कलश के नारियल का क्या करना चाहिए

कलश के नारियल का क्या करना चाहिए

कलश के नारियल का क्या करना चाहिए

बहुत से लोग के मन में यह संशय होता है की पूजा के बाद कलश के नारियल का क्या करना चाहिए तो मित्रों पूजा नित्य प्रकाश के नियम अनुसार कलश पर रखे हुए नारियल को पूजा समाप्त होने के बाद जल में विसर्जित कर देना चाहिए। घर के आसपास जहां पर भी नहर, नदी या तालाब हो वहां पर आदर से इस नारियल को जल में प्रवाहित कर देना चाहिए।

कलश के नारियल का क्या करना चाहिए, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसे किस उद्देश्य से इस्तेमाल कर रहे हैं. अगर आप इसे पूजा के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, तो आप इसे प्रसाद के रूप में बांट सकते हैं या फिर किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर सकते हैं. अगर आप इसे किसी अन्य उद्देश्य के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, तो आप इसे किसी धार्मिक स्थल पर चढ़ा सकते हैं या फिर किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दे सकते हैं.

  1. कलश के नारियल को प्रसाद के रूप में बांटना अच्छा माना जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि नारियल को पवित्र माना जाता है और यह अमृत का प्रतीक है. प्रसाद के रूप में बांटा गया नारियल लोगों को शुभता और समृद्धि प्रदान करता है.
  2. कलश के नारियल को किसी नदी या तालाब में विसर्जित करना भी अच्छा माना जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि नारियल को जल का प्रतीक माना जाता है. जल को जीवन का आधार माना जाता है और इसलिए नारियल को जल में विसर्जित करना लोगों को जीवन और समृद्धि प्रदान करता है.
  3. अगर आप कलश के नारियल को किसी धार्मिक स्थल पर चढ़ाना चाहते हैं, तो आप इसे किसी मंदिर में चढ़ा सकते हैं. धार्मिक स्थलों पर चढ़ाया गया नारियल भगवान को प्रसन्न करता है और लोगों को शुभता और समृद्धि प्रदान करता है.
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कलश स्थापना का महत्व

हिन्दू धर्म मे पूजा पाठ और मांगलिक कार्यो मे हमेशा कलश की स्थापना जरूर की जाती हैं। सनातन धर्म मे मान्यता हैं की कलश स्थापना करने से घर और परिवार मे सुख-समृद्धि और वैभव बढ़ता हैं। घर मे हमेशा मांगलिक कार्य होते हैं। इसलिए जब भी घर या फिर मंदिर मे कोई पूजा एवं अनुष्ठान होते हैं तब वहाँ पर कलश कि स्थापना जरूर की जाती हैं। हिंदू धर्म में पूजा पाठ में इस्तेमाल होने वाले कलश को ब्रह्मांड, विराट, ब्रह्मा और भूमि का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है की कलश में संपूर्ण देवी देवताओं की शक्ति समाहित रहती है। पूजा के दौरान जब भी कलश की स्थापना की जाती है तब उस कलश को देवी की शक्ति, तीर्थ स्थान आदि का प्रतीक मानकर कलश की पूजा की जाती है।

इसके अलावा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पूजा पाठ में स्थापित किए जाने वाले कलश के मुख को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है, जबकि कलश के कंठ को भगवान शिव और कलश के मूल को ब्रह्मा का स्थान एवं प्रतीक माना जाता है। कलश का जो मध्य भाग होता है वह देवी का स्थान माना जाता हैं। कलश में मौजूद जल क्रोध, मोह, घृणा और माया जैसी भावनाओं से दूर रखने के लिए एक प्रतीक होता है।

कलश कैसा होना चाहिए

जब भी किसी पूजा पाठ या फिर मांगलिक कार्य के लिए कलश की स्थापना की जाती है तो सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि कलश किस धातु का होना चाहिए। तो ध्यान रखिए की कलश हमेशा सोने, चांदी, तांबे या फिर मिट्टी का होना चाहिए। पूजा एवं मांगलिक कार्य के लिए कभी भी लोहे या फिर मिश्रित धातु के कलश का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। कई लोग कलश के लिए स्टील धातु का भी इस्तेमाल करते हैं जो की पूरी तरीके से गलत है। इसके साथ ही कलश किस दिशा में स्थापित करना चाहिए? इसके बारे में भी ज्ञान होना बहुत ही आवश्यक है। बहुत से लोग अज्ञान बस कलश को कहीं पर भी स्थापित कर देते हैं जो की पूरी तरीके से गलत है और इससे आने वाले अच्छे परिणाम पलट जाते हैं और घर में सुख समृद्धि में बाधा आती है जब भी पूजा पाठ या मांगलिक कार्य के लिए कलश स्थापित करें तो कलश हमेशा उत्तर दिशा में या फिर उत्तर पूर्व दिशा में ही होना चाहिए।

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कलश को स्थापित करने से संबंधित नियम

जब भी कलश स्थापित करें तो उसके पहले जहां पर भी कलश स्थापित किया जा रहा है उस स्थान को अच्छे से साफ कर लें वहां पर किसी भी प्रकार की कोई गंदगी या फिर जूठन नहीं होना चाहिए। इसके बाद उस स्थान में गंगाजल छिड़क और वहां पर मिट्टी से एक बेदी बनाकर हल्दी का इस्तेमाल करके चौक बनाएं। कलश में हमेशा पंच पल्लव, जल, दूर्वा, चंदन, पंचामृत, सुपारी, हल्दी, अक्षत, सिक्का, लौंग, इलायची और पान डालकर ही स्थापित करना चाहिए।

जब कलश स्थापित हो जाए तब कलश पर लाल रोली का इस्तेमाल करते हुए कलश में स्वास्तिक चिन्ह बनाना चाहिए। कलश पर बनाए गए इस स्वास्तिक चिन्ह को चार युगों का प्रतीक माना जाता है। कलश को स्थापित करने से पहले कलश के नीचे जौ के बीज या फिर गेंहू रखना चाहिए और कलश के मुख पर आम के पत्ते रखने के बाद उसके ऊपर नारियल रखना चाहिए। नारियल रखने के बाद पंचोपचार से कलश का पूजन करना चाहिए।

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