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इटली का एकीकरण | italy ka ekikaran kab hua

एकीकरण के पूर्व इटली एक भौगोलिक इकाई मात्र था। वियना कांग्रेस में इटली के पुराने राजवंशों के आधार पर पुन: विभाजित कर दिया था और राजनैतिक दृष्टि से इटली का आस्तित्‍व ही मिट गया था।

इटली एक भौगोलिक अभिव्‍यक्ति मात्र रह गया था और छोटे-छोटे राज्‍यों में सम्‍पूर्ण इटली विभाजित था। पीडमोंट, सार्डीनिया प्रशा टस्‍कनी मोडेना , नेपल्‍स , सिसली आदि इटली के प्रमुख राज्‍य थे। लोम्‍बार्डी और वे‍नेशिया नामक दो राज्‍य आस्ट्रिया के अधीन थे। इसके अतिरिक्त पोप का अलग स्‍वतंत्र राज्‍य था। इस प्रकार राजनैतिक दृष्टि से इटली छोटे-छोटे राज्‍यों में विभाजित प्रदेश था। वियना कांग्रेस के बाद इन राज्‍यों में निरंकुश राजाओं के स्‍वच्‍छाचारी राज्‍य स्‍थापित हो चुके थे और उदारवादी तथा प्रगतिवादी विचारधाराओं बुरी तरह कुचली जा रही थी किन्‍तु इटली के नेता निरंकुश शासन का अन्‍त करके राष्‍ट्रीयता के आधार पर इटली का एकीकरण करना चाहते थे। फ्रांस की क्रांति से प्रोत्‍साहित होकर इटली निवासियों में राष्‍ट्रीयता की भावना जोर पकडती जा रही है। इटली के एकीकरण के प्रयत्‍न 1815 से 1848 तक निम्‍नलिखित अवस्‍थाओं मे व्‍य‍क्‍त किये जा सकते हैं-

इटली की दशा-

सन 1815 ई. में इटली अनेक राज्‍यों में विभक्‍त था। नेपोलियन महान्‍ द्वारा स्‍थापित गणतंत्रों को वियना कांग्रेस ने भंग कर दिया था। फ्रांस की राज्‍य क्रांति के परिणामस्‍वरूप इटली की जनता राष्‍ट्रीयता की भावनाओं से परिपूर्ण हो चुकी थी और उसमें स्‍वाधीनता तथा एकता की भावना बडी प्रबल हो चुकी थी।

इटली के एकीकरण के मार्ग में बाधायें-

इटली के एकीकरण के मार्ग में अनेक बाधायें थी जिनका संक्षिप्‍त विवरण इस प्रकार हैं-

  1. इटली के विभिन्‍न राज्‍य- इटली के एकीकरण की सबसे बडी बाधा यह थी कि इटली के राज्‍यों पर विभिन्‍न राजवंशों का शासन स्‍थापित था। उत्‍तरी इटली के लम्‍बार्डी एवं वेनेशिया के राज्‍यों पर आस्ट्रिया का अधिकार था। टस्‍कनी, पारमा तथा मोडेना पर आस्ट्रियन राजकुमार का नियंत्रण था। दक्षिण इटली के नेपिल्‍स तथा सिसली राज्‍यों पर बूर्बो वंश का शासन था। रोम का राज्‍य पोप के अधीन था। एक राज्‍य दूसरे राज्‍य का विरोधी था।
  2. रोम का पोप- रोम का पोप इटली के एकीकरण के मार्ग मे एक बडी बाधा था। वह सम्‍पूर्ण यूरोप की कैथोलिक जनता का धार्मिक नेता था। और इसलिये उसके राज्‍य की कैथोलिक जनता बिगड जाने का भय था। रोम का पोप इटली के एकीकरण के पक्ष में नही था।
  3. इटली के विभिन्‍न शासकों में मतभेद- इटली के विभिन्‍न शासकों में बडी स्‍पर्धा थीऔर उनमें पारस्‍परिक ईर्ष्‍या तथा वैमनस्‍य की भावना व्‍याप्त थी। वे राष्‍ट्रीय एकता के लिये अपने व्‍यकितगत स्‍वार्थो का बलिदान करने के लिये तत्‍पर न थे।
  4. इटली वासियों में राष्‍ट्रीयता की भावना का अभाव- यद्यपि नेपोलियन बोनापार्ट ने इटली की जनता को नवीन उत्‍साह प्रदान किया था और पोप के राज्‍य का अन्‍त करके इटली के‍ विभिन्‍न राज्‍यों के विदेशी शासन से मुक्‍त करा दिया था। नेपोलियन महान्‍ ने इटली के राज्‍यों को संगठित करके गणतंत्र की भी स्‍थापना की थी और इटलीवासियों को एकता मे रहने की  प्रेरणा दी थी किन्‍तु इटली मे सार्वजनिक रूप से राष्‍ट्रीय भावना का प्रसार व प्रचार न हो पाया था। इटली के राज्‍यों की सभ्‍यता एवं संस्‍कृति भिन्न थी। अत: यदि एक राज्‍य मे कोई संस्‍था स्‍वाधीनता का प्रयत्‍न करती तो अन्‍य राज्‍यों की जनता का सहयोग उसे न मिलता था।
  5. इटली के विभिन्‍न राजनैतिक दल-  इटली के देशभक्‍त देश के उदार शासन की स्‍थापना के लिये इटली का एकीकरण करना चाहते थे लेकिन इस उद्देश्‍य को प्राप्‍त करने के लिये उनके साधनों में बडा मतभेद था। सभी देशभक्‍त अपना-अपना राजनैतिक दल बनाये हुए थे। जिसमें एकता का अभाव था।

इटली के एकीकरण के प्रयत्‍न–

सन 1815 ई. में वियना कांग्रेस ने नेपोलियन महान्‍ की व्‍यवस्‍था को भंग करके इटली के विभिन्‍न राज्‍यों को भंग कर दिया था और वहाँ पर निरंकुश तथा स्‍वेच्‍छाचारी शासन की स्‍थापना कर दी थी। इटली के लम्‍बार्डी और वेनेशिया पर आस्ट्रिया के सम्राट का अधिकार थ। टस्‍कनी व मोडेना पर आस्ट्रियन राजकुमार और पारमा पर मेरी लुई का शासन था। पाडमाण्‍ट जेनेवा के साथ मिला दिया गया था। नेपिल्‍स और सिसली बूर्बो वंश के अधिकार में थे। रोम के राज्‍य पर पोप का प्रभुत्‍व था। इस प्रकार वियना कांग्रेस ने इटली को छिन्‍न-भिन्‍न करके 1789 ई. की स्थिति में ला दिया था।

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आस्ट्रिया का चांसलर घोर प्रतिक्रियावादी था और सम्‍पूर्ण इटली पर आस्ट्रिया का निरंकुश एवं स्‍वेच्‍छाचारी शासन स्‍थापित करना चाहता था। अत: उसने इटली की जनता की राष्‍ट्रीय तथा उदारवादी भावना को कुचलने के लिये सदैव दमन नीति अपनायी। उसने इटली में चर्च की प्रधानता स्‍थापित करके अपनी शक्ति के बल पर इटली के राज्‍यों में सवैधानिक शासन की स्‍थापना न होने दी।

कार्बोनरी विद्रोह-

कार्बोनरी का अर्थ है- ‘कोयला जलाने वाले’। वास्‍तव मे यह गुप्‍त समिति का नाम था। मैटरनिख की दमनकारी नीति से असन तुष्‍ट होकर इटली के देशभक्‍तों ने अनेक गुप्‍त समितियों की स्‍थापना की जिसमें कार्बोनरी नामक समिति अत्‍यधिक शक्तिशाली थी। इस समिति का प्रमुख उद्देश्‍य आस्ट्रिया को इटली से निकाल बाहर करना था। इस समिति की शाखायें सम्‍पूर्ण इटली में फैली हुई थी। और इसके सदस्‍य क्रांतिकारी सिद्धान्‍तों को गुप्‍त रूप से प्रसार व प्रचार करते थे।

सन 1820-21 ई. में स्‍पेन के विद्रोह का समाचार सुनकर नेपिल्‍स के पीडमाण्‍ट के कार्बोनरी सदस्‍यों ने विद्रोह कर दिया। क्रांतिकारियों ने नेपिल्‍स के राजा को उदारवादी संविधान लागू करने के लिये विवश कर दिया। नेपिल्‍स के राजा ने एक ओर तो राज्‍य उदारवादी संविधान लागू कर दिया और दूसरी ओर क्रांतिकारियों का दमन करने के लिये आस्ट्रिया सहायता की याचना की। पीडमाण्‍ट मे क्रांतिकारियों ने विक्‍टर इमैनुअल को इटली का राजा घोषित कर दिया किन्‍तु सार्डीनिया के शासक ने गद्दी त्‍यागकर अपने भाई चार्ल्स को वहाँ का राजा बना दिया। इसी समय मैटरनिख से सेनायें भेजकर नेपिल्‍स तथा पीडमाण्‍ट दोनों स्‍थानों की क्रांतियो का दमन करवा दिया और पुन: निरंकुश शासन की स्‍थापना करवा दी।

सन 1830 ई. की क्रांति का प्रभाव-

फ्रांस की 1830 की क्रांति का प्रभाव इटली पर भी पडा। उस समय इटली में कार्बोनरी समिति की शक्ति काफी बढ चुकी थी। फ्रांस में राज्‍य क्रांति की सफलता तथा पोप पायस की मृत्‍यु का समाचार पाकर कार्बोनरी सदस्‍य बड़े उत्‍साहित हुए। 1831 ई. में पोप के राज्‍य में क्रांति हो गयी और वेलोन नामक स्‍थान पर क्रांतिकारियों ने एक इटैलियन रार्ष्‍टीय कांग्रेस की स्‍थापना की। इस कांग्रेस ने इटली की एकता के लिये प्रयत्‍न करना आरम्‍भ कर दिया। इसी समय रोम के पोप ने आस्ट्रिया की सहायता से क्रांतिकारियों का कठोरतापूर्वक दमन कर दिया। इस प्रकार कार्बोनरी सदस्‍यों का इटली के एकीकरण का दूसरा प्रयास भी असफल हो गया।

सन 1830 ई. की क्रांति का प्रभाव-

सन 1848 ई. की फ्रांसीसी राज्‍य क्रांति से उत्‍साहित होकर इटली के राज्‍यों टस्‍कनी पाउमाण्‍ट पारमा मोडेना लुक्‍का तथा नेपिल्‍स आदि में क्रांतियों का विस्‍फोट हो गया। कुछ स्‍थानों पर क्रांतिकारियों को आंशिक सफलता प्राप्‍त हुई। किन्‍तु रोम के पोप के असहयोग और राज्‍यों में पारस्‍परिक मतभेद होने के कारण सभी स्‍थानों पर क्रांतिकारियों का कठोरतापूर्वक दमन कर दिया गया। पीडमाण्‍ट को छोड़कर अन्‍य सभी राज्‍यों मे पुन: निरंकुश शासन की स्‍थापना कर दी गई।

इस प्रकार 1815 से 1848 ई. तक इटली के देशभक्‍तों के राष्‍ट्रीय एकीकरण के सभी प्रयत्‍न विफल रहे। उनकी विफलता के निम्‍‍नलिखित कारण थे-

  1. क्रांतिकारियों में एकता का पूर्व अभाव था।
  2. क्रांतिकारियों को योग्‍य नेतृत्‍व न मिल सका।
  3. इटली के विभिन्‍न राज्‍यों में भारी मतभेद था।
  4. यूरोप के शक्तिशाली राष्‍ट्र इटली के एकीकरण के पक्ष में नही थे।

इटली के एकीकरण के विभिन्‍न सौपान या अवस्‍थाएँ

इटली का राष्‍ट्रीय एकीकरण आधुनिक यूरोप के इतिहास की एक महत्‍वपूर्ण घटना है। इटली की एकता को स्‍थापित करने के लिये अनेक देशभक्‍तों ने उल्‍लेखनीय कार्य किए। इन देशभक्‍तों में चार नेताओे- मैजनी, गैरीबाल्‍डी, कावूर तथा विक्‍टर इमैनुअल को सर्वोच्‍च स्‍थान प्राप्‍त है। मैजनी को इटली की एकता का पैगम्‍बर, गैरीबाल्डी को इटली की सेना का सेना निर्माता कावूर को एक कुशल राजनीतिज्ञ तथा विक्‍टर इमैनुअल को इटली का विधायक कहा जाता है। इन महान्‍ देशभक्‍तों ने पृथक-पृथक साधन अपनाकर इटली के एकीकरण मे महत्‍वपूर्ण योग दिया और एक स्‍वतंत्र इटली के राष्‍ट्र निर्माता का निर्माण किया।

 इटली के एकीकरण के इतिहास को पाँच सौपानों में विभक्‍त किया जा सकता है-

प्रथम सोपान-

वियना कांग्रेस के निर्णयों के अनुसार इटली यूरोप की भौगोलिक इकाई मात्र बन गया था। इटली के छोटे-छोटे राज्‍यों की जनता राष्‍ट्रीय भावनाओं से परिपूर्ण होकर अपनी एकता और स्‍वतंत्रता की इच्‍छुक थी किन्‍तु इटली के राज्‍यों के निरंकुश शासक अपनी सत्‍ता को त्‍यागने के लिये तैयार न थे। अत: इटली के देशभक्‍तों ने राष्‍ट्रीय एकीकरण का आन्‍दोलन आरम्भ किया। कार्बोनरी संस्‍था के सदस्‍यों ने इस दिशा में अनेक प्रयत्‍न किए। 1848 ई. तक उन्‍हें सफलता न मिल सकी। देशभक्‍त मैजनी ने नेपिल्‍स तथा सिसली के विद्रोहो को सफल बनाने का यथासम्‍भव प्रयत्‍न किया किन्‍तु उसे अपने लक्ष्‍य में सफलता न मिल सकी।

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द्वितीय सोपान-

इस सोपान मे गैरीबाल्‍डी और कावूर ने अथक प्रयत्‍न किए और इटली के एकीकरण को सम्‍भव बनाया। कावूर ने अपनी योग्‍यता से सभी कठिनाइयों को सुलझाया। उसने सार्डीनिया और पीडमाण्‍ट को अपने सुधारों से अत्‍यधिक सम्‍पन्न और शक्तिशाली बना दिया।

कावूर ने क्रीमिया के युद्ध में भाग लेकर फ्रांस तथा इंग्‍लैण्ड की सहानुभूति प्राप्‍त की और नेपोलियन तृतीय के साथ 20 जुलाई 1848 ई. को प्‍लोम्बियर्स का समझौता कर लिया इस समझौते के अनुसार-

  • फ्रांस आस्ट्रिया को लम्‍बार्डी तथा वेनेशिया से निकालने के लिये सार्डीनिया को सैनिक सहायता देगा।
  • सार्डीनिया इसके बदले में फ्रांस को नीस और सेवाय के प्रदेश देगा।
  • इटली के सभी जातियों को सयुक्‍त करके एकीकरण किया जायेगा।
  • रोम के पोप के अधिकार सुरक्षित रहेगें।

इस समझौते के उपरान्‍त कावूर ने आस्ट्रिया के विरूद्ध युद्ध छेड़ दिया किन्‍तु युद्ध के मध्‍य नेपोलियन तृतीय ने आस्ट्रिया के साथ विलाफ्रेन्‍का की संधि कर ली। विवश होकर विक्‍टर इमैनुअल को भी आस्ट्रिया के साथ ज्‍यूरिच की संधि करनी पडी।

तृतीय सोपान-

इस सोपान में इटली के एकीकरण के लिये मैजनी तथा गैरबाल्‍डी ने महत्‍वपूर्ण कार्यकिए। सिसली के विद्रोह से लाभ उठाकर गैरबाल्‍डी ने सिसली और नेपिल्‍स पर अधिकार कर लिया। और रोम तथा वेनेशिया पर आक्रमण करने की योजना बनाई। इसी समय कावूर ने गैरीबाल्‍डी पर सन देह करके पोप के राज्‍य आम्ब्रिया तथा मार्चेज पर अधिकार कर लिया और नेपोलियन तृतीय को अपने पक्ष में कर लिया। बाद मे गैरीबाल्‍डी ने इटली के एकीकरण के लिये नेपिल्‍स और सिसली सार्डीनिया के राजा को प्रदान कर दिए। इसी समय मध्‍य इटली के राज्‍य पारमा और टस्‍कनी भी सार्डीनिया से मिल गये।

चतुर्थ सोपान-

अब केवल वेनेशिया और रोम इटली मे मिलने को रह गये थे। सन 1866 ई. में आस्ट्रिया और प्रशा के मध्‍य युद्ध प्रारम्‍भ हो गया जिसका लाभ उठाकर विक्‍टर ने वेनेशिया को अपने साम्राज्‍य में मिला लिया अन्‍त में रोम पर आक्रमण करके इमैनुअल ने उस पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार 20 सितम्‍बर 1870 ई. को इटली का राष्‍ट्रीय एकीकरण पूरा हो गया।

इटली के एकीकरण में कावूर के योगदान

कावूर का जीवन परिचय-

इटली के एकीकरण में सबसे अधिक शक्तिशाली तत्‍व कावूर था। वह कट्टर देशभक्‍त और राजतंत्रीवादी था। उसका जन्‍म 1810 ई. में पीडमाण्‍ट के त्‍यूरिन नगर में हुआ था। कावूर शिक्षा प्राप्‍त करके एक इंजीनियर के पद का कार्य करने लगा, परन्तु कार्य में रूचि न होने के कारण  वह 1831 ई. में नौकरी छोड़कर अपनी जागीर की देखभाल करने लगा। उसने 1831 से 1843 ई. तक इतिहास और अर्थशास्‍त्र का अध्‍ययन किया और इंग्लैण्‍ड, फ्रांस तथा स्विट्जरलैण्‍ड की यात्रायें की। 1847 ई. में यह रेजोमेण्‍टों नामक समाचार पत्र का सम्‍पादन करने लगा। धीरे-धीरे उसकी प्रसिद्धि चारों ओर फैलने लगी औरवह इटली के एकीकरण में कार्य में संलग्‍न हो गया।

सन 1848 ई. में कावूर पीडमाण्‍ट की संसद का सदस्‍य चुन लिया गया। उसने विधानसभा द्वारा अनेक जनहितकारी कानून पारित करवाये। 1850 ई. मे वह कृषि एवं वाणिज्‍य मंत्री बन गया। 1851 ई. मे वह पीडमाण्‍ट के का अर्थ मंत्री बना। उसकी योग्‍यता और कार्यकुशलता से प्रभावित होकर पीडमाण्‍ट के शासक विक्‍टर इमैनुअल द्वितीय ने 1852 ई. में उसे अपना प्रधानमंत्री नियुक्‍त कर दिया।

कावूर की नीति और उद्देश्‍य- 

कावूर इटली का एकीकरण करने के लिये बहुत उत्‍सुक था। 1848 की क्रांतियों की असफलता को देखकर उसने यह अनुभव कर लिया था कि इटली स्‍वयं अपना संगठन करने में कभी भी सफल न हो सकेगा। क्‍योंकि यूरोप के महान्‍ राष्‍ट्र इटली के एकीकरण के पक्ष में नही था। अत: कावूर ने यूरोप के किसी बडे राष्‍ट्र का सहयोग प्राप्‍त करने का निश्‍चय किया। कावूर यह समझ चुका था कि इटली का सबसे बड़ा शत्रु आस्ट्रिया ही है और आस्ट्रिया को पराजित किये बिना इटली का एकीकरण करना असम्‍भव है।

कावूर ने यह भी अनुभव किया कि सार्डीनिया जब तक आर्थिक और सैनिक दृष्टि से शक्तिशाली नहीं बन जायेगा तब तक वह संगठित इटली का नेतृत्‍व नहीं कर सकेगा। इसीलिये उसने सार्डीनिया को आर्थिक औरसैनिक दृष्टि से सशक्‍त बनाने का प्रयास किया।

कावूर के कार्य (उपलब्धियाँ)-

कावूर बड़ा योग्‍य और अवसरवादी राजनीतिज्ञ था। उसने निम्‍नलिखित कार्य किये-

  1. आस्ट्रिया का विरोध- कावूर ने 1855 ई. में लम्‍बार्डी से भागे हुए शरणार्थियों को सार्डीनिया में शरण दे दी और जब आस्ट्रिया ने लम्‍बार्डी पर अधिकार कर लिया तो उसने उसका विरोध किया और वियना से अपना राजदूत वापस बुला लिया। उसके इस कार्य का इंग्‍लैण्‍ड व फ्रांस दोनों ने समर्थन किया।
  2. क्रीमिया का युद्ध- कावूर इटली के एकीकरण के लिये किसी यूरोपीय शक्ति का सहयोग प्राप्‍त करना चाहता था। अत: 1854 ई. में जब क्रीमिया का युद्ध आरम्‍भ हुआ तो कावूर इंग्‍लैण्‍ड तथा फ्रांस की ओर से युद्ध मे कूद पडा़। यद्यपि पूर्वी समस्‍या में सार्डीनिया का कोई हित न था और न ही रूस से उसकी शत्रुता थी फिर भी कावूर ने मित्र राष्‍ट्रों की सहायता करके अपना उद्देश्‍य सिद्ध करने का प्रयास किया। कावूर का यह कार्य उसकी दूरदर्शिता का प्रतीक था। क्रीमिया के युद्ध के बाद 1853 ई. मे पेरिस सम्‍मेलन में कावूर ने भाग लिया और इटली के एकीकरण के प्रश्‍न को एक अन्‍तर्राष्‍ट्रीय प्रश्‍न बना दिया। इस प्रकार क्रीमिया की दलदल से नवीन इटली का निर्माण हुआ।
  1. फ्रांस से समझौता- फ्रांस का सम्राट नेपोलियन तृतीय इटली के एकीकरण के तो पक्ष मे था। परन्‍तु वह रोम के पोप के नेतृत्‍व में इटली का संगठन करना चाहता था। ऐसी स्थिति में इंग्लैण्‍ड और फ्रांस से मित्रता करना कावूर के लिये एक कठिन कार्य था लेकिन कावूर ने कूटनीति से काम लेकर 20 जुलाई 1858 ई. को नेपोलियन तृतीय के साथ प्‍लोम्बियर्स का समझौता कर लिया। इस समझौते के अनुसार नेपोलियन तृतीय ने कावूर को इटली के एकीकरण मे सहयोग देने का वचन दिया।
  2. आस्ट्रिया से युद्ध- नेपोलियन तृतीय से समझौता करके कावूर ने आस्ट्रिया के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। 1855ई. में आस्ट्रिया और सार्डीनिया के मध्‍य युद्ध आरम्‍भ हो गया। इस युद्ध मे कावूर और फ्रांस की सेनाओं को विजय मिली लेकिन युद्ध के मध्‍य ही नेपोलियन तृतीय ने अपनी सेनायें वापिस बुला ली क्‍योंकि वह नहीं चाहता था कि इटली संगठित होकर यूरोप का एक शक्तिशाली राष्‍ट्र बन जाये। इसने आस्ट्रिया के साथ विलाफ्रेंका की संधि कर ली। नेपोलियन के इस विश्‍वासघात से कावूर को गहरी चोट लगी। सार्डीनिया की सेना अकेले आस्ट्रिया का सामना करने में असमर्थ थी। अत: विकटर इमैनुअल ने आस्ट्रिया के साथ ज्‍यूरिच की संधि कर ली।
  3. कुछ समय बाद कावूर ने नीस और सेवाय फ्रांस को देकर उसे अपने पक्ष मे कर लिया और मध्‍य इटली के राज्‍यों को सार्डीनिया में मिला लिया। इस प्रकार कावूर ने अपने प्रयासों से इटली के एकीकरण को सम्‍भव बना दिया। 6 जून 1860 ई. का महान्‍ देशभक्‍त और कुशल राजनीतिज्ञ की मृत्‍यु हो गई।
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कावूर का मूल्‍यांकन- 

कावूर आधुनिक इटली का मुख्‍य निर्माता था। वह बड़ा साहसी वीर दूरदर्शी राजनीतिज्ञ था। वह कट्टर देशभक्‍त प्रजातंत्र का पोषक और उदार हृदय व्‍यक्ति था वह अपने समय का सर्वश्रेष्‍ठ राजनीतिज्ञ था। उसका मूल्‍यांकन करते हुए ‘लिपसन’ ने लिखा है-

   जिस कौशल से कावूर ने आस्ट्रिया के चारों ओर जाल डाला और अपनी योजना के लक्ष्‍यों को प्राप्‍त किया वह कूटनीति का आश्‍चर्यजनक उदाहरण था। इसी प्रकार हेजन ने लिखा है- ‘कावूर के चरित्र में अनेक गुणों का सम्मिश्रण था। उसकी विचार शक्ति तीव्र थी। उसकी निर्णय शक्ति और व्‍यावहारिक दक्षता अद्भूत थी। वह एक वीर और साहसी व्‍यक्ति था’।

 

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