पितृपक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म में एक विशेष धार्मिक अवधि है जिसमें पितरों (पूर्वजों) का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार, यह 16 दिनों की अवधि होती है, जब पितर यमलोक से धरती पर आते हैं। इस समय पर पितरों को प्रसन्न करने के लिए परिजनों द्वारा श्राद्ध कर्म करना आवश्यक माना गया है। श्राद्ध करने से न केवल पितरों की आत्मा को शांति और मुक्ति मिलती है, बल्कि श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को भी पुण्य की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से, यह प्रक्रिया पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है, जो कि गरुड़ पुराण में विस्तार से वर्णित है।
पितृदोष का महत्त्व और प्रभाव
पितृदोष को गरुड़ पुराण में एक ऐसा दोष बताया गया है, जो केवल कुछ वर्षों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह दोष कई पीढ़ियों तक चलता है। यदि पितरों का श्राद्ध सही तरीके से नहीं किया जाता या किसी कारणवश तर्पण में कमी रह जाती है, तो पितृदोष का प्रभाव परिवार के सदस्यों पर पड़ता है। यह दोष न केवल व्यक्ति विशेष को प्रभावित करता है, बल्कि पूरे परिवार को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितृदोष का प्रभाव तब तक बना रहता है जब तक इसके निवारण के लिए उचित उपाय नहीं किए जाते, और यह दोष सात पीढ़ियों तक चलता रह सकता है। इसका प्रमुख परिणाम यह होता है कि वंश वृद्धि में समस्याएँ आती हैं और संतानों की आकस्मिक मृत्यु भी हो सकती है।
पितृदोष का कारण
गरुड़ पुराण में पितृदोष के कारणों के बारे में विस्तार से बताया गया है। यदि परिवार में किसी सदस्य की अचानक मृत्यु हो जाती है और उसके अंतिम संस्कार या तर्पण सही विधि से नहीं किया जाता, तो उसकी आत्मा भटकती रहती है। यह आत्मा दुख और नाराजगी में रहती है, जिससे परिवार के सदस्य और विशेषकर घर के मुखिया को पितृदोष का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, यदि किसी ने किसी जीव-जंतु, सांप, या किसी असहाय व्यक्ति पर अत्याचार किया हो या उसकी हत्या की हो, तो भी पितृदोष लगता है।
पितृदोष का ज्योतिषीय संबंध
पितृदोष का संबंध केवल धार्मिक मान्यताओं से नहीं है, बल्कि ज्योतिष शास्त्र में भी इसका उल्लेख किया गया है। जन्म कुंडली के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के दूसरे, आठवें, या दसवें भाव में सूर्य के साथ केतु हो, तो उसे पितृदोष होता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन में विभिन्न समस्याएँ आती हैं, और उसे पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने की सलाह दी जाती है।
पितृदोष का प्रभाव
जब किसी परिवार के मुखिया पर पितृदोष का असर होता है, तो उसका जीवन क्रोध, निराशा और अवसाद से घिरा रहता है। यह दोष न केवल उस व्यक्ति को प्रभावित करता है, बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। परिवार में बार-बार हादसे होते रहते हैं, और संतानों को सफलता प्राप्त करने में कठिनाई होती है। इसके साथ ही, परिवार की महिलाएँ भी हमेशा दुखी और परेशान रहती हैं। पितृदोष घर के मुखिया की निर्णय लेने की क्षमता को भी प्रभावित करता है, जिसके कारण वह अक्सर गलत फैसले ले लेता है, जो परिवार की सुख-समृद्धि और शांति में बाधा उत्पन्न करते हैं।
पितृदोष से मुक्ति के उपाय
गरुड़ पुराण में पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए कई उपाय बताए गए हैं। पितृपक्ष के दौरान पितरों का तर्पण और श्राद्ध करना पितृदोष से छुटकारा पाने का सबसे प्रमुख उपाय माना जाता है। इसके अतिरिक्त, हर अमावस्या को गरीबों, ब्राह्मणों और जरुरतमंदों को अन्न दान और भोजन कराने से भी पितृदोष कम होता है। पितृपक्ष में गाय, कुत्ता, कौआ आदि जीव-जंतुओं को रोटी खिलाने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, और पितृदोष का प्रभाव कम होता है।
इसके अलावा, पितृपक्ष के दौरान सूर्य उदय के समय दक्षिण दिशा में जल अर्पित करने और शाम को दीपक जलाने से भी पितृदोष दूर होता है। यह उपाय केवल धार्मिक कर्तव्यों का पालन नहीं हैं, बल्कि इनसे पितरों की आत्मा को तृप्ति और संतोष प्राप्त होता है, जिससे परिवार पर से पितृदोष का प्रभाव कम हो जाता है।
पितृपक्ष हिन्दू धर्म में पितरों के प्रति कर्तव्यों का पालन करने का समय है। पितरों का श्राद्ध, तर्पण, और दान करना पितृदोष से मुक्ति पाने का एक प्रभावी उपाय है। गरुड़ पुराण में वर्णित उपायों को ध्यान में रखते हुए, हर व्यक्ति को पितृपक्ष में अपने पितरों का स्मरण और उनका श्राद्ध अवश्य करना चाहिए ताकि पितृदोष से मुक्ति मिले और परिवार में सुख-शांति बनी रहे।