आज से पचास वर्ष पहले भारत में आने जाने की इतनी अधिक साधन नहीं थे। ना बहुत अधिक बसें थी ना ही रेलगाड़ियां थी। एक दिन की बात है एक मारवाड़ी महिला अपने ढाई साल के बेटे के साथ स्टेशन पर आई। वह कोलकाता जाने के लिए आगरा से गाड़ी में सवार हुई। उसके बेटे ने हाथों मे सोने के कड़े और गले में जंजीर पहन रखी थी। बच्चा इतना सुंदर और प्यारा था कि जो भी उसे देखता, देखता ही रह जाता।
थोड़ी देर में बच्चा आसपास के कई लोगों से हिल मिल गया। एक आदमी तो उसे उठाकर बहुत देर तक इधर-उधर घूमता रहा। उसे खाने के लिए मिठाई दी, आसपास बैठे मुसाफिर अपने-अपने ध्यान में डूबे थे। 2 घंटे बीत गए, अचानक वह महिला जोर जोर से रोने लगी और और परेशान हालत में चिल्लाने लगी- ” मेरा बच्चा, मेरा बच्चा कहां गया?”
लोगों ने पूछा- ” क्या हुआ तुम्हारे बच्चे को?”
पहले तो उसकी आवाज ही नहीं निकली। सीख और आंसुओं की धारा के बीच अटक अटक कर उसने बताया- ” अरे, उसने इसने मेरे बच्चे को डिब्बे के बाहर फेंक दिया है। हाय मेरा लाल अब मैं क्या करूं?”
लोगों ने फौरन ट्रेन की जंजीर खींची। गाड़ी रुक गई, गाइड उस डिब्बे में आया तो लोगों ने घटना बताकर गाड़ी वापस करने की प्रार्थना की। गार्ड में पूछा- ” इस आदमी ने बच्चे को फेंका है और वह कहां है?”
लोग उसे इधर-उधर खोजने लगे, किसी ने कहा- ” अरे, वह आदमी भी तो उसी समय बच्चे के साथ गाड़ी से कूद गया था। वह बच्चे को गोद में लिए हुए था।”
” पहले बच्चे को गाड़ी से नीचे फेंका, उसके बाद स्वयं कूद गया। उसका इरादा साफ है। वह बच्चे को मार कर उसके गहने छीन लेना चाहता है” – वहां मौजूद एक आदमी ने कहा।
” अरे, कोई मेरे लाल को बचाओ। हाय मेरा लाल।”- महिला बार-बार चिल्ला रही थी और अपने बच्चे के वियोग में रो रही थी।
” बहन, आपको यात्रा के समय अपने बच्चे को इतने गहने नहीं पहनाने चाहिए थे। यह गहनों के कारण ही आज उसका अपराहन हुआ है।” – वहां मौजूद लोग औरत से कहने लगे।
अचानक औरत हाथ जोड़कर रोते हुए आवाज में घिघियाई- ” गार्ड साहब, कृपया करके मेरे बच्चे को मुझे वापस दिलवा दीजिए, आगे से मैं उसे कभी गहने नहीं पहनाऊंगी।”
” अरे, मैं इसमें क्या कर सकता हूं?”- ट्रेन के गार्ड साहब बोले।
” ऐसा मत यह साहब, अगर आप कृपा करके गाड़ी को ले चलें, तो शायद बच्चा इन्हें मिल जाए।”- वहां मौजूद एक आदमी ने कहा।
नियमानुसार हमारे साथ नहीं कर सकते हैं- ” अगर नियम की बात हम करें तो हम गाड़ी को पीछे नहीं ले सकते। हमारी नौकरी खतरे में आ जाएगी।” – गार्ड ने वहां पर मौजूद लोगों को समझाया।
तब वहां पर मौजूद लोग गार्ड को समझाने लगे की मानवता से बढ़कर कोई धर्म नहीं है और ना ही कोई नियम है। सभी नियमों से ऊपर मानवता है, मानवता को बनाए रखने के लिए ही हर देश में संविधान होता है कानून होता है। लोगों के बार-बार अनुरोध करने के बाद गार्ड ने विचार किया, वास्तव में मामला गंभीर है, बच्चे को छोड़ कर आगे बढ़ना उचित नहीं है, और महिला को जंगल में उतार देना यह भी उचित नहीं है। गार्ड ने की समय सारणी को मिलाया तो पता चला इस रास्ते में कोई दूसरी गाड़ी नहीं आने वाली है। तो उसने गाड़ी को वापिस लौटने की अनुरोध को स्वीकार कर लिया।
गाड़ी अब लौट नहीं लगी, कि शायद कहीं किसी जगह पर पटरी के किनारे, उस आदमी के साथ बच्चा दिख जाए। लोग उत्सुकता से भरे हुए बच्चे को ढूंढने लगे, गाड़ी उस जगह पर रुक गई, जिस जगह से बच्चे को फेंके जाने का शक था। लोग ट्रेन से उतारकर आसपास के जगह की छानबीन करने लगे। लेकिन बच्चा कहीं नहीं मिला। महिला निराश होकर माथा पीटने लगी। लोग उसे दिलासा देने लगे। थोड़ी देर रुक कर गाड़ी द्वारा आगे चलने लगी। जरा सा आगे चली कि लोगों ने देखा कि एक किसान भागते हुए ट्रेन की ओर चला आ रहा है। उसके हाथ में एक कमीज है इसे हिला हिला कर वह गाड़ी रोकने का इशारा कर रहा है।
सौभाग्य से ड्राइवर ने उसे देख लिया। गाड़ी रोक ली, किसान की गोद में एक बच्चा था। उस किसान ने कहा- ” साहब मैं खेत में काम कर कर, घर वापस लौट रहा था। तभी पटरी के किनारे खेत में बच्चे को रोता हुआ देखा। तो मैंने ऐसे उठा लिया। गाड़ी जब वहां वापस आई, तो मैं कुछ दूर पर मौजूद था, और बच्चे को लेकर मैं ट्रेन की ओर दौड़ा, लेकिन ट्रेन चल दी। बड़ी मुश्किल से आप लोगों ने ट्रेन को रोका है। “
बच्चे को उसकी मां के पास पहुंचा दिया गया, बच्चा एकदम ठीक-ठाक। केवल मामूली चोटें आई थी, उसके गहने भी ज्यों के त्यों थे। किसी भी प्रकार की लूट उसके साथ नहीं हुई थी। मां को देखते ही बच्चा उससे लिपट गया।
” अरे, वह आदमी कहां गया? उसे भी तो ढूंढना चाहिए, जिसने इस बच्चे को ट्रेन से फेंका था? बच्चे की चिंता में उसकी तो किसी को याद ही नहीं रही, चलो उसे ढूंढ कर। पुलिस के हवाले कर देते हैं।” – वहां मौजूद लोग कहने लगे
गाड़ी रुकी हुई थी, लोग नीचे उतर कर उसे ढूंढने लगे। अचानक किसी का ध्यान गया, लोगों ने देखा गाड़ी से कूदते समय वह तारों की बाढ़ के ऊपर जा पड़ा था। नुकीले तारों ने उसे बुरी तरह से घायल कर दिया था, हुआ है अब अंतिम सांसे ले रहा था। कुछ देर में उसने प्राण छोड़ दिए।
” भगवान ने इस दुष्ट की करनी का फल इसे दे दिया”- मां ने आंसू पूछते हुए कहा और गाड़ी फिर से चल पड़ी कोलकाता की तरफ।