्री जी चाहते थे कि अंतरराष्ट्रीय नेताओं के साथ इंदिरा गांधी के विपुल अनुभव का इस्तेमाल किया जाए और इंदिरा गांधी जी विदेश मंत्रालय संभाले। परंतु वह कोई भी पद शिकार ना नहीं चाहती थी। शास्त्री जी ने मुश्किल से सूचना और प्रसारण मंत्री बनने के लिए उन्हें मना लिया। इस पद पर रहकर उन्होंने मंत्रालय में एक नए दृष्टिकोण और नई शैली को अपनाया। इंदिरा गांधी जी को जब यह मंत्रालय दिया गया था तब उसके पहले तक यह विभाग शिथिल पड़ गया था। अतः इंदिरा गांधी जी का पहला कार्य नौकरशाही की लापरवाही को दूर करना था, जिसने इसे काफी क्षति पहुंचाया था। उन्होंने आकाशवाणी के स्टाफ कलाकारों से रूबरू बात की और उनकी स्थिति बेहतर बनाने का प्रयास किया।

इंदिरा गांधी में ऐसे और बहुत से गुण थे जिसकी विषय में लोग कम ही जानते थे। भारत एवं विदेशों में सभी उनके राजनीतिक गतिविधियों के बारे में लिखते थे, लेकिन जो लोग उनको करीब से जानते थे उन्हें ज्ञात था कि वह कई विषयों में समान रुचि रखती हैं। जिनका राजनीति से थोड़ा भी संबंध नहीं था। उनको फूलों एवं पेड़ों, वनों एवं जानवरों, पर्वतों एवं पर्यावरण, कला एवं स्थापत्य में रुचि भी उतनी ही गहन थी जितनी राजनीति में उनकी पकड़ थी।

इंदिरा गांधी एक राजनीतिक होने के बाद भी मूलभूत रूप से सदैव एक भारतीय महिला रही। वह ना केवल व्यक्तिगत आकर्षण एवं रौनक में स्त्रीगत थी, अपितु अपने दृष्टिकोण एवं प्रतिक्रिया में भी नारी गुण का ध्यान रखती थी। सामान्य अर्थों में महिला वादी नहीं थी, वास्तव में वह आधुनिक महिला दादी आंदोलन से संबंधित कई चीजों को नापसंद करती थी। वह पूर्ण रुप से या विश्वास करती थी कि अगर अवसर दिया जाए तो महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों के समान अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं।

इंदिरा गांधी जी मैं बचपन से कठिनाइयों से जूझते हुए भी अपने जीवन के संघर्षों से कभी हार नहीं मानी। वह निरंतर देश और परिवार के प्रति हर उत्तरदायित्व को पूरी लगन से निभाती रही। कई उतार-चढ़ाव उन्होंने अपने जीवन में देखें पर बचपन से ही कठोर और आत्मनिर्भर जीवन जीना उन्होंने सीख लिया था।

देश सेवा हो या परिजनों की सेवा वह स्वयं को सदैव सबकी सहायता के लिए पूर्ण रूप से समर्पित रखी। इंदिरा जी में साहस, समर्पण, कर्तव्य निष्ठा की भावना कूट-कूटकर भरी थी। अतः उनको यह देश सदैव सम्मान और प्रेम देता रहेगा।

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