यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय | Europe me Rashtravad Ka Uday

यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय | Europe me Rashtravad Ka Uday

Europe me Rashtravad Ka Uday : आधुनिक पश्चिम के उदय की एक प्रमुख रातनैतिक विशेषता 15वीं एवं 16वीं सदी में यूरोप में स्‍पेन, इंग्‍लैण्‍ड और फ्रांस जैसे शक्तिशाली राष्‍ट्रीय राजतंत्रीय राज्‍यों का उत्‍थान था। राष्‍ट्रीय राजतंत्रों की स्‍थापना मध्‍यकालीन सामंतीय व्‍यवस्‍था की समाधि पर हुई थी। जहाँ सामन्‍तीय व्‍यवस्‍था विकेन्द्रित और राष्‍ट्रीय भावनाओं से रहित थी। वहीं नवोदित राजतंत्रीय व्‍यवस्‍था निरंकुश केन्द्रित और राष्‍ट्रीय राज्‍य की भावनाओं से युक्‍त थी। पश्चिमी यूरोप मे स्‍पेन, इंग्‍लैण्‍ड और फ्रांस का उदय राष्‍ट्रीय राजतंत्रीय राज्‍यों के रूप में सम्‍भव हो सका। शक्ति समहित और राष्‍ट्रीय एकता नये राज्‍यों की मुख्‍य विशेषता थी। मध्‍य यूरोप दक्षिणी तथा पूर्वी यूरोप के राज्‍य राजनैतिक भिन्‍नता तथा अविकसित व्‍यवस्‍थाओं के कारण अपने प्रयासों मे सफल न हो सके। ये सारे राज्‍य विकेन्द्रित और असम्‍बद्ध ही बने रहें।

राष्‍ट्रीय राजतंत्रों के उदय के कारण (Europe me Rashtravad Ka Uday)

मध्‍यकालीन व्‍यवस्‍था में तीन संस्‍थाएँ सत्‍ता और शक्ति का प्रमुख केन्‍द्र थी-

  1. पवित्र रोमन साम्राज्‍य
  2. पोपशाही तथा
  3. भू-स्‍वामित्‍व पर आधारित विकेन्द्रित सामन्‍तीय व्‍यवस्‍था।

धर्म युद्धों, सौ वर्षीय युद्धों, ‘काली मौत’ (महामारी), नवजागरण तथा आपसी संघर्ष के कारण जब सत्‍ता के उपरोक्‍त केन्‍द्र विशेष रूप से सामन्‍तीय व्‍यवस्‍था छिन्‍न-भिन्‍न हो गयी तो उसके स्‍थान पर निरंकुश राजतंत्रीय राज्‍यों की स्‍थापना हुई। यूरोप में राष्‍ट्रीय राज्‍यों के उदय के पोषक या सहायक तत्‍व निम्‍नलिखित थे-

  1. राष्‍ट्रीय राजतंत्रों के उदय का सर्वाधिक पोषक या सहायक तत्‍व व्‍यापारिक क्रान्ति था। व्‍यापार की उन्‍नति के फलस्‍वरूप ‘वाणिज्‍यवादी’ नीतियों तथा औपनिवेशिक साम्राज्‍यों के उदय से राजाओं को बड़ी मात्रा में धन प्राप्‍त होने लगा। इस अपार धनराशि का उपयोग राजाओं ने स्‍थायी सेना रखने तथा अपनी शक्ति का विस्‍तार करने में लगाया। बढ़ते हुए व्‍यापार के लिये सुरक्षा और प्रोत्‍साहन की आवश्‍यकता ने भी शक्तिशाली सरकार की जरूरत को बढावा दिया। जाहिर है कि मध्‍यम वर्ग और व्‍यापारियों का हित भी एक ऐसी सुदृढ़ सरकार क स्‍थापना में था जो सतुद्री लुटेरों के खतरों तथा नव-विकसित उद्योगों को सुरक्षा एवं प्रोत्‍साहन प्रदान कर सके। इसलिये मध्‍यमवर्गीय व्‍यापारी वर्ग ने भी शक्तिशाली राष्‍ट्रीय राजतंत्रों की स्‍थापना में अपना सक्रिय योगदान दिया। धन धनाढ्य व्‍यापारियों के सामाजिक एवं राजनैतिक हित भी सामन्‍तों के विरूद्ध निरंकुश राष्‍ट्रीय राजतंत्र के साथ ही सुरक्षित रह सकते थे। अतएव इस वर्ग ने राष्‍ट्रीयता की भावना का सृजन किया और अपनी सेवा एवं सहयोग से राजतंत्रीय व्‍यवस्‍था को मजबूत बनाया।
  2. पश्चिमी यूरोप में राष्‍ट्रीयता का उत्‍थान राष्‍ट्रीय राजतंत्रों के उदय का एक और महत्‍वपूर्ण सहायक तत्‍व था। पुनर्जागरण तथा धर्म सुधार आन्‍दोलन से राष्‍ट्रीयता और एकता भी भावना को बल मिला था। व्‍यापार के विकास ने भी राष्‍टीयता और धार्मिक स्‍वतंत्रता की भावनाओं के विकास में मदद की थी।
  3. पश्चिमी यूरोप के कुछ देशों में प्रोटेस्‍टेंट आन्‍दोलन (धर्म सुधार) ने भी राजतंत्रीय सत्‍ता को सुदृढ़ करने में मदद की। धार्मिक आन्‍दोलन ने ईसाई जगत की एकता को ध्‍वस्‍त किया। इससे धार्मिक स्‍वतंत्रता और राष्‍ट्रीयता का जो नया माहौल बना उससे प्रेरित होकर कुछ राजाओं ने राजनैतिक सत्‍ता के साथ धार्मिक सत्‍ता का विस्‍तार भी कर लिया।
  4. उस युग के प्रसिद्ध लेखकों ने भी राजवंशीय सत्‍ता को सुदृढ़ और निरंकुश बनाने का समर्थन किया था। इटालियन लेखक मैकियावली द्वारा लिखित ग्रंथ ‘दि प्रिन्‍स’, फ्रांसीसी ले‍खक बोदिन रचित पुस्‍तक ‘दि स्‍टेट’ इस सन्‍दर्भ में विशेष उल्‍लेखनीय हैं।
  5. वे सारे तत्‍व जो सामन्‍तवाद के पतन के कारणों के रूप में रहे, राष्‍ट्रीय राजतंत्रों के उत्‍थान में कमोबेश सहायक सिद्ध हुए, जैसे-धर्म युद्ध, सामन्‍तों का आपसी संघर्ष, नगरीय अर्थव्‍यवस्‍था का विकास एवं मध्‍यम वर्ग का उदय आदि।

स्‍पेन, फ्रांस और इंग्लैण्‍ड में राष्‍ट्रीय राजतंत्रों की स्‍थापना

आधुनिक युग की एक विशेषता यह भी थी कि इस युग में अनेक राष्‍ट्रीय राजतंत्रों का उदय हुआ। स्‍पेन, फ्रांस, इंग्लैण्‍ड व यूरोप के अन्‍य राज्‍यों में राष्‍ट्रीय राजतंत्रों की स्‍थापना हुई।

इंग्‍लैण्‍ड का उदय

पहला शक्तिशाली एवं गरिमामय राजवंशीय शासन इंग्लैण्‍ड में स्‍थापित हुआ। ये शक्ति और राष्‍ट्रीय एकता इंग्‍लैण्‍ड को ट्यूडर वंश ने दी। इंग्लैण्ड का 1337 से 1453 तक सौ वर्षो का युद्ध चला। इस युद्ध में इंग्‍लैण्ड  को पराजय का सामना करना पड़ा। वहाँ राजतंत्र का विकास हुआ। 1455 से 1485 तक एक लग्‍बा सामन्‍तीय युद्ध हुआ जिसे गुलाबों का युद्ध कहते हैं। 1485 से 1509 तक हेनरी सप्‍तम ने राज्‍य किया। हेनरी ने सामन्‍तों को समाप्‍त्‍ किया।

सामन्‍तों की उपद्रवी शक्ति को समाप्‍त करने के साथ ही  हेनरी ने देश में शांति व्‍यवस्‍था स्‍थापित कर उसे सुदृढ़ बनाने के उपाय किये। उसने यार्कवंश से दीर्घकालीन वैमनस्‍य समाप्‍त करने के उद्देश्‍य से चतुर्थ एडवर्ड की पुत्री एलिजाबेथ से शादी कर ली। उसने प्रशासनिक संस्‍थाओं को संगठित किया और बजट को संतुलित बनाया। राज्‍य परिषद् को ट्यूडर हितों के अनुकूल एक शक्तिशाली संगठन के रूप में विकसित किया।

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उल्‍ले‍खनीय है कि इंग्‍लैण्‍ड का शासन प्रणाली का विकास अन्‍य देशों की भांति रोमन शैली पर नहीं हुआ। रोमन शैली मे राजा की इच्‍छा ही कानून थी। हेनरी एवं अन्‍य ट्यूडरों ने पार्लियामेंट के अस्तित्‍व को कभी नही नकारा। यद्यपि पार्लियामेंट के अधिवेशन बहुत नियमित रूप से नहीं होते थे तो भी ट्यूडर शासकों ने यह मान्‍य किया कि कोई नए कर के लिये पार्लियामेंट की स्‍वीकृति आवश्‍यक है। इस प्रकार इंग्‍लैण्‍ड में राष्‍ट्रीय राजतंत्र तथा पार्लियामेंट साथ-साथ चलने का प्रयोग शुरू हुआ।

हेनरी सप्‍तम ने विभिन्न देशों में व्‍यापारिक संधियाँ कर विदेशी व्‍यापार को प्रोत्‍साहित किया। उसने संरक्षण की नीति अपनाई और इंग्‍लैण्‍ड के व्‍यापारियों पर ये बंदिश लगाई कि जब तक अपने जहाज उपलब्‍ध हों विदेशी जहाजों का प्रयोग वे न करें। उसने व्‍यापारिक जहाजों के निर्माण और राजकीय नौसेना का आरम्‍भ भी किया। हेनरी ने उस व्‍यापारिक नीति की नींव रखी जिसके फलस्‍वरूप आने वाली सदियों में इंग्लैण्‍ड को प्रथम श्रेणी का व्‍यापारिक देश बना दिया।

हेनरी सप्‍तम ने स्‍काटलैंड और स्‍पेन से अपनी पुत्री और पुत्रों के वैवाहिक सम्बंध करके इंग्‍लैण्‍ड की स्थिति को सुदृढ़ किया। उसने अपनी पुत्री मार्गरेट का विवाह स्‍काटलैंड क जेम्‍स चतुर्थ से किया। इसी विवाह के आधार पर सौ साल बाद 1603 मे जेम्‍स प्रथम इंग्‍लैण्‍ड का राजा हुआ तथा स्‍टुअर्ट वंश की स्‍थापना हुई। अपने पुत्र आर्थर की शादी उसने स्‍पेन के फर्डिनेन्‍ड एवं इजाबेला की द्वितीय पुत्री कैथरीन से कर दी। आर्थर की मृत्‍यु हो जाने से उसने वैदेशिक नीति के फलस्‍वरूप इंग्‍लैण्‍ड की गणना यूरोप के शक्तिशाली देश के रूप में स्‍थापित हो चुकी थी।

हेनरी अष्‍टम ( 1509-1547) ने पोप की सत्‍ता को चुनौती दी और धर्म सुधार आन्‍दोलन प्रारम्‍भ किया। इंग्‍लैण्‍ड और यूरोप की नीतियों पर इसके दूरगामी प्रभाव हुए। इंग्‍लैण्‍ड के धार्मिक जीवन का नियंत्रण राजा और पार्लियामेंट के हाथों में चला गया। ट्यूडर वंश की आखिरी शासिका एलिजाबेथ (1558- 1603) के काल में इंग्लैण्‍ड ने राष्‍ट्रीय राजतंत्र का स्‍वर्ण युग देखा। इस काल में इंग्‍लैण्‍ड की बहुमुखी उन्‍नति हुई और इंग्लैण्‍ड समुद्र का राजा बन गया।

स्‍पेन का उदय

1469 में अरागान के राजा फर्डिनेण्‍ड तथा कास्‍तीन की इजाबेला के विवाह के फलस्‍वरूप दोनों राज्‍यों का एकीकरण हुआ और स्‍पेन का एक राष्‍ट्रीय राज्‍य के रूप में उदय। उस युग में स्‍पेन यूरोप के समृद्ध एवं शक्तशाली राष्‍ट्रीय राज्‍यों में से एक था।

पिरेनीज पर्वत श्रेणियों के दक्षिण में भू-मध्‍य सागर, अटलांटिक और पूर्तगाल से लगा पठारी इलाका स्पेन है पूर्व में अरागना का राज्‍य था, उत्‍तर पूर्व में नवारे का राज्‍य मध्‍य में सबसे महत्‍वपूर्ण कास्‍तील का राज्‍य। दक्षिण में ग्रेनेडा का मुस्लिम राज्‍य था। फर्डिनेण्‍ड और इजाबेला की वैवाहिक सम्‍बंधों ने स्‍पेन को एक नई तातक दी जिससे वे सामंतों तथा अन्‍य उपद्रवी तत्‍वों को दबा सके।

स्‍पेन का नवोदित राज्‍य वास्‍तव में धर्म राज्‍य था। कैथोलिक धर्म और राजनीति से अलग करके देखना सम्‍भव नहीं था। वास्‍तव में धार्मिक कट्टरता ने ही स्‍पेन को राष्‍ट्रीय राज्‍य बनाया था। धार्मिक कट्टरता और असहिष्‍णुता ही स्‍पेन की राष्‍ट्रीयता बन गई। फर्डिनेण्‍ड और इजाबेला कि साथ धार्मिक डिक्‍टेटर के रूप मे महाधर्माधिकारी टार्क्‍यू मेडा का नाम भी जुड़ गया। महाधर्माधिकारी को असीमित शक्तियाँ प्राप्‍त थी। 1492 में ग्रेनेडा के मुस्लिम राज्‍य पर विजय प्राप्त कर ‘मरो’ (उत्‍तरी अफ्रीकी मुसलमान) को खदेड दिया गया। यहूदियों को भी स्‍पेन से भगा दिया गया। यहूदियों और मुसलमानों की काफी बड़ी संपत्ति सरकार के हाथ लग गई। यह एक अजीब संयोग ही है कि पूर्वी यूरोप मे जब तुर्की के नेतृत्‍व में मुस्लिम शक्ति अपने प्रभाव को बढ़ा रही थी तथी पश्चिम में स्‍पेन ने मुस्लिम प्रभाव नेस्‍त नाबूद कर दिया। उस समय के स्‍पेनिश राष्‍ट्र के लिये इससे बड़ी और गौरवपूर्ण कोई और उपलब्धि नही हो सकती थी, इसी उपलब्धि पर खुश होकर पोप अलेक्‍जेण्‍डर छठे ने फर्डिनेण्‍ड और इजाबेला को कै‍थोलिक किंग्ज ( कैथालिक राजाओं) की उपाधि से विभूषित किया। इस प्रकार धार्मिक एकता के आधार पर राष्‍ट्रीय राज्‍य स्‍थापित करने की नीति अपनाई गई। 1512 में फ्रांस को हराकर  स्‍पेन ने नेवारे पर अधिकार कर लिया। राष्‍ट्रीय एकीकरण की ओर यह महत्‍वपूर्ण कदम था।

फर्डिनेण्‍ड और इजाबेला ने स्‍पेन मे पूर्णत: निरंकुश एवं केन्द्रित शासन स्‍थापित किया।  कठोर करारोपण केन्‍द्रीयकृ‍त शासन की मुख्‍य विशेषता थी। ‘करो’ के मामले में सारे देश के लिये एक ही व्‍यवस्‍था अपनाई गई। रोमन कैथोलिक चर्च को मान्‍यता प्राप्‍त थी  परन्‍तु पोप का वर्चस्‍व कम कर दिया गया। महाधर्माधिकारी के निर्णय पर पोप को अपील नही की जा सकती थी।

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इंग्लैण्‍ड, पुर्तगाल और आस्ट्रिया के राजवंशों के फर्डिनेण्‍ड  ने अपने पुत्र-पुत्रियों के वैवाहिक सम्‍बंध स्‍थापित कर उनकी स्थिति को सुदृढ़ बनाया।

1504 में इजाबेला और 1516 में फर्डिनेण्‍ड की मृत्‍यु हुई। स्‍पेन में राष्‍ट्रीय राजतंत्र क स्‍थापना कर उसे एक शक्तिशाली आधुनिक राष्‍ट्र बनाने का श्रेय इन्‍ही दोनों को है। हालांकि कुछ आन्‍तरिक कमजोरियाँ और विसंगतियाँ इस राष्‍ट्रीय राज्‍य में अवश्‍य थीं।

1516 ई. में चार्ल्‍स प्रथम स्‍पेन की गद्दी पर बैठा। व‍ह फर्डिनेण्‍ड की पुत्री का पुत्र था। 1519 में चार्ल्‍स को पवित्र रोमन सम्राट चुन लिया गया। युग का यह बड़ा गौरव था। पवित्र रोमन सम्राट के पद पर वह चार्ल्‍स पंचम कहलाया। चार्ल्‍स के बारे में कहा जाता है कि इसका शासन उतना ही  शकितशाली और प्रसिद्ध हुआ जितना कि उसे पहले शार्ल मैन और बाद में नेपोलियन बोनापार्ट। उसकी यह प्रसिद्धि उसकी अपनी योग्‍यता के कारण नहीं बल्कि शानदार विरासत के कारण थी। स्‍पेन के अलावा वह पवित्र रोमन साम्राज्‍य, नीदरलैंड, बरगंडी, नेपिल्‍स, सिसली, सार्डीनिया, स्‍पेनी अमेरिकी तथा अफ्रीका के कुछ भागों का शासक था। इसमें कोई शक नहीं कि इस समय चार्ल्‍स संसार के सबसे बडे भू-भाग का शासक था। सोना चाँदी उगलते अमेरिकी उपनिवेश स्‍पेन के लिये वरदान थे। वास्‍तव में स्‍पेन अपने गौरव की पराकाष्‍ठा पर था।

1556 में चार्ल्स पंचम ने साम्राज्‍य से मुक्ति ले ली। विशालता के कारण उसने स्‍पेनिश साम्राज्‍य का विभाजन अपने पुत्र फिलिप और अपने भाई फर्डिनेण्‍ड मे कर दिया। परन्‍तु फिलिप ही सम्राट बना। 1580 में पुर्तगाल भी स्‍पेन में मिल गया। यह विलयन 1640 तक रहा। स्‍पेन का यह गौरव बहुत दिनों कायम नही रह सका। इसका कारण यह था कि स्पेन की समृद्धि के स्‍त्रोत देश में न होकर देश के बाहर थे।

फ्रांस का उदय

फ्रांस में राष्‍ट्रीय राज्‍य का विकास इंग्‍लैण्‍ड और स्‍पेन से भिन्‍न तरीके से हुआ। फ्रांस की भौगोलिक स्थिति भी इंग्‍लैण्‍ड और स्‍पेन से भिन्‍न थी। इंग्‍लैण्‍ड और स्‍पेन की तरह फ्रांस समुद्र का राजा नहीं था और न ही इंग्लैण्‍ड की तरह समुद्र से चारों से ओर से सुरक्षित था। स्‍पेन और फ्रांस की समस्‍याएँ भी अलग-अलग प्रकार की थी।

फ्रांस में निरंकुश राजतंत्र स्‍थापित करने की प्रक्रिया 12 वीं सदी के अन्तिम वर्षो से ही जारी थी किन्तु शतवर्षीय युद्ध ( 1337- 1453) के बाद ही फ्रांस में निरंकुश राजतंत्रीय शासन का विकास सम्‍भव हो सका।

प्रारम्‍भ में शतवर्षीय दीर्घ युद्ध में इंग्लैण्‍ड को इतनी अधिक सफलताएँ मिली कि फ्रांस के दो तिहाई भाग पर उसका अधिकार हो गया। जिस समय फ्रांस निराशा और असफलता के एक अन्‍धकार में रास्‍ता टटोल रहा था उसे प्रकाश की एक किरण मिली जॉन ऑफ आर्क के रूप में। 17 वर्ष की गाँव की एक अनपढ़ लड़की जॉन ऑप आर्क ने देशभक्ति और साहस का वह करश्मिा कर दिखाया जो बड़े-बड़े सेनापतियों से सम्‍भव नहीं हो सका था। इस कमसिन लड़की ने फ्रेंच सैनिक टुकडि़यों का स्‍वयं नेतृत्‍व किया तथा फ्रांसीसी सैनिकों में देशभक्ति और राष्‍ट्रीयता की भावना जागृत कर दी। युद्ध का पासा पलट गया किन्‍तु जॉन अंग्रेजों के हाथ लग गई। मुकदमें के बाद उसे तख्‍ते से बांधकर जला दिया गया। जॉन ऑफ आर्क का बलिदान व्‍यर्थ नहीं गया। जॉन की प्रेरणा और साहस के परिणामस्‍वरूप फ्रांस शतवर्षीय युद्ध के विजेता के दो  लाभ मिले। एक तो इससे स्‍थायी सेना रखने की परम्‍परा स्‍थापित हो गई तथा दूसरे युद्ध के बहाने से राजा स्‍टेट्स जनरल ( 1302 से स्‍थापित प्रतिनिधि सभा ) की अवहेलना कर स्‍वयं ही कर लगा सका।

चार्ल्‍स सप्‍तम ( 1422-61 ) के उत्‍तराधिकारी लुई ग्‍यारहवें (1461-83) को फ्रांस में राष्‍ट्रीय राजतंत्र की स्‍थापना का श्रेय दिया जाता है। अंतिम शक्तिशाली सामंत वर्गडी पर विजय प्राप्‍त करने तथा राष्‍ट्रीय एकता को सुदृढ़ बनाने के कारण लुई 11वें को ‘राष्‍ट्र निर्माता’ तक कहा गया है। उसने सामंतों और चर्च के प्रभाव पर अंकुश लगाया। उसने एकसी मुद्रा एवं नापतौल प्रणाली को लागू किया। राजतंत्रीय राष्‍ट्रीय राज्‍य की स्‍थापना की दृष्टि से लुई 11वें का शासनकाल युगान्‍तकारी था।

फ्रांसिस प्रथम (1515-1547) को फ्रांस का पुनर्जागरण शासक कहा जाता है। उसके द्वारा स्‍थापित ‘कालेज द फ्रांस’ अपनी उदार परम्‍पराओं के कारण विश्‍व विख्‍यात हुआ। यद्यपि वह स्‍वयं कैथोलिक था, फिर भी मानवतावादी विचारों का फैलाव उसके काल में हुआ। फ्रांसिस प्रथम के काल में भी निरंकुश राजतंत्र का सुदृढ़ होना जारी रहा। राजा के दैवी अधिकार की पुष्टि भी उसके शासनकाल में हो सकी।

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16वीं सदी के  पूर्वार्द्ध में किसानों ने सामंतीय लगान से मुक्‍त होने की कोशिश की परन्‍तु उन्‍हें सफलता नहीं मिली। बल्कि कुलीनों ने राजा के साथ मिलकर स्‍वयं को शाही भूमिकर ताई से मुक्‍त कर लिया। नौकरशाही तंत्र के माध्‍यम से बहुत से सामंतशाही ढांचें में सम्मिलित कर लिये गये। जाहिर है कि फ्रांस में आगे-पीछे राजा और सामंतों में सत्‍ता संघर्ष भी हुए परन्‍तु जरूरत होने पर एक दूसरे से सांठ-गांठ भी चलती रही।

1589 में हेनरी चतुर्थ के राज्‍यारोहण के साथ फ्रांस में बूरबों राज्‍यवंश की नींव पड़ी। इस वंश ने फ्रांस पर दो साल तक किया। फ्रांस में ही नहीं बल्कि पूरे यूरोप में बूरबों राजवंश शक्तिशाली निरंकुशता  का प्र‍तीक बन गया। हेनरी चतुर्थ (1589-1610) ने राजतंत्रीय प्रतिष्‍ठा को पुन: स्‍थापित किया। फ्रांस के महान् राजाओं में उसकी गणना की जाती है।

लुई 13वें (1610-43) के मंत्री रिशलू ने सामंतों की शक्ति को गहरा आघात पहुँचाया और उनकी गढि़यों को जला दिया। लुई 14वें की अल्‍पवयस्‍कता के काल  मे मजारिन ने गृहयुद्ध (फ्रोंद) में सामंतों को पराजित कर राजतंत्र की शक्ति को सुदृढ़ किया। लुई 14 वें (1643-1715) के शासनकाल सम्‍भालने तक फ्रांस में निरंकुश राजतंत्रीय राष्‍ट्रीय राज्‍य की चरम सीमा थी।

पुर्तगाल का उदय

नाविका राजकुमार प्रिंस हेनरी तथा अन्‍य शासकों के प्रयास से तथा सफल भौगोलिक खोजों के कारण 1500 ई. तक पुर्तगाल में एक लोकप्रिय राष्‍ट्रीय राजतंत्र की नींव पड़ चुकी थी। नये समुद्री मार्गो की खोज से एशिया और अफ्रीका में पुर्तगाली उपनिवेशों का विस्‍तार हुआ। 1498 में वास्‍को-डी-गामा भारत के कालीकट बन्‍दरगाह पर पहुँचा था। 1510 में गोवा पर पुर्तगाल का अधिकार हुआ। स्‍पेन से राजवंशीय सम्‍बंध होने से 1580 में फिलिप द्वितीय ने पुर्तगाल का विलयन स्‍पेन में कर दिया। यह एकीकरण 1640 ई. तक चला।

स्‍काटलैंड का उदय

16वीं सदी के शुरू में स्‍काटलैंड के राष्‍ट्रीय राजतंत्र का उदय अवश्‍य हो चुका था, परन्‍तु इंग्‍लैण्‍ड की तुलना में यह बहुत कमजोर था। इंग्‍लैण्‍ड के विरूद्ध उसका अस्तित्‍व हमेशा फ्रांस की सहायता पर ही निर्भर रहा। स्‍काटलैंड शक्तिशाली राष्‍ट्रीय राजतंत्र के रूप में अधिक प्रगति नहीं कर सका।

यूरोप के निर्बल राज्‍य

यूरोप के अन्‍य राज्‍यों में भी राजतंत्र की स्‍थापना हुई, परन्‍तु राष्‍ट्रीय भावना का अभाव रहा, जिसके कारण वे शक्तिहीन बने रहे।

जर्मनी– जर्मनी अनेक छोटे राज्‍यों में विभाजित था। 15वीं शताब्‍दी मे यहाँ हैप्‍सवर्ग वंश का राज्‍य था।

डेनमार्क नार्वे तथा स्‍वीडन–  डेनमार्क, नार्वे और स्‍वीडन का संयुक्‍त राज्‍य स्‍केडेनविया कहलाता था। अन्‍त में यहाँ भी सामंतों को कुचल दिया गया।

पौलेण्‍ड एवं लिथुआनिया–  आन्‍तरिक दुर्बलताओं के कारण यहाँ पर आक्रमण होते थे। जिसके कारण पौलेण्‍ड शक्तिशाली राज्‍य नहीं बन सका। अन्‍त में दोनों राज्‍यों मे एकता स्‍थापित हुई, परन्‍तु प्रबल विरोधी के कारण एक शक्तिशाली राज्‍य नहीं हो सका।

रूस–  आधुनिक युग के आरम्‍भ में यह एक निर्बल राज्‍य था। यहाँ के निवासी स्‍लाव नस्‍ल के थे। मंगोलो तथा बर्बर जातियों के आक्रमण के कारण यह कमजोर ही रहा। अन्‍त मे यहाँ के शासन ने जार की उपाधि धारण की।

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