तेनाली रामा – पुरोहित की सजा ()

तेनाली रामा – पुरोहित की सजा (Hindi Story of Purohit ki Saja from Tenali Rama)

सम्राट कृष्णदेव राय अपने पुरोहित से सख्त नाराज हो गए। उसे तीस दिन के अन्दर देश से निकल जाने को कहा। 

हुआ यह कि कुछ दिन पहले पुरोहित की जरा-सी गलती पर सम्राट ने उसे आदेश दिया कि वह अपनी शक्ल उन्हें न दिखाए।

पुरोहित ने सम्राट को प्रसन्न करने के लिए तेनालीराम द्वारा वर्ष-दो-वर्ष पहले ऐसे ही एक मामले में अपनाए उपाय पर अमल किया । दाढ़ी-मूंछ लगाकर,साधु बन दरबर में आ गया, किन्तु राजा ने उसे पहचान लिया। फिर धोखा देने के अपराधमें उसे देश से निकल जाने का आदेश दे दिया।

सम्राट कृष्णदेव राय के इस निर्णय से मन्त्री और सेनापति बड़े घबराए । पुरोहित उनकी मण्डली का प्राण था। दोनों ने सम्राट के फैसले को बदलवाने की जी-तोड़ कोशिश की, मगर असफल रहे । आखिर थक-हार कर मन्त्री ने सेनापति से कहा- “समय पड़ने पर यदि गधे को बाप बना लिया जाए तो क्या हानि है । क्यों न हम तेनालीराम की मदद लें।”

सेनापति मान गया। दोनों तेनालीराम के पास पहुंचे। बड़ी खुशामद की। बड़े-बड़े वायदे किए । किसी भी तरह  पुरोहित की सजा निरस्त कराने को कहा । तेनालीराम मान गया।

दो-तीन दिन के बाद सम्राट कृष्णदेव राय के दरबार में एक संत पधारे। लम्बा-चौड़ा डील-डौल, मुख पर तेज । सम्राट ने उनका यथोचित आदर-सत्कार किया। उनसे अपना आतिथ्य स्वीकार करने की प्रार्थना की।

संत मान गए। सम्राट कृष्णदेव राय ने महल की अतिथिशाला में उनके ठहरने की व्यवस्था कर दी । शाम को सत्संग हुआ। संत ने बेहद प्रभावशाली ढंग से ओजस्वी वाणी में श्रीमद्भागवत की व्याख्या की । विजयनगर में काफी दिन बाद ऐसे संत का आगमन हुआ था।

See also  चतुर तेनालीराम - Hindi story of Clever TenaliRama

सत्संग के पश्चात एकान्त हुआ, तो संत ने कृष्णदेव राय से कहा- “राजन, तुम विजयनगर साम्राज्य के अभ्युदय के लिए महारुद्र यज्ञ कराओ। शुभ फल मिलेगा।”

राजा सोच में पड़ गए। पुरोहित को तो वह देश-निकला दे चुके थे। सोचकर बोले- “महात्मन्, यज्ञ का उत्तरदायित्व आप अपने कंधों पर ले लें, तो मैं कृतार्थ हो जाऊंगा।”

संत मुस्कराकर बोले- “ले लूंगा, किन्तु मेरा शिष्य कोई नहीं । यज्ञ के लिए मुझे कम-से-कम एक शिष्य की  आवश्यकता होगी। इसका प्रबन्ध तुम कर दो।”

विजयनगर साम्राज्य में एक से बढ़कर एक पण्डित थे। सम्राट कृष्णदेव राय ने ‘हां’ कर दी। यज्ञ की तिथि निर्धारित हो गई । तैयारियां भी शुरू हो गईं।

संत के कहने पर सम्राट ने राज्य के पण्डितों में से कुछ का चुनाव कर उनके पास भेजा। कहलवाया- “इनमें से शिष्य का चुनाव कर लें।” किन्तु संत ने उन सबको यह कहकर लौटा दिया कि किसी का भी उच्चारण शुद्ध नहीं।

सम्राट ने दोबारा कुछ पण्डित भेजे। संत ने उन्हें भी मन्त्रों का शुद्ध उच्चारण न कर पाने के कारण वापस भेज दिया। कई बार ऐसा हुआ।

सम्राट कृष्णदेव राय चिन्ता में पड़ गए । यज्ञ की तिथी समीप थी और संत के शिष्य का चनाव हो नहीं पा रहा था। उन्होंने तेनालीराम से मन्त्रणा की।

तेनालीराम तो था ही इस अवसर की प्रतीक्षा में। 

बोला-“अन्नदाता, प्राणदान दें, तो कुछ कहूं।”

“निर्भय होकर कहो।” सम्राट बोले।

तेनालीराम ने सुझाया- “पुरोहित को संत के पास भेजकर देखिए । शायद वह कसौटी पर खरा उतर सके।”

कृष्णदेव राय का चेहरा तमतमा उठा। तेनालीराम ने फिर कहा- “आपने पुरोहित को तीस दिन के अन्दर देश से निकल जाने का दण्ड दिया है। महारुद्र यज्ञ इक्कीस दिन का है। आदेश दिए, आपको आठ दिन हो चुके हैं। इस प्रकार आदेश से ठीक उन्तीस दिन बाद यज्ञ पूर्ण हो चुका होगा।

See also  तेनाली रामा की कहानी - सजीव चित्र (Hindi Story of Sajeev Chitra)

तीसवें दिन पुरोहित देश छोड़ देगा। इस प्रकार यज्ञ भी पूरा हो जाएगा, आपके आदेश की भी रक्षा हो जाएगी।”

सम्राट प्रसन्न हो उठे। तेनालीराम की पीठ थपथपाई। पुरोहित को बन्दीगृह से स्वतन्त्र कर संत के पास भेजा। आश्चर्य, संत ने उसे यज्ञ के योग्य मान लिया।

यज्ञ शुरू हुआ। सम्राट एक-एक दिन गिन रहे थे। उन्तीसवें दिन जैसे ही यज्ञ पूरा हुआ, उन्होंने पुरोहित को अपने आदेश की बात बताकर कहा- “कल तुम्हारा इस राज्य में अन्तिम दिन है।”

“नहीं राजन्!” सहसा संत बोले- “अभी इनका तीन दिन का कार्य शेष है। राज्य के कल्याण के लिए इन्होंने उस दिव्य यज्ञ में मेरे साथ आहुतियां दी हैं। शुद्ध रूप से सस्वर मन्त्रों का उच्चारण किया है। यज्ञ फल के लिए तीन दिन तक इनके हाथों से वस्त्र और अन्न का दान आवश्यक है।”

सम्राट ने विस्फरित नेत्रों से तेनालीराम की ओर देखा। 

वह शांत खड़ा था।

“तम कुछ बोलते क्यों नहीं तेनालीराम?” राज ने कहा- “अब मेरा आदेश……।”

और तभी संत बोले- “राजन्, प्रजा और राज्य का कल्याण राजा के आदेश से बड़ा होता है।

राजा नतमस्तक हो गए। उनका आदेश स्वयं निरस्त चुका था। मन्त्री और सेनापति चैन की सांस ले रहे थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *