germany ka ekikaran kab hua, germany ka ekikaran kab pura hua, germany ka ekikaran ki badhai kya thi, germany ka ekikaran kab aur kaise hua tha, germany ka ekikaran kisne kiya tha, germany ke ekikaran ki prakriya ka varnan kijiye, germany ka ekikaran kab aur kisne kiya, germany ka ekikaran kis yuddh ke bad hua, germany ka ekikaran kis varsh mein hua , germany ka ekikaran ka varnan karen, kis sandhi ke dwara germany ka ekikaran hua, italy or germany ka ekikaran, germany ka ekikaran in hindi, germany aur italy ka ekikaran, germany ka ekikaran kab hua

जर्मनी का एकीकरण | germany ka ekikaran kab hua

जर्मनी के एकीकरण की पृष्‍ठभूमि | Germany ka Ekikaran

इटली की तरह जर्मनी भी वियना कांग्रेस के पश्‍चात एक भौगोलिक अभिव्‍यक्ति मात्र बना रहा इससे पूर्व नेपोलियन ने सन 1806 में पवित्र रोमन साम्राज्‍य का अन्‍त करके जर्मन राष्‍ट्रयता के मार्ग को प्रशस्‍त कर दिया था। उसने जर्मनी की प्राचीन व्‍यवस्‍था को छिन्‍न-भिन्‍न कर दिया था। इसके परिणामस्‍वरूप जर्मनी के राज्‍यों मे एकीकरण की भावना जागृत हुई। मैटरनिख युग (1815-1848) में जर्मनी का एक ढीला-ढाला संघ अस्तित्‍व में आया, जिसमें 39 रियासतें सम्मिलित थीं। इस  संघ की एक राज्‍य परिषद् भी थी। किन्‍तु सभी राज्‍य एक दूसरें से स्‍वतंत्र थे और आस्ट्रिया काउन पर पूर्ण प्रभाव था। जर्मनी के 39 राज्‍यों में प्रशा ही एकमात्र शक्तिशाली राज्‍य था जो आस्ट्रिया का विरोध कर सकता था। सन्‍ 1859 तक दों बातें स्‍पष्‍ट हो चुकी थी- एक जर्मन राज्‍यों के एकीकरण का नेतृत्‍व प्रशा ही कर सकता है तथा दूसरा यह कि एकीकरण के मार्ग में आस्ट्रिया सबसे अधिक बाधा पहुँचा सकता है।

जर्मनी में राष्‍ट्रीयता | Germany me Rashtriyata

जर्मन जनता ने नेपोलियन के विरूद्ध एक होकर युद्ध किया था। इस मुक्ति से युद्ध के कारण जर्मन जनता में राष्‍ट्रीयता की भावना का आविर्भाव हुआ। प्रगतिशील लोग इस चिन्‍ता में थे कि विविध जर्मन राज्‍यों का अन्‍त करके एक शक्तिशाली जर्मन राष्‍ट्र के निर्माण की अत्‍यन्‍त्‍ आवश्‍यकता है। जर्मनी के देशभक्‍त निरंकुश राजाओं के शासन का अन्‍त करके जनता का शासन स्‍थ‍ापित करना चाहते थे। जब तक मैट‍रनिख आस्ट्रिया का चांसलर रहा तब तक जर्मनी की राष्‍ट्रवादी भावनाएँ दबी रहीं किन्‍तु उसके पतन के पश्‍चात राष्‍ट्रीय एकता की भावना ने काफी जोर पकड़ा। मैटरनिख ने 1819 के कार्ल्‍सवाद नामक स्‍थान से अनेक दमनकारी कठोर कानूनों को जारी किया। इन दमनकारी कानूनों को कार्ल्‍सवाद के आदेश कहते है। ये आदेश मैटरनिख पद्धति के प्रमुख तत्व थे। किन्‍त्‍ुा मैटरनिख के कठोर नियंत्रण के बाद भी जर्मन राज्‍यों का एकीकरण निम्‍नलिखित चरणों में पूर्ण हुआ।

कस्‍टम संघ अथवा शोलवरीन-

जर्मन लोग आस्ट्रिया के स्‍थान पर प्रशा को नेतृत्‍व सौंपने के इच्‍छुक थे। देश का आर्थिक एकीकरण का नेतृत्‍व भी धीरे-धीरे प्रशा के ही हाथों में आ रहा था। जर्मन राज्‍यों के आर्थिक एकीकरण का नेतृत्‍व प्रशा के द्वारा ही किया गया। औद्योगिक क्रांति के कारण उद्योग और व्‍यवसाय की पर्याप्‍त उन्‍नति हो चुकी थी, किन्‍तु जर्मनी के विविध राज्‍यों में बंटे रहने के कारण व्‍यापारियों को जगह-जगह चुँगी चुकानी पड़ती थी और इससे व्‍यापार मे बाधा पहुँचती थी। इस असुविधा को दूर करने के उद्देश्‍य से सन्‍ 1844 मे अठारह जर्मनी राज्‍यों ने मिलकर शोलवरीन नामक एक आर्थिक  संघ का निर्माण किया। यह एक चुँगी संघ था। इसके अनुसार इस संघ के सदस्‍य बिना एक दूसरे को चुँगी चुकाये व्‍यापार कर सकते थे। इस प्रकार प्रशा के नेतृत्‍व में शोलवरीन की स्‍थापना एकीकरण के‍ लिये एक महत्‍वपूर्ण कदम था। इससे राष्‍ट्रीयता की भावना को काफी बल मिला।

फ्रेंकफर्ट का संसद और उसकी विफलता-

मार्च 1848 में प्रशा के राजा की प्ररणा से जर्मनी के फ्रेंकफर्ट नगर में जर्मन राज्‍यों की एक राष्‍ट्रीय संसद का निर्माण हुआ। इस जर्मन संसद का मुख्‍य उद्देश्‍य प्रजातांत्रिक सिद्धान्‍तों के आधार पर एक संविधान का निर्माण करना था। संसद ने अपना काफी समय व्‍यर्थ के वाद-विवाद में खर्च कर दिया। अन्‍त में निश्चित किया गया कि जर्मनी का एकीकरण करके प्रशा के राजा को जर्मनी का संवैधानिक राजा नियुक्‍त किया जाय, किन्‍त्‍ुा आस्ट्रिया ने संसद के इस कार्य का कठोर विरोध किया। इस समय प्रशा इतना शक्तिशाली नहीं था कि वह आस्ट्रिया से युद्ध करता। दूसरे प्रशा का राजा जर्मनी में जनतंत्रीय शासन प्रणाली को पसन्‍द नही करता था। अतएव प्रशा के राजा ने राजमुकुट स्‍वीकार करने के नियंत्रण को अस्‍वीकार कर दिया। इस प्रकार जर्मनी के एकीकरण के लिये किया गया फ्रेंकफर्ट की संसद का प्रयास पूर्ण विफल रहा। बाद में एकीकरण प्रशा के नेतृत्‍व में ही हुआ लेकिन वह सैनिक बल पर किया गया प्रजातांत्रिक आधार पर नहीं।

See also  उपनिवेशवाद का प्रारम्भ | Upniveshvad kya hai in hindi

फ्रेंकफर्ट की संसद की विफलता के पश्‍चात प्रतिक्रियावादी चक्र जर्मनी में और तेजी से घूमने लगा। राष्‍ट्रवादी प्रवृत्तियों को  निर्दयतापूर्वक कुचल दिया गया। प्रशा के राजा ने पहले जो सुधार लागू किये थे वे सब निरस्‍त कर दिये गये। राज्‍य परिषद् भंग कर दी गई। अन्‍य राज्‍यों में भी इसी प्रकार की दमनपूर्ण कार्यवाही की गई। कुछ स्‍थानों पर जनता ने विद्रोह किया किन्‍तु उन्‍हें भी बुरी तरह से दबा दिया गया। फ्रेंकफर्ट की राष्‍ट्रीय संसद भी भंग करदी गई।

बिस्‍मार्क का योगदान-

सन्‍ 1861 में प्रशा में राजनैतिक परिवर्तन हुए और उनके कारण जर्मन एकीकरण का कार्य सरल हो गया। उस वर्ष प्रथम विलियम प्रशा का राजा बना। प्रशा का यह नया सम्राट काफी योग्‍य और महत्‍वाकांक्षी व्‍यक्ति था। उसका सुदृढ़ विश्‍वास सैनिक शक्ति पर था। उसने सेना का पुनर्गठन किया और प्रशा को सैनिक दृष्टि से यूरोप की महान्‍ शक्ति बनाने में कोई कसर नहीं छोडी। 23 सितम्‍बर 1861 को सम्राट विलियम प्रथम ने ऑटोफान बिस्‍मार्क को अपना प्रधानमंत्री नियुक्‍त किया। इस समय बिस्‍मार्क फ्रांस में प्रशा का राजदूत था। बिस्‍मार्क ने सम्राट की सैनिक नीति का दृढ़ समर्थन किया। जर्मनी के एकीकरण के लिये सर्वश्रेष्‍ट कार्य केवल बिस्‍मार्क ने ही किया।वह 19 वीं शताब्‍दी का महान और श्रेष्‍ठ कूटनीतिज्ञ माना जाता है।

बिस्‍मार्क का जीवन परिचय

बिस्‍मार्क का जन्‍म एक कुलीन घराने में 1815 ई. में हुआ था। उसका पूरा नाम, ऑटो वान बिस्‍मार्क था। बचपन में उसकी भावी महानता के कोई चिन्‍ह नहीं दिखाई दिये थे। पढ़ने-लिखने मे वह कमजोर था। अनुशासनहीनता शरारते और शैतानियों के कारण वह प्रसिद्ध था। उसकी शिक्षा बर्लिन विश्‍वविद्यालय में हुई। 1815 में वह प्रशा की संसद में प्रति बना। वहाँ वह आठ वर्ष रहा। यहाँ उसे यूरोपीय राजनीति का ज्ञान हुआ। उसको विश्‍वास हो गया कि जर्मनी एकीकरण वैधानिक तरीके से नहीं होगा। उसने यह नीति निर्धारित की कि किसी भी देश को महान्‍ प्रश्‍नों का समाधान लम्बे चौड़े भाषणों से और बहुमत द्वारा स्‍वीकृत प्रस्‍तावों से न होकर रक्‍त तथा तलवार से ही होता है।

बिस्‍मार्क एवं जर्मनी का एकीकरण | germany ka ekikaran kab hua

सन्‍ 1861 में प्रशा में राजनैतिक परिवर्तन हुए और इनके कारण जर्मन एकीकरण का कार्य सरल हो गया। उस वर्ष विलियम प्रथम प्रशा का राजा बना। प्रशा का यह नया सम्राट काफी योग्‍य और महत्‍वाकांक्षी व्‍यक्ति था। उसका सुदृढ़ विश्‍वास सैनिक शकित पर था। उसने सेना का पुनर्गठन किया और प्रशा को सैनिक दृष्टि से यूरोप की महान्‍ शक्ति बनाने में कोई कसर नही छोड़ी। 23 सितम्‍बर 1861 को सम्राट विलियम प्रथम ने ऑटोवान बिस्‍मार्क को अपना प्रधानमंत्री नियुक्‍त किया। इस समय बिस्‍मार्क फ्रांस में प्रशा का राजदूत था। बिस्‍मार्क ने सम्राट की सैनिक नीति का दृढ1 समर्थन किया। जर्मनी के एकीकरण के लिये सर्वश्रेष्‍ठ कार्य केवल बिस्‍मार्क ने ही किया। वह 19 वीं शताब्‍दी का महान्‍ और श्रेष्‍ठ कूटनीतिज्ञ माना जाता है।

जर्मनी के एकीकरण के लिये किये गये बिस्‍मार्क का योगदान

बिस्‍मार्क की नीति-

बिस्‍मार्क का विश्‍वास प्रजातंत्रीय या संसदीय शासन प्रणाली में बिलकुल नहीं था। वह निरंकुश शासन का कट्टर समर्थक था। जर्मनी के एकीकरण के लिये वह प्रशा की सैन्‍य शकि्त को बढाकर युद्ध के मैदान में अपने उद्देश्‍य कोपूरा करना चाहता था। उसकी नीति ‘रक्‍त और लोहे की नीति’ के नाम प्रसिद्ध है। प्रशा की संसद ने बिस्‍मार्क की सैनिक नीति का विरोध किया। बिस्‍मार्क ने संसद की कोई परवाह नहीं की क्‍योंकि जर्मन सम्राट विलियम प्रथम सदैव उसका साथ देता रहा। बिस्‍मार्क की सैनिक सुधर की योजना पूर्ण हुई औ शीघ्र ही प्रशा सैनिक दृष्टि से इतना शक्तिशाली हो गया कि वह अब आस्ट्रिया अथवा फ्रांस से अकेला युद्ध कर सकता था। इस प्रकार सैनिक सुदृढता के आधार पर बिस्‍मार्क ने जर्मनी के एकीकरण के कार्य को आगे बढ़ाया।

See also  चीन का "गौरैया सफाया अभियान" क्या हैं?

अपनी कूटनीति सूझ-बूझ से बिस्‍मार्क ने रूस और फ्रांस को अपना मित्र बना लिया ताकि आस्ट्रिया से युद्ध होने के समय ये राष्‍ट्र तटस्‍थ रहें। जर्मनी के एकीकरण के उद्देश्‍य से सन्‍ 1864 और 1871 के बीच बिस्‍मार्क को तीन युद्ध करने पड़े।

आस्ट्रिया और प्रशा का युद्ध-

बिस्‍मार्क की दृष्टि से आस्ट्रिया ही जर्मनी के एकीकरण के मार्ग मे सबसे अधिक बाधक और प्रशा का सबसे प्रबल प्रतिद्वन्‍द्वी था। उसे आस्ट्रिया से युद्ध करने का बहाना भी शीघ्र ही मिल गया। जब मार्च 1865 में आस्ट्रिया ने यह प्रस्‍ताव रखा कि जर्मन परिसंघ की संसद मे दोनों डचियों के प्रश्‍न पर विचार होता तो प्रशा ने आस्ट्रिया पर वचन भंग करने का आरोप लगाया। यह पहले ही तय हो चुका था कि डचियों से सम्‍बंधित कोई भी प्रश्‍न संघीय संसद में नहीं लाया जायेगा। अत: प्रशा को युद्ध का बहाना मिल गया और वह युद्ध की तैयारी करने लगा।

आस्ट्रिया से युद्ध शुरू करने से पूर्व बिस्‍मार्क ने कूटनीतिज्ञ तैयारी भी पूरी कर ली जिससे यूरोप का कोई राज्‍य युद्ध के समय आस्ट्रिया की सहायता न कर सके। रूस क्रीमिया युद्ध के समय से ही प्रशा के प्रति मैत्री भावना रखता था और आस्ट्रिया कर कट्टर शत्रु था। इंग्‍लैण्‍ड का रूख भी प्रशा के प्रति सहानुभूतिपूर्ण था। इटली भी आस्ट्रिया का शत्रु था। क्योंकि इटली के एकीकरण में आस्ट्रिया ही रूकावटें डाल रहा था। बिस्‍मार्क ने सार्डीनिया के राजा विक्‍टर इमैनुअल से एक संधि भी कर ली जिसके अनुसार यह निश्‍चय किया गया कि प्रशा और आस्ट्रिया के युद्ध के समय सार्डीनिया वेनेशिया पर आक्रमण कर देगा औरप्रशा बाद मे वेनेशिया इटली को दिला देगा। फ्रांस का सम्राट नेपोलियन तृतीय एक संयुक्‍त जर्मनी को अपने पडौस में पसन्‍द नहीं कर रहा था किन्‍त्‍ुा बिस्‍मार्क ने किसी प्रकार उसकी भी तटस्‍थता प्राप्‍त कर ली। नेपोलियन कायह भी अनुमान था कि आस्ट्रिया से युद्ध करने से प्रशा की शकित नष्‍ट हो जायेगी और फ्रांस को अन्‍तत: लाभ ही होगा किन्‍तु यह उसकी भारी भूल थी।

समस्‍त कूटनीतिज्ञ तैयारी करके बिस्‍मार्क ने 14 जून 1866 को आस्ट्रिया के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। आस्ट्रिया और प्रशा के बीच यह युद्ध सात सप्‍ताह तक चला। 3 जुलाई को सेडोवा नामक स्‍थान पर आस्ट्रिया अन्तिम रूप से पराजित हुआ उसने संधि की वार्ता शुरू कर दी। इस युद्ध से सिद्ध किया कि केवल प्रशा ही जर्मन राज्‍यों का नेतृत्‍व कर सकता है।

23 अगस्‍त 1866 को आस्ट्रिया और प्रशा के बीच प्राग की संधि हुई। इस संधि के अनुसार जर्मनी का परिसंघ भंग कर दिया गया और आस्ट्रिया को प्रशा द्वारा की गई जर्मनी की नई तथा वेनेशिया पर इटली का अधिकार स्‍वीकार करना पड़ा। श्‍लेसविग तथा हाल्‍सटीन की डचियाँ प्रशा में मिला दी गई तथा वेनेशिया पर इटली का अधिकार स्‍वीकार कर लिया गया।  अब जर्मनी पर आस्ट्रिया का प्रभाव बिल्‍कुल समाप्‍त हो गया और जर्मनी के एकीकरण की एक बडी बाधा दूर हो गई।

उत्‍तरी जर्मन-संघ का निर्माण-

आस्ट्रिया की पराजय के पश्‍चात बिस्‍मार्क के उन सब जर्मन राज्‍यों को प्रशा में मिला लिया जिन्‍होनें युद्ध में आस्ट्रिया का साथ दिया था। जर्मनी का नये सिरे से पुनर्गठन किया गया। दक्षिण के चार राज्‍यों को छोडकर मेन नदी के उत्‍तर के सभी राज्‍यों को मिलाकर बिस्‍मार्क ने उत्‍तरी जर्मन संघ का निर्माण किया जिसमें प्रशा के अतिरिक्‍त 21 राज्‍य सम्मिलित थे। प्रशा का राजा इसका अध्‍यक्ष बनाया गया। दो सदन वाली एकसंसद बनाई गई। स्‍वयं बिस्‍मार्क जर्मन संघ का प्रधानमंत्री बना। इस प्रकार जर्मनी के एकीकरण के इस द्वितीय चरण में सम्‍पूर्ण उत्‍तरी जर्मनी पर प्रशा का प्रभुत्‍व स्‍थ‍ापित हो गया तथा उत्‍तरी सीमा और शक्ति में पर्याप्‍त विस्‍तार हुआ।

See also  ग्वाटेमाला की राजधानी और ग्वाटेमाला का इतिहास

फ्रांस प्रशा युद्ध जर्मनी साम्राज्‍य की स्‍थापना-

जर्मनी के एकीकरण के संदर्भ में लड़ा गया तीसरा और अंतिम युद्ध फ्रांस और प्रशा युद्ध था। प्रशा और फ्रांस के बीच तनाव बढ़ने अथवा युद्ध होने के निम्‍नलिखित प्रमुख कारण थे-

  • फ्रांस चाहता था कि जर्मनी कमजोर बने।
  • आस्ट्रिया की पराजय सेप्रशा शकितशाली हो गया था।
  • फ्रांस के राजा को आशा थी कि एशिया अपने वायदे को पूरा करेगा।
  • नेपोलियन और बिस्‍मार्क मे लक्‍जम्‍बर्ग के कारण तनाव हो गया।
  • फ्रांस उन दिनों मैक्सिकों में उलझा हुआ था।
  • उस समय अन्‍तर्राष्‍ट्रीय स्थिति बिस्‍मार्क के अनुकूल थी।
  • आस्ट्रिया प्रशा युद्ध के समय फ्रांस तटस्‍थ था। नेपोलियन की तटस्‍थता युद्ध का कारण बनी।
  • नेपोलियन ने अपने व्‍यवहार द्वारा मित्र को शत्रु बनाया। बिस्‍मार्क ने अपनी कुशल नीति के कारण इटली को अपनी ओर किया। उसने इटली को वेनेशिया दिया।
  • 1868 में स्‍पेन की गद्दी खाली हुई। स्‍पेन ने प्रशा के राजा के रिश्‍तेदार (लियोपोल्‍ड) को वहाँ का शासक नियुक्‍त किया। प्रशा और स्‍पेन का मिलन फ्रांस को सहन नहीं हुआ। फ्रांस ने इसका विरोध किया। यही युद्ध का तात्कालिक कारण बना।

बिस्‍मार्क मूल्‍याकन

यथार्थ में जर्मनी को एक शक्तिशाली राष्‍ट्र के रूप में स्‍थापित करने का श्रेय पूरी तरह बिस्‍मार्क को ही है। उसी ने अपनी रक्‍त लौह की नीति द्वारा जर्मन साम्राज्‍य की स्‍थापना की थी। वह फ्रैडिक महान्‍ के पश्‍चात जर्मन के सुपुत्रों में सबसे महान्‍ पुत्र था। वह अनियंत्रित शासन और राजा की सर्वोच्‍च सत्‍ता का कट्टर समर्थक था। बिना उसकी कूटनीतिक योजना और युद्ध कौशल ने जर्मनी का एकीकरण इतना शीघ्र सम्‍भव नहीं था। यद्यपि यह सच है कि बिस्‍मार्क ने अनेक ऐसी प्रणालियों का सूत्रपात किया जो संसार के सम्‍मुख विकट समस्‍याएँ बन गई। जर्मनी में सैन्यवाद का प्रसार शस्‍त्रीकरण और युद्ध की लोकप्रियता ने विश्‍व की शांति को बार-बार बुरी तरह संकट में डाला परन्‍तु जर्मनी के लिये बिस्‍मार्क की देन अनुपम है जिसके लिये यह देशसदा इस महान्‍ राजनीतिज्ञ का ऋणी रहेगा।

keyword- germany ka ekikaran kab hua, germany ka ekikaran kab pura hua, germany ka ekikaran ki badhai kya thi, germany ka ekikaran kab aur kaise hua tha, germany ka ekikaran kisne kiya tha, germany ke ekikaran ki prakriya ka varnan kijiye, germany ka ekikaran kab aur kisne kiya, germany ka ekikaran kis yuddh ke bad hua, germany ka ekikaran kis varsh mein hua , germany ka ekikaran ka varnan karen, kis sandhi ke dwara germany ka ekikaran hua, italy or germany ka ekikaran, germany ka ekikaran in hindi, germany aur italy ka ekikaran

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *