सोनू नाम का एक लड़का था। गांव के एक कोने में उसकी झोपड़ी थी। उसके माता और पिता, कुंभ के मेले में खो गए थे। वह गांव में रहने वाले ग्रामीणों के जानवरों को जंगल में चराने ले जाया करता था। सारे दिन जंगल में बैठा, फूल पौधे देखता और बांसुरी बजा कर मन बहलाता था।
एक दिन सोमू मवेशियों को घर लाया, तो उसे पता चला कि एक मेमना कम है। शाम होने लगी थी, सोमू ने कुछ सोचा, फिर वह अकेले ही जंगल की ओर चल पड़ा। वहां जाकर मेमने को ढूंढने लगा। अंधेरा होता जा रहा था। सोमू मेमने को आवाज देता हुआ, इधर उधर देख रहा था। थोड़ी दूर पर ही उसे मेमना घूमता हुआ दिखा। सोमू ने उसे गोद में उठा लिया, और फिर गांव की ओर चलने लगा। तभी जंगल से किसी की दर्द भरी आवाज सुनाई दी। सोमू एक पल के लिए रुका और अपने आप से बोला – ” जरूर कोई मुसीबत में है, मुझे देखना चाहिए, आखिर क्या बात है?”
वह आवाज की दिशा में चल पड़ा, उसने देखा कि तलाब के कीचड़ में एक जगह दलदल बन गया था। वहां घोड़े का एक बच्चा फसा हुआ था।
सोमू को देखकर, घोड़े का वह बच्चा आशा भरी नजरों से सोमू की ओर देखने लगा, उस बच्चे को देखकर ऐसे लग रहा था, कि वह सोमू से बचाने के लिए प्रार्थना कर रहा हूं।
सोमू ने उसे देखते का हुए कहा- ” ठहरो दोस्त! चिंता मत करो, मैं अभी तुम्हें निकालता हूं इस दलदल से”
सोमू ने अपनी गोद में लिए हुए, मेमने को किनारे पर छोड़ा। और तालाब की ओर बढ़ चला, तालाब का पानी बहुत ठंडा था, उसने सोचा- “की ठंड बढ़ रही है, दिन डूब चुका है और आसमान में तारे भी दिखने लगे हैं। “
सोमू कीचड़ में संभल संभल कर आगे बढ़ता गया, उसने घोड़े के बच्चे को उठा लिया, किनारे लाकर उसे पानी से साफ किया, फिर अपनी पगड़ी से उसका बदन पूछते हुए सोमू ने कहा- ” लगता है, तुम बहुत देर से पानी में फंसे हुए थे। अगर मैं ना आता, तो तुम आज ठंड में जम गए होते।”
घोड़े के बच्चे ने सिर हिला कर, मानो उसका धन्यवाद दे रहा हो।
अगले दिन दोपहर को सोमू ने जैसे ही बांसुरी पर तान छेड़ी, ना जाने कहां से वह घोड़े का बच्चा आकर फिर सोमू के पास खड़ा हो गया। सोनू ने उसे अपने खाने में से उसे खिलाने के लिए कुछ रोटी आदि, अब यह रोज का क्रम हो गया, रोज वह घोड़े का बच्चा सोमू के पास आता, सोमू रोज से कुछ खाने को देता। थोड़े समय में ही घोड़े का वह बच्चा बड़ा और मजबूत घोड़ा हो गया। धीरे-धीरे सारे गांव में यह बात फैल गई, लोग कहने लगे- ” की सोमू के पास एक घोड़ा है, और वह सबसे अच्छा घोड़ा है।”
बात फैलते फैलते गांव के जमीदार तक पहुंच गई। जमीदार ने सोमू को बुलवाया, और कहां- ” अपना घोड़ा तुम, मुझे भेज दो। जो कीमत मांगोगे, मैं तुमको दूंगा”
सोमू ने विनम्रता से सिर झुकाते हुए कहा- ” मालिक, आप मेरी जान ले लीजिए, पर मेरे घोड़े को मुझसे खरीदने की बात मत करिए, मैं उसके बिना नहीं रह पाऊंगा। इस दुनिया में मात्र वही मेरा एक सच्चा दोस्त है।”
यह सुनकर जमीदार की आंखों में गुस्सा उतारा आया, उसकी आंखें लाल हो गई। उसमें सोमू पर चिल्लाकर कहा – ” लड़के, तू जानता है, किससे बात कर रहा है। मैं तेरे टुकड़े करवा दूंगा।”
सोमू चुपचाप वहां से चला आया, अब तो जमीदार के गुस्से का कोई ठिकाना ही ना रहा। उसने तुरंत अपने नौकर को बुलवाया और उससे कहा- ” देखो, तुम लोग उस लड़के के घर को जला दो। लड़के के टुकड़े-टुकड़े कर दो और उसके घोड़े को हमारे पास ले आओ।”
जमीदार के नौकरों ने सोमू की झोपड़ी जला दी, उन्होंने सोमू को पकड़ लिया। उसे मारने के लिए जैसे ही तलवार उठाई, तभी तेज गड़गड़ाहट की आवाज आई। तूफान आने लगा, सब ने आश्चर्य से देखा की सोमू का घोड़ा तेजी से दौड़ता हुआ आ रहा था। उसने नथुने फड़क रही थी। उसके मुंह से आग निकल रही थी, उसकी तेज सांसो की वजह से आंधी चलने लगी थी। घोड़ा दो पांव पर खड़ा हो, इतनी जोर से हिनहिनाना की पहाड़ी के पत्थर लुढ़कने लगे। घोड़े ने मनुष्य की वाणी में कहा – ” हे धूर्त जमीदार, तूने इस निर्दोष पर अत्याचार किया है। इन भोले- भाले गांव वालों पर हमेशा अत्याचार करता आया है। जा अब तू पत्थर का बन जाएगा।”
घोड़े के यह कहते ही जमीदार पत्थर बन गया, जमीदार के नौकर सिर पर पांव रख कर भाग गए। घोड़े ने सोमू से कहा – ” मित्र, मैं गंधर्व चित्ररथ का साथी हूं। एक दिन चित्ररथ नदी के किनारे खड़ा था। मैं उसके पीछे से घोड़े की तरह हिनहिनाया। चित्ररथ डर कर पानी में गिर पड़ा, उसने क्रोधित होकर मुझे श्राप दे दिया कि मैं घोड़ा होकर पृथ्वी पर रहूं। मैंने उससे बहुत क्षमा मांगी उसके बाद उसने कहा कि मैं एक वर्ष तक घोड़े के रूप में पृथ्वी लोक पर रहूंगा। अब मेरा एक वर्ष समाप्त हो गया है, इसलिए अब मैं अपने धाम को लौटूंगा। इसलिए मेरे मित्र, अब मैं तुमसे जाने की आज्ञा चाहूंगा।”
बात पूरी होते ही घोड़ा गंधर्व रूप में आकर अंतर्ध्यान हो गया। सोमू की आंखों में आंसू बहने लगे। आज उसका साथी बिछड़ गया था। अब अत्याचारी जमीदार तो नहीं रहा, इसलिए गांव के लोगों ने उसे अपना मुखिया बना लिया। मुखिया बनकर सोमू हमेशा दूसरों की मदद करता रहा। उसने तालाब के किनारे घोड़े की मूर्ति भी बनवाई, वह जमीदार तो पत्थर बन गया था, और आज भी वह रीवा नाम के शहर के एक गांव में पत्थर पत्थर के रूप में मौजूद है।