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ऐसा माना जाता है की rewa जिले का पूर्व प्रचलित नाम नर्मदा नदी के द्वितीय नाम रेवा से पड़ा है। पूर्व का नाम रेवा का अपभ्रंश अब रीवा हो गया है। यद्यपि अंग्रेजी में इसे आज भी रेवा (rewa) ही लिखा जाता है

प्राचीन इमारतें खंडहर गुफाएं स्तूप मंदिर मूर्तियां एवं शिलालेख रीवा जिले की प्राचीनता का परिचय देते हैं इन्हीं के आधार पर रीवा की ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है।

प्राचीन काल से ही किस राज्य में वीरों का शासन था। छत्रिय सेंगर, चौहान व चंदेल आदि के सत्ता का उत्थान एवं पतन में देखा गया है। प्राचीन सदी में यह बघेलो द्वारा शासित स्वतंत्र रियासत थी किस रियासत का क्षेत्रफल लगभग 13000 मील का था, जिसे बघेलखंड भूमि के नाम से जानते थे।

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रीवा राज्य का इतिहास (History of Rewa)

ईसा पूर्व दूसरी व तीसरी शताब्दी में यह क्षेत्र मौर्य साम्राज्य के अंतर्गत था। इस क्षेत्र में सूर्य वंश के संस्थापक मित्र का यहां पर अधिकार था। पुष्यमित्र शुंग मौर्य वंश का प्रधान सेनापति था आगे चलकर इस ने अपना राजवंश चलाया। ईसा पूर्व चौथी व पांचवीं शताब्दी में क्षेत्र मगध के साम्राज्य के अंतर्गत आ गया था। 9 वीं शताब्दी से लेकर 11 वीं शताब्दी में कलचुरियो का साम्राज्य रहा। इसके पश्चात कुछ समय तकिया भूभाग चंदेलो, चौहानों, भारीषियों, सेंगरो व गोंड राजाओं के साम्राज्य का हिस्सा रहा। सन 1223 में गुजरात से आए सोलंकी राजा व्याघ्र देव ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया और बघेल राजवंश की स्थापना की। 15 वीं सदी में अकबर के समकालीन राजा रामचंद्र थे, के दरबार में प्रसिद्ध संगीतज्ञ तानसेन रहते थे, यहीं से वह सम्राट अकबर के दरबार में गए थे। अकबर ने तानसेन को अपने दरबार के नवरत्नों में शामिल कर लिया था। अकबर के नवरत्नों में से एक रत्न बीरबल भेजो सीधी जिले के चुरहट तहसील के घोघरा नामक स्थान में जन्मे थे। उन की आराध्य देवी चंडी देवी का मंदिर अपनी महिमा के साथ आज भी प्रसिद्ध है। महाराजा रघुराज सिंह जो कि एक अच्छे कवि भी थे, सन 1858 में गद्दी पर बैठे।

इसके पश्चात महाराजा वेंकट रमन सिंह एवं गुलाब सिंह रीवा की गद्दी पर आसीन हुए। 6 फरवरी 1946 को मार्तंड सिंह जूदेव राजगद्दी पर बैठे, वह इस वंश के 34 में शासक थे। आजादी के पश्चात विंध्य प्रदेश का गठन सन 1948 में हुआ, क्योंकि देसी रियासतों के साथ रीवा रियासत भी भारत गणराज्य में शामिल कर लिया गया था। सन 1947 में देश स्वतंत्र होने के पश्चात देसी राजे रजवाड़ों का विलय भारत देश में कर लिया गया था जिसके स्वरूप राजशाही खत्म हो गई थी और राज्यों में लोकतंत्र का जन्म हुआ था। भारत का ह्रदय मध्य प्रदेश का गठन 1 नवंबर 1956 को राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा चार राज्यों विंध्य प्रदेश, महाकौशल, छत्तीसगढ़ और मध्य भारत को मिलाकर किया गया था। इस नवीन प्रदेश में पुराने विंध्य प्रदेश को रीवा संभाग कहा गया। 26 जनवरी 1973 को श्री प्रकाश सेठी के मुख्यमंत्री काल में पन्ना, छतरपुर और टीकमगढ़ जिलों को मिलाकर सागर संभाग को घोषित किया गया। इस प्रकार रीवा (rewa) संभाग में रीवा, सतना, सीधी और शहडोल जिले रह गए। बाद में शहडोल जिले का विभाजन करके उसमें दो नए जिले उमरिया और अनूपपुर का निर्माण कर शहडोल को एक अलग संभाग बना दिया गया। इस प्रकार वर्तमान में रीवा संभाग में अब 4 जिले हैं, रीवा, सतना, सीधी और सिंगरौली इसमें रीवा नगर संभाग का मुख्यालय बनाया गया। वर्तमान में मध्यप्रदेश में 10 संभाग है।

रीवा का भौंगोलिक स्थिति (Geography of Rewa)

भारत के हृदय स्थल मे बसे मध्यप्रदेश के उत्तरी-पूर्व मे स्थित रीवा जिला एक त्रिभुज के समान इसका आकार हैं, या जिला मध्यप्रदेश का एक सीमांत क्षेत्र हैं। यह जिला मध्यप्रदेश राज्य के पूर्वोत्तर भाग मे लगभग 24.18 अंश से 25.12 अंश उत्तरी अक्षांश तथा 81.02 अंश से 82.20 अंश पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित हैं। रीवा (rewa) जिले के उत्तरी क्षेत्र मे उत्तरप्रदेश का प्रयागराज और बांदा जिला हैं तथा पूर्व-उत्तर क्षेत्र मे मिर्जापुर जिला स्थित हैं। रीवा के दक्षिण मे शहडोल व पश्चिम मे रीवा संभाग का सतना जिला मौजूद हैं। जबकि दक्षिण-पूर्व मे सीधी एवं सिंगलौरी नामके जिले मौजूद हैं।

रीवा जिले की अधिकतम लंबाई पूर्व से पश्चिम 125 किमी हैं तथा उत्तर से दक्षिण रीवा की लंबाई 96 किमी हैं। यह क्षेत्र दक्षिण दिशा मे कैमोर की पहाड़ियो से घिरा हुआ हैं तथा जिले के मध्य से विंध्याञ्चल की श्रेणियाँ गुजरती हैं।

रीवा के सफ़ेद बाघ ने खींचा था पूरे विश्व का ध्यान

सफ़ेद शेर को पहली बार रीवा के जंगलो मे ही देखा गया था। इसके बाद पहली बार 1951 मे सफ़ेद शेर को पकड़ा गया, जब इसे पकड़ कर गोविंदगढ़ मे लाया गया तब इसका नाम मोहन रखा गया, उसी समय से पूरे विश्व का ध्यान रीवा के सफ़ेद शेरो की तरफ आकर्षित हुआ। आज पुरे विश्व मे पाये जाने वाले सफ़ेद शेरो का संबंध रीवा मे पकड़े गए सफ़ेद शेर मोहन से ही हैं। वर्ष 1963 मे रीवा से दो सफ़ेद शेर को दिल्ली राष्ट्रिय प्राणी उदद्यान मे लाया गया था, इस दोनों का नाम राजा और रानी थे। तब उस समय इन शेरो के देखने के लिए लोग सुबह से ही टिकट खिड़कीयों मे लंबी लाइन लगाकर इंतेजर किया करते थे। 1963 से लेकर 1979 तक पूरे विश्व मे केवल सिर्फ 8 प्राणी उड्डयनों मे सफ़ेद शेर को देखा जा सकता था। भारत मे उस समय 55 प्राणी उड्डयन थे, उन मे से सिर्फ दिल्ली राष्ट्रिय प्राणी उड्डयन, हैदराबाद, असम, गुवाहाटी को ही सफ़ेद शेर मिल पाये थे। जबकि अमेरिका मे सिर्फ 4 प्राणी उड्डयन मे सफ़ेद शेर को देखा जा सकता था। और ब्रिटेन के पास सिर्फ एक ही उड्डयन मे सफ़ेद शेर उपलब्ध था। 1958 के बाद सफ़ेद शेरो को जंगलो मे घूमते हुये नहीं देखा गया हैं।

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क्या है पहले सफेद शेर मोहन की कहानी?

मोहन के मिलने की कहानी बड़ी रोचक और लंबी है। मई 1951 में जोधपुर के महाराजा अजीत सिंह रीवा (rewa) आए हुए थे। उनके सम्मान में आखेट की व्यवस्था की गई थी। रीवा से करीब 110 किलोमीटर की दूरी पर स्थित देवा नामक स्थान पर एक शिविर लगाया गया था। देवा एक छोटा सा गांव है। खोजी दल ने महाराजा को सूचना दी की चार शावक और बाघिन को पहाड़ में देखा गया है। सूचना मिलने के बाद सभी अतिथि शिकार के लिए बंदूक लेकर मचान पर सवार हो गई। पहले बाघिन को मारा गया। इसके बाद तीन गोलियां शावक पर चलाई गई। चार शावको में से एक सफेद बाघ मोहन भी था। जिसे अजीत सिंह ने देख लिया था और उस पर गोलिया नहीं चलाई। शिकार के दौरान ही सफेद शावक एक चट्टान के नीचे छिप गया उसकी तलाश लगातार की जा रही थी। 27 मई 1951 को वह एक चट्टान की दरार में छिपा हुआ मिला। उसे लकड़ी के पिजड़े के सहारे पकड़ा गया और पकड़ने के बाद सफेद शेर मोहन रीवा से 20 किलोमीटर दूर स्थित गोविंदगढ़ के महाराजा के महल में रख दिया गया। इसी किले में मोहन ने आगे आने वाले 19 वर्ष बिताए थे इस दौरान उसने 34 बच्चों को जन्म दिया था।

सफेद शेर मोहन का परिवार कैसे आगे बढ़ा?

सफेद बाघों की प्रजाति बढ़ाने के लिए रीवा महाराज ने मोहन और एक बाघिन बेगम के बीच प्रजनन करवाया। हालांकि बेगम ने एक भी बच्चो को जन्म नहीं दिया। इससे हताश होकर राजा ने बेगम नाम की बाघिन को अहमदाबाद चिड़ियाघर को बेच दिया। इसके बाद मोहन का समागम राधा नाम की शेरनी के साथ कराया गया था। राधा ने 4 शावकों को जन्म दिया और सभी शावक सफेद रंग के थे।

इनके नाम राजा, रानी, मोहिनी और सुकेशी रखा गया। मोहन और राधा के जोड़े ने 13 सफेद शेर को जन्म दिया और 9 सामान्य रंग के शावको को जन्म दिया था।

रीवा मे सफ़ेद शेर मोहल की मौत कब हुई थी?

मोहन नामके सफ़ेद शेर को रीवा के गोविंदगढ़ के किले मे रखा गया था। यहाँ पर सफ़ेद शेर मोहन बड़े ही ऐसों -आराम के साथ 19 वर्ष तक जीवित रहा। 1951 मे जब मोहन को जंगल से पकड़ा गया था, तब उसका नाम मोहन रखा गया था। मोहन ने अपने 19 वर्ष के जीवन काल मे 34 शावको को जन्म दिया था। मोहन को ही आज विश्व भर के सफ़ी सफ़ेद शेरो का प्रथम पिता माना जाता हैं। मोहन शेर की मौत हो जाने के बाद उसे हिन्दू रीतिरिवाज के साथ दफनाया गया था। गोविंदगढ़ के किले मे उसकी याद मे एक स्मारक भी बनवाया गया था। मोहन की मौत हो जाने के बाद उसके साथिन “सुकेशी” (फ़ीमेल-पार्टनर) को दिल्ली के प्राणी उड्डयन भेज दिया गया था। उस समय रीवा (rewa) मे दो सफ़ेद बाघ थे, उनके नाम विराट और चमेली थे। 1976 मे विराट की बीमारी की वजह से मृत्यु हो गई। इसके बाद चमेली को भी दिल्ली भेज दिया गया। वर्ष 1976 के बाद गोविंदगढ़ मे एक भी सफ़ेद शेर नहीं बचे थे।

रीवा का मुकुंदपुर चिड़ियाघर

रीवा के मुकुंदपुर के जंगलो मे प्रकृतिक चिड़ियाघर का निर्माण करा गया हैं। और चिड़ियाघर मे वर्तमान मे 160 जीव हैं। एक जानकारी के अनुसार मुकुंदपुर चिड़ियाघर मे अप्रेल 2018 से लेकर 27 जुलाई 2022 तक 16 लाख  70 हजार 561 भारतीय पर्यटक यहाँ पर आ चुके हैं। इसके अलावा 155 विदेशी पर्यटक भी इस चिड़िया घर मे आ चुके हैं। इस चिड़ियाघर के निर्माण की स्वीकृति 5 जुलाई 2010 को मिली थी। यह चिड़िया घर 100 हेक्टेयर मे फैला हुआ हैं। जिसमे से 25 हेक्टेयर मे व्हाइट टाइगर सफारी हैं तथा 75 हेक्टेयर मे चिड़ियाघर को बनाया गया हैं।

वर्तमान मे मुकुन्द चिड़ियाघर मे वन्यजीव की स्थिति

प्रजाति कहाँ से लाये संख्या
सफ़ेद बाघ छतीसगढ़ 03
पीला बाघ औरंगाबाद, महाराष्ट्र 06
तेंदुआ भोपाल 04
स्लाथ वियर भोपाल 04
सांभर मैत्री बाग, छतीसगढ़ 11 
चीतल भोपाल 44
ब्लैक बॅक भोपाल 20
नीलगाय 03
वाइल्डवोर भोपाल 03
थामिन डीयर नई दिल्ली 06
बारासिंघा लखनऊ 04
होगडीयर छत्तीसगढ़,ग्वालियर, दिल्ली 15
ब्लैक बॅक नई दिल्ली 05
चिंकारा जोधपुर 04
ईमू नई दिल्ली 04
शुतुरमुर्ग तेलंगाना 02
कामन पान सीवेट नई दिल्ली 03
हायना 02
जैकाल ग्वालियर 05
मगरमच्छ ग्वालियर 03
पारकुपाइन 01
जंगल कैट 01
ऊंट बिलाव 01
चौसिंघा 01

रीवा की तरफ से ठाकुर रणमत सिंह जी ने संभाली थे 1857 की क्रांति की मशाल

1857 की क्रांति मे रीवा के लोगो ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। इन मे से एक ठाकुर रणमत सिंह जी भी थे, ठाकुर रणमत सिंह जी ने अपने साथियो के साथ मिलकर नागौद, भेलसाय, चित्रकूट, नौगांव छावनी, क्योटी, डभौरा, रायपुर सोनौरी, घूमन तथा चंदिया आदि अनेक स्थानो पर अंग्रेज़ो के साथ लड़ाई की थी।

1857 मे कोठी रियासत के मनकहरी ग्राम के निवासी ठाकुर रणमत सिंह ने अंग्रेज़ो का डटकर मुक़ाबला किया था। उनके इस अभियान मे रीवा का नरेश रघुराज सिंह जी आंतरिक तौर पर उनकी सहायता करते थे। उनके साथियो मे लाल श्यामशाह, धीर सिंह, पंजाब सिंह, जबर सिंह, बतलू सिंह, दशमत सिंह, मथानी लुहार, हसन खाँ प्रमुख थे। उन्होने जंगल मे रहकर सैनिक तैयार करने एवं उन्हे संगठित करने का काम किया था। नागौद मे अँग्रेजी रेसिडेंसी पर हमला करके नागौद से अंग्रेज़ो को भागने पर मजबूर कर दिया। नागौद छावनी पर भी रणमत सिंह जी एवं उनके साथियो ने आक्रमण किया था। अपने इस अभियान को और सफल बनाने के लिए, ठाकुर रणमत सिंह जी ने तात्या टोपे से संपर्क करने का भी निश्चय किया था। लेकिन अंग्रेज़ो की घेरा बंदी के कारण ठाकुर रणमत सिंह ऐसा नहीं कर पाये।

ठाकुर रणमत सिंह को पकड़ने के लिए अंग्रेजी सरकार ने ₹2000 का इनाम भी घोषित कर दिया था। रीवा रियासत (rewa riyashat) के अंतर्गत शहडोल जिले के आमिल नाला के पास, मानिकपुर के पास और अंत में क्योटी के पास अंग्रेजों की फौज का उन्होंने डटकर सामना किया था। लंबे समय तक अंग्रेजी सेना से युद्ध करने के पश्चात अंत में 1859 में उन्हें धोखे से रीवा (rewa) के पास उपराहटी नाम के स्थान के जलपा देवी मंदिर के तहखाने से घेराबंदी करके पकड़ लिया गया। इस वीर सेनानी को ब्रिटिश सरकार ने 1859 में विद्रोह करने के लिए आगरा जेल में फांसी की सजा दे दी गई थी। ठाकुर रणमत सिंह जी की प्रतिमा नीचे मौजूद हैं।

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रीवा का क्षेत्र फल (Area of Rewa)

सम्पूर्ण जिले का क्षेत्रफल 628705 वर्ग किलोमीटर हैं। जो पूरे मध्यप्रदेश के क्षेत्रफल का 1.42 प्रतिशत हैं। रीवा (rewa) जिले की 66625 हेक्टेयर जमीन पहाड़ो से घिरी हुई हैं, तथा शेष भाग कृषि कार्यो मे प्रयोग होता हैं। रीवा जिला समुद्र तल से 980 फिट अधितम ऊंचाई पर स्थित हैं। रीवा जिले की भौंगोलिक स्थिति को तहसीलवार निम्न सारिणी मे दर्शाया गया हैं।

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रीवा जिले मे बैंको की स्थापना :

रीवा जिले मे शासकीय एवं अशासकीय बैंको की विभिन्न शाखाये और उनके स्थापना का वर्ष हम नीचे दिये सारिणी मे देख सकते हैं। जानकारी 2012-13 तक है।

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रीवा (rewa) के इतिहास मे रानी तालाब का मंदिर

मध्य प्रदेश के रीवा (rewa) शहर में स्थित रानी तालाब में माता कालिका का एक भव्य मंदिर है। इस मंदिर में प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्रि के समय पूरे रीवा रियासत (rewa riyashat) से लोग माता कालिका के दर्शन करने के लिए आते हैं। यहां पर कई सारे देवी-देवता के मंदिर मौजूद हैं। इसके साथ ही यहां पर एक बहुत ही सुंदर पार्क युक्त तलाब है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी आते हैं। लेख के माध्यम से आज हम मां कालिका के चमत्कारों के बारे में जानेंगे। यह मंदिर 50 से 60 वर्ष पुराना कोई आम मंदिर नहीं है बल्कि यह मंदिर 450 वर्ष से भी पुराना है और यहां पर नवरात्रि के दिनों में 9 दिनों तक सिद्धि के लिए आराधना होती है। माता कालिका का यह मंदिर रानी तालाब के मेढ पर स्थित है। मंदिर पुराने समय के गुलाबी पत्थरों से बना है तथा मंदिर के बाहरी दीवार में चांदी और गोल्डन रंग की प्लेट की नक्काशी की गई है।

बताया जाता है करीब 450 वर्ष पहले कोई व्यापारी यहां से गुजर रहा था, उस समय यहां पर घने जंगल हुआ करते थे। रात्रि हो जाने की वजह से वह व्यापारी एक इमली के पेड़ के नीचे आराम करने के लिए संकल्प कर लिया। उस व्यापारी के पास माता की यह प्रतिमा भी थी। उस व्यापारी ने माता की प्रतिमा को इमली के पेड़ से टिका कर वहीं पर विश्राम करने लगा। अगले दिन जब वो उठा और अपने गंतव्य की ओर जाने लगा तो इमली के पेड़ से टीका कर रखी गई, माता की मूर्ति को वह उठाने लगा, लेकिन वह मूर्ति नहीं उठी। कई कोशिशों के बाद जब वह मूर्ति व्यापारी से नहीं उठी तो व्यापारी उस मूर्ति को वहीं पर छोड़ कर आगे बढ़ चला। धीरे धीरे जब लोगो को इस मूर्ति के बारे मे पता चला तो मटा की पुजा अर्चना होने लगी। तब से मां कालिका वहीं पर विराजमान है, अब यहाँ पर बहुत ही भव्य मंदिर बना दिया गया है।

रीवा (rewa) के रानी तालाब की मां कालिका से संबंधित एक कहानी रीवा (rewa) के हर बच्चे की जुबान से हम सुन सकते हैं, इस कहानी में बताया गया है कि आज से 70 वर्ष पूर्व माता के मंदिर में चोर घुस आए थे और माता के आभूषण को लेकर जैसे ही वह बाहर की ओर भागने लगे उनके आंखों की रोशनी चली गई। उन्हें कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। जिसके चलते वह मंदिर के बाहर नहीं जा सके और सुबह पुजारी जब पूजा करने के लिए वापस आया तो चोरों ने पुजारी को वह आभूषण वापस लौटा कर माफी मांगी। जब पुजारी ने वह आभूषण लेकर माता को दोबारा पहनाया, तब जाकर चोरों को दिखाई देना फिर से प्रारंभ हुआ।

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रानी तालाब का निर्माण कैसे हुआ

बताया जाता है कि एक समय रीवा (rewa) में पानी की बहुत किल्लत हो रही थी, लगातार सूखे की वजह से आसपास के निवासियों को काफी तकलीफ़ों का सामना करना पड़ता था। तब लोगों की सुविधा के लिए इस तालाब को लवाने समुदाय के लोगों ने खुदवाया था। उस समय रीवा (rewa) राज्य की रानी जोकि जोधपुर घराने की राजकुमारी थी, उन्हें यह तलब बहुत ही पसंद आया। तब लवाने समुदाय के लोगों ने इस तालाब का नाम रानी तालाब रख दिया और महारानी कुंदन कुमारी ने लवाने समुदाय के सामाजिक कार्यो को देख कर उन्हें राखी बांधी थी और उन्हे भाई माना था।

रीवा के पर्यटन स्थल

रीवा शहर मध्य प्रदेश का एक शहर तथा संभाग का मुख्यालय है। रीवा अपने प्रसिद्ध संग्रहालय, किलो, झरनों और ऐतिहासिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। रीवा के प्राकृतिक और मानव निर्मित पर्यटन स्थलों के अलावा रीवा सफेद बाघों के लिए भी पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है। रीवा के उत्तर में उत्तर प्रदेश, पश्चिम में सतना एवं पूर्वी तथा दक्षिण दिशा में सीधी जिला स्थित है। इतिहास में रीवा एक बड़ी रियासत हुआ करती थी। रीवा जिले में जंगलों की अधिकता काफी ज्यादा है, इन जंगलों में लाख की लकड़ी और जंगली पशु प्राप्त होते हैं। रीवा के ही जंगलों से विश्व का पहला सफेद बाघ भी पाया गया था। रीवा में काफी कुछ रोमांचित  स्थल है। जहां पर पर्यटक को एक बार जरूर जाना चाहिए, जैसे कि बघेल संग्रहालय, रीवा का किला, पीली कोठी, गोविंदगढ़ का किला, गोविंदगढ़ पैलेस, वेंकट भवन, रानी तालाब जैसे स्थल तो हैं ही इसके अलावा चचाई,/ बहुती और पूर्वा जैसे जलप्रपात भी यहां पर प्राकृतिक रूप से मौजूद हैं।

रीवा का गोविंदगढ़ का किला

गोविंदगढ़ का किला पूरे बघेलखंड क्षेत्र का एक सबसे आकर्षण पर्यटक स्थल है। यह किला रीवा के इतिहास को व्यक्त करता है। इस किले का निर्माण रीवा के महाराजा ने करवाया था। इस किले के निर्माण का मुख्य कारण था कि गर्मियों में रीवा की राजधानी गोविंदगढ़ किले से ही चलाई जाती थी। यह किला रीवा रेलवे स्टेशन से लगभग 27 किलोमीटर दूर पर आजाद चौराहे के आगे प्राचीन हनुमान मंदिर किला गेट के पास स्थित है। राज्य के पर्यटन विकास के लिए इस किले को हेरिटेज होटल और रिजल्ट में बदलने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए राज्य सरकार में दिल्ली में मौजूद एक कंपनी को इसके जीर्णोद्धार और व्यवस्था के लिए अपना सहयोगी बनाया है। शाहरुख खान की हिंदी फिल्म अशोका में जिन हथियारों का इस्तेमाल किया गया था, वह रीवा संग्रहालय के थे। यहां पर एक बहुत ही सुंदर गोविंदगढ़ का तालाब है, इस के पास एक बहुत ही मनोहारी रिजॉर्ट है जो कि तालाब के किनारे पर बना हुआ है और लेक व्यू रिजॉर्ट के नाम से जाना जाता है।

रीवा से इलाहाबाद की दूरी (allahabad to rewa distance)

इलाहाबाद को अब प्राचीन नाम प्रयागराज के नाम से जानते हैं। इलाहाबाद रीवा का पड़ोसी जिला हैं, बस फर्क इतना हैं की रीवा मध्य प्रदेश मे हैं और इलाहाबाद (अब प्रयागराज) उत्तर प्रदेश मे हैं। रीवा से इलाहाबाद दो तरीको से जया जा सकता हैं, एक तो सड़क मार्ग का इस्तेमाल करके, और दूसरा तरीका हैं रेल मार्ग का इस्तेमाल करके। आए जानते हैं दोनों मार्ग की दूरी कितनी हैं।

  • रीवा से इलाहाबाद सड़क मार्ग की दूरी – 120 किमी (allahabad to rewa distance by road)
  • रीवा से इलाहाबाद रेल मार्ग की दूरी – 227 किमी (allahabad to rewa distance by train)

रीवा से अगर इलाहाबाद रेल मार्ग से जाए तो दूरी 227 किमी हैं क्योंकि रीवा से इलाहाबाद के लिए रेल मार्ग सीधे सीधे नहीं हैं, बल्कि रीवा से ट्रेन उल्टी दिशा मे सतना जाती हैं और फिर वहाँ से फिर रीवा के बाहर बाहर से इलाहाबाद जाती हैं। इसलिए रेल मार्ग घुमावदार होने की वजह से दूरी ज्यादा हैं।

रीवा जिले के गाँव की सूची

अजोरा चंपागढ़ बरहठा दोदौ
हदई चंदाई बरहुलागीजतर(77) दोडिया भामराहन
अकौरी चंदेल बरहुलानिविहानपुरवा डोडिया चौहानन
अकौरिया चंडी बरहुलासीगोटोला डोडिया मिश्रान
अमनव चांदपुर बारी कलां दोंदर
अमरहा चरपरिहनपुरवा बारी खुर्द दुआरी
अमिलाहवा चतेह बरिजंगल डबगवान
एमिलिया चौखड़ा बारीकछार डुंगी
अमिलकोनी चौखंडी बरसेना गदरहा
अंदावा चौर बरुआ गदरगवां
अंसारा चौरा बाशात गदरपुरवा
अतरसुई छदहना बसरेही गदेहरा
अतरसुइया छमुहा बसुआर गढ़ा (137)
अतराहा छतैनी बौना(413) गढ़ा (138)
अत्रिला चिल्ला खुर्द बौना(414) गगहना
अतराइला-11 चुनरी बौसड़ गहिलवार
अत्री चुंगी बौसदवा गंभीरवा
अथिसा डभौरा बावनधर गंगतीरा
बाबाकीबरौली दादर बेदौलिहा नंबर 1 गंगतीरा कलां
बदाछ ददरी बेदौलीखैरिहन गंगतीरा खुर्द
बड़ागांव दाढ़ बेदौलीपदेन गंज
बाघवारी दादा कलां बेलौहा गांथा
बहेड़ा दादा खुर्द बेलगवान गैरन
बहिलपुरवा दगदैया बेनिडीह गढ़वा
बहराइचा दांडी भदारिनमोजरा गढ़ी
बैदानपुरवा दरीमनपुरवा भद्र गौहाना
बैसनपुरवा दर्राहा भाकरवार गेदुरहा
बाजरा (नस्तगावां) दत्तूपुर भामरकच्छ (426) गीधा
बमारी देह भानिगावां घटेहा
बम्हाना देवलिहनपुरवा भाटीगावां घोडीधा
बंदरकोल देवपूजा भाटीमोजरा घोरहा
बंदे देवरी भिटारी घोड़ाबंध
बांधैकीपति(368) देवरी(268) भिटौहा घोसर
पर रोक लगाई देवरी(269) भिगुड़ी घुमा
बंसंती देवरी(270) भोथी घुमन
बड़ा खुर्द डेरवा भुआरा ग़ुस्रुम
बराबाद देवखर भुगा गोबरा
बारह देउपाकोठार भुलुहा भगवान धनसिंग
बाराती देउर भुनगाँव गोदर रायकावारा
बरौ धधोखर भुसुनु गोहट
बरौहा (क्योटा) धखारा बिछिहार गोहटा नंबर 1
बरौली धखारा नंबर 2 बिझवार गोहटा नंबर 2
बरौलीपेंडेन धखारा नंबर 1 बिलारा गोहटा(155)
बरेठी कलां ढोढरी बीरपुर गोंड कलां
बरेठी खुर्द धुरकुछ बिसुरा गोंद खुर्द
बरेती कलां दीह बुडामा गोपालपुरवा
बरेतीखुर्द दिही चाकघाट गोवारिया
बरेटिटिर दहिया चकनंदीभाऊजी गुरदारी
बरहा दोदक चक्रिस्दा गुरुगुडा
बरहाट दोदकिया चाकुर्दन गुर्ह
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रीवा से संबन्धित कुछ महत्वपूर्ण FAQ (प्रश्न और उत्तर)

प्रश्न 1- रीवा जिला कौन से प्रदेश में है?

उत्तर – रीवा मध्य प्रदेश का एक पूर्वी शहर हैं, यह प्रयागराज के दक्षिण मे स्थित पड़ोसी जिला हैं। 1952 के आसपास रेवा मध्यप्रदेश का भाग नहीं था, बल्कि विंध्या प्रदेश की राजधानी था। लेकिन 1 नवंबर 1956 मे मध्यप्रदेश का पुनर्गठन किया गया, जिसमे विंध्यप्रदेश को मध्य प्रदेश मे मिला दिया गया।

प्रश्न 2- रीवा जिले में कितनी नदियां हैं?

रीवा जिले मे तीन नदियां बहती हैं। और ये तीनों नदी गंगा नदी की सहायक नदी हैं। ये तीन नदियों के नाम – तमस, टोंस और सोन नदी रीवा मे बहती हैं।

प्रश्न 3- रीवा का पूर्व में नाम क्या था?

रीवा का वास्तविक नाम रेवा हैं जो की नर्मदा का प्राचीन नाम हैं, लेकिन इसके पहले भी रीवा को “भथा” नाम से जाना जाता था।

प्रश्न 4- रीवा की राजकुमारी कौन है?

रीवा मे अब राज शाही खत्म हो चुकी हैं, पर रीवा के पुराने राजा का वंश अभी रहता हैं। और रीवा के लोग सम्मान के रूप मे अभी भी उस परविवार को मानते हैं तथा स्नेह देते हैं। रीवा के राजा के दो संताने हैं, एक पुत्र हैं तथा दूसरी पुत्री हैं। राजा की पुत्री का नाम मोहिना हैं। लोग इन्हे राजकुमारी मानते हैं। राजकुमारी मोहिना टीवी सीरियल  मे काम भी करती हैं।प्रश्न 5-

प्रश्न 5- रीवा में स्थित कौन सा जलप्रपात दर्शनीय है?

रीवा मे मध्य प्रदेश के दो सबसे ऊंचे जल प्रपात मौजूद हैं। लेकिन अगर आप आनंदित कर देने वाला जलप्रपात देखना चाहते हैं तो बारिश के दिनो मे पूर्वा जलप्रपात जरूर देखने आए।

प्रश्न 6- रेवा नदी का दूसरा नाम क्या है?

नर्मदा नदी का प्राचीन नाम रीवा हैं। मध्य प्रदेश का शहर रीवा का नाम नर्मदा के प्राचीन नाम पर ही रखा गया था।

प्रश्न 7- बघेल वंश का संस्थापक कौन था?

रीवा मे बघेलों के द्वारा बघेल वंश की स्थापना की गईं थी, इसके संस्थापक व्याघ्रदेव जी हैं। व्याघ्र देव जी गुजरात के सोलंकी राज वंश से संबंध रखते थे, इनके पिता का नाम वीरधवाल था।

प्रश्न 8- रीवा मे कितनी तहसील हैं?

रीवा मे वर्तमान मे 8 तहसील हैं इनके नाम – हुजूर, मऊगंज, हनुमाना, नइगढ़ी, जावा, त्योथर, रायपुर करचुलियान और गूढ़ हैं। रीवा के तहसील को आप नीचे दिखाये गए चित्र मे भी देख सकते हैं।

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प्रश्न 9- बघेल ठाकुर का गोत्र क्या है?

बघेल ठकुल सोलंकी वंश के हैं, इनका गोत्र भारद्वाज हैं। रीवा मे बघेलों का आगमन व्याघ्रदेव के बाद हुआ हैं।

प्रश्न 10- मध्य प्रदेश के रीवा शहर की क्या विशेषता है?

रीवा मे सुपड़ी की कलाकृति बनती हैं, शायद पूरे मध्य प्रदेश मे एसी कला सिर्फ रीवा मे ही हैं। इसके अलावा भारत मे विख्यात बीरबल रीवा के गूढ क्षेत्र से संबन्धित थे।  इसके अलावा मशहूर गायक तानसेन (रामतनु पांडे) रीवा दरबार मे राजा राम सिंह के यहाँ अपनी सेवा दे चुके थे। 

प्रश्न 11- बांधवगढ़ से रीवा में राजधानी किसने स्थानांतरित की?

बघेलों की राजधानी पहले रीवा मे नहीं थी बल्कि उमरिया जिले के बांधवगढ़ मे थी। वहाँ पर आज भी बांधवगढ़ किला मौजूद हैं। तेरहवी सदी मे बघेलों ने बांधवगढ़ किले से पूरे बघेलखंड का साम्राज्य नियंत्रित करते थे। इसके बाद 1617 मे बघेल वंश के शासक महाराज विक्रमादित्य सिंह ने अपनी राजधानी को बांधवगढ़ से बादल कर रीवा कर दिया था। लेकिन बांधवगढ़ किले मे परिवार के लोग रहते थे, 1936 के बाद से बांधवगढ़ किले मे कोई नहीं रुका, अब वहाँ जाने की मनाही भी हैं। नीचे आप बांधवगढ़ का किला देख सकते हैं।

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प्रश्न 12- रीवा के राजा कौन हैं?

देश आजाद होने के बाद पूरे भारत मे राजशाही खत्म हो गई थी, इस लिए आधिकारिक रूप से रीवा के अंतिम शासक महाराजा मार्तंड सिंह जुदेव जी थे। लेकिन रीवा मे अभी भी किला और राजघराने के सदस्य एवं वंशज रहते हैं। भले ही रीवा मे राजशाही अब खत्म हो गई हैं लेकिन फिर भी रीवा के लोग वर्तमान मे पुष्परज सिंह जुदेव को अपना राजा मानते हैं। पुष्पराज सिंह जी रीवा मे सबसे अधिक बार चुने जाने वाले विधायक भी रह चुके हैं। वर्तमान मे पुष्पराज सिंह के पुत्र/युवराज जिनका नाम दिव्यराज सिंह जी हैं, वो बीजेपी पार्टी की तरफ से रीवा के सिरमौर विधानसभा क्षेत्र के विधायक हैं। युवराज दिव्यराज सिंह लगातार दो बार से विधायक हैं। रीवा के वर्तमान राजा की बेटी यानि राजकुमारी का नाम मोहिना सिंह हैं, जो की टीवी जगत मे जानी मानी हस्ती हैं। नीचे दिये गए चित्र मे आप अंतिम आधिकारिक राजा मार्तंड सिंह जी जुदेव, वर्तमान राजा पुष्परज सिंह जी जुदेव और वर्तमान युवराज दिव्याराज सिंह जुदेव को देख सकते हैं।

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प्रश्न 13- रीवा की भाषा क्या है?

रीवा की जनसंख्या 2011 के जगणना के अनुसार 235654 हैं। यहा पर प्रशासनिक रूप से इस्तेमाल होने वाली आधिकारिक भाषा हिन्दी हैं। लेकिन यहाँ के आम बोलचाल मे बघेली भाषा का इस्तेमाल होता हैं। बघेली भाषा एक तरह से अवधि भाषा के परिवार से संबन्धित हैं। बघेली भाषा को हिन्दी साहित्य मे भी पढ़ाया जाता हैं। बघेली भाषा काफी हद तक हिन्दी से मिलती जुलती हैं, अगर कोई व्यक्ति हिन्दी जानता हैं तो वो थोड़े प्रयास के बाद बघेली को समझ सकता हैं। तथा कुछ अभ्यास के बाद बोल भी सकता हैं। बघेली भाषा तहजीब की भाषा हैं, बीरबल और तानसेन के अनुसार, यह एक मीठी बोली हैं, जिसे बोलना और सुनना बहुत ही अच्छा लगता हैं।

 स्रोत – यह एक पीएचडी की थीसिस से ली गई जानकारी हैं।

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  1. रीवा मध्यप्रदेश विकिपीडिया
  2. रीवा का विश्वविद्यालय – अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय
  3. रीवा का सैनिक स्कूल की वैबसाइट
  4. मैहर का मंदिर और मैहर का इतिहास
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