एक बार विजयनगर राज्य में भयंकर वर्षा हई। चारों ओर तबाही मच गई। अनेकों घर बह गए। सैकड़ों पशु भी बाढ़ की भेंट चढ़ गए। इस विपदा की खबर राजा कृष्णदेवराय को मिली। राजा ने तत्काल मंत्री को बुलाकर आदेश दिया – “तुरन्त बाढ़ पीड़ितों की सहायता की जाए और राहतकोष से धन निकालकर बाढ़ से घिरे लोगों को निकाला जाए। उनके रहने, खाने और चिकित्सा का पूरा-पूरा प्रबंध किया जाए। नदी-नालों पर पुल बना दिए जाएं।”
मंत्री ने तुरन्त हामी भर ली और अगले दिन खजाने से मोटी रकम निकालकर सहायता के काम में जुट गया।
कई महीने तक मंत्री का राजधानी में पता न चला। राजा समझ रहे थे कि राहत का काम जोर-शोर से चल रहा है। उधर तेनालीराम भी बेखबर नहीं था।
कुछ दिन बाद मंत्री, दरबार में आया। उसने खूब बढ़ा-चढ़ाकर अपने काम की प्रशंसा की।
दरबार खत्म हुआ तो राजा ने तेनालीराम से कहा – “देखा तेनालीराम, हमारे मंत्री जी का कमाल! दो हफ्ते में बाढ़ पीड़ितों के दुःख दर्द दूर कर दिये।”
“महाराज, आपकी बात तो ठीक है। क्यों न आप भी चलकर देख लें कि बाढ़ के लिए कैसे-कैसे प्रबंध किये हैं –
मंत्री जी ने।” तेनालीराम बोला।
राजा तो खुश थे ही। फौरन सहमति दे दी।
अगले ही दिन राजाकष्णदेव राय और तेनालीराम घोड़ों पर सवार हो, चल दिए।
रास्ते में राजा का बाग पड़ता था। राजा ने देखा की बाग के बहुत-से पेड़ कटे हुए हैं।
“ये पेड़ किसने काटे हैं?” राजा ने पूछा।
“शायद तेज हवा में टूटे हैं या बाढ़ बहाकर ले गयी होगी।” तेनालीराम ने उत्तर दिया।
चलते-चलते दोनों एक नाले के पास पहुँचे। एक जगह पुल के नाम पर कटे हुए पेड़ों के तने रखे थे।
“अरे, क्या ये ही पुल बनाए हैं मंत्री जी ने? ये तने शाहीबाग के पेड़ों के लगते हैं।”
“हो सकता है, महाराज बाढ़ के पानी में बहते-बहते ही यहाँ खुद ही अटक गए हों। चलिए आगे और पुल देखते हैं।
मगर सभी जगह वही हाल था।
दोनों एक गांव में पहुंचे।
गाँव का बहुत-सा भाग पानी में डूबा था। कई लोग पेड़ों पर मचान बनाकर रह रहे थे।
उन्हें देखते ही तेनालीराम आश्चर्य से बोला- “देखिये महाराज, मंत्री जी ने इन्हें बाढ़ से बचाकर पेड़ पर टांग दिया। भला, इससे अच्छी राहत क्या होगी?”
अब राजा को पता चला राहत के नाम पर लिए पैसे, मंत्री खा गया।
राजा ने लौटकर मंत्री को दरबार में बुलवाया और उसे डांटते हुए कहा- “जो पैसा हजम किया या तो उससे बाढ़ पीड़ितों की सहायता करो अन्यथा जेल की हवा खाओ। और हाँ, इस बार तुम जो करोगे उसकी जांच करेंगे तेनालीराम।” मंत्री यह आदेश सुनकर मुँह लटकाकर रह गया।