America Kranti 1776 ke Karan aur Prabhav

अमेरिकन क्रांति 1776 ई. कारण एवं प्रभाव | America Kranti 1776 ke Karan aur Prabhav

America Kranti 1776 ke Karan aur Prabhav : अमेरिका की खोज होते ही यूरोप के राज्‍यों ने इसे अपने-अपने अधिकार एवं प्रभाव-क्षेत्रों में बाँटना आरम्‍भ किया-

  1. ब्राजील के अतिरिक्‍त दक्षिण-अमेरिका का सम्‍पूर्ण हिस्‍सा स्‍पेन के पास था। इसी प्रकार उत्‍तरी अमेरिका पर इंग्‍लैण्‍ड और फ्रांस का अधिकार था।
  2. समुद्री तट पर अंग्रेजी उपनिवेश हुए। फ्रांसीसियों ने सेंट लारेंस नदी के किनारे अपने उपनिवेश बसाये। फ्रांस का कनाडा पर अधिकार हो गया।
  3. अमेरिका और भारत में इंग्लैण्‍ड और फ्रांस के परस्‍पर हित एक-दूसरे से टकराने लगे। 1688 ई. के बाद इंग्‍लैण्‍ड और फ्रांस के बीच मतभेद और बढ़ गया।
  4. देश-विदेश में उपनिवेशों तथा अन्‍य मुद्दों पर देशों के मध्‍य जो युद्ध हुए, उसमें इंग्‍लैण्‍ड और फ्रांस विरोधी पक्षों में थे। कुछ युद्ध निम्‍न प्रकार थे-
    •  स्‍पेनी उत्‍तराधिकार के युद्ध।
    • आस्ट्रिया के उत्‍तराधिकार का युद्ध।
    • सप्‍तवर्षीय युद्ध (1756-1763)- इसकी चपेट में भारत और अमेरिका भी आ गये। युद्ध में फ्रांस की घोर पराजय हुई। इसके पहले अंग्रेजों से डच भी परास्‍त हो चुके थे। पुर्तगालियों को भी हार खानी पड़ी। इंग्लैण्‍ड की सर्वत्र  विजय हुई। अमेरिका के तेरह उपनिवेश, जिनकी जनसंख्‍या लगभग बीस लाख थी।, इंग्लैण्‍ड के अधीन आ गये। कालान्‍तर में इनमें जागृति आने लगी तथा इन्‍होनें ब्रिटेन की साम्राज्‍यवादी नीति का विरोध करना आरम्‍भ कर दिया अतएव अमरीकी क्रांति हुई जिसे अमेरिका स्‍वतंत्रता संग्राम के नाम से भी जाना जाता है।

अमेरिकी क्रांति के कारण

अमेरिकी क्रांति के कारणों को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

(क) दूरवर्ती कारण (ख) तात्कालिक कारण। इन दोनों कारणों का विवरण निम्‍न प्रकार है-

अमेरिका क्रांति के दूरवर्ती कारण

इन कारणों के अन्‍तर्गत निम्‍नलिखित कारण सम्मिलित हैं-

  1. व्यापार से संबन्धित नीति – उत्‍तरी अमेरिका में इंग्‍ल्‍ैाण्‍ड के तेरह उपनिवेश सेंट लारेंस से जार्जिया के तट तक फैले हुए थे। इन उपनिवेशों को विभिन्‍न अंग्रेज प्रवासियों ने भिन्‍न-भिन्‍न समय पर स्‍थापित किया था। इंग्‍लैण्‍ड उन्‍हें अपनी सम्‍पत्ति समझता था। वे प्रचुर धन के उत्‍पादन के साधन मात्र समझे जाते थे। इंग्‍लैण्‍ड ने आरम्‍भ से ही उनके प्रति ऐसी वाणिज्‍य नीति चलाई जिससे उसे लाभ हुआ तथा इन उपनिवेशों की अर्थ व्‍यवस्‍था को आघात पहुंचा। इंग्‍लैण्‍ड की प्रारम्भिक वाणिज्यिक नीति निम्‍न कानूनों पर आ‍धारित थी-
  1. नौ-वहन कानून- ब्रिटिश व्‍यापार में वृद्धि और अधिक महसूल कमाने के लिये ब्रिटेन की संसद ने 1651 ई. में नौ-वहन कानून पारित किया जिसके अनुसार ग्रेट-ब्रिटेन तथा उसके उपनिवेशों और यू‍रोप के अन्‍य देशों के मध्‍य ब्रिटिश-निर्मित जहाजों में ही माल ले जाना आवश्‍यक कर दिया गया। इन जहाजों को केवल ब्रिटिश नाविक ही चला सकते थे। इस प्रकार उपनिवेश वाले अपने सामानों को अंग्ररेजी जहाजों पर ही बाहर भेज सकते थे। इस कानून से उपनिवेशों की काफी आर्थिक क्षति होती थी। क्‍योंकि उनके व्‍यापार की स्‍वतंत्रता नष्‍ट हो गई थी। ऐसे बन्‍धों के विरूद्ध उपनिवेशवासियों द्वारा अपनी आवाज उठाना अवश्‍यम्‍भावी था। उनकी  यह नौ वाहन कानून विरोधी आवाज अमेरिका स्‍वतंत्रता संग्राम में परिणित हो गई।
  2. व्‍यापार सम्‍बंधी कानून-   ब्रिटिश संसद ने व्‍यापार सम्‍बंधी कानून बनाकर यह निश्चित कर दिया कि उपनिवेशों को कौन-कौन सी वस्‍तुओं का व्‍यापार‍ किस प्रकार किया जायेगा। कुछ वस्‍तुयें जैसे- चावल, लकड़ी, रोऑ, तम्‍बाकू, लोहा आदि केवल ब्रिटेन ही भेजे जा सकते थे, दूसरी जगह नहीं। इसके अतिरिक्‍त अमेरिकी व्‍यापारियों को अपनी अच्‍छी वस्‍तुएँ भी ब्रिटेन के सौदागरों के हाथ वहाँ के प्रचलित मूल्‍य पर बेचनी पड़ती थी। वे हॉलैण्‍ड, फ्रांस या अन्‍य देशों के बाजार मे जहां अधिक दाम प्राप्‍त हो सकता था ,अपनी चीज नही बेंच सकते थे। दक्षिणी उपनिवेशवासी जो तम्‍बाकू उत्‍पन्‍न करते व्‍यापार सम्‍बंधी कानून से विशेष रूप से क्षतिग्रस्‍त थे। वे इंग्‍लैण्‍ड के ऋणी थे, अतएव उन्‍हें अपनी वस्‍तुओं को इंग्‍लैण्‍ड के सौदागरों के हाथों बेचना पड़ता था। व्‍यापार सम्‍बंधी कुछ कानूनों के अनुसार न तो अमेरिका का माल सीधे यूरोप जा सकता था और न यूरोप का माल सीधे अमेरिका आ सकता था। इन्‍हें ग्रेट-ब्रिटेन के सौदागरों के हाथ से गुजरना पड़ता था। अमेरिका में भी गैर-ब्रिटिश उपनिवेशों के साथ व्‍यापार करना प्रतिबन्धित था। 1773 में पारित कानून के अनुसार उपनिवेशवासी गैर-ब्रिटिश नागरिक से बिना टैक्‍स दिये व्‍यापार नहीं कर सकते थे। इस व्‍यवस्‍था से उकता जाना अवश्‍यसम्‍भावी थी।
  3. आयात-निर्यात सम्‍बंधी कानून-   ब्रिटिश संसद ने अमेरिक के उद्योग धन्‍धों को नष्‍ट करने के लिये आयात-निर्यात सम्‍बंधी कुछ कानून पास किये। कतिपय कानून निम्‍न प्रकार था-
    • 1669 के कानून द्वारा यह निश्चित किया गया कि अमेरिका में निर्मितत ऊनी माल का निर्यातत दूसरे देशों को नहीं होगा।
    • 1732 में उपनिवेशों से अमेरिका अथवा बाहर टोप भेजने का अधिकार छीन लिया गया।
    • 1750 के कानून के अनुसार उपनिवेशवासी लोहे का छोटा-मोटा माल  भी तैयार नहीं कर सकते थे। इस प्रकार अमेरिका का ऊन और लोहे का व्‍यापार ठप्‍प कर दिया  गया।
  4. ब्रिटिश नीति-    आरम्‍भ से ही ब्रिटेन की अमेरिका के प्रति यह नीति रही कि अमरीकी उपनिवेशवासियों की आर्थिक स्थिति कमजोर रहे। इसके पीछे उनका यही प्रयास था कि आर्थिक दृष्टिकोण से कमजोर उपनिवेशवासी कभी सशक्‍त बनकर ब्रिटेन के विरूद्ध युद्ध न कर सकें। पर ब्रिटेन की यह नीति असफल रही। अमेरिकनों को रोटी ही काफी नहीं है। की कहावत पर पूर्ण विश्‍वास था। वे स्‍वतंत्रता के पुजारी थे। ब्रिटेन द्वारा लगाये गये अनेक आर्थिक प्रतिबंधों को तोड़ने तथा अपनी आर्थिक व्‍यवस्‍था को मजबूत बनाने के लिये उन्‍होनें स्‍वतंत्रता संग्राम को अनिवार्य समझा। इस प्रकार स्‍वतंत्रता संग्राम के पीछे आर्थिक कारण की महत्‍वपूर्ण भूमिका थी।
  1. राजनैतिक कारण- अधिकांश उपनिवेशों की स्‍थापना मुख्‍यत: अंग्रेज नागरिकों के निजी साहस का परिणाम था। अनेक उपनिवेश ऐसे लोगों के द्वारा स्‍थापित किये गये थे जो इंग्‍लैण्‍ड के शासन से भयभीत होकर भाग आये थे। परन्‍त्‍ुा कुछ समय पश्‍चात सभी उपनिवेशों पर इंग्‍लैण्‍ड का प्रभुत्‍व स्‍थापित हो गया था। इन उपनिवेशों को पर्याप्‍त स्‍वायत्‍त–शासन प्राप्‍त था। अनेक उपनिवेशों की अपनी विधान सभा थी। जहाँ सदस्‍य अपने-अपने उपनिवेशों के मामलों में विचार विमर्श करते थे। पर वह स्‍वायत्‍त शासन स्‍वतंत्र नही था। उपनिवेशों के गवर्नर और उनकी कौसल के सदस्‍य इंग्‍लैण्‍ड के राजा द्वारा मनोनीत किये जाते थे। वे इंग्‍लैण्‍ड के राजा के प्रति उत्‍तरदायी थे। गवर्नर को निषेधाधिकार भी प्राप्‍त था। उपनिवेशवासियों की व्‍यवस्‍थापिका सभा और इंग्लैण्‍ड की कार्यकारिणी सभा के मध्‍य संघर्ष विद्यामान था।

उपनिवेश अपनी व्‍यवस्‍थापिका सभा को अपने क्षेत्र में प्रधान मानते थे। इसके विपरीत इंग्‍लैण्‍ड उन्‍हें एक अधीनस्‍थ निकाय मानता था। इंग्लैण्‍डवासियों द्वारा कहा जाता था कि उपनिवेशों में शासन करने की योग्‍यता नहीं है। डॅा. जॉनसन ने कहा था, “हम लोग बछड़े को हल में नहीं लगाते है, हम लोग त‍क तक प्रतीक्षा करते है ज‍ब तक वह बैल नहीं बन जाता है”। प्रचलित नियमों के अनुसार उपनिवेशवासी बड़े-बड़े सरकारी पदों पर नियुक्‍त नहीं किए जा सकते थे। अत: यह स्‍वाभाविक था कि उपनिवेशावासी एक ऐसी राजनीतिक व्‍यवस्‍था के संगठन की इच्‍छा प्रकट करें जो उन्‍हे राजनीतिक अधिकार दे सके। यह कार्य स्‍वतंत्रता संग्राम द्वारा ही सम्‍भव था।

  1. मध्‍यम वर्ग का उदय- मध्‍यम वर्ग के उदय ने अमेरिकी स्‍वतंत्रता संग्राम में विशेष योगदान दिया। अमेरिका में बहुसंख्‍यक उपनिवेशवासी मध्‍यम और निम्‍न वर्ग के लोग थे। वे चर्च के अत्याचारों से भयभीत होकर प्राण रक्षा हेतु यूरोप से अमेरिका भाग आए थे। उपनिवेशों की रक्षा करने के लिये ब्रिटेन को अन्य राष्‍ट्रों, जैसे- फ्रांस, आस्ट्रिया, स्‍पेन आदि से 1689 से लेकर 1763 के दौरान बड़े-बड़े युद्ध लड़ने पड़े। युद्ध में फँसे रहने के कारण इंग्‍लैण्‍ड व्‍यापार सम्‍बंधी कानून निरन्‍तर लागू नहीं कर सकता था। उप‍युक्‍त अवसर पाकर इनकी अवहेलना कर उपनिवेशवासियों ने अपने-अपने उद्योग-धन्‍धों और व्‍यापार में आशातीत वृद्धि करके अपनी आर्थिक स्थिति सुधार ली थी।

अमेरिकी स्‍वतंत्रता संग्राम के समय उपनिवेशवासी मध्‍यम वर्ग का पर्याप्‍त सामाजिक और बौद्धिक विकास हो चुका था। वे आरम्‍भ से ही स्वतंत्र विचार के थे। उनमें अपनी एक सरकार अपना संविधान और अपनी शासन व्‍यवस्‍था तैयार करने की भावना पहले से ही विद्यमान थी। उन्‍हें अपनी सैनिक क्षमता एवं रणकौशल भली-भाँति ज्ञात था क्‍योंकि कभी-कभी इंग्‍लैण्‍ड अपने उपनिवेशवासियों की सहायता से युद्ध लड़ा करता था। इससे उपनिवेशवासियों को अपनी सैनिक दक्षता का वास्‍‍तविक अनुमान था। सप्‍तवर्षीक युद्ध (1756-1763) ने उसके इस आत्‍मविश्‍वास में और अधिक वृद्धि कर दी थी।

  1. सप्‍तवर्षीय युद्ध (1757-1763) के परिणाम- सप्‍तवर्षीय युद्ध ने अमेरिका के स्‍वतंत्रता संग्राम को अवश्‍यम्‍भावी बना दिया। इसमें एक ओर इंग्‍लैण्‍ड और प्रजा थे और दूसरी ओर आस्ट्रिया, फ्रांस, रूस, स्‍वीडन एवं सेवाय थे। यह युद्ध 8 वर्ष की अ‍वधि के पश्‍चात 1763 में पेरिस की सन्धि के साथ समाप्‍त हुआ।
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इस युद्ध के दौरान चार स्‍थानों अर्थात यूरोप, अमेरिका, भारतवर्ष और समुद्री जगहों में युद्ध हुये थे। सप्‍तवर्षीय युद्ध का अन्‍त होते ही अमेरिका में फ्रांसीसी संकट का अन्‍त हो गया। इस समय कनाडा और लुईसियाना में फ्रांसीसी उपनिवेश थे। उन्‍हें फ्रांस का भय निरन्‍तर बना रहता था। भय का निवारण करने हेतु वे इंग्‍लैण्‍ड की सहायता पर  आश्रित थे। वस्‍तुत: इसका प्रमुख कारण यह था कि वे अकेले फ्रांस का विरोध नहीं कर सकते थे। सप्‍तवर्षीय युद्ध में इंग्‍लैण्‍ड को सफलता मिली तथा फ्रांस की घोर पराजय हुई। उसके अमेरिकी उपनिवेशों पर इंग्‍लैण्‍ड का अधिकार स्‍थापित हो गया। इस प्रकार उत्‍तरी अमेरिका से फ्रांस का भय बिल्‍कुल समाप्‍त हो गया। वे अब इंग्‍लैण्‍ड के विरूद्ध-युद्ध करने को तैयार हो गये। दूसरे सप्तवर्षीय युद्ध संचालन के लिये बहुत सी चीजों की मॉंग बढ़ गई। इससे युद्ध के अन्‍त होते ही कारोबार में मन्‍दीकाल आ गया। लोगों में निराशा और असन्‍तोष की आग भड़क उठी। उधर इंग्‍लैण्‍ड ने इन पर टेक्‍स लगाने का प्रयत्‍न किया। परिणामत: उपनिवेशवासियों की क्रोधाग्नि भड़क उठी।

तात्‍कालिक कारण- 

तृतीय जार्ज (1760-1820) ने इंग्लैण्‍ड में अपना व्‍यक्तिगत शासन स्‍थापित किया। धन एकत्र करने के उद्येश्‍य से उसके विभिन्‍न प्रधानमंत्रियों ने अमेरिकी उपनिवेश पर विभिन्‍न प्रकार के कानूनों का लादने का प्रयत्‍न किया। इसने अमेरिकी स्‍वतंत्रता संग्राम को अनिवार्य कर दिया। अमेरिकी स्वातंत्रता संग्राम के तात्‍कालिक कारण निम्‍न प्रकार थे-

  • प्रधानमंत्री जार्ज ग्रेनविल के कार्य- प्रधानमंत्री जार्ज ग्रेनविल ने निम्‍न चार कार्य किये जिन्‍होनें इस युद्ध को अपरिहार्य कर दिया।
  1. चोर-बाजारी के विरूद्ध कठोर कदम-   जब ग्रे‍नविल को यह मामूल हुआ कि अमेरिकी उपनिवेश से ब्रिटेन को प्रतिवर्ष केवल दो हजार पौंड़ की आय होती है अधिक नहीं तो उसने चोर-बाजारी को रोकने का पूरा प्रयत्‍न किया। एडमिरेल्‍टी कोर्ट की स्‍थापना की गई मजिस्‍ट्रेटों को अधिकार दिया गया कि वे चोर बाजार का माल पकड़ने के लिये लोगों के घरों की तालाशी लें। इससे उपनिवेशवासी क्रुद्ध हो गये।
  2. छोआ कानून-  1733 में छोआ कानून पास हुआ था। फ्रांसीसी द्वीप समूह में ब्रिटिश द्वीप समूह की अपेक्षा छोआ सस्‍ता मिलता था। अतएव अमरीकी उपनिवेश फ्रांसीसी द्वीप समूह से ही छोआ मंगवाते थे। 1733 में प्रधानमंत्री जार्ज ग्रेनविल की सरकार द्वारा छोआ कानून पास कर छोआ आयात पर बहुत अधिक चुँगी लगा दी गई। चुंगी लगाने और वसूलने में बड़ी सतर्कता और सावधानी प्रयुक्‍त की गई। उपनिवेशवासी इस प्रकार की व्‍यवस्‍था एवं प्रबंध से खीझ गये। वे इसे अपने अधिकारों तथा व्‍यवसाय में अनुचित हस्‍तक्षेप मानते थे।
  3. प्रदेशों की नवीन व्‍यवस्‍था-  इंग्‍लैण्‍ड ने फ्रांस को पराजित कर उसके मिसीसिपी नदी के पूर्व प्रदेशों में भी हस्‍तक्षेप किया। अंग्रेज और उपनिवेशवासी दोनों ही इसे अपनी सम्‍पत्ति समझते थे। अमेरिकी उपनिवेशी अ‍र्थ-व्‍यवस्‍था में मन्‍दी आने पर बहुत से किसानों और पादरियों को अपनी जीविका से हाथ धोना पड़ा था। वे नयी जमीन की खोज में पश्चिम की ओर बढ़ चले। 1763 में ग्रे‍नविल ने एक घोषणा के अनुसार इन प्रदेशों को आदिवासियों के लिये सुरक्षित रखा। ग्रेनविल का उपनिवेशों को पश्चिम की ओर बढ़ने से रोकने का कार्य ठीक नहीं था। उपनिवेशवासियों ने इसका विरोध किया।
  4. टिकट अधिनियम-  सप्‍तवर्षीय युद्ध में इंग्लैण्‍ड ने अपार धन व्‍यय किया। परिणामत: उसका राष्‍ट्रीय ऋण दुगुना हो गया था। इंग्‍लैण्‍ड इन उपनिवेशवासियों से बड़ी कड़ाई से पैसा वसूल कर रहा था। ग्रेनविल का मत था। कि अमेरिका मे कम से कम दस हजार की एक स्‍थायी सेना रखना आवश्‍यक है। इस सेना का एक तिहाई व्‍यय उपनिवेशवासी ही दें। इंग्‍लैण्‍ड की संसद ने 1765 में टिकट अधिनियम पास किया। इस कानून के अनुसार अखबार, पुस्तिकायें और कानूनी कागजातों के वैध होने के लिये रसीदी टिकट लगाना आवश्‍यक कर दिया गया। उपनिवेशवासियों ने इसका घोर विरोध करना आरम्‍भ कर दिया। नौ उपनिवेशों के प्रतिनिधियों ने न्‍ययार्क की काँग्रेस में एकत्र होकर टिकट अधिनियम के रद्द किये जाने की माँग की।
  • रौकिंघम के कार्य–  ग्रे‍नविल के बाद रौकिंघम ने प्रधानमंत्री बनने पर यह देखा कि टिकट अधिनियम ने स्थिति को गभ्‍भीर कर दिया हैं। इसके परिणामस्‍वरूप वहाँ दंगे होने लगे थे। अत: उसने नौ उपनिवेशों के प्रतिनिधियों द्वारा प्रस्‍तुत स्‍टाम्‍प एक्‍ट को रद्द करने की माँग को स्‍वीकार कर दिया। इस प्रकार शीघ्र ही टिकट अधिनियम रद्द कर दिया गया। किन्‍तु रौकिंघम ने 1766 ई. में ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा उद्घोषणा अधिनियम पास करवाकर यह दावा किया कि ब्रिटिश संसद को उपनिवेशों पर कर सम्‍बंधी एवं अन्‍य अधिनियमों को बनाने का पूर्ण अ‍धिकार है। इस अधिकार का दावा करने का अर्थ था उपनिवेशियों की स्‍वतंत्रता पर ठेस लगाना। यह आघात अमेरिकावासियों को कदापि भी स्‍वीकार्य न था
  • आयात चुंगी अधिनियम-  बड़े पिट के प्रधानमंत्रित्‍व में चार्ल्‍स टाउनशेड कोषाध्‍यक्ष  था। पिट या चैथम का अर्ल गठिया रोग से पीडि़त था। इस रोग के परिणामस्‍वरूप वह शासन में विशेष दिलचस्‍पी नही ले पाता था। परिणाम यह हुआ कि टाउनशेड देश के शासन में हाथ बँटाने लगा। उसने चाय, सीसा एवं कागज पर आयात चुँगी लगा दी। उसका यह अनुमान था कि इससे प्रतिवर्ष करीब चालीस हजार पौंड की आय होगी। उपनिवेशवासियों को ऐसा प्रतीत हु‍आ कि यह व्‍यवस्‍था उनके स्‍वायत्‍त शासन को समाप्‍त कर देगी।
  • चाय पर चुंगी-  सन्‍ 1760 में लार्ड नार्थ ने प्रधानमंत्री बनकर सीसा, कागज रंग आदि से चंगी हटा दी। पर उसने चाय पर चुंगी रहने दी। ऐसा इसलिये किया गया ताकि वह यह दिखा सके कि इंग्‍लैण्‍ड को उपनिवेशों पर कर लगाने का अधिकार है। उपनिवेशवासियों ने इसका विरोध किया।
  • तीन दुर्घटनायें-  1770 से 1773 की अवधि में तीन छोटी-छोटी उत्‍तेजनात्‍मक दुर्घटनायें घटी।
    1. बोस्‍टन द्वारा आक्रमण-  बोस्‍टन शहर के नागरिक ब्रिटिश छावनियों पर आक्रमण करने लगे। अंग्रेज सिपाहियों ने दंगा करने वालों पर गोलिया चलायीं। इस घटना से उपनिवेशवासी उत्‍तजित हो गये।
    2. गेस्‍पी का जलाया जाना-  1772 में अमेरिका में चोरबाजारी रोकने के लिये एक शाही अंग्रेजी जहाज गेस्‍पी को भेजा गया। उपनिवेशवासियों ने इसे जला डाला।
    3. बोस्‍टन टी पार्टी घटना (1770) – चाय कानून  द्वारा ईस्‍ट इण्डिया कम्‍पनी को भारतवर्ष से सीधे अमेरिका चाय भेजने के लिये अनुमति दे दी गयी। स्‍वतंत्रता संग्राम के उग्रपन्थियों ने इसे ब्रिटिश सरकार की एक चाल समझा। जब बोस्‍टन बन्‍दरगाह में ईस्‍ट इण्डिया कम्‍पनी का जहाज चाय लिये हुए पहुंचा तो कुछ लोगों ने वहाँ के मूल निवासियों के छत वेश में जहाज में प्रवेश कर चाय के 349 बक्‍सों को समुंद्र में फेंक दिया।
  • ब्रिटिश सरकार के दमनकारी कार्य-  बोस्टन टी पार्टी घटना से इंग्‍लैण्‍ड में सनसनी फैल गयी। ब्रिटिश संसद ने तुरन्‍त उपनिवेशों में शान्ति स्‍थापित करने के लिये पांच दमनकारी कानून पास किये। कुछ अन्‍य कार्य निम्‍न प्रकार किये गये-
    1. बोस्‍टन बन्‍दरगाह व्‍यापार के लिये बन्‍द कर दिया गया। परिणामत: वहाँ काम करने वाले हजारों मजदूर बेकार हो गये।
    2. मेसाचुसेट्स का राजनीतिक स्‍वराज्‍य ले लिया गया।
    3. गेज नामक एक सैनिक अधिकारी मेसाचुसेट्स में गर्वनर नियुक्‍त किया गया। यह घोषणा की गई कि बिना गवर्नर की अनुमति लिये कोई आम-सभा नही कर सकता।
  • फिलाडेलफिया की काँग्रेस-ऑलिवर ब्रांच का प्रार्थना पत्र-   अन्‍त में बस्तियों के प्रतिनिधियों ने फिलाडेलफिया नामक स्‍थान पर एकत्रित हो बादशाह के सम्‍मुख एक पार्थना पत्र रखा। जिसका नाम ऑलिवर ब्रांच का प्रार्थना पत्र था। इसके अनुसार उन्‍होनें बादशाह से शांतिपूर्ण ढंग से फैसला करने की प्रार्थना की, परन्‍त्‍ुा राजा और उसके मन्त्रियों से इसे ठुकरा दिया।
  • द्वितीय महाद्वीपीय काँग्रेस-  10 मई 1775 को द्वितीय महाद्वीपीय काँग्रेस बुलायी गई। इसमें युद्ध के तथ्‍य को स्‍वीकार किया गया। अब उपनिवेशों की व्‍यवस्‍थापिका सभाओं ने प्रांतीय काँग्रेस की शक्ति ग्रहण कर ली। ब्रिटिश सरकार ने उपनिवेशों को विद्रोही घोषित कर दिया।
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क्रांति की घटना

लाचार हो 4 जुलाई 1776 को सभी उपनिवेशों ने मिलकर अमेरिका  की स्‍वतंत्रता की घोषणा कर दी और ब्रिटेन से नाता तोड़कर उसका सामना रणक्षेत्र में किया। युद्ध मे सर्वप्रथम बस्तियों की सेना ने इंग्‍लैण्‍ड की सेना को लेग्जिग्‍टन के स्‍थान पर हराया। फिर उसने कनाडा पर आक्रमण करके मांट्रियल पर अधिकार किया। दक्षिण में ट्रेन्‍टन और प्रिसंटन नामक स्‍थानों पर अंग्रेजों को मात खाना पड़ी। सेराटोगा पर भी अंग्रेजों की हार हुई और फिर उत्‍तरी समुद्र के अतिरिक्‍त अंग्रेजों की प्रत्‍येक स्‍थान पर हार हुई। 1781 में बस्तियों ने यार्क टाउन के स्‍थान पर अंग्रेजों के विरूद्ध पूर्ण विजय प्राप्‍त की।  1781 के बाद जिब्राल्‍टर के अतिरिक्‍त अंग्रेजों को प्रत्‍येक स्‍थान पर हरा दिया गया और 1783 में दोनों पक्षों ने वर्सेलीज की संधि की, जिसके अनुसार

  1. ब्रिटेन ने अमेरिका की स्‍वाधीनता स्‍वीकार कर ली।,
  2. ब्रिटेन ने स्‍पेन का माइनार्का व फ्लोरिडा दिये,
  3. सेंट लूसिया तथा टो‍वागों और सेनेगल के प्रात फ्रांस के अधिकार में आ गये तथा भारत में जीते हुए फ्रांसीसी प्रदेश फ्रांस को वापिस मिल गये।

इंग्‍लैण्‍ड की हार या असफलता के ये कारण थे- 

  1. इंग्‍लैण्‍ड द्वारा बस्तियों की शक्ति को कम समझा जाना,
  2. अंग्रेज जनरलों की अयोग्‍यता एवं मूर्खता,
  3. अंग्रेजी सरकार का आवश्‍यकता से अधिक हस्‍तक्षेप,
  4. दूरी के कारण असन्‍तोषजनक आवागमन के साधन और सैनिक सामान भेजने के कठिनाई,
  5. अंग्रेजी सेनाओ का अस्‍थायी रूप से समुद्र पर अधिकार उठ जाना,
  6. फ्रांस का शामिल होना,
  7. इंग्‍लैण्‍ड का एक गलत और अन्‍यायसंगत उद्देश्‍य के लिये युद्ध लड़ा जाना।,
  8. बस्तियों द्वारा स्‍वतंत्रता के लिये युद्ध लड़ा जाना,
  9. जार्ज तृतीय की हठ एवं जिद। गहराई से यदि देखा जाए तो अमेरिका को हाथ से गवां देने के लिये जार्ज तृतीय स्‍वयं जिम्‍मेदार था क्‍योंकि 1760 से लेकर उस समय तक जितने भी मन्त्रिमण्‍डल बने थे उन सबके पीछे वस्‍तुत: वही काम कर रहा था। 

क्रांति के परिणाम | America Kranti 1776 ke Karan aur Prabhav

युद्ध ने युद्ध ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कर दीं जिनका केवल इंग्‍लैण्‍ड पर ही नही बल्कि करीब-‍करीब सारी दुनिया पर प्रभाव पड़ा। यह घटना एक ऐसी महत्‍वपूर्ण घटना बन गई जिसने संसार के प्रत्‍येक मनुष्‍य के राजनीतिक भाग्‍य को पलट दिया। जे. आर.ग्रीन ने ठीक ही कहा है कि अमेरिका के स्‍वतंत्रता संग्राम का महत्‍व इंग्‍लैण्‍ड के लिये चाहे कुछ भी क्‍यों न हो परन्‍तु विश्‍व के इतिहास में यह एक महत्‍वपूर्ण घटना है। इसने एकता और संगठन को  उजागर किया। मध्‍यम और निम्‍न वर्ग ने महत्‍व प्राप्‍त किया। इस घटना ने नई दुनिया में एक नये युग को जन्‍म दिया और पुरानी दुनिया के लिये नये युग का मार्ग प्रशस्‍त कर दिया। सु‍विधा की दृष्टि से हम युद्ध के परिणामों का अध्‍ययन निम्‍न शीर्षकों के अन्‍तर्गत कर सकते है-

  1. अमेरिका पर प्रभाव- किसी ने ठीक ही कहा है युद्ध मूर्ख अंग्रेजों द्वारा लाया गया और अमेरिका के बुद्धिमानों द्वारा स्‍वीकार किया गया। इस युद्ध ने उपनिवेशों की पुरानी व्‍यवस्‍था को समाप्‍त कर दिया और संसार के इतिहास में एक नये राष्‍ट्र “संयुक्‍तराज्‍य अमेरिका” का प्रादुर्भाव हुआ। स्‍वतंत्रता प्राप्ति के बाद इन उपनिवेशों ने अपना संविधान बनाया और प्रजातांत्रिक शासन का संगठन किया। विस्‍तृत क्षेत्र अपार धन और प्राकृतिक साधनों से परिपूर्ण वह क्षेत्र ही संसार का एक महत्‍वपूर्ण देश बन गया। इतने बड़े देश में प्रजातंत्र की सफलता का यह प्रथम उदाहरण माना जा सकता है। इसके अतिरिक्‍त एक विस्‍तृत देश में संघात्‍मक प्रकार की शासन व्‍यवस्‍था को सफलतापूर्वक चलाना संसार की राजनैतिक सभ्‍यता को अमेरिका की एक महत्‍वपूर्ण देन है।
  2. इंग्‍लैण्‍ड पर प्रभाव- इंग्‍लैण्‍ड पर इस युद्ध का बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। सबसे बड़ा प्रभाव तो इसकी आन्तिरिक या घरेलू नीति पर पड़ा। इससे जार्ज द्वितीय के व्‍यक्तिगत शासन की समाप्ति हो गयी। इंग्‍लैण्‍ड में घूँसखोरी तथा अन्‍य बुराइयाँ खत्‍म हो गयी। इंग्‍लैण्‍ड के व्‍यापार को भी क्षति पहुँची। कहा जाता है कि इस युद्ध ने इंग्‍लैण्‍ड की पुरानी शासन व्यवस्‍था को तो बदलकर ही रख दिया। युद्ध के फलस्‍वरूप इंग्‍लैण्‍ड को अपने कई विजित प्रदेशों वंचित होना पड़ा, इंग्‍लैण्‍ड के सम्‍मान और गौरव को ठेस पहुँची, इंग्‍लैण्‍ड के लिये एक साम्राज्य सम्‍बंधी और उपनिवेशों का प्रश्‍न पैदा हो गया, इस युद्ध ने इंग्‍लैण्‍ड की साम्राज्‍यवादी नीति के रूप को ही बदल डाला। टरगट ने ठीक ही कहा है कि ‘बस्तियाँ’ एक प्रकार के फल थे जो पक जाने पर स्‍वत: ही गिर पड़ेगें। इंग्‍लैण्‍ड को शेष बस्तियों के प्रति रवैया पलटना पड़ा। अब उसे उन्‍हें राजनैतिक और आर्थिक स्‍वतंत्रता देनी पड़ी। जो भी हो इसमें सन्‍देह नहीं कि अंग्रेज जाति के सम्‍मान और उसके गर्व की नींव रखी गयी। अमेरिकी लोग इंग्‍लैण्‍ड की सन्‍तान थे और वे इंग्‍लैण्‍ड की सभ्‍यता एवं संस्‍कृति को मानते थे। इससे संसार के अधिकांश भाग में इस सभ्‍यता संस्‍कृति का प्रसार हुआ जिसके प्रभाव से अंग्रेजी जाति के सम्‍मान और गौरव में वृद्धि हुई।
  3. फ्रांस पर प्रभाव- यद्यपि वर्सेलिज सन्धि के अनुसार कुछ खोये हुए प्रदेश फ्रांस को वापिस मिल गये, फ्रांस ने अंग्रेजों से भारत में चन्‍द्रनगर की व्‍यापारिक कोठी प्राप्‍त कर ली। परन्‍तु अमेरिका के इस युद्ध ने फ्रांस की क्रांति को अवश्‍यम्‍भावी बना दिया।
  4. 4.आयरलैण्‍ड पर प्रभाव-  अमेरिका के स्‍वतंत्रता संग्राम ने आयरलैण्‍ड को भी प्रभावित किया और उन्‍हें साम्राज्‍यवाद के विरूद्ध स्‍वतंत्रता का युद्ध छेड़ने के लिये प्रेरित किया। अब आयरलैण्‍ड के निवासियों ने ऐडी-चोटी का जोर लगाकर अपने आपकों इंग्‍लैण्‍ड से मुक्‍त करा लिया।
  5. भारत पर प्रभाव- भारत पर अमेरिका की क्रांति का तत्‍कालीन प्रतिकूल रहा। अमेरिका स्‍वतंत्रता संग्राम के काल मे जब फ्रांस ने युद्ध में प्रवेश किया तो भारत में अंग्रेज फ्रांसीसियों में युद्ध क परिस्थिति उत्‍पन्‍न हो गई जिससे लाभ उठाकर अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों की शक्ति को भारत में क्षति पहुँचाई तथा अपने साम्राज्‍य विस्‍तार के मार्ग को सुलभ बना लिया। किन्‍तु यह भी सच है कि भारत सहित गुलामी की जंजीरों से जकड़े हुए अनेक राष्‍ट्रों के राष्‍ट्रवादियों को इस क्रांति ने सशक्‍त प्रेरणा प्रदान की।

अमेरिका क्रांति के स्‍वरूप व महत्‍व

अमेरिका की इस क्रांति का स्‍वरूप मुख्‍यत: मध्‍यवर्गीय था। अमेरिका के मध्‍यवर्गीय लोग अत्‍यंत उदार एवं प्रगतिशील थे। यह जाग्रत वर्ग था जिसमें राजनीतिक चेतना का अभाव नहीं था। यह वर्ग उपनिवेशों शासकों के विशेष अधिकारों और सुविधाओं से घृणा करता था। यह वर्ग सामाजिक समानता की मांग करता था और अपने राजनीतिक अधिकारो को मान्‍य बनाना चाहता था। इस वर्ग में निराशा व असन्‍तोष की भावना थी जिसे वह संघर्ष करके मिटाना चा‍हता था। प्रारम्‍भ में यह वर्ग भी उपनिवेशों में उच्‍च अर्थो में प्रजातंत्र की स्‍थापना का लक्ष्‍य रखता था और मातृ-राज्‍य से विछोह नहीं चाहता था। किन्‍तु इस वर्ग में जब यह चेतना उत्‍पन्‍न हुई कि उपनिवेश स्‍वायत्‍त सरकार की स्‍थापना को लक्ष्‍य बनाया। इसके लिये अठारहवीं सदी के अन्तिम तीन दशकों में पढ़े-लिखे लोगों, मध्‍यवर्गीय व्‍यवसायियों तथा किसानों ने प्रयास किया। इस सबका यह तात्‍पर्य नही है कि सर्वसाधारण ने संग्राम में भाग नहीं लिया। क्रांति में नगरों के साधारण मेकेनिकों तथा मिस्त्रियों ने खुलकर भाग लिया। नि:संदेह सर्वसाधारण ने संग्राम को उपेक्षा की दृष्टि से नहीं देखा किन्‍तु संग्राम का पथ प्रदर्शन मध्‍यम वर्ग ने ही किया। इसका स्‍पष्‍ट प्रमाण यह है कि स्‍वतंत्रता के घोषणा पत्र पर जितने लोगों ने हस्‍ताक्षर किये थे, उनमें अधिकांश लोग मध्‍यम वर्ग के ही थे। उनमें आधे तो केवल वकील थे। संविधान परिषद में भी मध्‍यम वर्ग के व्‍यक्तियों को बोलबाला था। अत: जो संविधान बना उसके अनुसार पूर्ण जनतंत्र राज्‍य कायम नहीं हुआ। जन-साधारण को मताधिकार से वंचित रखा गया। स्त्रियों नीग्रों तथा बहुत से श्‍वेतों को भी मताधिकार नहीं मिला। इतिहासकार इरविंग क्रिस्‍टोल ने यह मत व्‍यक्‍त किया है कि अमेरिकी क्रांति फ्रांसीसी क्रांति की भाँति आधुनिक नही थी क्‍योंकि इस क्रांति ने जनसाधारण को भविष्‍य के प्रति कोई आश्‍वासन तो नहीं दिया परन्‍तु जन-साधारण को सुखमय जीवन का लक्ष्‍य बोध प्राप्‍त करने की प्रेरणा अवश्‍व दी।

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 एक बात और, अमेरिकी क्रांति में एक वर्ग संघर्ष देखा जा सकता है जिसमें एक ओर इंग्‍लैण्‍ड का कुलीन शासनवर्ग था जिसके समर्थन में स्‍वयं अमेरिका का धनी वर्ग था जो प्रजातंत्र के आगमन और उसकी प्रतिक्रियाओं से भयभीत था। दूसरी ओर अमेरिका के परिश्रमी मध्‍यम व उच्‍च वर्ग के लोग थे।

अमेरिकी क्रांति का महत्‍व

अमेरिका स्‍वततन्‍त्र्य युद्ध की वास्‍तविक महत्‍ता न तो स्‍पेन या फ्रांस के प्रादेशिक लाभों न हॉलैण्‍ड की व्‍यापारिक क्षतियों तथा इंग्‍लैण्‍ड के साम्राज्‍य की अवनति में ही थी, वरन्‍ इसकी वास्‍तविक महत्‍ता अमेरिकी क्रांति के सफल सम्‍पादन के पाई जाती है। अमेरिकी की क्रांति विश्‍व इतिहास की प्रमुख घटनाओं मे एक है। इस क्रांति का महत्‍व कई दृष्टियों से आंका जा सकता है। आधुनिक मानव की प्रगति में अमेरिका की क्रांति एक महत्‍वपूर्ण मोड़ माना जा सकता है। इस  क्रांति के फलस्‍वरूप नई दुनिया में न केवल एक राष्‍ट्र का जन्‍म हुआ वरन्‍ मानव जाति की दृष्टि से एक नये युग का आरम्‍भ हुआ। अमेरिका की यह क्रांति कार्ल एल. बेकर के अनुसार, एक नहीं अपितु दो क्रांतियों का सम्मिलन थी। प्रथम, ‘बाह्म क्रांति’ थी जिसके अंतर्गत उपनिवेशों में ब्रिटेन के विरूद्ध विद्रोह किया गया तथा जिसका कारण उपनिवेशों व ब्रिटेन के मध्‍य आर्थिक हितों का संघर्ष था। द्वितीय, ‘आन्‍तरिक क्रांति’ थी जिसका प्रयोजन स्‍वतंत्रता के पश्‍चात अमेरिका के भविष्‍य की रूपरेखा तैयार करना था।

क्रांति ने सयुक्‍त राज्‍य अमेरिका के राजनीति जीवन को एक नया मोड़ दिया ही इसके अतिरिक्‍त वहाँ के सामाजिक, धार्मिक और सांस्‍कृतिक जीवन की  भी कायापलट कर दी। क्रांति के द्वारा अमेरिकी जनता को एक परिवर्तित सामाजिक व्‍यवस्‍था प्राप्त हुई जिसमें परम्‍परा, धन और विशेषाधिकारों का महत्‍व कम था और मानवीय समानता का महत्‍व अधिक। विशेषाधिकारों का तीन प्रमुख दिशाओं में सफल अधिक्रमण करने पश्‍चात जनतंत्र को काफी प्रोत्‍साहन मिला- अर्थात परम्‍परागत साम्‍पत्तिक अधिकारों की समाप्ति टोरियों की विशाल जायदादों का विघटन और जहाँ कही भी ऐंग्‍लोकन चर्च के केन्‍द्र थे, उनकी समाप्ति। 1786 में वर्जीनिया में धार्मिक स्‍वेच्‍छा अधिनियम पास हुआ। इसके अनुसार किसी भी व्‍यक्ति को चर्च जाने के लिये बाध्‍य नही किया जा सकता था। प्रत्‍येक व्‍यक्ति को पूजा और आराधना की पूर्ण स्‍वतंत्रता दी गई। संघीय संविधान में भी फेडरल कर्मचारियों के लिये किसी धार्मिक योग्यता की आवश्‍यकता न रही। परन्‍तु अभी भी कई राज्‍यों के विधानों में धार्मिक बंधन विद्यमान थे।

अब पहले से अधिक शिक्षा का महत्‍व अमेरिकन समाज ने समझा। क्रांति के पश्‍चात स्‍वतंत्र सार्वजनिक स्‍कूलों तथा जनसाधारण की प्रशिक्षा की मांग की गयी। यह तत्‍काल अनुभव किया गया कि प्रजातन्‍त्रीय स्‍वराज्‍य में शिक्षित मतदाताओं का होना आवश्‍यक है। न्‍ययार्क के गवर्नर जार्ज क्लिन्‍टन ने 1782 मे कहा था कि “जहाँ सर्वोच्‍च नौकरियाँ प्रत्‍येक स्थिति के नागरिक के लिये उपलब्‍ध है उस स्‍वाधीन राज्‍य की सरकार का यह विशेष कर्त्‍तव्‍य है कि उस स्‍तर के साहित्‍य का विद्यालयों तथा विशेष संस्‍थाओं द्वारा प्रचार होना चाहिए जो जन संस्‍थाओं की स्‍थापना के लिये आवश्‍यक है”। जैफरसन ने लिखा, “मैं आशा करता हूँ कि सब चीजों से अधिक प्राथमिकता जन-साधारण की शिक्षा को दी जायेगी क्‍योंकि यह सिद्ध है कि जनता की सुबुद्धि पर ही स्‍वाधीनता के उचित स्‍तर को सुरक्षित रखना निर्भर है”। एलन नेव्हिस एवं हेनरी स्‍टील कोमेगर का निष्‍कर्ष है कि “प्रारम्‍भ में राज्‍यों की गरीबी इस कार्य में बाधक हुई किन्‍तु इस नयी मांग का परिणाम यह हुआ कि युद्ध के पूर्व से कहीं अधिक सुविधाये प्रारम्भिक शिक्षा के लिये प्राप्‍त होने लगी और शिक्षा सम्‍बंधी बहुत ही महत्‍वपूर्ण निर्णय 1785 के भूमि अध्‍यादेश में थे जिसके द्वारा सार्वजनिक शिक्षण संस्‍थाओं को लाखों एकड़  सरकारी भूमि प्रदान की गई”।

अमेरिकी क्रांति के आर्थिक परिणाम की इसके सामाजिक एवं राजनीतिक परिणामों की भाँति अत्‍यधिक महत्‍वपूर्ण थे। आर्थिक क्षेत्र में क्रांति में मूलत: पूँजीवाद अर्थव्‍यवस्‍था के मार्ग की सभी बाधाओं को समाप्‍त कर इसके विकास को प्रोत्‍साहित किया। पुरातनव्‍यवस्‍था इससे सम्बन्धित रीति-रिवाज की समाप्ति से अमेरिकी उपनिवेशों में पूँजीवाद के विकास को बहुत प्रोत्‍साहन मिला।

अमेरिकी क्रांति का वहाँ की कृषि पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। क्रांति काल में बडे-बड़े भूमिपति उपनिवेशों को छोड़कर कनाडा आदि देशों को चले गए जिससे उनकी बड़ी-बड़ी भू-सम्‍पदाओं को तोड़कर छोटे-छोटे टुकड़ों में इनका वितरण निम्‍न तथा मध्‍यम वर्गो के हाथ में किया गया। क्रांति से कृषि के विकास को प्रोत्‍साहन मिला। यदि समग्र रूप से देखा जाए तो अद्यतन एवं खर्चीलें ढंग से की जाने वाली अमेरिका की कृषि को लाभ ही हुआ, हानि नहीं। साथ ही युद्ध काल में आये विदेशियों से यूरोप के कृषिसुधारों के सम्‍बंध में अमेरिकी को जानकारी प्राप्‍त हुई।

कृषि की उपेक्षा उद्योग-धन्‍धों पर क्रांति का प्रभाव अधिक पड़ा। क्रांति से अमेरिका के उद्योग दो तरह से लाभान्वित हुए- प्रथम, अमेरिकी उद्योग अंग्रेजों द्वारा लगाये गये व्‍यापारवादी प्रतिबंधों से मुक्‍त हो गये, द्वितीय, युद्धकाल में इंग्‍लैण्‍ड से वस्‍तुओं का आयात बन्‍द हो जाने के कारण उपनिवेशों के उद्योग के‍ विकास को प्रोत्‍साहन मिला। ब्रिटेन से ऊनी वस्‍त्र बुनने का कार्य राष्‍ट्रीय स्‍तर पर घर-घर में किया जाने लगा। औरतें भी इस कार्य में जुट गयी।

क्रांति ने अमेरिकी नौ-परिवहन को भी दो प्रकार से प्रभावित किया- प्रथम, औपनिवेशिक बन्‍दरगाहों को संसार के लिये खोलकर। इससे फ्रांस ,स्‍पेन तथा हॉलैण्‍ड आदि के साथ अमेरिका के व्‍यापार मे काफी वृद्धि हुई। इन देशों से विलासिता की वस्‍तुओं को आयात किया जाने लगा जिनका भुगतान अमेरिका द्वारा तम्‍बाकु तथा चावल के निर्यात से किया जाता था। द्वितीय, क्रांति ने व्‍यक्तिगत नौ-परिवहन व्‍यवस्‍था को भी प्रोत्‍साहित किया। व्‍यक्तिगत कम्‍पनियों का कार्य भी इस क्षेत्र में अत्‍यधिक महत्‍वपूर्ण था।

अमेरिकी क्रांति ने दैवी अधिकार पर आधारित राजतंत्र तथा कुलीनतन्‍त्रीय एकाधिकार पर घातक प्रहार किया। युद्ध के बाद इंग्‍लैण्‍ड की संसद में राजा के अधिकारों को कम करने की जोरदार मांग उठने लगी। परिणामस्‍वरूप राजा की शक्तियों पर अंकुश लग गया और “केबिनेट” की शक्ति को पुन: स्‍थापित किया गया।

अमेरिकी क्रांति ने इंग्‍लैण्‍ड की “रक्‍तहीन राज्‍य क्रांति” द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्‍तों का और अधिक विकास हुआ। यदि इंग्‍लैण्‍ड की क्रांति ने प्रतिनिधि सत्‍तात्‍मक प्रथा को जन्‍म दिया था तो अमेरिकी क्रांति ने जनतन्‍त्रात्‍मक प्रथा को जन्‍म दिया, जिसमें पहली बार सर्वसाधारण को मताधिकार प्राप्‍त हुआ। अमेरिकी क्रांति को आधुनिक युग में गणतंत्र की जननी कहा जा सकता है। इसके अतिरिक्‍त इस क्रांति के पश्‍चात ही विश्‍व में लिखित संविधानों की प‍रम्‍पराओं का प्रचलन  हुआ। संघीय शासन व्‍यवस्‍था का प्रयोग किया गया। धर्मनिरपेक्ष राज्‍य के रूप में अमेरिका आधुनिक युग का विश्‍व का प्रथम देश था। इस क्रांति ने साम्राज्‍यवाद को प्रथम पराजय दी तथा राष्‍ट्रीयता के सिद्धान्‍त को मानव समाज के समक्ष रखा।

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