स्वामी विवेकानंद जब विदेश में थे, तब एक दिन वे सुनसान क्षेत्र में घूम रहे थे। वहां एक झील भी थी। उन्होंने देखा कि झील के पास कुछ लड़के बंदूक से पानी में निशाना लगा रहे हैं।
विवेकानंदजी भी उन लड़कों के पास पहुंचे। लड़के अंडों के छिलकों पर बंदूक से निशाना लगाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उनका एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था। जब लड़कों ने भारतीय संन्यासी को देखा तो हंसी-मजाक करने लगे और उन्होंने स्वामीजी से पूछा, ‘क्या आप निशाना लगा सकते हैं?’
विवेकानंदजी हर काम बड़ी दक्षता के साथ करते थे। उन्होंने लड़कों के हाथ से बंदूक ली और बहुत सावधानी से निशाने पर ध्यान लगाया। पूरी एकाग्रता के साथ उन्होंने पहली गोली चलाई तो वह सीधे अंडे के छिलके पर जाकर लगी। स्वामीजी ने ऐसा निशाना एक नहीं, बल्कि कई बार लगाया। ये देखकर सभी लड़के हैरान थे। वे सोच रहे थे कि इस तरह से निशाना तो कोई बड़ा निशानेबाज ही लगा सकता है।
लड़कों ने पूछा, ‘क्या आपने पहले भी निशानेबाजी का अभ्यास किया है?’
विवेकानंद बोले, ‘मैंने एकाग्रता का अभ्यास किया है। फिर वो चाहे बंदूक चलाना हो या किताब पढ़ना हो या तीर-कमान चलाना हो।’
स्वामीजी हमेशा कहते थे, ‘मुझे अर्जुन का एक प्रसंग अच्छी तरह याद है। जब द्रोणाचार्य ने अर्जुन से पूछा था कि तुम्हें तोते की आंख के अलावा और क्या दिख रहा है? तब अर्जुन ने उत्तर दिया था कि मुझे तो सिर्फ तोते की आंख ही दिख रही है। इसे ही एकाग्रता कहते हैं।’
सीख- यहां स्वामीजी ने संदेश दिया है कि काम कोई भी हो, अगर हम पूरी एकाग्रता के साथ करेंगे तो उसमें सफलता जरूर मिलती है। अगर हमारा ध्यान थोड़ा-सा भी भटका तो असफलता मिलने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।