क्यों चाहते हैं भगवान Ganesh Ji को दूर्वा?
एक पौराणिक कथा के अनुसार बहुत समय पहले पृथ्वी पर आनलासुर राक्षस ने बहुत भयंकर उत्पात मचाया था। उसके भयंकर उत्पात से पृथ्वी पर चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। उसका अत्याचार पृथ्वी पर ही नहीं बल्कि स्वर्ग लोक तक फैल गया था। वह निर्दोष लोगों और ऋषि-मुनियों को जिंदा खा जाया करता था। उसका वध करने के उद्देश्य से देवराज इंद्र ने कई बार उससे युद्ध किया किंतु हर बार अनलासुर से देवराज इंद्र पराजित हो जाया करते थे। तब सभी देवता मिलकर भगवान शंकर के पास गए और अनलासुर से रक्षा करने के लिए प्रार्थना करने लगे। देवताओं की पीड़ा देखकर भगवान शिव ने कहा -” हे देवताओं! तुम्हारे कष्टों का निवारण एकमात्र गणेश ही कर सकते हैं क्योंकि उनका पेट बहुत विशाल है और वो अनलासुर को निकल जाएंगे। तब सभी देवताओं ने श्री गणेश जी (Ganesh Ji) की स्तुति आराधना की। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान गणेश जी अनलासुर का पीछा किया और उसे पकड़ कर निकल गए जिससे उनके पेट में बहुत ही ज्यादा जलन होने लगी। गणेश जी (Ganesh Ji) के पेट की ज्वार शांत नहीं हो रही थी। अनलासुर का शाब्दिक अर्थ है अनल + असुर। अनल का अर्थ है आग, यानी एक राक्षस जो आग के गुण का है। पेट में आज चली जाए तो जलन होगी, गणेश जी के पेट की जलन शांत करने के अनेक उपाय किए गए किंतु सभी उपाय असफल सिद्ध हुए। जब कश्यप ऋषि को इस बात का ज्ञान हुआ तो वह उसी क्षण कैलाश गए और 21 दूर्वा को एकत्रित कर गणेश जी (Ganesh Ji) को खिलाई जिससे उनके पेट की जलन शांत हो गई। श्री गणेश जी की पूजा में दूर्वा चढ़ाई जाने लगी। दुर्गा ग्रहण करके गणेश जी का मन प्रसन्न हो जाता है।
दूर्वा संबंधित वैज्ञानिक पक्ष
दूर्वा भूमि पर पनपने वाला एक घास है। यह बहुत ही शीतल होती है। इसकी गाँठो में औषधीय गुण होते हैं। जो पेट की अग्नि को शांत करने में सहायक होते हैं। इसके संबंध में आयुर्वेद की औषधियां बनाने वाले डॉक्टरों से आप विश्वसनीय जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
पूजा करते समय ताली क्यों बजाते हैं?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कीर्तन करते समय ताली बजाने का यह अर्थ है की भक्त भगवान की भक्ति में डूब गया है। ताली की ध्वनि तरंगे प्रभु को आनंदित करती हैं जिससे वह अपने भक्तों की रक्षा करने और कृपा बरसाने उस स्थान पर स्वयं पहुंच जाते हैं।
भगवान शिव को क्यों कहते हैं औघड़ दानी
भगवान शिव को औघड़ दानी इसलिए कहते हैं कि वह अपने भक्तों पर अति शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और उन्हें उनकी इच्छा अनुसार बदाम प्रदान करते हैं। भगवान शिव जी वरदान देते समय यह नहीं सोचते की इस वरदान से सृष्टि में उथल-पुथल हो सकती है या सृष्टि का नियम भंग हो सकता है। जिस पर प्रसन्न हुए तुरंत भर दे दिए इसलिए उन्हें औघड़ दानी कहते हैं