एक बार एक हकीम थे, जो गुरु गोविंद सिंह के दर्शन के लिए आनंदपुर आए थे। जब वह उनसे मिलकर वापस लौटने लगा तो गुरु गोविंद सिंह ने हकीम को आशीष देते हुए कहा -” अब तुम जाओ और दीन दुखियों की सेवा करो।”
यह सुनकर हकीम ने गुरु गोविंद सिंह को प्रणाम किया और अपने घर लौट कर गुरु गोविंद सिंह के आदेश का पालन करने लगा। एक दिन वह भगवान की पुजा कर रहा था कि तभी गुरु गोविंद सिंह उसके घर आ पहुंचे। वह उठकर उनके स्वागत सत्कार करने को तैयार होता है। इससे पहले कि वह आगे बढ़ता किसी ने घर के बाहर से आवाज लगाई- “हकीम साहब आप मेरे साथ चलिए और मेरे पड़ोसी की तबीयत बहुत खराब है, उसकी जान बचा लीजिए।”
वह आवाज सुनकर, हकीम थोड़ा असमंजस में पड़ गया कि बीमार की सेवा करने जाए या अपने गुरु का सत्कार करें। उसने बीमार की सेवा करने करने जाने का निश्चय किया।
वह रोगी के घर पहुंच गया और उसका इलाज करने लगा, रोगी का इलाज करके घर लौटने पर उसने देखा कि गुरु गोविंद सिंह अभी तक, उसकी प्रतीक्षा में घर मे बैठे हुए हैं। गुरु को इंतजार कराने के लिए, उसे बड़ा अपराध बोध हुआ और वह उनके पैरों में गिरकर क्षमा मांगने लगा।
गुरु गोविंद सिंह ने भाव विभोर होकर उसे अपने गले लगा लिया और बोले – “बेटा मैं तुम्हारे कर्तव्य पालन और सेवा भाव से बहुत प्रसन्न हूं। तुम मुझे इंतजार कराने के लिए ग्लानि महसूस ना करो। गुरु की सच्ची खुशी शिष्य के कर्तव्य पालन से मिलती है। आज दुखियों का दुख दूर करके तुमने मुझे सच्ची खुशी दी है।”
गुरु गोविंद सिंह के वचन सुनकर हकीम का अंतरमंन प्रसन्नता से खिल उठे। उस हकीम ने अपना सारा जीवन गुरु की और जरूरतमंद लोगों की सेवा में लगा दिया।