होली का त्योहार जितना रंगों से भरा हुआ है, उतना ही इसकी कहानियाँ भी रहस्य और रोमांच से भरी हुई हैं। आपने होलिका और प्रह्लाद की कथा सुनी होगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि होली से जुड़ी एक और पौराणिक कथा भी है, जिसमें एक राजा और एक राक्षसी की अनसुनी कहानी छिपी हुई है? तो चलिए, आपको सुनाते हैं राजा रघु और राक्षसी धुंधी की अद्भुत कथा!
बहुत समय पहले, अयोध्या के महान सूर्यवंशी राजा रघु का शासन था। राजा रघु अपनी वीरता, न्यायप्रियता और पराक्रम के लिए प्रसिद्ध थे। उनके शासन में प्रजा बहुत सुखी थी, लेकिन एक दिन अचानक राज्य में अजीब घटनाएँ होने लगीं।
रात को बच्चे गायब हो जाते, अन्न के भंडार खाली हो जाते, और गाँवों में भय का वातावरण बनने लगा। जब राजा ने इसकी जाँच करवाई, तो पता चला कि इस सबके पीछे एक भयानक राक्षसी थी, जिसका नाम धुंधी था!
धुंधी एक शक्तिशाली राक्षसी थी, जिसे भगवान शिव से वरदान प्राप्त था कि कोई भी देवता, योद्धा या पुरुष उसे मार नहीं सकता। उसने अपने इसी वरदान के कारण पूरे राज्य में आतंक फैला रखा था। वह खासतौर पर छोटे बच्चों को अपना निशाना बनाती थी। राक्षसी धुंधी अत्यंत क्रूर और मायावी शक्ति से संपन्न थी। उसके बारे में कहा जाता है कि वह अदृश्य होने की क्षमता रखती थी और जब चाहती, तब किसी को भी दिखाई देती थी। यह राक्षसी खासकर छोटे बच्चों को अपना शिकार बनाती थी। वह ठंडी और धुंध भरी रातों में प्रकट होती और बच्चों को पकड़कर खा जाती थी। इसी कारण से उसे “धुंधी” कहा जाता था।
धुंधी बहुत ही चालाक और मायावी थी। दिन के समय वह जंगलों में जाकर छिप जाती और रात को गाँव में आकर आतंक मचाती। प्रजा उसके डर से इतनी सहमी रहती कि शाम होते ही अपने बच्चों को घरों में बंद कर लेती। माता-पिता अपने बच्चों को घर से बाहर न जाने की सख्त हिदायत देते थे। धीरे-धीरे उसका आतंक इतना बढ़ गया कि लोगों ने गांव छोड़कर दूसरी जगह बसने का विचार करना शुरू कर दिया।
राजा रघु बहुत धर्मपरायण और न्यायप्रिय शासक थे। उन्होंने प्रजा के दुख को देखकर संकल्प लिया कि वह धुंधी से छुटकारा दिलाकर ही रहेंगे। राजा रघु ने इस समस्या से निपटने के लिए कई वीरों को भेजा, लेकिन धुंधी किसी से नहीं डरी। राजा चिंतित थे कि आखिर इस राक्षसी को कैसे हराया जाए?
राजा के दरबार में एक बुद्धिमान ऋषि थे, जिन्होंने धुंधी के बारे में एक और रहस्य बताया। उन्होंने कहा, “राजन! धुंधी को कई वरदान प्राप्त हैं, जिनमें से एक यह भी था कि उसे न तो कोई देवता, न कोई पुरुष, न ही कोई अस्त्र-शस्त्र मार सकता था। लेकिन उसका एक दुर्बल पक्ष भी था—वह हो-हल्ले और बच्चों की क्रीड़ाओं से बहुत चिढ़ती थी। खासकर होली के दिन जब बच्चे उत्साह से नाचते-गाते और चिल्लाते थे, तब वह सबसे ज्यादा कमजोर हो जाती थी।”
राजा रघु को इस रहस्य का पता चला तो उन्होंने एक चतुराई भरी योजना बनाई। होली के दिन उन्होंने राज्य के सभी बच्चों को बुलाया और उन्हें आदेश दिया कि वे मैदान में इकट्ठे होकर शोर मचाएं, हँसी-ठिठोली करें, ढोल पीटें और होली के रंगों से खेलें। जब बच्चों ने ऐसा किया तो धुंधी बहुत परेशान हो गई और उसे असह्य पीड़ा हुई। वह अपने आप ही अपने किले से बाहर भागने लगी। जैसे ही वह बाहर आई, बच्चों ने और जोर-जोर से शोर मचाना शुरू कर दिया और उसके चारों ओर आग भी जला दी।
बच्चों ने उसे घेर लिया और चारों तरफ से उस पर गोबर, धूल और कीचड़ मारने लगे। कुछ बच्चो ने हिम्मत दिखाई और तेल मे डूबे कपड़े मे आग लगा कर उस राक्षसी के ऊपर फेक दिया।
जिसकी वजह से धुंधी जलाने लगी और वह शोर मचाते हुये जंगल की ओर भाग गई, उस दिन के बाद किसी ने भी धुंधी को कभी नहीं देखा। राज्य के राजगुरु ने अगले दिन घोषणा की कि अब धुंधी राक्षसी के आतंक का समय समाप्त हुआ, उस दिन पूरे राज्य मे लोगो ने खुशी मनाने के लिए, एक दूसरे को रंग से रंगा, लोगो ने फगुआ गया, कुछ लोगो ने ढ़ोल धमाके के साथ जुलूस निकाला।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि शैतानी ताकतों का अंत केवल बाहुबल से नहीं, बल्कि चतुराई और एकता से भी किया जा सकता है। होली न केवल रंगों और खुशियों का त्योहार है, बल्कि यह बुराई के अंत का प्रतीक भी है। इसलिए आज भी होली पर बच्चे नाचते-गाते हैं, शोर मचाते हैं और उल्लास के साथ इसे मनाते हैं। यह त्योहार हमें यह भी सिखाता है कि कोई भी मुश्किल हो, यदि हम सभी मिलकर उसका सामना करें, तो हर समस्या का समाधान संभव है। तो इस बार होली खेलते समय याद रखना कि यह सिर्फ एक रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि राजा रघु और धुंधी की अद्भुत कहानी की याद भी है!
हम एक दिन पूरी मस्ती के साथ होली खेल सकते हैं, लेकिन बाकी 365 दिन पानी बचाने की जिम्मेदारी हमारी है। जो लोग केवल होली के दिन पानी बचाने की दुहाई देते हैं लेकिन बाकी दिनों में बेवजह पानी बर्बाद करते हैं, वे वास्तव में पर्यावरण संरक्षण के प्रति ईमानदार नहीं होते। पानी की बर्बादी रोकने के लिए हमें हर दिन जागरूक रहना चाहिए—चाहे वह गाड़ी धोने में हो, एसी के अत्यधिक उपयोग में हो, या अन्य फिजूलखर्ची में। होली का विरोध करने वाले कई बार अपनी व्यक्तिगत नापसंदगी या वैचारिक कारणों से इसे गलत ठहराने की कोशिश करते हैं। लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि यह त्योहार हमारी संस्कृति, परंपरा और आपसी प्रेम को बढ़ाने का अवसर है। इसलिए, हमें चाहिए कि हम पूरे साल पानी बचाने पर ध्यान दें, मगर होली के दिन खुशियों को संकीर्ण सोच की भेंट न चढ़ने दें। संयमित तरीके से, प्राकृतिक रंगों के साथ और सामाजिक समरसता के भाव को बनाए रखते हुए होली का आनंद लें!