सिया के जूते और दादी की साड़ी

डॉ गीतांजली की कहानी – सिया के जूते और दादी की साड़ी

गाँव के छोर पर एक छोटी सी झोंपड़ी में सिया नाम की लड़की अपनी दादी के साथ रहती थी। सिया बहुत प्यारी और मेहनती थी। उसकी आँखों में बड़े-बड़े सपने थे, लेकिन साधन सीमित थे। सिया के पास केवल एक ही जोड़ी पुराने जूते थे, जो उसके पिता ने कई साल पहले शहर से लाकर दिए थे। ये जूते अब फट चुके थे, लेकिन सिया के लिए वे किसी खजाने से कम नहीं थे।

सिया रोज़ इन्हीं जूतों को पहनकर स्कूल जाती और अपनी पढ़ाई में मन लगाती। उसकी एक ही ख्वाहिश थी—एक दिन वह इतने पैसे कमाए कि अपनी दादी के लिए एक सुंदर साड़ी खरीद सके, क्योंकि उसकी दादी हमेशा एक पुरानी, घिसी हुई साड़ी पहनती थीं।

एक दिन सिया के स्कूल में एक नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। बच्चों को मंच पर अपनी कला दिखाने का मौका दिया जा रहा था। सिया का नृत्य अद्भुत था, लेकिन उसने अपने पुराने जूतों को देखकर प्रतियोगिता में भाग लेने से मना कर दिया। उसकी सहेली मीरा ने कहा, “सिया, जीतने के लिए हौसले और मेहनत की ज़रूरत होती है, जूतों की नहीं। तुम अपनी पूरी कोशिश करो, तुम्हारे जूते कोई नहीं देखेगा।”

सिया ने मीरा की बात मान ली और प्रतियोगिता में भाग लिया। उसने मंच पर पूरे आत्मविश्वास और लगन के साथ नृत्य किया। उसकी हर चाल, हर लय ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। जब प्रतियोगिता का परिणाम आया, तो सिया ने पहला पुरस्कार जीता! उसे इनाम में एक सुंदर और चमचमाते जूते मिले।

सिया के पास अब एक बड़ा फैसला था। वह इन जूतों को रख सकती थी, लेकिन उसकी आँखों के सामने अपनी दादी की पुरानी साड़ी का ख्याल आ गया। उसने बिना देर किए एक दुकान पर जाकर इन जूतों को बेचने की कोशिश की और उन पैसों से अपनी दादी के लिए एक सुंदर साड़ी खरीदी।

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जब वह दुकान पर साड़ी खरीदने पहुँची, तो कपड़े के मालिक ने देखा कि यह बच्ची इतनी कम उम्र में अपनी जरूरतें भूलकर अपनी दादी के बारे में सोच रही है। उसने सिया से कहा, “बेटा, मैं तुम्हारी सच्चाई और प्यार देखकर अभिभूत हूँ। ये साड़ी तुम्हारे दादी के लिए मेरी तरफ से तोहफा है। तुम्हें इसके लिए पैसे देने की ज़रूरत नहीं है।”

यह सुनकर सिया की आँखों में आँसू आ गए। साड़ी के साथ-साथ दुकान के मालिक ने सिया को उसके जूते भी वापस लौटा दिए। उन्होंने कहा, “तुम्हारे जैसे दिल रखने वाले लोग दुनिया को खूबसूरत बनाते हैं। ये जूते तुम्हारी मेहनत का इनाम हैं। इन्हें संभालकर रखो।”

सिया साड़ी और जूते लेकर घर आई। उसने दादी को साड़ी पहनाई। दादी की आँखों में गर्व और प्यार छलक आया। उन्होंने सिया को गले से लगाकर कहा, “बेटी, तूने जो किया है, वह एक अमूल्य उपहार है। तेरा प्यार मेरे लिए किसी खजाने से कम नहीं।”

उस दिन सिया ने सीखा कि सच्चा सौंदर्य त्याग और प्यार में होता है। नए जूते और दादी की नई साड़ी ने उसकी ज़िंदगी में एक नई चमक ला दी।

और इन सुंदर जूतों ने न केवल सिया के कदमों को चमकाया, बल्कि उसकी दादी के चेहरे पर मुस्कान भी ला दी।