राक्षस भुवन युद्ध 10 अगस्त 1763 में लड़ा गया एक युद्ध था जो की मराठा साम्राज्य और हैदराबाद के निजाम के बीच लड़ा गया था। उदगीर के युद्ध में हैदराबाद के निजाम को बहुत सारा क्षेत्र हारना पड़ा था इसलिए हैदराबाद का निजाम अपने हारे हुए क्षेत्र को फिर से अपने नियंत्रण में लेना चाहता था इसलिए उसने मराठाओं के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी थी। राक्षस भुवन में इस युद्ध को लड़ा गया था। इसलिए इस युद्ध को रक्षास भवन के नाम से जाना जाता है। यह स्थान गोदावरी नदी के किनारे पर महाराष्ट्र के बीड़ जिले में स्थित है। राक्षस भुवन शनि मंदिर के लिए पूरे भारत में विख्यात है ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान राम के द्वारा किया गया था। भगवान राम जब वनवास काल में यहां से गुजर रहे थे तब उन्होंने इस मंदिर की स्थापना की थी।
राक्षस भुवन युद्ध में मराठा सेवा का नेतृत्व माधवराव प्रथम, जागो जी भोसले और जनार्दन राव के द्वारा किया जा रहा था। जब की हैदराबाद निजाम का नेतृत्व आसफ जाह द्वितीय और विट्ठल सुंदर कर रहे थे। मराठा शक्तियों के पास 60000 की सेना थी जबकि हैदराबाद निजाम के पास 40000 की सेना थी।
इस युद्ध में मराठा सैनिकों के 8000 सैनिक क्षतिग्रस्त हुए थे जबकि हैदराबाद निजाम के 16000 सैनिकों से ज्यादा सैनिक क्षतिग्रस्त एवं मृत्यु को प्राप्त हुए थे। जब इस युद्ध को समाप्त किया गया तो इसकी संधि औरंगाबाद में की गई थी। इस संधि में निजाम को काफी क्षेत्र का नुकसान सहना पड़ा जिनमे तेलंगाना और गोदावरी के पूर्व क्षेत्र से उनका अधिकार समाप्त हो गया था। अब यह सभी क्षेत्र मराठा साम्राज्य के अंतर्गत आ गए थे। इस युद्ध के बाद मराठा पेशवा माधवराव का पद काफी ज्यादा बढ़ गया था। माधवराव प्रथम मराठा शक्ति के 9 में पेशवा थे।
इनके नेतृत्व में मराठा शक्ति ने तीसरी पानीपत के युद्ध में हर अपने सारे क्षेत्र को वापस प्राप्त कर लिया था। माधवराव 23 जून 1761 से लेकर 18 नवंबर 1772 तक मराठा साम्राज्य के पेशवा रहे थे। माधवराव प्रथम का जन्म 15 फरवरी 1745 में शबनूर नाम के स्थान में हुआ था यह स्थान वर्तमान में कर्नाटक का भाग है। माधव राव के पिता बालाजी बाजीराव थे और उनकी माता का नाम गोपिका बाई था। माधवराव के पिता के देहांत के समय माधव राव की उम्र मात्र 16 वर्ष थी और 16 वर्ष की उम्र में माधवराव को पेशवा के पद पर आसीन कर दिया गया था।