गौरैया सफाया अभियान

चीन का “गौरैया सफाया अभियान” क्या हैं?

माओ त्से तुंग का परिचय

माओ त्से तुंग का जन्म 26 दिसंबर 1893 को हुआ था, माओ त्से तुंग को वर्तमान चाइना का संस्थापक माना जाता है। माओ त्से तुंग चीन की सत्ताधारी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष 1949 से लेकर अपनी मृत्यु 1976 तक रहे हैं। माओ त्से तुंग कार्ल मार्क्स और लेनिन विचारधारा के समर्थक थे। चाइना के आजाद हो जाने के बाद वहां पर कम्युनिस्ट पार्टी का नियंत्रण रहा चीन जिस विचारधारा का समर्थन करता है, उसे माओवाद विचारधारा कहते हैं।

माओवाद विचारधारा माओ त्से तुंग की विचारधारा हैं, जिसमें मार्क्सवाद और लेनिनवाद का मिश्रण है। पूरी दुनिया में माओ त्से तुंग को एक तानाशाह और बहुत से लोगों का हत्यारा माना जाता है लेकिन चीन में उन्हें महान क्रांतिकारी के रूप में सर्वसम्मति से राष्ट्रीय हीरो माना जाता है। चीन में उन्हें भगवान की तरह सम्मान दिया जाता है। माओ त्से तुंग को माओ जे़डोंग के नाम से भी जाना जाता है। माओ युद्ध को शुद्धिकरण का हथियार मानते थे और उन्होंने खुद माना है कि केवल युद्ध पूंजीवाद को हराकर देश और क्षेत्र में साम्यवाद की स्थापना करता है। माओ त्से तुंग शांति जैसी व्यवस्था पर विश्वास नहीं करते थे। माओ त्से तुंग को लगता था की शांति पूंजीवाद को विकसित होने का मौका देती है और माओ त्से तुंग के हिसाब से समाज के लिए पूंजीवाद किसी अभिशाप से कम नहीं था।

माओ त्से तुंग के अजीबो गरीब अभियान

चीन के नेता माओ हर समय कोई ना कोई अभियान चलाते ही रहते थे उनका एक अभियान खत्म होता तो दूसरा अभियान प्रारंभ हो जया करता था। कुछ अभियान उनके सफल हो जाते थे तो कुछ अभियान असफल भी होते थे, जब भी उनका कोई अभियान सफल होता तो माओ त्से तुंग उस अभियान को छोड़कर, एक नया अभियान प्रारम्भ कर देते थे। इसी क्रम पर आज हम उनके एक ऐसे अभियान के बारे में चर्चा करेंगे जो कि मूर्खता पूर्ण भरा अभियान था। जिसके पीछे किसी भी प्रकार की वैज्ञानिकता नहीं थी और उसका परिणाम भी चाइना को भोगना पड़ा। यह अभियान था “गौरैया सफाया अभियान”, यह अभियान असफल रहा और इस अभियान को मायो त्से तुंग को बीच में ही छोड़ कर दूसरा अभियान प्रारंभ करना पड़ा। गौरैया सफाया अभियान को छोड़ कर उन्होंने फिर नया अभियान चलाया और इस अभियान का नाम था, “खटमल खात्मा अभियान”।

वास्तव में चीन में 1958 के समय “मारो चार अभियान” चल रहा था, इस अभियान के अंतर्गत चार जीव को चीन से खत्म कर देना था, यह जीव मक्खी, मच्छर, चूहे और गौरैया थे। मारो चार अभियान का मकसद था चीन के विकास में लंबी छलांग लगाना, इसे 1958 के समय “ग्रेट लीप फॉरवर्ड” अभियान के नाम से भी जाना जाता था।

गौरैया सफाया अभियान

“मारो चार अभियान” के शुरआती तीन जीव तो चाइना में काफी हद तक मारा जा चुका था। क्योंकि मच्छर की वजह से चीन में मलेरिया फैल रहा था, तो वही चूहों की वजह से प्लेग नाम की बिमारी भी चीन के विकास में बाधा फैला रही थी। मक्खी की वजह से भी कई प्रकार की बिमारियां फैल रही थी, इस लिए इन तीन जीव को चाइना में “मारो चार अभियान” के शुरुआत में ही मार दिया गया था, इसके बाद कम्युनिस्ट पार्टी के नियंत्रण वाले देश चाइना में बहुत ही बेतुके कारण की वजह से चीन के लोगो का अगला निशाना एक छोटी सी चिड़िया बन गई, यह चिड़िया कोई और नहीं बल्कि गौरैया थी। माओ-से-तुंग चीन के लोगो को यह विश्वास दिला दिया की गौरैया एक खतरनाक चिड़िया है और इसलिए मारो चार अभियान की अगली शिकार गौरैया चिड़िया हुई। और बहुत बड़े स्तर पर इस चिड़िया का चीन में शिकार किया गया।

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माओ त्से तुंग का यह मानना था की एक गौरैया 1 साल में 4 किलो तक का अनाज खा लेती है इसलिए चाइना के लोगों को गौरैया को मार देना चाहिए क्योंकि गौरैया चाइनीज नागरिकों के हिस्से का आनाज खा रही हैं। अगर एक गौरैया साल भर में 4 किलो अनाज खा लेती हैं तो फिर लाखों गौरैया ना जाने कितने किलो अनाज खा लेती होंगी, अगर गौरैया को मार दिया जाए तो वह अनाज बच जाएगा और वह हमारे चाइनीस नागरिकों के खाने के काम आएगा।चाइना इस समय खाने की कमी का सामना कर रहा था। इस गलत धारणा के चलते गौरैया सफाया अभियान को प्रोत्साहित किया गया। कम्युनिस्ट पार्टी के अखबार बीजिंग पीपल्स डेली ने 5 मई 1958 को एक खबर छापी थी की इस खबर में लिखा था “किसी भी योद्धा को तब तक रुकना नहीं चाहिए जब तक यह लड़ाई जीत नहीं ली जाती। इस लड़ाई में सभी क्रांतिकारियों को पूरे उत्साह और प्रतिबद्धता से हिस्सा लेना चाहिए जिससे कि घटिया चिड़िया के खिलाफ लड़ाई जीती जा सके।”

लाखों गौरैया मार दी गई

अमेरिका की टाइम पत्रिका ने 1958 के मई के महीने में एक खबर छपी थी जिसमें कहा गया था कि चाइना के माओ त्से तुंग के द्वारा यह अभियान काफी योजनाबद्ध ढंग से चलाया गया था। इस पत्रिका ने “रेड चाइना डेथ टू स्पैरो” हेडलाइंस से खबर लिखी की पिछले हफ्ते गोरिया मारने का एक बहुत बड़ा अभियान चालू किया गया, इस अभियान में स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चे, सरकारी कर्मचारी और अधिकारी बर्तनों-पतीले और कड़छी के साथ सुबह 5:00 बजे जमा हुए।

रेडियो बीजिंग ने इस अभियान में हिस्सा लेने वालों की संख्या लगभग 30 लाख बताई है, सुबह 5:00 बजते ही बिगुल और सीटियां बजने लगी और लोगों ने गौरैया पर धावा बोल दिया। क्योंकि गौरैया आकार में छोटी होती हैं इसलिए बहुत ही फुर्तीली होने की वजह से कम्युनिस्ट पार्टी के स्टूडेंट विंग के कार्यकर्ताओं ने सिर्फ कुछ गोरियों को ही गुलेल के माध्यम से मारा लेकिन लाखों गोरियों को मार पाना इतना आसान नहीं था। इसलिए लाखों लाख चिड़ियों को मारने के लिए माओ त्से तुंग और उनकी कम्युनिस्ट पार्टी ने अलग रणनीति अपनाई। इसके लिए कम्युनिस्ट समर्थित लोगों ने बर्तन और तालियों को पीटते हुए शहरों और गांव में इतना शोर मचाया की गोरैया लगातार आसमान में उड़ती रही। थाली और बर्तन को पीट कर कम्युनिस्टों का शोर मचाने का मकसद यह था कि गौरैया को ना तो कहीं बैठने दें और ना ही उन्हें खाने का मौका मिल पाए, इस तरह से लगातार बिना खाए-पिए और आराम किए हुए गौरैया आसमान में उड़ती रही, जिसके परिणाम स्वरूप दो-तीन दिनों में बड़ी मात्रा में गौरैया थकान की वजह से मरने लगी। फिलिप्स शोट नाम के एक व्यक्ति ने अपनी किताब में लिखा की किस तरीके से चाइना में गौरैया को ढूंढ ढूंढ कर मारा गया था।

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उन्होंने लिखा अपनी किताब में की “बीजिंग में मौजूद पोलैंड के दूतावास में कई गौरैया आकर बैठने लगी तभी चीनी नागरिक वहां पर आ गए और गौरैया को मारने का प्रयास करने लगे लेकिन पोलैंड दूतावास के अधिकारियों ने चीनी नागरिकों को दूतावास में घुसने नहीं दिया। इसके बाद बड़ी तादाद में पोलैंड दूतावास के सामने चीनी नागरिक जमा होने लगे और ढ़ोल-नगाड़े तथा थाली पीट-पीटकर पोलैंड दूतावास के सामने इतना शोर मचाया की दूतावास में बैठे और आराम कर रहे सभी गौरैया वहां से उड़ने को मजबूर हो गई। दो-तीन दिन के बाद पोलैंड दूतावास के कर्मचारी ने देखा कि दूतावास में सैकड़ों मरी हुई गोरिया पड़ी हुई है जिन्हें वहां के कर्मचारियों ने अपने हाथों से उठाकर फेंका था।”

इस अभियान की वजह से 1 साल के अंदर ही गौरैया की जनसंख्या इतनी कम हो गई की अब वह दिखना बंद हो गई थी, चीन में गौरैया लगभग विलुप्त हो चुकी थी, उस समय चाइना के नागरिकों को लगा था कि उन्होंने इस सामूहिक अभियान के जरिए एक बहुत बड़ी कामयाबी हासिल कर ली है लेकिन जल्दी उन्हें पता चल गया कि उन्होंने प्रकृति की संतुलन को बिगाड़ने का काम किया है और इस प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का जल्द ही उन्हें विनाशकारी परिणाम मिला।

गौरैया के मारे जाने से चाइना में प्राकृतिक संतुलन बिगड़ा

चीन के सर्वोच्च नेता ने गौरैया को अनाज और फल खाते तो देखा था, लेकिन वह यह देखना भूल गए थे कि गौरैया फसलों के लिए बहुत लाभकारी है क्योंकि गौरैया फसलों में लगने वाले कीड़े मकोड़ों को भोजन के रूप में ग्रहण करती है जिसकी वजह से फसलों को सुरक्षा मिलती है। कीड़े मकोड़े फसलों को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं लेकिन गौरैया उन्हें भोजन के रूप में खाकर फसल को होने वाले नुकसान से बचा लेती है। फसलों के लिए सबसे खतरनाक कीड़ा टिड्डे है। क्योंकि चाइना में गौरैया लगभग खत्म हो चुकी थी जिसकी वजह से चाइना के फसलों को अब कीड़े मकोड़े नुकसान पहुंचा रहे थे, जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान टिड्डियो के द्वारा किया जा रहा था। चीन में पहले से ही खाने का संकट था जो कि अब धीरे-धीरे गहरा हो रहा था। 1958 से लेकर 1960 के बीच चीन को कई बाढ़ों का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से फसल को नुकसान हो रहा था और जो फसल बाढ़ से बच जाया करती थी, उन फसलों को कीड़े और टुडे नुकसान पहुंचा दिया करते थे।

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चीन के सर्वोच्च नेता को अब अपने मूर्खतापूर्ण निर्णय और अभियान के बारे में समझ आ गया था, इसलिए माओ त्से तुंग ने अप्रैल 1960 में गौरैया सफाई अभियान को वापस ले लिया लेकिन माओ त्से तुंग लगातार अभियान को चलाने के लिए जाने जाते थे, इसलिए अब उन्होंने इस अभियान का नाम बदलकर “खटमल खात्मा अभियान” कर दिया और चीन से खटमल को मारने का अभियान शुरू हो गया। चीन “ग्रेट लीप फॉरवार्ड” नाम के अभियान से जिस गति से आगे बढ़ रहा था, “गौरैया सफाई अभियान” में उसकी उस गति को तबाह कर दिया था और चीन में लाखों लाखों लोग भूख से तड़प कर मर गए थे। चीन में 1959 से लेकर 1961 तक बड़ा ही भयानक अकाल आया था, इस अकाल की कई वजह थी, लेकिन गौरैया सफाई अभियान को भी चीन की इस बदहाली की एक बड़ी वजह माना गया।

एलेग्जेंडर पेंटशोव ने अपनी किताब में लिखा है की चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और उसके नेता को गलती का एहसास हो गया था और उन्होंने भूल सुधारने के लिए सोवियत संघ से ढाई लाख गोरियों की खेप मंगवाई थी, जिससे की नन्हीं गौरैया फिर से चाइना में अपना आवास बनाएं और टिड्डो की बढ़ती संख्या को नियंत्रित करें। माओ ने अपनी गलती को सुधारने के बाद मक्खी, मच्छर और चूहों वाली “मारो चार” की सूची से गौरैया का नाम हटाकर “खटमल खात्मा अभियान” शामिल कर दिया। इसके अलावा भी माओ आए दिन अजीबोगरीब और तरह तरह के अभियान को बिना रोक-टोक चलाते रहे।

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