मध्य प्रदेश के परिदृश्य से हरित क्रांति
Mp Patwari : भारत की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित होने, अधिकांश जनसंख्या की कृषि पर निर्भरता, कृषि आधारित उद्योगों का विकास आदि के लिए कृषि उत्पादन में तीव्र वृद्धि करना तो आवश्यक था ही ऐसे में 1962 के अकाल एवं तृतीय पंचवर्षीय योजना की असफलता ने देश की अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंचाने के साथ-साथ देश में खाने का संकट भी पैदा कर दिया था। ऐसे में खाद्यान्न उत्पादन को तीव्र गति से बढ़ावा मुख्य चुनौती थी, जिस से निपटने के हथियार के रूप में ” हरित क्रांति” का सूत्रपात किया गया। वास्तव में 1960 के दशक में खाद्यान्न फसलों के अधिकतम उत्पादन व आत्मनिर्भरता बात करने हेतु उन्नत बीजों का उपयोग, हाइब्रिड पर जातियों का उपयोग, रसायनों व उर्वरकों के प्रयोग के साथ ही यंत्रीकरण को बढ़ावा देने आदि को सम्मिलित रूप से हरित क्रांति का नाम दिया गया। क्योंकि यह प्रयास इतने तीव्र थे कि उसे क्रांति कहां गया। इस प्रकार कृषि की आधुनिक तकनीकों के माध्यम से कृषि व्यवसाय में कृषि फसलों के प्रति हेक्टेयर उपज बढ़ाने के साथ ही कृषि क्षेत्र का विस्तार करने के उद्देश्य से चलाया गया अभियान हरित क्रांति कहलाया। इसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ा, मध्यप्रदेश में शामिल था। हालांकि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश की तुलना में मध्यप्रदेश में इसका प्रभाव कम था, फिर भी प्रदेश में खाद्यान्न फसलों विशेषकर गेहूं में आश्चर्यजनक वृद्धि दर्ज की गई। हरित क्रांति अब तक की सबसे बड़ी कृषि क्रांति रही, जिसका प्रभाव मध्य प्रदेश पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता हुआ दिखता है. हालांकि यह प्रभाव तुलनात्मक रूप से काफी कम था फिर भी प्रदेश में खाद्यान्न उत्पादन में तेज गति से वृद्धि हुई और मध्य प्रदेश खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता की स्थिति तक पहुंच गया। इस क्रांति के कारण गेहूं उत्पादन में तेजी देखी गई इसके साथ ही कृषि योग्य भूमि में भी वृद्धि दर्ज की गई। नए किस्म के बीज और सिंचाई के नए साधनों के साथ-साथ खेती किसानी का आधुनिकरण हुआ और खेती में यंत्रों का उपयोग भी बड़ा। हालांकि यह तेजी प्रदेश में एक समान नहीं थी. इसमें प्रदेश का उत्तर पश्चिम भाग तो पर्याप्त रूप से लाभान्वित हुआ लेकिन मध्य प्रदेश के अन्य क्षेत्र पिछड़ गए। हरित क्रांति के द्वारा उन्नत बीजों के उपयोग में निमाड़, मंदसौर, रतलाम और चंबल घाटी काफी आगे रहे तो वहीं पर उर्वरकों के प्रयोग में इंदौर, चंबल घाटी, उज्जैन होशंगाबाद और टीकमगढ़ ने बाजी मारी थी। ट्रैक्टरों के उपयोग में रीवा, सतना, गुना, रायसेन, सीहोर, भोपाल और विदिशा अव्वल रहे जबकि विद्युत पंप सेटो के उपयोग में चंबल और ग्वालियर संभाग अग्रिम रहे। इन सबके अलावा मध्य प्रदेश का पूर्वी क्षेत्र खासकर शहडोल, मंडला, सीधी और सिंगरौली हरित क्रांति से लगभग अछूते रहे।
निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि हरित क्रांति देश के कृषि पद्धति के सुधार, खाद्यान्न उत्पादकता व आत्मनिर्भरता के दिशा में एक नया और महाअभियान था। हरित क्रांति के प्रभाव में मध्यप्रदेश का ज्यादातर भाग और प्रदेश में कृषि उत्पादन मे न केवल वृद्धि हुई बल्कि कृषि की आधुनिक पद्धतियों के प्रयोग के साथ खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता हासिल हुई। लेकिन इसके कुछ नकारात्मक पहलू भी है जैसे इसका प्रभाव मुख्य रूप से गेहूं के उपज पर पड़ा जबकि मोटे अनाज हरित क्रांति के लाभ से वंचित रहे। प्रदेश के सभी हिस्सों में समान रूप से हरित क्रांति का प्रभाव नहीं पहुंचा। अत्यधिक उर्वरकों एवं रसायनों के प्रयोग से भूमि ऊपर क्षमता मे प्रभाव आया। हालांकि इसके सकारात्मक परिणाम नकारात्मक परिणाम के तुला में अधिक थे, लेकिन वर्तमान में बढ़ती आबादी और नहीं जरूर तो की पूर्ति के लिए देश व प्रदेश को दूसरी हरित क्रांति की आवश्यकता है, जिससे कृषि के सभी क्षेत्र सम्मिलित रूप से विकसित हो सके।
हरित क्रांति की शुरुआत किसने की? (Mp Patwari)
कृषि वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग को “हरित क्रांति का जनक” माना जाता हैं। जिन्हें 1970 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला था। उन्हें एक अरब से अधिक लोगों को भुखमरी से बचाने का श्रेय दिया जाता है।
भारत में हरित क्रांति की शुरुआत किसने की? (Mp Patwari)
कृषि वैज्ञानिक एम. एस. स्वामीनाथन ने भारत में हरित क्रांति का नेतृत्व किया। यही अवधि नॉर्मन ई बोरलॉग द्वारा शुरू किए गए बड़े हरित क्रांति प्रयास का हिस्सा थी, जिसने विकासशील देशों में कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृषि अनुसंधान और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया।
हरित क्रांति के समय भारत के प्रधानमंत्री कौन थे?
भारत में 1966-67 के दौरान हरित क्रांति की शुरुआत हुई थी तब खाद्य मंत्री चिदंबरम सुब्रमण्यम थे और भारत के प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे।
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