तेनाली रामा – विश्वास (Hindi Story of Vishwaas From Tenali Rama)

तेनाली रामा – विश्वास (Hindi Story of Vishwaas From Tenali Rama)

एक दिन कृष्णदेव राय और तेनालीराम में इस बात को लेकर बहस छिड़ गई कि आम तौर पर लोग किसी की बात पर जल्दी विश्वास कर लेते हैं या नहीं।

राजा का कहना था कि लोगों को आसानी से बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता।

तेनालीराम का विचार था कि लोग किसी की बात पर जल्दी विश्वास कर लेते हैं। हां, उन्हें विश्वास करवाने वाला व्यक्ति समझदार होना चाहिए। 

राजा ने कहा – “तुम किसी से भी जो चाहो, नहीं करवा सकते।”

“महाराज, क्षमा करें, लेकिन मैं असंभव से असंभव काम करवा सकता हूं। और तो और, मैं किसी व्यक्ति से आप पर जूता तक फिंकवा सकता हूँ ।”

“क्या?” राजा ने कहा – “मेरी चुनौती है की तुम ऐसा कर दिखाओ।”

“मुझे आपकी चुनौती स्वीकार है, हां, इसके लिए मुझे समय देना होगा।” तेनालीराम बोला।

“तुम जितना समय चाहो ले सकते हो।” राजा ने कहा।

एक मास बाद राजा कृष्णदेव राय ने दुर्ग प्रदेश के एक पहाड़ी सरदार की सुन्दर बेटी से विवाह तय किया। 

पहाड़ी इलाके के सरदार को विजयनगर के राजाओं और वहां विवाह के रीति-रिवाजों का कोई ज्ञान नहीं था।

राजा ने तो उससे कहा था – “मुझे केवल तुम्हारी बेटी विवाह में चाहिए। रीति-रिवाज तो हर प्रदेश के अलग-अलग होते हैं, उनके बारे में चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं।” 

पर सरदार फिर भी चाहता था कि राजा के विवाह सारी रस्में पूरी की जाएं।

एक दिन चुपके से तेनालीराम उसके यहां उसे विवाह की रस्में समझाने पहुंच गए। सरदार को बेहद प्रसन्नता हुई। उसने तेनालीराम से वादा किया कि तेनालीराम की बताई बातें किसी से नहीं कहेगा।

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तेनालीराम ने उससे कहा- “राजा कृष्णदेव राय के वंश में एक पुराना रिवाज हैं की विवाह की शेष रस्में पूरी  हो जाने पर दुल्हन अपने पांव से मखमल की जूती उतारकर राजा पर फेंकती है। उसके बाद दूल्हा-दुल्हन को अपने घर ले जाता है।

मैं चाहता था कि यह रस्म भी पूरी अवश्य की जानी चाहिए। इसलिए मैं गोआ के पुर्तगालियों से एक जोड़ी-मखमली जूती ले भी आया हूं। पुर्तगालियों ने भी मुझे बताया कि दुल्हा-दुल्हन पर जूते फेंकने का रिवाज यूरोप में भी है, हालांकि वहां पर चमड़े के जूते फेंके जाते हैं। हमारे यहां तो चमड़े के जूतों की बात सोची भी नहीं जा सकती। हां, मखमल की जूती की, और बात है।”

“कुछ भी हो, तेनालीराम जी, मखमल की ही सही, है तो जूती ही। पति पर जूता फेंकना क्या अनुचित नहीं होगा?” सरदार ने कहा।

“वैसे तो विजयनगर के विवाह में यह रस्म होती आई है, पर आप अगर इस रिवाज से झिझकते हैं, तो रहने दीजिए।”

सरदार एकदम बोला- “नहीं, नहीं लाइए, यह जूती मुझे दीजिए। मैं अपनी बेटी के विवाह में किसी प्रकार की कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता।” 

विवाह की रस्में पूरी हो चुकी थीं। राजा खुशी-खुशी अपनी दुल्हन को घर ले जाने की तैयारी कर रहे थे। अचानक दुल्हन ने पांव से मखमल की जूती उतारी और मुस्कराते हुए राजा पर फेंकी। तेनालीराम, राजा के पास ही था।

उसने धीरे से राजा के कान में कहां- “महाराज इन्हें क्षमा कर दीजिए, यह सब मेरा किया-धरा है।”

राजा हंस पड़े और जूती उठाकर दुल्हन के हाथ में दे दी। 

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उस बेचारी ने क्षमा मांगते हुए कहा- “रस्म पूरी करने के लिय मुझे ऐसा करना पड़ा।”

अपने महल में पहुंचने पर राजा कृष्णदेव राय का तेनालीराम से सारी कहानी मालूम हो गई। बोले- ” तुम्हारा कहना ही ठीक था। लोग किसी भी बात घर जल्दी ही विश्वासकर लेते हैं।”

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