ज्ञानवर्धक कहानी – लकड़बग्घा और ऊंट

ज्ञानवर्धक कहानी – लकड़बग्घा और ऊंट

चंपक वन में इस बार गर्मी का प्रकोप बहुत ही ज्यादा था, इसी जंगल में एक लकड़बग्घा रहता था, वह प्यास से व्याकुल था इसलिए पानी खोजने लिए जंगल में इधर-उधर भटक रहा था। तभी उसे एक नदी दिखाई दी, नदी में पानी कम था, फिर भी दौड़ कर वे नदी के पास गया और मन भर पानी पिया। प्यास बुझाने के बाद, उसने सोचा कि क्यों ना नदी में नहा लिया जाए, क्योंकि गर्मी भी बहुत ज्यादा है। थोड़ी शीतलता मिलेगी तो मन को सुकून मिलेगा।

लेकिन नदी कितनी गहरी थी इसके बारे में उसको कोई जानकारी नहीं थी, लकड़बग्घे ने नदी किनारे खड़े एक ऊंट से नदी की गहराई के बारे में पूछा। ऊंट में अपने दांत निकालते हुए लकड़बग्घे से कहा कि मेरे घुटने बराबर नदी गहरी है, मैं अभी नहा कर ही बाहर निकला हूं।

ऊंट की बात सुनकर लकड़बग्घे ने नदी में छलांग लगा दी। तैरते तैरते लकड़बग्घा नदी के बीच में पहुंच गया, और अचानक ही नदी ने उसे अंदर खींचना चालू कर दिया, लकड़बग्घा बचाने के लिए मदद मांगने लगा और हाथ पैर पटकने लगा। किसी तरीके से हाथ पैर पटक कर वह नदी किनारे पहुंचा। और बाहर आते ही ऊंट पर गुस्सा करने लगा और ऊंट से कहा- बेवकूफ आदमी तुमने तो मुझे मार ही दिया था, तुमने तो कहा था कि नदी तुम्हारे घुटने बराबर गहरी है। मैं तो मरते मरते बचा।

तब ऊंट ने उत्तर दिया – इतना भड़क क्यों रहे हो, मैंने कौन सा झूठ बोला था? नदी तो मेरे घुटने तक ही है और तुम मेरी बात समझ नहीं पाए तो मैं क्या करूं।

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तब जाकर लकड़बग्घे को अपनी गलती का एहसास हुआ,

मित्रों जिंदगी में हर व्यक्ति का अपना अलग-अलग अनुभव और उनका अनुभव उनका अपना व्यक्तिगत अनुभव होता है, संभव है की जो बात किसी के फायदे की है वही बात किसी को नुकसान भी पहुंचा सकती है। इसलिए हमेशा याद रखें कि कई बार दूसरों के अनुभव अनुसार चलना आपकी जिंदगी को बेहतर की जगह बदतर बना सकता है। इसलिए किसी भी काम को करने से पहले अपने विवेक का इस्तेमाल करें।