शिक्षा पूरी होने के बाद एक गुरु ने अपने शिष्य से कहा कि हे मेरे प्रिय शिष्य किताबों में जितना भी ज्ञान था वह मैंने तुमको दे दिया है अब मेरे साथ तुम्हें यात्रा में चलना होगा, हम इस राज्य के हर नगर में भ्रमण करेंगे और वहां तुम जीवन की विद्या सीखोगे।
गुरु की बात सुनकर शिष्य तैयार हो गया और दोनों राज्य के सभी प्रमुख नगरों में घूमने के लिए निकल पड़े, मार्ग में उन्होंने देखा की एक किसान अपने खेत को सींचने में बहुत ही ज्यादा व्यस्त था। तभी वह दोनों वहां पर काफी देर तक खड़े रहे, परंतु किसान ने आंख उठाकर भी उन दोनों को नहीं देखा।
कुछ देर तक जब किसान अपने काम में व्यस्त रहा और उसने गुरु और शिष्य की ओर नहीं देखा, तो दोनों गुरु और शिष्य आगे बढ़ चले। आगे चलने पर उन्हें एक लोहार दिखा जो लोहा पीटने में व्यस्त था। अपने काम में मशगूल होने की वजह से उसने भी, इन गुरु शिष्य की ओर नहीं देखा।
गुरु और शिष्य वहां पर लगभग 20 मिनट खड़े रहे पर उसके बाद भी लोहार ने उनकी तरफ नहीं देखा। इसके बाद वह दोनों आगे निकल पड़े, आगे चलने पर उन्हें तीन राहगीर दिखे जो पथरीली जमीन पर आनंद से सो रही थी।
गुरु ने शिष्य से बोला – “देखो मेरे प्रिय! कुछ पाने के लिए, हमें कुछ देना पड़ता है। किसान परिश्रम देता है तो लहलहाते और हरे भरे खेत का परिणाम मिलता है। लोहार अपना पसीना बहाता है तब जाकर कोई धातु अपना आकार ले पाता है। यात्री जब यात्रा में मग्न हो जाता है तो हर परिस्थिति में आनंद प्राप्त कर सकता है।
तुम भी अपने परिश्रम से ज्ञान का खेत सींचो, तपस्या की आंच में सफलता को सिद्ध करो और जीवन मार्ग में स्वयं को निमग्न कर आनंद प्राप्त करो।
मेरे प्यारे शिष्य यही शिक्षा का मूल मर्म है।
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