यह hindi kahani एक किसान और एक खच्चर की हैं, इस कहानी से हमे पता चलता हैं की हम सब को खुश नहीं रह सकते, इसलिए दूसरे को खुश करने के चक्कर मे हम अपना ही नुकसान कर लेते हैं। यह hindi kahani कैसी लगी, कमेन्ट मे जरूर बताए।
एक किसान था, उसके पास एक खच्चर था। एक दिन वह अपने बेटे के साथ खच्चर बेचने के लिए, मेले में गया। किसान और उसका बेटा दोनों पैदल पैदल अपने खच्चर को लिए हुए, मेले की ओर बढ़ रहे थे। कुछ दूर जाने पर उन्हें तीन चार लड़के मिले जो मेले से लौट रहे थे। उन्होंने किसान और उसके बेटे को पैदल चलते हुए देखा, तो लड़कों की हंसी छूट गई और उन्होंने कहा- “कितने मूर्ख है यह दोनों, खच्चर होते हुए भी दोनों पैदल चल रहे हैं। चाहे तो मजे से खच्चर पर बैठकर मेला देखने जा सकते हैं। क्यों दोस्तों तुमने कभी ऐसे बुद्धू लोगों को देखा है।”
लड़के की यह बातें सुनकर, किसान ने अपने बेटे को खच्चर के ऊपर बैठा दिया और खुद खच्चर को हाँकता हुआ उसके पीछे पीछे चलने लगा। तभी रास्ते में उन्हें एक बूढ़ा मिला, वह बूढ़ा जब बच्चे को खच्चर के ऊपर बैठा हुआ देखा तो आगबबूला हो गया और बोला- “अरे मूर्ख! नीचे उतर, तू अभी जवान है, तगड़ा है, फिर भी मजे से खच्चर पर बैठा हुआ है और तेरा बाप पैदल पैदल चल रहा है। तुझे शर्म नहीं आ रही। चल उतर जा खच्चर से और अपने बाप को बैठने दे।”
यह सुनते ही किसान का बेटा खच्चर से उतर गया और अपने पिता से बोला- बूढ़े बाबा ठीक कहते हैं, खच्चर पर आपको बैठना चाहिए। मैं खच्चर को हाँकता हूँ।
किसान सहमत हो गया और खुद खच्चर मे बैठ गया, उसका बेटा अब खच्चर हाँकने लगा। थोड़ा आगे जाने पर उन्हे कुछ स्त्रियाँ मिली, जो अपने बच्चो को मेला दिखा कर लौट रही थी। उन स्त्री मे से एक स्त्री ने बाकि के औरतों से बोली की – “देखो बहनो कितना निर्दयी आदमी हैं यह, इस आदमी मे तो शर्म नाम की कोई चीज ही नहीं हैं, एक दम से निर्लज और निर्मोही हैं। खुद तो बहुत मजे से खच्चर पर बैठा हुआ हैं। और अपने कोमल से बेटे को को धूप मे अपने पीछे पीछे दौड़ा रहा हैं। देखो कैसे बेचारे बच्चे का मुह सूखा जा रहा हैं, मुझे तो उस लड़के पर बहुत दया आ रही हैं।”
यह सब किसान और उसका लड़का सुन रहे थे। अब किसान ने अपने बेटे से कहा की तुम भी मेरे साथ आ जाओ और खच्चर मे बैठ जाओ।
पिता की बात सुन कर किसान का बेटा भी खच्चर पर बैठ गया। अब खच्चर मे दोनों पिता-पुत्र सवार हो कर मेले की तरफ जाने लगे। तभी एक साधू बाबा रास्ते मे दिखे। बाबा जी ने उन दोनों को खच्चर मे सवार देखा तो किसान से पुछे की -“यह किसका खच्चर? तुम लोग पकड़ कर ले आए हो या चोरी करके ला रहे हो?
किसान ने उत्तर दिया की – “यह खच्चर हमारा ही हैं। क्या बात हैं? आप क्यो पूछ रहे हैं?”
बाबाजी बिगड़ कर बोले- “यह खच्चर तुम्हारा है? तो तुम्हें शर्म नहीं आती तुम दोनों खच्चर के ऊपर लड़े हुए हो, यह बेजान जानवर कुछ नहीं बोलता, तो क्या तुम लोग इसकी जान ले लोगे? जिस बेरहमी के साथ तुम इस खच्चर का शोषण कर रहे हो, लगता ही नहीं कि यह तुम्हारा खच्चर है?”
यह सुनकर किसान और किसान का बेटा, खच्चर से उतर आए, बाबाजी से पूछा कि – “आप ही बताइए, हम लोग क्या करें?”
बाबा जी ने उत्तर दिया- “सीधी सी बात है, जिस तरह तुम इस पर लटक कर आए हो, उसी तरह से अपने कंधों पर लादकर ले जाओ, तब हमको विश्वास होगा कि यह खच्चर तुम्हारा है।”
यह कहकर बाबाजी लंबे लंबे पैर बढ़ाते निकल गए। अब दोनों बाप और बेटे हैरान परेशान होकर एक दूसरे को देखने लगे। खच्चर के चारों पैर को रस्सी से कस कर बांधे, फिर पैरों के बीच में एक मजबूत लकड़ी डाली, उसके बाद उस लकड़ी के सहारे, खच्चर को अपने कंधे पर लाद कर, मेले की ओर बढ़ चले। खच्चर को बहुत कष्ट हो रहा था, और वह जोर-जोर से चीखने चिल्लाने लगा।
रास्ते में एक नदी पड़ी, उस नदी पर पुल बना हुआ था। उस समय पुल पर लोगों का अच्छा खासा जमावड़ा था। जब उन्होंने देखा कि दो आदमी लकड़ी के सहारे जिंदा खच्चर को अपने कंधे पर लादे चले आ रहे हैं। उन लोग खच्चर को इस तरह लटके हुए देख हैरत में पड़ गए, उन्हें लगा यह लोग सर्कस वाले हैं। इसलिए भीड़ उन्हें देखकर तालियां बजाने लगी, और हो-हल्ला करने लगी।
खच्चर दर्द में कराह रहा था, उसे भीड़ की तालियां बजाना बिल्कुल भी पसंद ना आया। और वह भड़क गया। अब वह अपने को छुड़ाने के लिए जोर जोर से छटपटाने लगा। आखिरकार उसके पैरों में बंधी रखी खुल गई और वह धम्म से पुल के नीचे नदी में जा गिरा, और पानी में डूब कर वह मर गया।
बेचारा किसान वहीं पर सिर पकड़ कर बैठ गया और आंसू बहाते बहाते कहने लगा- “हाय! मैंने तो सबको प्रसन्न रखना चाहा, परंतु कोई प्रसन्न नहीं हुआ। उल्टे मुझे ही इतना दुख उठाना पड़ा और अपने खच्चर से हाथ धोना पड़ा।”