एक बार किसी व्यक्ति की की शादी होने के बाद उसकी बारात वापस घर की ओर लौट रही थी। लेकिन रास्ते मे जंगल पड़ता था और अक्सर इस रास्ते से गुजरने वाले लोग दिन मे ही गुजरा करते थे। रात मे जंगल से गुजरना खतरे से कम नहीं था। बारात को लौटने मे देर हो गई और अब बारात को रात मे ही जंगल को पार करना था।
रात हो जाने की वजह से बारात रास्ता भूल गई। जिसकी वजह से बराती रात भर यहा से वहाँ भटकते रहे। आखिर सुबह हो गई पर इससे भी काम ना बना और वो लोग दिन भर जंगल मे भटकते ही रहे, लेकिन उन्हे कोई गाँव नहीं मिला। जहां से वह अपने घर वापस जाने का रास्ता पूछ सके।
भटकते भटकते उन्हे एक नदी मिल गई, जहां उन्होने अपनी प्यास तो बुझा ली, पर भूख कैसे मिटाये। जंगल में कौओं को छोड़कर उन्हे और कोई जानवर या पक्षी नहीं दिखाई दे रहे थे। भूख से व्याकुल होकर कुछ लड़को ने आखिर कार कौओ को ही पकड़ कर उसे खाने का निर्णय ले लिया। लकड़ियाँ खोज कर अब उनमे आग लगाई गई। रात का समय था, तो उन्हें कौओं को पकड़ने में भी ज्यादा परेशानी नहीं हुई।
बारात मे शामिल लड़के पेड़ो से कौओ को पकड़ कर लाने लगे और उन्हे भून कर खाने लगे। बारात के दूसरे लोग भी उन लड़को को देख कर कौवे को भून-भून कर खाने लगे। लेकिन उन बारातियों में एक ‘रामलाल’ नाम का व्यक्ति भी था, जिसने कहा कि – “भूख से तड़पकर मर जाऊँगा, लेकिन कौआ नहीं खाऊंगा।”
रात गुजर गई। जंगल मे जहां बरातियों ने डेरा डाला हुआ था, वही से एक चरवाहा गुजर रहा था, जिसे रोक कर बरातियों ने वापस जाने का मार्ग पूछा, जिसके बाद उन्हे वापस जाने का रास्ता मिल गया। लेकिन अब समस्या यह थी कि रामलाल जिसने कौआ नहीं खाया था वह जाकर पूरे गांव में यह बात बताएगा कि सबने कौआ खाया है। इसलिए उन बरातियों ने आपस मे मंत्रणा की और सर्वसम्मति से एक योजना बनाई गई।
वे लोग जैसे ही गांव के नजदीक पहुँचे, सारे बराती एक साथ चिल्लाने लगे। “राम लाल ने कौआ खाया है।”
जिसके परिणाम स्वरूप पूरे गाँव वालों ने सोचा की रामलाल ने कौआ खाया हैं, और उन्होने रामलाल को गाँव से निष्काषित कर दिया। “बहुमत के आगे इकलौते रामलाल की कौन सुनता?”
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