भारत में पंचायती राज की स्थापना के लिए समय समय में कई समितियों के गठन किए जा चुके हैं। जिनमें मुख्य समितियां और उनकी सिफारिशों को हम नीचे बताने जा रहे हैं
बलवंत राय मेहता समिति 1957
सामुदायिक विकास कार्यक्रम और राष्ट्रीय प्रचार सेवा की विफलता के बाद बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। इस समिति के द्वारा प्रस्तुत की गई मुख्य सिफारिश है इस प्रकार थी-
- त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना की जाए जिसके अंतर्गत ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायतें, ब्लॉक स्तर पर पंचायत समितियां तथा जिला स्तर पर जिला परिषद का गठन हो।
- प्रजातांत्रिक विकेंद्रीकरण की मूल इकाई प्रखंड या समिति स्तर पर हो.
- ग्राम पंचायत का प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा गठन किया जाए, जबकि पंचायत समिति और जिला पंचायत अप्रत्यक्ष चुनाव द्वारा गठन किया जाए।
- जिला पंचायत का सभापति जिलाधीश हो।
- इन लोकतांत्रिक संस्थाओं को वास्तविक शक्ति और उत्तरदायित्व प्रदान किए जाएं।
मेहता समिति की सिफारिश पर 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पंचायती राज व्यवस्था का शुभारंभ किया था।
अशोक मेहता समिति 1977
बलवंत राय मेहता समिति द्वारा की गई सिफारिशों में आई कमियों को दूर करने के लिए अशोक मेहता की अध्यक्षता में पंचायती राज समिति का गठन सन् 1977 में किया गया। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट सन 1978 में केंद्र सरकार को प्रस्तुत की जिनमें मुख्य सिफारिशें निम्न प्रकार से थी –
- पंचायतें दो स्तर पर गठित हो जिसके अंतर्गत जिला स्तर पर जिला परिषद तथा ब्लॉक स्तर पर मंडल पंचायत हो।
- ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायतों का गठन ना किया जाए
- अभी विकास योजनाएं जिला परिषद द्वारा तैयार की जानी चाहिए और उनका क्रियान्वयन मंडल पंचायत द्वारा होना चाहिए।
- आर्थिक संसाधनों को बढ़ाने के लिए पंचायत राज संस्थाओं को प्रत्यक्ष कर लगाने की शक्ति होनी चाहिए
- राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की देखरेख में पंचायतों के चुनाव होने चाहिए।
- इन संस्थाओं के चुनाव राजनीतिक दलों के आधार पर होने चाहिए।
- राज्य सरकार को पंचायत राज संस्थाओं का अधिग्रहण नहीं करना चाहिए।
- विकेंद्रीकरण के तहत सर्वप्रथम जिले का विकेंद्रीकरण होना चाहिए।
- न्याय पंचायते विकास पंचायतों से अलग होनी चाहिए।
जेकेबी राव समिति 1985
ग्रामीण विकास एवं गरीबी उन्मूलन से संबंधित प्रशासनिक व्यवस्था पर सिफारिश करने के लिए सन 1985 में जेकेबी राव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। इस समिति के मुख्य सिफारिशें निम्न प्रकार थी –
- राज्य स्तर पर राज्य विकास परिषद का गठन किया जाए।
- कार्य संपादन के लिए जिला परिषदों की विभिन्न समितियों का गठन किया जाए।
- राज्य सरकारों द्वारा दी जाने वाली धनराशि को निर्धारित करने का कार्य वित्त आयोग को दिया जाना चाहिए।
- पंचायतों के चुनाव नियमित रूप से कराए जाएं।
- जिला बजट की अवधारणा शीघ्र अति शीघ्र पारित की जाए
एलएम सिंघवी समिति 1986
पंचायती राज संस्थाओं के कार्यों की समीक्षा एवं उनमें सुधार के संबंध में सिफारिश करने के लिए सन 1986 में एमसीडी की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया। इस समिति के मुख्य सिफारिशें निम्न प्रकार से थी –
- पंचायती राज प्रणाली के कुछ पहलुओं को संवैधानिक दर्जा दिया जाए ताकि इन्हें राजनीतिज्ञ एवं नौकरशाही के हस्तक्षेप से दूर रखा जा सके।
- ग्राम पंचायतों को अधिक वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराए जाएं।
- न्याय पंचायत में गठित की जाएं।
- पंचायतों के चुनाव और भंग करने आदि विवादों से निपटने के लिए राज्य में एक न्यायाधिकरण की स्थापना होनी चाहिए।
- ग्रामसभा को बनाए रखा जाए।
पीके थुंगन समिति 1988
सन 1988 में पी के थुंगन की अध्यक्षता में संसद की सलाहकार समिति की उप समिति गठित की गई। इस समिति ने पंचायती राज व्यवस्था को सशक्त करने के लिए अनेक सिफारिशें की जिनमें एक मुख्य सिफारिश यह थी की पंचायतों को संवैधानिक दर्जा दिया जाए। पीके थुंगन समिति के द्वारा प्रस्तुत सिफारिशें निम्न प्रकार से हैं –
- पंचायतों के चुनाव निर्धारित समय पर कराए जाएं।
- जिला परिषदों को विकास एवं योजना का मुख्य अधिकरण बनाया जाए।
- जिला कलेक्टर को जिला परिषद का कार्यकारी अधिकारी बनाया जाए।
- पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष रखा जाए।
उपरोक्त तमाम सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए राजीव गांधी सरकार ने पंचायती राज को सशक्त करने संबंधी संविधान का 64 वां संविधान संशोधन विधायक 1989 लोकसभा में प्रस्तुत किया। यह विधेयक लोकसभा में तो पारित हो गया, लेकिन राज्यसभा में पारित नहीं हो सका। लेकिन यही वह आधार या विधायक है जो भविष्य में परिवर्तित होकर 73वें संविधान संशोधन के रूप में सामने आया।