भूत की कहानी – जंगल का वो सुनसान खाली घर

भूत की कहानी – जंगल का वो सुनसान खाली घर

लेखक – अजीत मिश्रा
बात कुछ वर्ष पहले की हैं, मुझे नागपुर जाना पड़ा, मेरी बुआ के बड़ी बेटी की शादी थी, शादी का पूरा आयोजन नागपुर मे ही था। मम्मी –पापा नहीं जा सके, इस लिए मेरी पत्नी सुनीता और मैं नागपुर जाने का निश्चय किया। नागपुर जाने के लिए मैंने अपनी निजी कार का इस्तेमाल किया, आफिस से आने के बाद पूरी तैयारी कर घर से निकलने मे, रात 10 बज गए। जबलपुर से नागपुर का रास्ता लगभग 5-6 घंटे का हैं। गर्मी के दिन थे, इसलिए जानबूझ कर हमने रात को ही सफर करना चुना। जिससे गर्मी से ज्यादा परेशान न होना पड़े। लगभग 2 बज रहे थे, मुझे बहुत ही नींद आ रही थी, जिसकी बजह से मुझे झपकियाँ आने लगी। गाड़ी के बाहर घुप्प अंधेरा था। सड़क मे एक भी वाहन नहीं गुजर रहा था। आगे एक पुल बन रहा था। इसलिए हमे डायवर्जन का इस्तेमाल करना पड़ा। कुछ दूर जाकर हमे सड़क के बारे मे कुछ समझ नहीं आ रहा था। डामर की रोड खत्म हो चुकी थी, और कच्ची सड़क प्रारम्भ हो चुकी थी। हम भटक चुके थे, और अंधेरा होने की वजह से हमे कुछ भी समझ मे नहीं आ रहा था।
उसी समय हमारी गाड़ी पंचर हो गई, अब हम बहुत डर चुके थे। चारो तरफ घुप्प अंधेरा था, कीट पतंगो की आवाज़े आ रही थी, पेड़ो के हिलने की सरसराहट आ रही थी, सूखे पत्ते आपस मे टकरा रहे थे, जिससे किसी के चलने का भ्रम सा महसूस हो रहा था, फोन मे कोई सिग्नल नहीं था।
गाड़ी के टायर बदलने की मेरी हिम्मत बाहर देख कर जवाब दे रही थी। तभी मुझे सामने एक रोशनी दिखाई दी, शायद वहाँ पर कोई हो, यह सोच कर मैंने मेरी पत्नी को गाड़ी मे छोड़ उस रोशनी की दिशा मे जाने का निश्चय किया, पर सविता ने भी साथ मे चलने की जिद की, और हम दोनों एक साथ रोशनी की ओर चल दिये।
रोशनी एक घर के बाहर टंगे एक लालटेन से आ रही थी। हमे अब थोड़ी राहत महसूस हुई, हमने दरवाजे मे दस्तक दी, पर भीतर से कोई आहाट नहीं सुनाई दी, बार बार दरवाजा खटकटने मे पर भी कोई प्रतिक्रिया अंदर से नहीं आ रही थी। तभी अचानक दरवाजा धीरे से खुल गया, पर वहाँ कोई नहीं था। मैं डर गया, पर सविता ने कहाँ की शायद दरवाजा बंद ही नहीं था। नैतिकता के आधार पर हमे बाहर ही इंतेजर करना चाहिए था, पर हम डर और परेशानी की स्थिति मे नैतिकता को भूलते हुये अंदर प्रवेश कर गए, अंदर कोई भी नहीं था, एक खाट रखी हुयी थी, कुछ चादर और धूल की परत हरतरफ बिछी हुई थी, ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे यहाँ वर्षो से कोई नहीं आया हो। हमने दरवाजे को बंद कर धूल साफ कर वही पर बैठ कर, लालटेन जलाने वाले का इंतेजार करने लगे, अब लालटेन बुझ चूकि थी, तभी बाहर किसी के चलने की आवाज़े आ रही थी, पर हमने कुछ नहीं बोला, ऐसा लग रहा था की कई लोग हैं जो घर के आस पास चल रहे हैं। हमे लगा शायद जानवर हैं, पर कुछ देर बाद हमारा ये भ्रम दूर हो गया, जब सविता ने खिड़की से झांक कर देख तो उसके छाक्के छूट, उसे एक सफ़ेद परछाई दिख रही थी, जो शायद किसी पेड़ मे उलटी लटकी हुई थी। उसने अपने हाथो से अपने मुंह को दबा लिया, जिससे उसकी चीख न निकल पड़े, सेकंडो मे वो पसीने से तरबतर हो गई, मैंने उसकी हालत देख सावधानी के साथ बाहर झाँका तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए, वहाँ एक नहीं कई, सफ़ेद परछाईया थी, कुछ पेड़ो मे लटकी हुई तो कुछ आसपास टहल रही थी। मेरे दिल की धड़कन धक हो के कुछ समय के लिए रूक गई थी, दिमाग काम नहीं कर रहा था, रोंगटे खड़े हो गए थे। पसीने से नहा चुका था। तभी दरवाजे मे दस्तक भी हुई, हमारे प्राण हलक मे आ चुके थे, पर हमने कोई जवाब नहीं दिया, और डर के साये मे इंतेजर करते हुये हमने पूरी रात काटी और सुबह होते ही गाड़ी का टायर बदला, और किसी तरह से नागपुर पहुंचे, हमने यह सब कहानी किसी को नहीं बताई, पर वापस जबलपुर आते समय हमने इस बार दिन मे सफर करने का निश्चय किया।
वह रात आज भी जब हमे याद आती हैं, तो हमारे रातो का चैन उड़ जाता हैं, और पूरी रात खिड़कियों को डर से झाँकते हुये निकलता हैं।
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