अकसर कई लोगो को यह प्रश्न परेशान करता हैं की जब अंगद भी समुद्र को लांघ सकते थे तो क्यो हनुमान जी सबसे पहले लंका गए? आज इसी प्रश्न के उत्तर मे यह लेख लिख रहा हूँ। अंगद जी से जब समुद्र लाघने के लिए पूछा गया था, तब उन्होने निम्न पंक्ति कही थी।
अंगद कहइ जाउँ मैं पारा।
जियँ संसय कछु फिरती बारा॥
अंगद जी बाली के पुत्र थे इसलिए बुद्धि और बल में अंगद बिलकुल बाली के समान ही थे। इसलिए अंगद को समुद्र पार करने मे कोई दिक्कत नहीं जाने वाली थी, अंगद समुद्र को खेल खेल में ही लांघ जाते। लेकिन उन्होने कुछ संशय को प्रकट किया, उन्होने यह कहा की वह समुद्र तो लांघ जाएंगे लेकिन संभव हैं की वो वापस नहीं आ पाएंगे। लेकिन अब प्रश्न यह उठता हैं की आखिर अंगद को वापस ना आने का संशय क्यों था।
अंगद को क्यो लग रहा था की वह लंका से वापस नहीं आ पाएंगे?
अंगद को संशय था की अगर वो लंका जाएंगे तो वह वापस नहीं आ पाएंगे। इस संशय का बीज इतिहास मे छिपा हुआ हैं, तो आइये जानते हैं उस इतिहास को।
वास्तव मे बालि के पुत्र अंगद और दशानन का पुत्र अक्षय कुमार दोनों एक साथ एक ही गुरु से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। अंगद जन्म से ही बहुत ही बलशाली था, और बलशाली होने की वजह से अंगद का स्वभाव शरारती हो गया था। इसलिए शरारती स्वभाव होने की वजह से अंगद अक्सर रावण के पुत्र अक्षय कुमार को थप्पड़ मर दिया करते थे। अंगद के थप्पड़ की वजह से कई बार अक्षय कुमार मूर्छित हो जाया करता था। अक्षय कुमार ने अपने गुरु से अंगद के बर्ताव की शिकायत की, गुरु जी अंगद को बालक समझ कर उनकी गलतियों को नजरंदाज कर दिया करते थे। लेकिन अंगद अपने शरारत से बाज नहीं आ रहे थे, और रोजाना ही वो अक्षय कुमार को परेशान किया करते थे। इसलिए एक दिन अंगद के गुरुजी को क्रोध आ गया और उन्होने क्रोधित होकर अंगद को श्राप दे दिया। श्राप यह था की अब भविष्य मे कभी भी अंगद यदि अक्षय कुमार पर हाथ उठता हैं तो उसी समय अंगद मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे। इस श्राप के बाद से ही अंगद अक्षय कुमार से दूरी बनाने लगे थे।
जब वानर सेना माता सीता के खोज के लिए निकली थी, और समुद्र को लाघने की बात हो रही थी तब अंगद को यही संशय था की अगर वो समुद्र लांघ कर लंका जाते हैं और वहाँ अक्षय कुमार से सामना होता हैं तो गुरु जी के श्राप की वजह से उनकी मृत्यु हो जाएगी और राम काज अधूरा रह जाएगा। क्योंकि वह वापस लौट नहीं पाएंगे।
इसीलिए माता सीता की खोज के लिए हनुमान जी को प्रोत्साहित किया गया और हनुमान जी समुद्र लांघ कर लंका गए। जब रावण को पता चला की लंका मे कोई वानर आया हैं और वह हर तरफ उत्पात मचा रहा हैं, लंका को तहस-नहस कर रहा हैं तो रावण को लगा की यह अंगद ही हैं, क्यूंकी रावण की नजर मे केवल दो ही वानर शक्तिशाली थे, एक तो बाली और दूसरा बाली का पुत्र अंगद, रावण को पता चल गया था की राम ने बाली को मार दिया हैं, इसलिए रावण को पूरा विश्वास था की लंका मे उत्पात मचाने वाला वानर अंगद ही हैं। रावण को अंगद के श्राप के बारे मे पता था, इसलिए रावण ने हनुमान जी को रोकने के लिए अक्षय कुमार को भेजा था। रावण को लगा की श्राप की वजह से अंगद मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा।
पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा।
चला संग लै सुभट अपारा॥
आवत देखि बिटप गहि तर्जा।
ताहि निपाति महाधुनि गर्जा॥
लेकिन जल्दी ही उसका भ्रम टूट गया जब उसे पता चला की हनुमान जी ने अक्षय कुमार को मार दिया हैं। रावण तुरंत समझ गया की यह कोई दूसरा वानर हैं और यह भी कम शक्तिशाली नहीं हैं, इसलिए उसने लंका के सबसे शक्तिशाली योद्धा मेघनाथ को हनुमान जी को पकड़ने के लिए भेजा। क्योंकि रावण जानना चाहता था की आखिर बाली और अंगद के अलावा इस धरती मे कौन इतना शक्तिशाली वानर मौजूद हैं।
सुनि सुत बध लंकेस रिसाना।
पठएसि मेघनाद बलवाना॥
मारसि जनि सुत बाँधेसु ताही।
देखिअ कपिहि कहाँ कर आही॥
हनुमान जी ज्ञानिनामग्रगण्यम् है उन्हे पता था की अगर अक्षय कुमार जीवित रहेगा, तो अंगद का लंका मे प्रवेश संभव नहीं हो पाएगा। इसलिए हनुमान जी ने अंगद के जीवन की बाधा को समाप्त कर दिया। और आखिर कर जब राम जी की सेना लंका पहुंची तो रावण के दरबार मे अंगद ही शांति दूत बन कर गए और वहाँ अपनी वीरता का परचम लहरा दिया था और रावण को भी अपने पैरो मे झुकने के लिए विवश कर दिया था।
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