पुराने समय में एक व्यक्ति बहुत आलसी था। वह कोई काम नहीं करता, बस इधर-उधर से किसी तरह खाने की व्यवस्था कर लेता था। एक दिन वह जंगल में घूम रहा था। तभी उसने देखा कि एक लोमड़ी लंगड़ाकर चल रही है। उसका एक पैर टूट गया था।
लोमड़ी की ये हालत देखकर आलसी व्यक्ति सोच रहा था कि इस जंगल में अभी तक ये लोमड़ी जीवित कैसे है? इसका किसी ने शिकार नहीं किया, इसे खाने के लिए मांस कैसे मिलता होगा?
वह व्यक्ति लोमड़ी के पीछे-पीछे चलने लगा, ताकि उसे मालूम हो सके कि इसके खाने की व्यवस्था कैसे होती है?
तभी उस व्यक्ति को शेर की दहाड़ सुनाई दी। वह डर गया और तुरंत ही एक ऊंचे पेड़ पर चढ़कर छिप गया। कुछ ही देर वहां शेर पहुंच गया। उसने मुंह में शिकार पकड़ रखा था। जब शेर लोमड़ी के सामने पहुंचा तो शेर के शिकार में से मांस का एक टुकड़ा गिर गया। शेर वहां चला गया तो लोमड़ी ने मांस का टुकड़ा खा लिया।
आलसी व्यक्ति ये सब देख रहा था। वह सोचने लगा कि भगवान कितना दयालु है। एक लोमड़ी के खाने की व्यवस्था भी भगवान कर रहे हैं। मैं भी पूजा-पाठ करता हूं तो भगवान मेरे लिए भी खाने की व्यवस्था जरूर करेगा। ये सोचकर वह अपने घर आ गया।
घर आकर आलसी व्यक्ति बैठ गया और इंतजार करने लगा कि भगवान की कृपा से उसे भी खाना मिल जाएगा। बैठे-बैठे तीन गुजर गए, लेकिन उसके खाने की व्यवस्था नहीं हो सकी। खाना न मिलने की वजह से वह बहुत कमजोर हो गया था। तभी उसके घर की ओर एक संत पहुंचे। आलसी व्यक्ति तुरंत ही संत के पास पहुंचा।
व्यक्ति ने संत को पूरी बात बता दी। संत ने उससे कहा कि भगवान ने तुम्हें इस घटना के माध्यम से एक बहुत बड़ा संदेश दिया है। तुम एक लोमड़ी की तरह बनना चाहते हो, लेकिन भगवान तुम्हें शेर की तरह बनाना चाहता है। तुम दूसरों पर निर्भर रहना चाहते हो और भगवान तुम्हें दूसरों की मदद करने वाला इंसान बनाना चाहता है।
आलसी व्यक्ति को संत की बात समझ आ गई और उसके बाद उसने आलस्य छोड़ दिया और कर्म करने लगा।
सीख- इस कथा की सीख यह है कि हमें दूसरों पर निर्भर रहने वाला नहीं, दूसरों की मदद करने वाला इंसान बनने की कोशिश करनी चाहिए। भगवान भी ऐसे लोगों की मदद करता है, जो दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।