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पुनर्जागरण का कारण और उसके प्रभाव | Punarjagaran ke Karan aur Prabhav

पुनर्जागरण से आशय एवं परिभाषा

पुनर्जागरण या (रिनेसां) को पुनरुत्‍थान, बौद्धिक आन्‍दोलन नव जागरण विस्‍तार का युग आदि नामों से जाना जाता है। रिनेसां फ्रेंच भाषा का शब्‍द है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ‘फिर से जगाना’। 18वीं सदी के प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक और विश्‍वकोष के सम्‍पादक दिदेरा ने ‘रिनेसां’ शब्‍द का प्रयोग नवीन साहित्‍य और कला के विकास के सन्‍दर्भ में किया था।

यूरोपीय इतिहास मे एक समय आया जबकि यूरोप मध्‍यकालीन परम्‍पराओं रीति-रिवाजों और राजनैतिक सिद्धान्‍तों को छोडकर एक नवीन परम्‍परा और सिद्धान्‍त को अपनाकर आधुनिक युग की ओर अग्रसर हुआ। मध्‍य और आधुनिक युग के सन्धि काल में प्राचीन विद्या, साहित्‍य और कला का जो पुनरोद्धार हुआ इतिहास में उसको संस्‍कृति का पुनर्जन्‍म या पुनर्जागरण कहते है।

जे.ई. स्‍वेन महोदय- ने पुनर्जागरण की परिभाषा इन शब्‍दों में की है- “पुनर्जागरण एक सामूहिक शब्‍द है जो मध्‍ययुग के अन्‍त तथा आधुनिक युग के प्रारम्‍भ में समस्‍त बौद्धिक परिवर्तनों के लिये प्रयुक्‍त होता है”।

पण्डित जवाहरलाल नेहरू के अनुसार “पुनर्जागरण का अर्थ विद्या, कला, विज्ञान, साहित्‍य और यूरोपीय भाषाओं का विकास है”।

लार्ड एक्‍टन के शब्‍दों में- “नई दुनिया के प्रकाश मे आने के पश्‍चात प्राचीन सभ्‍यता की पुन: खोज मध्‍य युग के इतिहास का अन्‍त करने वाला एक अर्वाचीन युग के प्रारम्‍भ को सूचित करने वाला सीमा चिन्‍ह है। सांस्‍कृतिक पुनरुत्‍थान यूनानी साहित्‍य में पुन: अध्‍ययन एवं तज्‍जनित परिणामों को सूचित करता है”।

सांस्‍कृतिक पुनरुत्‍थान या पुनर्जागरण ऐतिहासिक दृष्टि से मानव सभ्‍यता को ऊँचा उठाने वाला था। इस पुनर्जागरण काल में मनुष्‍य को स्‍वतंत्र रूप से विचार करने का अवसर मिला व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता और आत्म ज्ञान पुनर्जागरण के ही परिणाम है

पुनर्जागरण से यूरोप में हुए परिवर्तन

मध्‍ययुगीन यूरोप अन्‍धविश्‍वास, असहिष्‍णुता तथा अज्ञान से जकड़ा हुआ था। परन्‍त्‍ुा 13वीं शताब्‍दी में परिवर्तन आये। प्राचीन यूनानी और रोमन साहित्‍य कला, संस्‍कृति का अध्‍ययन इस परिवर्तन का घोतक है। प्राचीन से प्रेरणा लेकर यूरोपवासियों ने नये विचारों एवं सिद्धान्‍तों का प्रतिपादन किया ज्ञान-विज्ञान का असीमित विस्‍तार हुआ। मनुष्‍य की तर्क शक्ति बढ़ी। यूरोपीय समाज अन्‍धकार से प्रकाश की ओर अग्रसर हुआ।

इस प्रकार पुनर्जागरण के अन्‍तर्गत यूरोप में जो परिवर्तन आये वे प्रतिगामी ने होकर प्र‍गति की ओर अधिक अग्रसर हुए। इसलिये पुनर्जागरण यूरोप में आधुनिकता का वाहक बन गया। यूरोप के विभिन्‍न देशों में यह देखा गया। इटली में इस आन्‍दोलन का विकास मानवतावादी आन्‍दोलन, प्राचीन साहित्‍य और कला के पुनरुत्‍थान से हुआ। इंग्‍लैण्‍ड और जर्मनी ने इससे प्ररेणा ली। दोनों देशों में यह धर्म सुधार आन्‍दोलन हुआ।

यह एक महत्‍वपूर्ण घटना यूरोप में घटी, जिसके कारण मध्‍य और आधुनिक युग के बीच सामंजस्‍य स्‍थापित हुआ और दूसरी ओर मौलिक विचारों में परिवर्तन आया। पुनर्जागरण से मनुष्‍य के दृष्टिकोण मे जो परिवर्तन आया, उसका प्रभाव जीवन के प्रत्‍येक क्षेत्र पर पड़ा। यूरोपीय साहित्‍य और कला का विकास हुआ। साहित्‍य के स्‍वरूप में विषय-वस्‍तु व्‍यापक हो गई। प्राचीन परम्‍पराओं का नवीनीकरण हुआ और उसे अधिक जीवन्‍त बनाया गया।

पुनर्जागरण से आर्थिक क्षेत्र में भी बदलाव आया। आर्थिक दबाव के कारण सामाजिक संरचना और मूल्‍यों में परिवर्तन आये। व्‍यक्ति और राष्‍ट्र के सम्‍बन्‍धों को निर्धारण करने का प्रयास किया गया। आधुनिक राज्‍य की नींव पड़ी।

पुनर्जागरण की विशेषताएँ एवं स्‍वरूप

बौद्धिक नवजागरण की निम्‍नलिखित विशेषताएँ थीं-

  1. प्राचीन रोमन एवं यूनानी साहित्‍य का पुनरुत्‍थान– सांस्‍कृतिक पुनरुत्‍थान की विशेषता यह थी कि नवीन जागरण से यूरोप में रोमन और यूनानी साहित्‍य का अध्‍ययन हुआ। मध्‍य युग में प्राचीन साहित्‍य का अध्‍ययन हुआ,लेकिन मध्‍ययुगीन विद्वानों का दृष्टिकोण अत्‍यन्‍त सीमित और सं‍कुचित था। वे कैथोलिक सिद्धान्‍तों पर ज्‍यादा जोर देते थे। मध्‍य युग में प्राचीन साहित्‍य को मूल शुद्ध रूप में प्रस्‍तुत नहीं किया गया। इस युग में लेटिन लेखक वर्जिल, सिसरों और सीजर थे। आधुनिक युग में यूनानी ग्रन्‍थों का अनुवाद किया गया जिसमें अरस्‍तू और प्‍लेटों आदि यूनानी लेखक लोकप्रिय थे।
  2. मानववाद- यूरोप में नवीन विचारधारा उत्‍पन्‍न हुई, जिसको मानववाद कहा गया। प्राचीनकालीन रोमन और यूनानी क्‍लासीकल साहित्‍य का अध्‍ययन करने वाला विद्वान मानववादी कहलाये। मानववाद का अभिप्राय उन्‍नत ज्ञान से है। उन्‍होनें दैवीय ज्ञान को नहीं माना। वे मनुष्‍य के महत्‍व को समझने लगे। बौद्धिक और तर्कसंगत विचारों को मानने लगे, जिसके कारण मध्‍ययुगीन विचारधाराओं की मान्‍यता कम होने लगी। मानववाद पुनर्जागरण युग की एक महत्‍वपूर्ण विशेषता थी।
  3. व्‍यक्तिवाद का विकास- मानववादी विचारधारा व्‍यक्तिवादी थी। उन्‍होनें विनम्रता के गुणों को बताया था। वे भौतिकवादी थे उनके जीवन में नैतिकता का कोई मूल्‍य नहीं था। जीवन के सुखों को अधिक से अधिक इस्‍तेमाल किया। शक्ति के लिये संघर्ष में नैतिकता का कोई मूल्‍य नहीं है। उपनिवेशों में भी भौतिकतावादी और उपयोगितावादी संस्‍कृति काप्रचार किया।
  4. धर्म सुधार आन्‍दोलन– इस काल में धर्म सुधार आन्‍दोलन हुआ। बाईबिल का राष्‍ट्रीय भाषाओं में अनुवाद किया गया। सर्वसाधारण जनता ईसाई जगत के सिद्धान्‍तों को जान सकी। कैथोलिक चर्च के सिद्धान्‍तों में सन्‍देह व्‍यक्‍त किया गया। पुरोहित और पादरियों की आलोचना हुई। अनेक देश के शासको ने जनता के सहयोग से रोम के पोप की राजनैतिक आर्थिक और धार्मिक सत्‍ता को अस्‍वीकार किया।
  5. वैज्ञानिक अन्‍वेषण- सांस्‍कृतिक पुनरुत्‍थान के कारण नवीन सिद्धान्‍तों का प्रतिपादन हुआ। यूरोप मेंनवीन वैज्ञानिक खोजों पर ध्‍यान दिया गया। तेरहवीं शताब्दी में इंग्लैण्‍ड के वैज्ञानिक रोजर बेकन ने ‘प्रायोगिक विज्ञान’ की नींव रखी। इसके कारण यूरोपीय समाज में प्रगतिशीलता आयी। यूरोप के साहसी नाविकों द्वारा नवीन जलमार्गो की खोज हुई। लोग नई दुनिया मे जाकर बस गये।
  6. लोक भाषा और राष्‍ट्रीय भाषा का विकास– लोक भाषा और राष्‍ट्रीय साहित्‍य का विकास हुआ। शासकों ने भी लोक भाषा की प्रोत्‍साहित किया।
  7. कला का विकास- पुनर्जागरण काल मे स्‍थापत्‍य कला, मूर्तिकला, चित्र कला का विकास हुआ। इस काल की कला धर्म प्रधान थी। परन्‍त्‍ुा उसमें मौलिकता थी। कला की नवीन तकनीक का विकास हुआ। यह सब अधिक सजीव था कला का सर्वागीण विकास हुआ।
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पुनर्जागरण के कारणों का उल्‍लेख कीजिए।

पुनर्जागरण कोई आ‍कस्मिक घटना नहीं थी। इस परिवर्तन के लिये अनेक परिस्थितियाँ उत्‍तरदायी थीं जो बहुत समय से सक्रिय थी। यूरोपीय इतिहास में पुनर्जागरण के लिये निम्‍नलिखित कारण उत्‍तरदायी है-

  1. कुस्‍तुन्‍तुनिया पर तुर्को का अधिकार- मध्‍ययुग में काले सागर के मुहाने पर स्थित कुस्‍तुन्‍तुनिया नगर ग्रीक विद्या एवं सांस्‍कृतिक कला-कौशल तथा यूरोपीय व्‍यापार का प्रधान केन्‍द्र था। 1453 ई. में उस्‍मानी तुर्को ने उस पर आक्रमण कर विजय प्राप्‍त कर ली। उनके अत्‍याचारों से बचने के लिये वहॉं पर बसे हुए ग्रीक विद्वानों, साहित्‍यकारों तथा कलाकारों ने भागकर इटली में शरण ली। वहॉं पहुँचकर उन विद्वानों का सम्‍पर्क यूरोप के अन्‍य विद्वानों से हुआ। इस सम्पर्क के परिणामस्‍वरूप यूरोप व उसके अन्‍य आसपास के देशों में पुनर्जागरण की धारा अत्‍यधिक वेग के साथ बढ़ने लगी।
  2. धर्म-युद्धों का प्रभाव- मध्‍यकाल में ईसाइयों एवं मुसलमानों में अनेक धार्मिक संघर्ष हुए। दोनों संस्‍कृतियों का आदान प्रदान भी हुआ। मुस्लिक विद्वानों के स्‍वतंत्र विचारों का प्रभाव ईसाइयों पर पड़ा। अरबों के अंकगणित तथा बीजगणित आदि विषय यूरोप में प्रचलित हुए। मुसलमानों के आक्रमणों का सामना करने के लिये यूरोप के राष्‍ट्रों में आपसी सम्‍बन्‍ध घनिष्‍ठ होने लगे। यूरोप में रोमन पोपों तथा सम्राटों के संघर्ष के कारण धीरे-धीरे लोगों क पोप तथा धर्म पर श्रद्धा कम होने लगी। इसी के परिणामस्‍वरूप धर्म सुधार आन्‍दोलन ने जोर पकड़ लिया।
  3. नवीन भौगोलिक खोजों का प्रभाव- नवीन भौगोलिक खोजों ने यूरोप के साहसी नाविकों में पुर्तगाल, स्‍पेन, फ्रांस तथा हॉलैण्‍ड के नाविकों में अमेरिका, अफ्रीका, भारत, आस्‍ट्रेलिया आदि देशों को जाने के मार्गो का पता लगाया। इससे व्‍यापार वृद्धि के सा‍थ-साथ उपनिवेश स्‍थापना का कार्य सम्‍पन्‍न हुआ। इन सभी देशों में यूरोप की धर्म एवं संस्‍कृति के प्रसार का मौका मिला।
  4. औपनिवेशिक विस्‍तार- पुनर्जागरण के कारण धीरे-धीरे यूरोपीय राज्‍यों में औपनिवेशिक साम्राज्‍य की स्‍थापना की भावना जागृ‍त हुई। इससे यूरोप सभ्‍यता संस्‍कृति का प्रसार अन्‍य राष्‍ट्रों में होने लगा।
  5. छापखाने का आविष्‍कार- छापखाने के आविष्‍कार ने सांस्‍कृतिक पुनर्जागरण मे बहुत योग दिया। इसके माध्‍यम से ग्रन्‍थों की बहुत सी प्रतियाँ एक साथ छापकर सर्वसाधारण तक सुगमता से पहुँचाई जा सकी। इस प्रकार पुनर्जागरण को सर्वव्‍यापी आन्‍दोलन का रूप दिया जा सका।
  6. वाणिज्‍य-व्‍यवसाय में वृद्धि एवं नगरों का विकास- नवीन भौगोलिक खोजों ज्ञान में वृद्धि तथा नवीन आविष्‍कारों ने यूरोप में आर्थिक क्रान्ति ला दी। औद्योगिक विकास के साथ-साथ विशाल एवं सम्‍पन्‍न नगरों का विकास हुआ। लोगों का जीवन स्‍तर उच्‍च हो गया। कला-कौशल में उन्‍नति हुई। इन सभी ने सामूहिक रूप से नवजागरण को प्रभावित किया।
  7. विद्वानों की वृत्तियाँ तथा उनके प्रभाव- पुनर्जागरण के विभिन्‍न कारणों में विद्वानों की वृत्तियाँ का विशेष महत्‍व है क्‍योंकि वे जनमानस को प्रभावित करते है। पेट्रिक आदि विद्वानों ने आध्‍यात्मिक ज्ञान के विपरीत मानवीय विषयों के अध्‍ययन पर जोर दिया, जबकि इस समय उन्‍होनें अपने ग्रन्‍थ ’मूर्खता की प्रशंसा’ में धार्मिक नेताओं के अज्ञान अंधविश्‍वास एवं अनाचार की आलोचना कर लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन किया। इसी प्रकार इंग्‍लैण्‍ड में चान्‍सलर, जर्मनी में मार्टिन लूथर, इटली में दान्‍ते, स्‍पेन में सरवेन्‍टस एवं फ्रांच में रबेले ने अनेक प्रभावशाली कृतियों द्वारा लोगों के समक्ष नवीन दृष्टिकोण प्रस्‍तुत किए। इन सभी से पुनर्जागरण में बहुत सहायता मिली।
  8. निरंकुख राजतंत्रों की स्‍थापना- नगरों के विकास एवं बारूद के आविष्‍कार से यूरोप में सामन्‍तवाद का पतन हो गया। इनके स्‍थान पर अब निरंकुश राजतंत्रों की स्‍थापना होने लगी। नरेश अपने राज्‍यों में आर्थिक एवं सांस्‍कृतिक विकास करवाने वाले एकमात्र अधिकारी बन गये। उनकी राजसभाएँ साहित्‍य एवं कला के केन्‍द्र हो गये। इस प्रकार राजतंत्रों ने पुनर्जागरण के लिये अनेक प्रयास किए।
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निष्‍कर्ष– अन्‍त मे यह कहा जा सकता है कि उपरोक्‍त सभी तत्‍वों ने यूरोप में पुनर्जागरण को महत्‍व प्रदान करने में विशेष रूप से योग दिया।

पुनर्जागरण के प्रभावों का वर्णन कीजिए।

यूरोपवासियों पर पुनर्जागरण का प्रभाव काफी पड़ा। पुनर्जागरण मानव सभ्‍यता के इतिहास में  एक महत्‍वपूर्ण क्रान्ति है। इसके प्रभाव क्रान्तिकारी, सुदूरगामी और स्‍थायी महत्‍व के साबितह हुए। इसने मानव जीवन से सम्‍बन्धित सभी पहलुओं पर व्‍यापक प्रभाव डाला। पुनर्जागरण के कुछ मुख्‍य प्रभाव निम्‍नलिखित थे।

  1. अन्‍धविश्‍वास और अज्ञानता का विनाश- मध्‍ययुगीन समाज रूढि़वादी था। मानव जीवन पर चर्च का प्रभाव था। इसके कारण वहाँ के लोग धर्म और चर्च के बन्‍धन से मुक्‍त हुए।
  2. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास- पुनर्जागरण के कारण यूरोपवासियों में स्‍वतंत्र चिन्‍तन का विकास हुआ। उनमें विश्‍लेषणात्‍मक प्रवृत्ति उत्‍पन्‍न हुई। सर्वसाधारण जनता में तर्क वितर्क करने की क्षमता बढ़ी। प्राकृतिक शक्तियों के रहस्‍य को समझा गया। यूरोप में बौद्धिक क्रान्ति आयी।
  3. भौतिकवादी एवं व्‍यक्तिवादी दृष्टिकोण का विकास- पुनर्जागरण युग में भौतिक जीवन को अधिक महत्‍व दिया गया। यूरोपवासी लौकिक जीवन की ओर देखने लगे। उपभोगवादी संस्‍कृति का विकास हुआ।
  4. मानवतावाद का विकास- पुनर्जागरण की सबसे बड़ी विशेषता मानवतावादी आविष्‍कार था। मानवीय विषयों के अध्‍ययन पर विचार किया।
  5. सामाजिक प्रभाव- यूरोप कें सामाजिक ढाँचे पर पनुर्जागरण का प्रभाव पड़ा। समाज में नागरिक जीवन की श्रेष्‍ठता बढ़ी।
  6. राजनैतिक प्रभाव- पुनर्जागरण के आने से यूरोप मे सामन्‍ती व्‍यवस्‍था का अन्‍त हुआ। शक्तिशाली राज्‍यों का उदय हुआ। आधुनिक राज्‍य की नींव पड़ी। यूरोप में राष्‍ट्रीयता की भावना का प्रसार हुआ।
  7. भौतिक शिक्षा का विकास- मध्‍य युग में शिक्षा का विकास हुआ। पहले शिक्षा चर्च के नियन्‍त्रण में थी। शिक्षा का लौकिकीकरण हुआ।
  8. भौगोलिक अन्‍वेषणों को प्रोत्‍साहन- बौद्धिक जागरण के साथ भौगोलिक अन्‍वेषणों का विकास हुआ। नये जल मार्ग तलाश किये गये।
  9. आर्थिक प्रभाव- पुनर्जागरण के कारण नवीन प्रदेशों की खोज शुरू हुई, जिसके कारण नये व्‍यापार के केन्‍द्र तलाश किये गये। मुद्रा-व्‍यवसाय बढ़ा। यूरोप में लोग अधिक सम्‍पन्‍न और समृद्धशाली बने।
  10. साहित्‍य का विकास- पुनर्जागरण का साहित्‍य पर प्रभाव पड़ा। लोक भाषा राष्‍ट्रीय साहित्‍य का तेजी से विकास हुआ।
  11. धार्मिक प्रभाव- पुनर्जागरण के कारण चर्च के स्‍वरूप मे परिवर्तन आया यूरोपवासियों में पोप और चर्च के प्रति आस्‍था कम हुई। इसके कारण धर्म सुधार आन्‍दोलन हुए। पुनर्जागरण ने यूरोप के राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन को प्रभावित किया सबसे अधिक प्रभाव विचारों पर पड़ा।
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पुनर्जागरण के कारण यूरोप मे ज्ञान और साहित्‍य की उन्‍नति हुई। प्रेटार्क ने राष्‍ट्रीय भाषाओं के उत्‍थान और विकास के साथ-साथ लोगों के मन में देश-भक्ति को भर दिया। वह यूरोप मे मानववाद का जन्‍मदाता था।

इंग्‍लैण्‍ड में चोसर, शेक्‍सपीयर, मिल्‍टन, बर्क, स्‍पेन्‍सर, सर थामस मूर आदि अच्‍छे विद्वानों हुए फ्रांस मे रॉवेल ने एक व्‍यंग्‍यात्‍मक पुस्‍तक लिखी। कोनोर्क, बोजोमियर आदि लेखक ने फ्रेंच भाषा में पुस्‍तकें लिखी।

जर्मनी में मार्टिन लूथर ने बाईबिल का जर्मन भाषा मे अनुवाद किया। स्‍पेन में श्री सर्वेन्‍टीज ने और लोपडिवेगा ने अच्‍छी पुस्‍तकें लिखी। इस प्रकार अच्‍छे–अच्‍छे गद्य-नाटक आदि लिखे गए। खगोल विद्या क्षेत्र मे कोपरनिकस, गेलीलियों ने नये-नये सिद्धान्‍तों को बताया। दिशा सूचक यंत्र ने भी काफी सहायता पहुँचायी। पुनर्जागरण के फलस्‍वरूप ज्ञान-विज्ञान राजनीति रसायन, गणित जैसे विषयों मे यूरोपवासियों की रूचि बढ़ गई। महाद्वीप में कला की स्‍वतंत्रता कला के क्षेत्र में प्रगति होने लगी। संस्‍कृत का विकास हुआ।

परिणाम- (1) इन खाजों के महत्‍वपूर्ण परिणाम निकले। लोगों के ज्ञान की सीमा बढ़ी। मध्‍ययुगीन रूढिवादिता, अन्‍धविश्‍वास समाप्‍त हुआ। (2) इन खोजों के कारण वाणिज्‍य और व्‍यापार का विकास हुआ। (3) यूरोपीय देशों के आयात और निर्यात में वृद्धि हुई। नये व्‍यापारिक केन्‍द्र बने। (4) नये तरीके से व्‍यापार का कार्य शुरू हुआ। (5) यूरोपवासियों का बौद्धिक विकास हुआ। (6) समाज में नये पूँजीपति वर्ग का विकास हुआ।(7) इस प्रथा ने आर्थिक सिद्धान्‍तो को जन्‍म दिया। (8) इस प्रथा से यूरोपीय देशों मे प्रतिस्‍पर्धा बढ़ी। पूँजीवाद का जन्‍म्‍ हुआ।  कीमतें बढ़ी। सामाजिक परिवर्तन हुआ। (9) यूरोपीय लोग जहाँ भी गये वहाँ पश्चिमी सभ्‍यता का प्रसार हुआ।

इस प्रकार पुनर्जागरण से सामाजिक, राजनैतिक व सांस्‍कृतिक जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन दिखाए गए।

 

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