Hindi Kahani — दीपावली की खुशी | Hindi Story – Diwali ki Khushi

Hindi Kahani — दीपावली की खुशी | Hindi Story – Diwali ki Khushi

उस दिन सुबह सोनू की आँख बहुत जल्दी खुल गई। आज दिवाली जो थी।

सोनू बोली, “मम्मी, मैं तो पाँच सौ रूपये वाली पटाखों की जो लड़ी आती है न, वही लूंगी।”

मम्मी बोली, “देखो बेटा, तुम्हारे मम्मी-पापा का इतना सामर्थ्य नहीं है कि तुम्हें इतने महंगे पटाखे खरीदकर दें। बच्चों को इस तरह के पटाखे छोड़ने भी नहीं चाहिए, मैं तुम्हें फुलझड़ी और छोटे-छोटे पटाखे ले दूंगी। जो तुम आराम से चला सको। और जिसे चलाने से तुम्हें कोई नुकसान भी न हो।

सोनू को थोड़ा गुस्सा तो आया कि मम्मी मेरी बात मान नहीं रहीं, लेकिन अगले ही पल उसने सोचा, ‘मम्मी मेरी भलाई के लिए ही ऐसा कह रही होंगी।’ वह बोली, “ठीक है मम्मी, जैसा आप कहेंगी मैं वैसे ही पटाखे ले लूंगी।”

पापा ने स्कूटर बाहर निकाला। सोनू और मम्मी-पापा स्कूटर पर बैठकर बाजार की ओर चल पड़े। लेकिन यह क्या। सारा रास्ता बंद पड़ा है। सड़क के दोनों ओर पटाखों की दुकानें लगी हुई थीं। जिससे सारा ट्रैफिक जाम हो गया था।

पापा बोले- “चलो पीछे वाले रास्ते से निकलते हैं।”

पापा ने स्कूटर पिछले तंग रास्ते की तरफ मोड़ लिया। रास्ता तंग होने से स्कूटर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। थोड़ी दूर जाने पर सोनू ने देखा कि रास्ता कुछ झोपड़ियों में से होकर निकल रहा है। हर झोपड़ी के बाहर बीमार से अपाहिज स्त्री-पुरुष बैठे हुए हैं। उनके घावों पर मक्खियां भिनभिना रही थीं।

उसने पूछा- “मम्मी, ये कौन लोग हैं?”

मम्मी बोलीं, “बेटा, यह कोढ़ियो की बस्ती है। ये लोग अलग बस्ती बनाकर रहते हैं।”

स्कूटर आगे बढ़ा तो वहीं बस्ती में बने एक छोटे-से मंदिर के पास बहुत भीड़ लगी हुई थी। नंग-धड़ंग बच्चे और मैले-कुचैले कपड़े पहने स्त्री-पुरुष एक पंक्ति में खड़े थे। कोई भद्र महिला उन्हें खाना बाँट रही थी। वे धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे, अपने-अपने बर्तन में खाना डलवा अपनी-अपनी झोंपड़ी की तरफ लौट रहे थे।

सोनू ने पूछा, “मम्मी, यह क्या हो रहा है?”

मम्मी ने कहा, “बेटा, इन बेचारे कोढ़ियों को कोई काम नहीं देता है। यह भीख माँगकर अपना गुजारा करते हैं। कभी-कभी कुछ लोग खाना बनाकर यहाँ ले आते हैं और इनमें बाँट जाते हैं।”

कुछ आगे जाने पर वहाँ एक अस्पताल भी बना हुआ था।

See also  हिन्दी कहानी - पिता के सपने | Hindi Story - Pita ke sapne

सोनू बोली, “मम्मी, क्या इनका यहाँ इलाज होता है?”

“हाँ बेटा, सरकार ऐसी बस्तियों में एक दवाखाना भी खोल देती है क्योंकि ऐसे रोगी यदि समय पर इलाज करवा ले तो बिल्कुल भले-चंगे हो जाते हैं।”

बातें करते-करते स्कूटर बाजार में पहुँच गया। बाजार में बहुत भीड़ थी। पापा बोले- “आप लोग एक तरफ खड़े हो जाओ, मैं स्कूटर पार्क करके आता हूं।”

सोनू और मम्मी एक तरफ खड़े हो गए। उनके पास एक फटा-पुराना फ्रॉक पहन एक लड़की आई और गिड़गिड़ाते हुए उसने पैसे मांगने लगी- “मैं दो दिन से भूखी हूं। कुछ पैसे दे दो अम्मा। भगवान तुम्हारा भला करे।” सोनू ने देखा वह लड़की भूखी लग रही है। उसकी आवाज भी उसका साथ नहीं दे रही थी है। वह बड़ी मुश्किल से बोल पा रही है। सोनू ने मम्मी की तरफ देखा। मम्मी अपने ख्यालों में खोई हुई थी।

सोनू मम्मी का आँचल छूते हुए बोली, “मम्मी, आप प्लीज इसे कुछ पैसे दे दो, यह भूखी है।” मम्मी एक पल चुप रहीं। मम्मी को चुप देखकर सोनू बोली, “मम्मी, आप जो पैसे मेरे पटाखों के लिए खर्च करने वाली हैं, वह पैसे इसे दे दो।”

सोनू खुद को रोक ना पाई। उसने पूछा, “तुम्हारे मम्मी-पापा कहाँ हैं?”

लड़की बोली- “मेरे पिता नहीं है। केवल माँ है और उन्हें कुष्ठ रोग है। उनकी बीमारी काफी बढ़ गई है इसलिए अपना और उनका पेट मुझे ही भरना होता है।”

मम्मी बोलीं- “लेकिन आज तो तुम्हारी बस्ती में खाना बँट रहा है। तुमने नहीं लिया क्या?”

लड़की दीनता से बोली, “वहाँ पंक्ति में लगकर एक व्यक्ति का ही खाना मिलता है और मैंने वह खाना अपनी माँ को खिला दिया।”

उसकी बातें सुनकर सोनू की आँखों मे आँसू आ गए। तब तक उसके पापा भी वहाँ आ गए। मम्मी ने पापा को सारी बात सुनाई। पापा ने देखा सामने ही छोले-भटूरे वाला खड़ा था। पापा ने छोले-भटूरे खरीदे और उसे दे दिए। वह लड़की खाना देखते ही उस पर टूट पड़ी। पापा बोले- “तुम पेट भरकर खाना खाओ।”

जब उसने भरपेट खाना खा लिया तब वे लोग बाजार की ओर बढ़ गए। सोनू देख रही थी। चारों तरफ खिलौनों की दुकानें सजी है। तरह-तरह के खिलौने बड़ी-सी चमकती आँखों वाला भालू, सुंदर-सी गुड़िया, मिट्टी से बनी छोटी-छोटी चिड़ियाँ, सूंड हिलाता हाथी। उसे लगा जैसे सभी उसे अपने पास बुला रहे हों। एक मिट्टी का बना गुड्डा तो उसे बहुत लुभा रहा था। उसका मन किया कि वह तुरंत उसे उठा ले। पटाखों के लिए भी उसका दिल ललचा रहा था।

See also  ज्ञानवर्धक कहानी - सेठ ने 500 स्वर्ण मुद्राओ मे खरीदा ज्ञान (Hindi Story of Seth who Spends 500 Gold Coins)

लेकिन अब वह मम्मी से खिलौने या पटाखे नहीं माँग सकती थी क्योंकि उसने इन पर खर्च होने वाले पैसे तो उस लड़की को खिलाने पर खर्च करवा दिए थे। तभी मम्मी-पापा आगे बढ़े और पटाखों की दुकान पर जाकर खड़े हो गए।

पापा जब पटाखे खरीदने लगे तो एकदम सोनू बोल पड़ी- “पापा, आप मेरे लिए पटाखे मत खरीदो। मेरे पटाखों वाले हिस्से के पैसे तो उस लड़की के खाने पर खर्च हो गए।” पापा ने मुस्कुराकर सोनू की तरफ देखा और बोले- “बेटे, तुम्हारी मम्मी ने मुझे सब बता दिया है। हम तुम्हारी भावना की कद्र करते हैं। तुम्हारी इसी भावना के कारण हम न केवल तुम्हें फुलझरियां दिलवाएंगे बल्कि तुम्हें तुम्हारा मनपसंद खिलौना भी दिलवाएंगे।”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *