गीतांजली कि कहानी – बदले की भावना और बर्बादी

गीतांजली कि कहानी – बदले की भावना और बर्बादी

गोविंदगढ़ इलाके मे एक बहुत बड़ा जंगल था, वहाँ एक लोमड़ी बगीरा अपने परिवार के साथ रहा करता था। बगीरा के परिवार मे उसकी पत्नी जिसका नाम मोती था तथा बगीरा और मोती के तीन छोटे छोटे बच्चे थे, हीरा , सोना और चाँदी।

एक दिन बगीरा खाने की तलाश मे जंगल के बहुत भीतर चला गया जिसकी बजह से उसे अपने घर आने मे देर हो गई। वह अपने साथ दो छोटे छोटे खरगोश शिकार करके लाया था। पर जैसे ही वह अपने मांद मे पहुंचा तो वहाँ का दृश्य देख उसके पैरो से जमीन खिसक गई।

उसकी पत्नी मोती और उसके बच्चो की अध खाई लाश पड़ी थी, बगीरा भेहोश हो कर गिर गया और वह कई घंटो तक पड़ा रहा। जब उसे होश आया तो उसके सामने वही दृश्य फिर था। उसने बड़ी मुश्किल से अपने को संभाला और फिर उनकी मृत्य पड़े शरीर का अंतिम संस्कार किया तथा वापिस अपने माद मे आकर वहां का निरीक्षण करने लगा।

तब उसे वहाँ शेरो के पैरो के निशान दिखे तब उसे समझ मे आ गया की हो न हो यह कृत्य जंगल के राजा के मशहूर शरारती और मस्तिजादे युवा हो चुके शावको के है, इस समय वह पूरे जंगल मे अपने उधम और आक्रमण कारी शैली के लिए बदनाम थे। बगीरा ने तुरंत उनसे अपने परिवार के हत्या का बदला लेनी की प्रतिज्ञा की और लोमड़ी के सरदार के पास अपनी फरियाद लेकर पहुंचा।

लोमड़ीयों का सरदार एक बहुत ही जालिम और सत्ता का भूखा लोमड़ी था, जिसका नाम तुरुप था। बगीरा ने उससे अपनी आप बीती बताई तो तुरुप ने बगीरा की मदद के लिए राजी हो गया, पर उसने दो शर्ते रखी जिसमे पहली शर्त थी कि बगीरा को उसकी सेना का सेनापति  बनना होगा और दूसरा की एक बार शेरो पर हमला किया गया तो रोका नहीं जा जाएगा।

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शेरो और लोमड़ी मे जबतक कोई जीत नहीं जाता युद्ध नहीं रुकेगा। बगीरा इस समय बदले की आग मे था और उसे कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। उसने तुरंत तुरुप की बात मान ली। बगीरा किसी समय लोमड़ी समूह का सबसे शक्तिशाली लडाका था, बगीरा लोमड़ी और भेड़ियो की कई लड़ाइयो मे भाग ले चुका था और आज तक उसे किसी ने नहीं हरा पाया था। यहाँ तक की बगीरा 21 दिन के लिए लोमड़ियों का सरदार भी रह चुका था जिसे उसने छोड़ कर जंगल की दूसरी ओर चला गया था और वह एक शांति का जीवन जीने लगा था। पर तुरुप को यह सही अवसर लगा, जब वह लोमड़ियों के सबसे शक्तिशाली सदस्य बगीरा को वापस अपने दल मे शामिल कर के पूरे जंगल मे अपनी सत्ता फैला सकता था।

आखिर लोमड़ियों की सेना तैयार की गयी, जिसका नेतृत्व खुद बगीरा कर रहा था। जंगल मे चारो तरफ खबर फैल गई थी की बगीरा लोमड़ियों की सेना ले कर शेरो पर आक्रमण करने जा रहा है। भेड़ियों ने भी बगीरा का साथ दिया और युद्ध प्रारम्भ हो चुका था। हर तरफ हाहाकार मच गया था हर रोज कई लोमड़ी, भेड़िया, चीते, बाघ, लकड़बग्घे और शेर मारे जा रहे थे। कई भैंसे और हाथियो का भी यही हाल था।

पूरा जंगल गिद्धो का भोजन स्थल बन चुका था। जिन शेरो ने बगीरा के परिवार को मारा था आखिर बगीरा उन्हे मारने मे सफल हो गया, जब उसका गुस्सा कुछ कम हुआ तो उसने अपने चारो तरफ एक दृष्टि डाली तो उसे एहसास हुआ की उसने अपने निजी प्रतिशोध के लिए पूरे जंगल के जीव चराचर को प्रतिशोध की अग्नि मे आहुति दे दी। हर तरफ जानवरो के क्षित विक्षित मृत शरीर पड़े हुये थे। तब उसे अपने किए पर घोर पछतावा हुआ। पर अब बहुत देर हो चुकी थी। उसने उसी समय युद्ध को समाप्त करने की घोषणा कर दी। पर तुरुप अब पूरे जंगल का सबसे ताकतवर जानवर बन चुका था और उसने तुरंत ही उसने धोखे से बगीरा को मरवा दिया।  और पूरे जंगल का राजा बन गया।