हिन्दी कहानी – मूर्खराज कौन? (Hindi Story of Murkhraaj Kaun from Tenali Rama)

हिन्दी कहानी – मूर्खराज कौन? (Hindi Story of Murkhraaj Kaun from Tenali Rama)

विजयनगर में होली-दिवाली के त्यौहार बेहद धूमधाम से मनाए जाते थे। सम्राट कृष्णदेव राय स्वयं इन त्यौहारों पर आयोजित समारोहों में भाग लेते थे। विशेषकर होली पर तो राज्य की ओर से ही अनेक रोचक कार्यक्रम होते थे।

एक बार होली के अवसर पर सम्राट की ओर से अनोखे कार्यक्रम का आयोजन किया गया। महल के बगीचे को ईरानी शैली से सजाया गया विदेशी स्वादिष्ट पकवान बनाने के लिए बाहर से अनेक कारीगर बुलाए गए। कश्मीर से भारी मात्रा में ताजी केशर मँगाई गई। इससे इत्र तैयार किया गया। द्वारिका से गोपीचन्दन मँगवाया गया। बनारस से भाँग तैयार करने के विशेषज्ञ बुलाए गए।

सम्राट कृष्णदेव राय ने घोषणा की- “इस अनूठे होली-कार्यक्रम में राज्य के सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति और राजदरबारी आमंत्रित हैं। वे फाग खेलें, विदेशी पकवानों का आनन्द लें। मर्यादा में रहकर हर व्यक्ति मूर्खतापूर्ण काम करने को स्वतन्त्र है। जो हमारी दृष्टि में सबसे मूर्ख साबित होगा, उसे हम ‘मूर्खराज’ की उपाधि के साथ-साथ दस सहस्त्र मुद्राएँ भी पुरस्कार में देंगे।”

लोग इस समारोह में भाग लेने की तैयारियों में जुट गए। हर बार यह सम्मान तेनालीराम को मिलता था। इस बार मन्त्री और सेनापति ने ऐसी योजना बनाई कि सम्मान पुरोहित को मिले।

होली से एक दिन पहले समारोह शुरू हुआ। महल के बगीचे में राज्य के प्रतिष्ठित व्यक्ति और दरबारी इकट्ठे हुए। देर तक नृत्य-संगीत का कार्यक्रम चलता रहा। फिर चुटकुलेबाजी का दौर चला। हर बार जनता, तेनालीराम के चुटकुलों पर हँसती थी। इस बार मन्त्री ने कुछ ऐसा चक्कर चलाया कि तेनालीराम का नम्बर ही नहीं आया। वह चुपचाप अपने स्थान पर बैठा रहा।

See also  तेनाली रामा - पुरोहित की सजा (Hindi Story of Purohit ki Saja from Tenali Rama)

रात हुई, तो सभी को भोजन का निमन्त्रण दिया गया। | पेट में चूहे तो सभी के कूद रहे थे। ऊपर से विदेशी पकवानों की सुगन्ध बेचैन कर रही थी। सभी भोजन पर टूट पड़े।

एक-से-एक स्वादिष्ट व्यंजन थे। सभी भोजन करते करते मूर्खता का परिचय दे रहे थे। कोई ग्रास हवा में उछालकर खा रहा था, तो कोई दोनों हाथों से मुँह में ठूस रहा था।

अचानक तेनालीराम की दृष्टि पुरोहित जी की ओर गई। वह काबुली-पिस्ते की बर्फी पर हाथ साफ करने में लगे थे। सारे मुँह पर बर्फी के कण लगे थे। कुर्ते पर भी बफी-ही-बर्फी बिखरी थी। सहसा तेनालीराम को न जाने क्या सूझा। पानी से भरा लोटा उठाकर आगे बढ़ा और पुरोहित जी के कुर्तें की दोनों जेबों में उलट दिया।

पुरोहित जी लाल-पीले हो उठे। तमक कर बोले- “यह क्या बद्तमीजी है तेनालीराम। मूर्खता की सीमा होती है। तुम जैसे मूर्ख दुनिया में और कोई है या नहीं?”

वह इतनी जोर से चीखे कि सभी का ध्यान उस ओर चला गया। पुरोहित जी, तेनालीराम को बुरा-भला कह रहे थे और तेनालीराम खड़ा हँस रहा था।

बात मारपीट तक पहुँचती, तभी सम्राट कृष्णदेव राय भी वहाँ पहुँच गए। सारी बात सुनकर तेनालीराम से बोले-

“यह क्या पागलपन है तेनाली! इतनी बड़ी मूर्खता करके भी तुम हँस रहे हो? बताओ, तुमने पुरोहित जी की जेबों में पानी क्यों डाला?”

तेनालीराम हाथ जोडकर बोला- “क्षमा करें महाराज! यहाँ जितने भी हैं, भोजन के साथ-साथ पानी भी पी रहे हैं। मगर मैं काफी देर से देख रहा हूँ, पुरोहित जी की जेब दबादब बर्फी खाए जा रही है। सोचा कि यदि उसे पानी न मिला, तो शायद अपच हो जाए, इसीलिए।”

See also  Hindi Story of Tenali Rama - Sadhu aur Bhagvaan

“क्या मूखों जैसी हाँक रहे हो?” सम्राट ने कहा- “जेब भी कोई आदमी है, जो दबादब खाएगी।”

तेनालीराम ने उत्तर में आगे बढ़कर पुरोहित जी की एक जेब ही उलट दी। पानी में घुली बर्फी के टुकड़े बाहर घास पर गिर पड़े।

देखकर सभी की हँसी छूट पड़ी। खुद सम्राट कृष्णदेव राय भी मुस्कराए बिना न रह सके। पुरोहित शर्म के मारे पानी-पानी हो गया। वह जितना खा रहा था, उससे दुगुना जेब में भर रहा था और इस बार भी वही हुआ। ‘मूर्खराज’ की उपाधि फिर तेनालीराम को ही मिली। राजा और पुरोहित ने तो उसे ही सबसे बड़े मूर्ख के नाम से पुकार डाला था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *