ज्ञानरधक कहानी – एकता नहीं, तो सफलता नहीं

ज्ञानरधक कहानी – एकता नहीं, तो सफलता नहीं

महाभारत में कौरव और पांडवों ने जुआ खेला। इसमें पांडवों की हार हुई। इस हार के बदले पांडवों को 12 वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास में जाना था।

पांडवों ने अपना वनवास और अज्ञातवास पूरा कर लिया तो वे अपना राज्य वापस मांगने कौरवों के पास पहुंचे। कौरवों को उन्हें उनका राज्य वापस लौटाना था, जुआ खेलते समय ऐसा तय भी हुआ था, लेकिन दुर्योधन की नीयत में खोट आ गई और उसने पांडवों को राज्य देने से मना कर दिया।

पांडवों के सामने एक ही रास्ता बचा था, युद्ध करके अपना राज्य वापस लेना। पांडवों ने आपस में विचार किया, ‘अगर कौरवों से युद्ध करेंगे तो हम हार जाएंगे। कौरवों के पास भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, अश्वथामा जैसे महारथी हैं, वे सौ भाई हैं, उनके रिश्तेदार भी बहुत हैं। उनकी सेना भी बहुत बड़ी है। हम तो सिर्फ पांच ही हैं। हमारे पास अभी सेना भी नहीं है, सेना बनानी होगी। ऐसे में हम कौरवों की विशाल सेना से युद्ध नहीं कर पाएंगे।’

अर्जुन ने भी यही कहा कि हमें कौरवों से युद्ध नहीं करना चाहिए। उसी समय श्रीकृष्ण वहां पहुंचे और उन्होंने कहा, ‘सही बात के लिए संघर्ष करना चाहिए। ये युद्ध हिंसा नहीं है, ये सत्य की रक्षा के लिए होगा। संख्या में कौरव भले ही ज्यादा हैं, लेकिन उनके बीच मतभेद हैं। कर्ण भीष्म को पसंद नहीं करते, द्रोण दुर्योधन को पसंद नहीं करते, दुर्योधन हमेशा भीष्म और द्रोण को अपमानित करता रहता है। तुम भले ही संख्या में पांच हों, लेकिन तुम्हारे बीच मतभेद नहीं है। तुम्हारे बीच एकता है, जो कौरवों में नहीं है। एक बात हमेशा ध्यान रखो, जिन लोगों के बीच एकता होती है, मतभेद नहीं होते हैं, जीत उन्हीं की होती है।’

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सीख – पुरानी कहावत है एकता में बड़ा बल है। संख्या में पांडव भले कम थे, लेकिन उनके बीच एकता थी और इसी वजह से कौरवों की विशाल सेना को भी उन्होंने हरा दिया। आज भी टीम हो या घर-परिवार, अगर लोगों के बीच मतभेद होते हैं तो छोटी-छोटी परेशानियां भी हल नहीं हो पाती हैं। अगर घर-परिवार और टीम में एकता है तो बड़ी से बड़ी समस्या को भी आसानी से हल किया जा सकता है।