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सिकन्दर का आक्रमण और उसके प्रभाव

इस लेख मे सिकंदर का संक्षिप्त परिचय को जानने के बाद हम सिकंदर का आक्रमण और उसके प्रभाव के बारे मे जानेंगे।तो आइए बिना देर करते हुये पढ़ते हैं इस लेख को।

सिकन्दर का सामान्य एवं संक्षिप्त परिचय

सिकन्दर प्राचीन यूनानी देश के एक छोटे-से राज्य मेसिडोनिया (मकदूनिया) के राजा फिलिप का पुत्र था। जब वह सिंहासन पर बैठा, तो अपने छोटे राज्य से सन्तुष्ट नहीं हो सका। उसके हृदय में साम्राज्य विस्तार की महान् महत्वाकांक्षा उत्पन्न हुई और उसने यूरोप में पूर्व की ओर विजय अभियान की योजना बनायी । सिकन्दर प्रथम यूरोपीय शासक था, जिसने भारत में आक्रमणकारी के रूप में प्रवेश किया। निःसन्देह अपने समय (चौथी शताब्दी ईसवी पूर्व) का एक श्रेष्ठतम सेनानायक था, जिसने पूर्व की ओर सफल आक्रमण किये और एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। अफ्रीका और एशिया के अनेक शक्तिशाली राज्य सिकन्दर के आक्रमण के प्रहार से ध्वस्त हो गये। ईसवी पूर्व 334 में सिकन्दर एक विशाल और शक्तिशाली सेना के साथ अपने देश से रवाना हुआ। सर्वप्रथम उसने पश्चिमी एशिया और मिस्र पर विजय प्राप्त की। तत्पश्चात् सिकन्दर ने ईरान के शक्तिशाली साम्राज्य पर आक्रमण किया। ईरान का सम्राट डेरियस द्वारा तृतीय को अरवेला के युद्ध में परास्त हुआ। ईसवी 330 से सिकन्दर ने सम्पूर्ण ईरानी साम्राज्य पर अपना अधिकार कर लिया था। ईरान में अपनी शक्ति सुदृढ़ करता हुआ सिकन्दर 327 ई. पूर्व में भारत की ओर बढ़ा।

  1. आक्रमण के पूर्व भारत की दशा- सिकन्दर के आक्रमण के समय उत्तर पश्चिमी भारत, पंजाब तथा सिन्धु अनेक छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित था। इनमें आपस में घोर शत्रुता थी। इस समय तक्षशिला का राजा आम्भी तथा पंजाब के राजा पोरस अधिक शक्तिशाली थे। मगध में नन्दवंश का शासक था। सिन्धु में कई छोटे-छोटे राज्यों को पराजित करने में सिकन्दर को किसी प्रकार की कठिनाई न हुई।
  2. कायर आम्भी और सिकन्दर – अफगानिस्तान पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् सिकन्दर ने 316 ई. पूर्व के सिन्धु नदी को पार किया और तक्षशिला राज्य की सीमा पर जा पहुँचा। वहाँ के शासक आम्भी ने सिकन्दर के साथ मित्रता कर ली। उसने सिकन्दर को प्रेरित किया कि वह पंजाब के शासक पोरस पर आक्रमण करे।
  3. वीर पोरस और सिकन्दर – आम्भी ने अपनी सेना से सिकन्दर की सहायता की। इस सैनिक सहायता को लेकर सिकन्दर झेलम नदी की ओर बढ़ा। उसने अपनी सेना नदी में एक टापू से होकर उस पार उतार दी, जहाँ पोरस लड़ने के लिए अपनी सेना भेज चुका था। दोनों सेनाओं में नदी के किनारे करों के मैदान में घमासान युद्ध हुआ, जिसमें पोरस की हार हुई और वह बन्दी बनाकर सिकन्दर के सामने लाया गया। जब सिकन्दर ने राजा पोरस से पूछा कि तुम्हारे साथ किस प्रकार का व्यवहार किया जाये, तो उसने उत्तर दिया “जिस प्रकार एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है।” इस उत्तर को सुनकर सिकन्दर बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने राजा पोरस को क्षमा कर दिया।
  4. सिकन्दर का वापिस लौटना- राजा पोरस को हराकर यूनानी सेना ने चिनाब तथा रावी नदियों को बिना किसी कठिनाई के पार कर लिया, परन्तु जब वह सेना व्यास नदी के तट पर पहुंची, तो सिपाहियों ने आगे बढ़ने से साफ इन्कार कर दिया। विवश होकर सिकन्दर को वापिस लौटना पड़ा। उसने अपनी सेना को दो भागों में विभाजित किया- एक भाग जल मार्ग से पश्चिम की ओर चला और दूसरा भाग सिकन्दर के साथ स्थल मार्ग से बिलोचिस्तान होता हुआ फारस पहुँचा।
  5. सिकन्दर की मृत्यु- सिकन्दर एक ऐसे देश में होकर चल रहा था, जहाँ पर उसकी सेना और अन्य साथियों को गर्मी और प्यास से अनेक कष्ट उठाने पड़े और उनमें से कई मर गये। जब सिकन्दर अपनी सेना के साथ 323 ई. पूर्व बेबीलोन नामक जंगल में पहुंचा, तो यहाँ उसे ज्वर ने आ घेरा और 323 ई. पूर्व में उसका देहान्त हो गया।
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सिकन्दर की सफलता के कारण

सिकन्दर व उसकी सेना निःसन्देह अत्यन्त शक्तिशाली एवं पराक्रमी थी, किन्तु भारतीय भी उससे किसी प्रकार से कम न थे। स्वयं यूनानी लेखकों ने भारतीयों को एशिया का सर्वश्रेष्ठ योद्धा स्वीकार किया है। इसके पश्चात् भी सिकन्दर अपने अभियान में किन कारणों से सफल हुआ? यह एक विचारणीय प्रश्न है। सिकन्दर की विजय एवं भारतीयों की पराजय के अनेक कारण थे।

  1. राजनीतिक एकता का अभाव-जिस समय सिकन्दर ने अपना भारतीय अभियान शुरू किया, उस समय सम्पूर्ण उत्तर-पश्चिमी भारत छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था। अतः सिकन्दर का सामना करने के लिए भारत में संगठित शक्ति का अभाव था। सिकन्दर एक के बाद एक राज्यों पर विजय प्राप्त करता रहा। यदि उस समय उत्तर-पश्चिमी भारत किसी एक सम्राट के अधीन होता, तो सम्भवतः सिकन्दर अपने अभियान में सफल न हो पाता।
  2. पारस्परिक वैमनस्य :- उत्तर-पश्चिमी भारत छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त होने के साथ ही उनमें पारस्परिक वैमनस्य था। एक राज्य पर जब सिकन्दर आक्रमण करता था, तो दूसरा सिकन्दर को सहायता पहुंचाता था। तक्षशिला के शासक आम्भी ने तो सिकन्दर को भारतीय अभियान के लिए आमन्त्रित किया था, क्योंकि वह वैभव राज्य के शासक पोरस को नीचा दिखाना चाहता था। इसी प्रकार शशि गुप्त ने भी सिकन्दर की मदद की थी।
  3. अन्य भारतीय राज्यों की उदासीनता – जिस समय सिकन्दर उत्तर-पश्चिमी भारत के राज्यों पर विजय प्राप्त कर रहा था, उस समय पूर्वी भारत के किसी भी राज्यों ने उनकी नहीं की। इस उदासीनता की वजह से ही सिकन्दर अपने अभियान में सफल रहा।
  4. सिकन्दर का नेतृत्व-सिकन्दर की विजय में उसके व्यक्तित्व एवं कुशल नेतृत्व का भी प्रमुख योगदान था।
  5. भारतीय सेना की दुर्बलता – सिकन्दर का अपने भारतीय अभियान के दौरान भारत के छोटे-छोटे राज्यों से ही सामना हुआ था तथा उन्हीं राज्यों के साथ युद्ध ने उसकी सेना को इतना भयभीत कर दिया कि वे आगे बढ़ने का साहस ही नहीं कर पाये। भारतीय सेना की इस दुर्बलता का लाभ सिकन्दर को मिला।
  6. आकस्मिक कारण- सिकन्दर को विजय प्राप्त करने में कुछ आकस्मिक कारणों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उदाहरणार्थ, जिस समय सिकन्दर व पोरस के मध्य युद्ध हो रहा था, अचानक हुई अत्यधिक वर्षा ने इस युद्ध के परिणाम को ही बदल दिया। इसके अतिरिक्त हस्ति सेना, जिस पर पोरस को अत्यधिक भरोसा था भी असफल हो गयी, क्योंकि यूनानी सैनिकों ने हाथियों के पाँव व सूंडों पर आघात किया, तो हाथी विगड़ गये व पलटकर अपनी सेना को रौंदने लगे।
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सिकन्दर के आक्रमण का प्रभाव

सिकन्दर भारत में 19 महीने रहा था। इस काल में अप्रत्यक्ष रूप से सिकन्दर के आक्रमण से हमारे देश पर निम्नलिखित प्रभाव हुए-

  1. इस आक्रमण ने भारत का पश्चिमी देशों से प्रथम परिचय (तीन स्थल तथा एक जल मार्ग निर्माण करके) कराया।
  2. पश्चिम एशिया में ग्रीक राज्यों की स्थापना से भारत तथा यूनानियों में विचारों का आदान-प्रदान हुआ।
  3. बौद्ध धर्म में मूर्ति पूजा का आविर्भाव यूनानी सभ्यता की ही देन है।
  4. भारतीयों ने भवन निर्माण कला के क्षेत्र में यूनानियों से नवीन ढंग एवं शैली तथा शिला छेदन का नया ढंग सीखा। भारत को गंधार शैली का ज्ञान भी इन्हीं से हुआ। भारतीयों ने यूनानियों से सिक्के बनाना भी सिखा।

इन सभी प्रभावों के अतिरिक्त इस आक्रमण का विशेष राजनीतिक अप्रत्यक्ष प्रभाव यह पड़ा है कि मौर्य साम्राज्य की स्थापना की भूमिका चन्द्रगुप्त मौर्य को प्राप्त हो गयी। सारांश यह है कि आक्रमण भारतीयता की आभा को छूआ हुआ चला गया। इसका कोई भी स्थायी प्रभाव सामाजिक, राजनीतिक तथा आध्यात्मिक क्षेत्र पर नहीं पड़ा।

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