दूध में मलाई (Hindi Story)
एक स्त्री किसी संत से प्रार्थना करती हुई बोली- ” महाराज, आपसे अनुरोध है कि आज आप हमारे घर, हमारे घर को पवित्र कीजिए.”
संत ने उस महिला की प्रार्थना स्वीकार करके, उसके घर गए
महिला ने संत के स्वागत के लिए एक कटोरी में दूध डालकर, उन्हें पीने के लिए देने का सोचा. लेकिन जब महिला दूध को हांडी से कटोरी में डाल रही थी, तभी हांडी से सारी मलाई कटोरी वाले दूध में गिर गई. यह देख कर महिला के मुंह से – “अरे-अरे” निकल गया, फिर भी उसने दूध में शक्कर डालकर, संत को परोसा. संत वहां पर बैठे हुए ज्ञान भरी बातें कर रहे थे, लेकिन उन्होंने दूध को नहीं पिया.
तब उस स्त्री ने संत से कहा- ” महाराज, यह मीठा दूध पी लीजिए.”
संत बोले- ” नहीं मैं इस दूध को नहीं पी पाऊंगा, क्योंकि तुमने दूध में मलाई और शक्कर के अलावा एक और चीज मिला दी है. इसलिए यह दूध अब मैं नहीं पी सकता”
स्त्री बोली- ” महाराज ! वह तीसरी चीज मैंने क्या मिला दी है?”
संत बोले-” अरे-अरे, जिस दूध में अरे- अरे मिला हो, उस दूध को मैं नहीं पी सकता”
महिला को अपनी गलती का, आभास हो गया. और उसने संत से अपने इस गलती की माफी मांगी.
(First Hindi Story Ends)
संत की दलील (Hindi Story Sant Ki Daleel)
दुनिया से बहुत दूर, अपनी दुनिया में ही मस्त रहने वाले, एक सिद्ध बाबा के पास राजा का एक दूत आता है। जब दूत संत के पास आया, उस समय संत कुटिया के पास बहने वाली नदी में स्नान करके, नदी के तट पर ही, पूजा पाठ करने बैठ गए थे।
संत के पास आकर दूत ने कहा – आपको हमारे राज्य के राजा ने, अपने राज्य का प्रधानमंत्री बनाया है। और आपको राजमहल बुलाया है।
संत ने दूत की तरफ देखा और बोले- मैंने सुना है कि तुम्हारे राजा के पास एक बहुत बड़े कछुए की, बहुत पुरानी खाल है, जिसे उसने संग्रहालय में रखा हुआ है।
दूत ने कहा- जी महाराज, आपने सही कहा, वह खाल बहुत ही बहुमूल्य है।
संत ने पूछा- सोचो अगर वह कछुआ जिंदा होता, तो वह कहां रहना पसंद करता? उस संग्रहालय में रहना पसंद करता, या जिस नदी में वह पैदा हुआ है, उस नदी में रहना पसंद करता?
दूत ने कहा- महाराज वह कछुआ तो उसी नदी में रहना पसंद करता, जहां उसका जन्म हुआ है।
तब संत ने कहा- कछुए की तरह, मैं भी अपने इस नदी किनारे बने छोटे से कुटिया में रहना ही पसंद करूंगा। कोई भी पद पाकर, आदमी अपने मन की शांति खो देता है। कभी उसे अपना सम्मान खोना पड़ता है, तो कभी उसे अपनी इच्छा के विरुद्ध जाकर कोई काम करना पड़ता है। इसलिए जाकर अपने सम्राट से, आदर पूर्वक कहना कि उन्होंने जो मुझे सम्मान दिया है, मैं उसके लिए उन्हें धन्यवाद देता हूं, लेकिन मैं जैसा हूं, जहां हूँ , ठीक हूँ।
यह सुनकर दूत अपने राज्य वापस लौट गया
(Second Hindi Story End)
सही समय का इंतेजर (Hindi Story Sahi Samay ka Intejaar)
एक बूढ़ा पहाड़ी नदी पार करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसका पैर फिसल गया। और वह नदी में गिर गया, और नदी की तेज धारा के साथ बहने लगा। वह नदी आगे चलकर झरने के रूप में बदल गई, और उसका पानी एक गहरी खाई में गिरने लगता है। उस बूढ़े के साथ उसका चेला भी था, चेले को लगा कि बूढ़े सन्यासी की लीला अब यहीं समाप्त हो जाएगी।
चेला, खाई की ओर भागा, उसे लगा, अब संत की सिर्फ लाश ही मिलेगी, क्योंकि खाई पर गिर जाने पर उनका बचना बहुत ही मुश्किल लग रहा था। लेकिन जब वह नीचे पहुंचा, तो धीमी पड़ चुकी जलधारा से निकलकर वृद्ध शांत मुस्कुराते हुए शिष्य की ओर ही चले आ रहे थे।
उन्हें देखकर हैरान और परेशान शिष्य ने संत से कहा- यह तो चमत्कार है, आपको कुछ नहीं हुआ? मैं तो घबरा गया था, आप कैसे बचे?
वृद्ध संत ने कहा- नदी की तेज धारा के विपरीत, अगर मैं तैरता तो थक जाता, और निश्चित ही मेरी मृत्यु हो जाती, इसलिए मैंने नदी के बहाव के साथ ही बहना स्वीकार कर लिया। नदी की बहाव के साथ बहता, उछलता, घूमता, गिरता पानी के साथ गया. और जब नदी का बहाव कमजोर हो गया, उसकी शक्ति कमजोर हो गई. तब मैंने अपनी इच्छा अनुसार दिशा मे तैर कर, नदी से बाहर आकर अपनी जान बचा ली।
शिक्षा- जीवन में भी जब बुरा समय आए, तो ठहर कर उसके साथ बह जाओ, और सही समय का इंतजार कर, बुरे समय से बाहर निकल आओ।
(third Story End here)