1975 विश्व कप: भारतीय क्रिकेट की पहली वनडे जीत, पूर्वी अफ्रीका को हराया था

1975 विश्व कप: भारतीय क्रिकेट की पहली वनडे जीत, पूर्वी अफ्रीका को हराया था

साल 1975 का क्रिकेट इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जब वनडे क्रिकेट को पहली बार वैश्विक मंच पर लाया गया और पहला विश्व कप इंग्लैंड की धरती पर खेला गया। क्रिकेट के इस छोटे फॉर्मेट ने दुनिया भर में एक नई ऊर्जा और रोमांच का संचार किया। जहां टेस्ट क्रिकेट अपनी धीमी गति और लंबे प्रारूप के कारण कुछ दर्शकों के लिए उबाऊ हो चुका था, वहीं वनडे क्रिकेट ने एक तेज़-तर्रार और मनोरंजक विकल्प पेश किया। इसी बदलाव की अगुवाई करते हुए 1975 का पहला वनडे वर्ल्ड कप खेला गया, और इस ऐतिहासिक अवसर का हिस्सा बनने के लिए भारत की टीम भी मैदान में उतरी।

वनडे क्रिकेट की शुरुआत 1971 में हुई जब ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच पहला वनडे मैच खेला गया। यह मुकाबला क्रिकेट प्रेमियों के लिए एक नया अनुभव था। दर्शकों को पारंपरिक टेस्ट मैचों से इतर क्रिकेट का एक नया, तेज़ और रोमांचक रूप देखने को मिला। वनडे क्रिकेट ने शुरुआत में भले ही धीमी गति से लोकप्रियता हासिल की हो, लेकिन 1975 तक यह फॉर्मेट अपनी जड़ों को मजबूत कर चुका था।

1975 का पहला वनडे विश्व कप

जब 1975 में पहला वनडे वर्ल्ड कप आयोजित हुआ, तब तक भारत को इस नए फॉर्मेट का ज्यादा अनुभव नहीं था। भारत ने 1974 में इंग्लैंड के खिलाफ दो मैचों की वनडे सीरीज खेली थी, लेकिन दोनों मुकाबलों में उसे हार का सामना करना पड़ा था। उस समय भारत की वनडे टीम उस तरह की आक्रामकता और रणनीति से लैस नहीं थी, जो आधुनिक वनडे क्रिकेट की पहचान बन चुकी है। फिर भी, भारतीय क्रिकेट टीम ने इस नए प्रारूप में अपना पहला बड़ा कदम रखने के लिए इंग्लैंड का रुख किया।

भारत ने 1975 के पहले वर्ल्ड कप में कुल तीन मुकाबले खेले। भारत का पहला मैच 7 जून 1975 को इंग्लैंड के खिलाफ लॉर्ड्स के ऐतिहासिक मैदान पर हुआ। इस मैच में भारत को इंग्लैंड के हाथों एक बड़ी हार का सामना करना पड़ा। इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 60 ओवरों में 334/4 का विशाल स्कोर खड़ा किया। इंग्लैंड के डेनिस एमिस ने 137 रनों की पारी खेली, जबकि कीथ फ्लेचर और क्रिस ओल्ड ने भी शानदार प्रदर्शन किया।

जब भारत की बारी आई, तो टीम की रणनीति ने सभी को चौंका दिया। उस समय के भारतीय कप्तान श्रीनिवास वेंकटराघवन ने टीम को धीमी गति से खेलने की योजना बनाई, जिससे भारत केवल 132/3 के स्कोर तक ही पहुंच पाया। सुनील गावस्कर, जो उस वक्त टीम के मुख्य बल्लेबाज थे, ने 174 गेंदों पर मात्र 36 रन बनाए। इस पारी को क्रिकेट इतिहास में सबसे निराशाजनक पारियों में से एक माना जाता है, क्योंकि गावस्कर ने कभी भी रन गति बढ़ाने की कोशिश नहीं की। इस हार के बाद भारतीय टीम की काफी आलोचना हुई, और इसे भारत के वनडे क्रिकेट इतिहास में एक सबक के रूप में देखा गया।

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इसके बाद भारत का सामना न्यूजीलैंड और ईस्ट अफ्रीका की टीमों से हुआ। भारत ने ईस्ट अफ्रीका को आसानी से हराया, जो कि अपेक्षाकृत एक कमजोर टीम मानी जा रही थी। लेकिन न्यूजीलैंड के खिलाफ मुकाबले में भारत को फिर से हार का सामना करना पड़ा, और इस तरह भारत का सफर पहले वर्ल्ड कप में समाप्त हो गया।

भारत के लिए 1975 का वर्ल्ड कप एक कठिन अनुभव रहा, लेकिन इसने भारतीय क्रिकेट टीम को वनडे क्रिकेट के महत्व और इसके अनुकूलन की जरूरत को समझाया। जहां भारतीय टीम शुरुआती दौर में संघर्ष करती नजर आई, वहीं आने वाले वर्षों में यही टीम इस फॉर्मेट में अपनी पहचान बनाएगी। 1983 में भारत ने कपिल देव की कप्तानी में वनडे विश्व कप जीतकर इतिहास रच दिया, लेकिन उसकी नींव 1975 के वर्ल्ड कप में पड़े अनुभवों से ही तैयार हुई थी।

पूर्वी अफ्रीका के खिलाफ दूसरा मुकाबला

इंग्लैंड के खिलाफ शर्मनाक हार के बाद भारतीय टीम को अगले मैच से पहले पांच दिन का समय मिला। 11 जून, 1975 को भारत का सामना पूर्वी अफ्रीका की टीम से हुआ, जो पहली बार विश्व कप में हिस्सा ले रही थी। पूर्वी अफ्रीका की टीम अफ्रीका के चार देशों – केन्या, युगांडा, तंजानिया, और जाम्बिया के खिलाड़ियों को मिलाकर बनी थी। उस समय नस्लभेद के कारण दक्षिण अफ्रीका को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से प्रतिबंधित कर दिया गया था, जिससे पूर्वी अफ्रीका की टीम को विश्व कप में मौका मिला। इस टीम में पाकिस्तानी मूल के खिलाड़ी फ्रासत अली भी शामिल थे, जो इस टीम की प्रमुख ताकतों में से एक थे।

पूर्वी अफ्रीका की टीम भारत के मुकाबले अपेक्षाकृत कमजोर थी, और भारत के पास यह सुनहरा मौका था कि वह अपनी पहली हार को भुलाकर जीत की राह पर लौट सके। भारतीय टीम ने इस मैच में अपनी बल्लेबाजी और गेंदबाजी में संतुलन बनाए रखा और पूर्वी अफ्रीका को हराने में सफल रही। यह जीत भारतीय टीम के लिए आत्मविश्वास बढ़ाने वाली साबित हुई, क्योंकि टीम को इस विश्व कप में अपनी पहली जीत मिली थी।

पूर्वी अफ्रीका के खिलाफ टीम ने अपनी लय वापस पाई। यह मैच लीड्स के ऐतिहासिक हेडिंग्ले मैदान पर खेला गया था, जहां भारतीय गेंदबाजों ने अपनी धाक जमाई और विपक्षी टीम को बुरी तरह से पस्त कर दिया। इस मुकाबले में भारतीय गेंदबाजों का प्रदर्शन इतना शानदार था कि पूर्वी अफ्रीका की टीम पूरे 60 ओवर खेलने में असफल रही और बेहद मामूली स्कोर पर ढेर हो गई।

भारतीय कप्तान श्रीनिवास वेंकटराघवन ने इस मैच में टॉस तो हार गए, लेकिन पूर्वी अफ्रीकी कप्तान हरिलाल शाह का बल्लेबाजी चुनने का फैसला उनकी टीम के लिए भारी साबित हुआ। उस समय वनडे मैच 60-60 ओवरों के होते थे, और एक गेंदबाज को 12 ओवर तक गेंदबाजी करने का मौका मिलता था। पूर्वी अफ्रीकी टीम ने सोचा था कि बल्लेबाजी करके भारतीय गेंदबाजों पर दबाव बनाया जा सकता है, लेकिन उनका यह अनुमान गलत साबित हुआ। भारतीय तेज गेंदबाजों ने शुरुआत से ही आक्रामक गेंदबाजी की और विपक्षी बल्लेबाजों को कोई मौका नहीं दिया।

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भारतीय गेंदबाजों ने इंग्लैंड के खिलाफ पिछले मैच में की गई गलतियों से सबक लेते हुए इस मैच में अपना दबदबा दिखाया। मदन लाल और सैयद आबिद अली ने गेंदबाजी की शुरुआत करते ही पूर्वी अफ्रीकी टीम के टॉप ऑर्डर को धराशायी कर दिया। इन दोनों गेंदबाजों की सटीक लाइन और लेंथ के सामने पूर्वी अफ्रीकी बल्लेबाज संघर्ष करते नजर आए।

मदन लाल ने अपनी तेज गेंदबाजी से विपक्षी बल्लेबाजों को खासा परेशान किया, वहीं सैयद आबिद अली की स्विंग गेंदबाजी ने भी कहर बरपाया। आबिद अली ने फ्रासत अली (12 रन) और सैमुअल वालुसिंबी (16 रन) को पवेलियन भेजकर टीम इंडिया को शानदार शुरुआत दिलाई। वहीं, प्रफुल्ल मेहता को रन आउट होने पर मजबूर होना पड़ा, जो 12 रन के निजी स्कोर पर पवेलियन लौटे।

मदन लाल ने रमेश सेट्ठी को 23 रन के स्कोर पर आउट करके पूर्वी अफ्रीका की रही-सही उम्मीदें भी खत्म कर दीं। मदन लाल और आबिद अली की जोड़ी ने कुल मिलाकर पांच विकेट लिए और पूर्वी अफ्रीका की बल्लेबाजी को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया। पूर्वी अफ्रीकी बल्लेबाजों को किसी भी मौके पर क्रीज पर टिकने का अवसर नहीं मिला, और एक के बाद एक विकेट गिरते रहे।

पूर्वी अफ्रीकी टीम भारतीय गेंदबाजों के आगे घुटने टेकती नजर आई। भारतीय गेंदबाजों ने अनुशासित गेंदबाजी करते हुए विपक्षी टीम पर ऐसा दबाव बनाया कि वे बड़े शॉट्स लगाने में नाकाम रहे। पूर्वी अफ्रीका के बल्लेबाजों के पास न तो भारतीय गेंदबाजों की गति का जवाब था, और न ही वे स्विंग को समझने में कामयाब हो सके।

इस मैच में पूर्वी अफ्रीका की टीम मात्र 120 रन पर सिमट गई, जो भारतीय गेंदबाजों के अनुशासित प्रदर्शन का प्रमाण था।

भारत की जीत का सबसे बड़ा श्रेय अगर किसी को जाता है, तो वह थे बाएं हाथ के दिग्गज स्पिनर बिशन सिंह बेदी। बेदी ने अपनी गेंदबाजी में एक अनोखी काबिलियत का प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने 12 ओवरों में 8 मेडन ओवर फेंकते हुए मात्र 6 रन दिए और एक विकेट भी चटकाया। बेदी की गेंदबाजी इतनी कसी हुई थी कि पूर्वी अफ्रीका के बल्लेबाज उनके सामने बेबस नजर आए। बेदी की स्पिन गेंदों में इतनी धार थी कि बल्लेबाजों को रन बनाने का कोई मौका नहीं मिला।

बिशन सिंह बेदी के साथ-साथ कप्तान श्रीनिवास वेंकटराघवन और मोहिंदर अमरनाथ ने भी अपनी गेंदबाजी का कमाल दिखाया। वेंकटराघवन ने 12 ओवर में सिर्फ 29 रन दिए, जबकि अमरनाथ ने दो महत्वपूर्ण विकेट चटकाए। स्पिनरों की जोड़ी ने पूर्वी अफ्रीका के बल्लेबाजों को क्रीज पर टिकने का मौका नहीं दिया। पूरे 24 ओवरों में बेदी और वेंकटराघवन ने सिर्फ 35 रन दिए, और पूर्वी अफ्रीकी बल्लेबाजों को फंसा कर रख दिया।

पूर्वी अफ्रीकी टीम की ओर से सबसे अधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज जवाहिर शाह रहे, जिन्होंने 37 रन की पारी खेली। लेकिन उनकी यह पारी भी टीम को 120 रन के मामूली स्कोर से ऊपर ले जाने में असफल रही। भारतीय गेंदबाजों ने विपक्षी टीम को 55.3 ओवरों में ही समेट दिया, जिससे भारत को जीतने के लिए एक आसान लक्ष्य मिला।

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इंग्लैंड के खिलाफ पहले मैच में सुनील गावस्कर की बेहद धीमी बल्लेबाजी की काफी आलोचना हुई थी, जिसमें उन्होंने 174 गेंदों पर मात्र 36 रन बनाए थे। लेकिन पूर्वी अफ्रीका के खिलाफ इस मैच में उन्होंने अपनी बल्लेबाजी में जबरदस्त सुधार दिखाया। गावस्कर ने आते ही आक्रामक अंदाज में बल्लेबाजी की और विपक्षी गेंदबाजों पर दबाव बनाते हुए 86 गेंदों पर नाबाद 65 रन बनाए। उनकी पारी में 9 चौके शामिल थे, जिसने भारतीय पारी को मजबूती दी और टीम को जीत की राह दिखाई।

सुनील गावस्कर के साथ ओपनिंग करने वाले फारुख इंजीनियर ने भी बेहतरीन बल्लेबाजी की। इंजीनियर ने 93 गेंदों पर 54 रन बनाए और पूरी पारी के दौरान क्रीज पर डटे रहे। उनकी इस शानदार पारी के लिए उन्हें ‘मैन ऑफ द मैच’ चुना गया। हालांकि सुनील गावस्कर के बेहतर स्ट्राइक रेट और तेजी से रन बनाने के बावजूद, इंग्लैंड के पैनल ने इंजीनियर को इस सम्मान के लायक समझा। यह निर्णय आज भी क्रिकेट प्रेमियों के बीच चर्चा का विषय है, लेकिन उस वक्त यह किसी विवाद का कारण नहीं बना।

भारत की ऐतिहासिक पहली वनडे जीत

पूर्वी अफ्रीका के खिलाफ इस मुकाबले में भारत ने अपने 60 ओवरों का पूरा फायदा उठाया और मात्र 29.5 ओवरों में बिना कोई विकेट गंवाए लक्ष्य हासिल कर लिया। भारत ने 121 रन बनाकर 10 विकेट से जीत दर्ज की। यह जीत भारतीय क्रिकेट इतिहास में पहली वनडे जीत के रूप में दर्ज हो गई।

पूर्वी अफ्रीका के खिलाफ मिली शानदार जीत के बावजूद भारत का सफर इस विश्व कप में बहुत लंबा नहीं चल सका। अगले मैच में भारतीय टीम न्यूजीलैंड से भिड़ी, जहां उसे हार का सामना करना पड़ा। इस हार के कारण भारतीय टीम पहले दौर से ही बाहर हो गई और अगले चरण में प्रवेश नहीं कर सकी।

1983 में भारत ने पहला विश्वकप जीता

हालांकि 1975 में भारत को विश्व कप जीतने का मौका नहीं मिला, लेकिन इस हार ने टीम के जुझारूपन को बढ़ाया। आठ साल बाद 1983 में, जब भारत ने कपिल देव की कप्तानी में पहली बार विश्व कप ट्रॉफी जीती, तो यह उन सभी आलोचकों के लिए करारा जवाब था जिन्होंने भारत की क्रिकेट क्षमता पर सवाल उठाए थे।

वेस्टइंडीज ने जीता था 1975 विश्व कप खिताब

1975 के पहले विश्व कप का खिताब वेस्टइंडीज ने जीता था। फाइनल मुकाबले में वेस्टइंडीज ने ऑस्ट्रेलिया को 17 रन से हराकर पहली बार वनडे क्रिकेट का विश्व चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया। क्लाइव लॉयड की कप्तानी में वेस्टइंडीज ने पूरे टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन किया और यह दिखाया कि वे उस समय के सर्वश्रेष्ठ वनडे क्रिकेट टीम थे।

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