hindi story, hindi kahani,

हिन्दी कहानी – ठाकुर और पेड़ के पत्ते | Hindi Story – Thakur and The Leaves of The Tree

लगभग दो सौ वर्ष पहले की बात है। अरावली की पहाड़ियों से घिरा हुआ एक जंगल था। तरह-तरह के वहां पर मौजूद थे। इन्हीं पेड़ों के बीच से एक पगडंडी गुजरती थी। सुबह का समय हो रहा था, जंगल के पास एक गांव था, वहां के ठाकुर सुबह-सुबह इन पगडंडियों से चलकर, जंगल की खूबसूरती का आनंद लिया करते थे। ठाकुर जंगल घूम कर गांव की ओर ही आ रहे थे। ठाकुर का रुतबा राजाओं की तरह था, गांव वाले भी उन्हें राजा की तरह ही सम्मान करते थे। रास्ते में उन्हें एक शिकारी मिला, शिकारी कहीं जा रहा था। उसके हाथ में एक सुराही थी। सुराही को ताड़ के पत्तों से ढाका गया था। शिकारी ने ठाकुर को देखा और ठाकुर ने शिकारी को देखा। शिकारी ने ठाकुर का अभिवादन किया और रास्ता छोड़कर किनारे पर खड़ा हो गया, जिससे ठाकुर को निकलने में कोई परेशानी ना हो।

ठाकुर ने भील के अभिवादन का उत्तर दिया और पूछा- ” इस सुराही में क्या रखा हुआ है?”

शिकारी ने बड़े आदर से जवाब दिया- ” मालिक इसमें घी रखा हुआ हैं।”

ठाकुर ने अगला प्रश्न पूछा- ” सुराही के ऊपर यह क्या है?”

शिकारी ने आश्चर्य से कहा -” महाराज ताड़ के पत्ते हैं”

ठाकुर की आवाज में अब गुस्सा था, उसने पूछा- ” यह पत्ते तुमने कहां से तोड़े हैं?”

शिकारी डर गया, और ठाकुर को सच सच बता दिया, कि उसने यह पत्ते इसी जंगल से थोड़े हैं।

ठाकुर ने कड़क कर पूछा- ” कौन से पेड़ से थोड़े हैं?”

शिकारी भयभीत हो गया और जंगल की ओर इशारा करते हुए कहा- ” मालिक, उस पेड़ से तोड़े हैं मैंने”

ठाकुर ने शिकारी को हुक्म दिया- ” चलो मुझे उस पेड़ तक ले चलो”

See also  हिन्दी कहानी - मित्रता समान स्वभाव से ही करे | Hindi Story - Make friendship with equal nature

आदेश सुनने के बाद शिकारी आगे आगे चलने लगा, शिकारी के पीछे ठाकुर पेड़ की ओर जाने लगा। शिकारी समझ नहीं पा रहा था, कि उसने क्या गलती कर दी है।

दोनों लोग पेड़ के पास पहुंच गए। ठाकुर ने आदेश दिया की सुराही में रखा हुआ घी को पेड़ की जड़ में उलट दो।

ना करने का प्रश्न ही नहीं उठता था, शिकारी ने डरते हुए ठाकुर के हुक्म को मानना सही समझा। शिकारी ने भारी मन से सुराही में रखे हुए घी को पेड़ की जड़ पर उलट दिया। ठाकुर ने आगे कहा- ” अब तुम जा सकते हो।”

शिकारी ने ठाकुर का अभिवादन कर, दुखी होकर भारी कदम बढ़ाते हुए अपनी राह को चल पड़ा। अभी शिकारी कुछ ही कदम आगे बड़ा ही था की ठाकुर ने आवाज दी- ” सुनो, यह सुराही लेते जाओ। काम आएगी, क्या तुम्हें मालूम है? कि मैंने पेड़ की जड़ मे घी क्यों डलवाया है?”

शिकारी ने सहमते हुए उत्तर दिया – ” नहीं हुजूर, मैं नहीं समझ पाया”

ठाकुर ने सवाल किया- ” क्या तुम पेड़ के पत्ते बना सकते हो?”

शिकारी ने उत्तर दिया- ” नहीं अन्नदाता”

तब ठाकुर ने शिकारी को समझाते हुए कहा – ” जिस चीज को तुम बना नहीं सकते, उसे नष्ट करने का अधिकार तुम्हें किसने दिया है? घी तुम दोबारा भी बना सकते हो, इसलिए यह सुराही तुम अपने साथ ले जाओ। हां फिर कभी घी लेकर निकलो, तो ढक्कन से ढकना, ढक्कन ना हो तो कपड़े से बांध लेना। पर पत्तों को अब कभी मत तोड़ना।” –यह कहकर ठाकुर गांव की ओर चल पड़ा।

शिकारी भी समझ गया था कि उसे किस बात की सजा मिली है। वह खाली सुराही लेकर अपने झोपड़े की ओर बढ़ चला। वह मन ही मन पेड़ से अपनी गलती की माफी मांग रहा था।

See also  दिल को छू लेने वाली कहानी - एक बच्चा और उसी छोटी बहन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *