चीन अमेरिका में जमीन क्यो खरीद रहा हैं? अमेरिका अपनी जमीन चीन को बेच रहा

चीन अमेरिका में जमीन क्यो खरीद रहा हैं? अमेरिका अपनी जमीन चीन को बेच रहा

चीन द्वारा अमेरिका और अन्य देशों में खेती की जमीन खरीदने का मुद्दा हाल के वर्षों में बढ़ते विवाद का विषय बन गया है। यह सवाल उठता है कि आखिर चीन को दूसरे देशों में इतनी जमीन खरीदने की जरूरत क्यों है, खासकर अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश में? क्या चीन के पास अपनी उपजाऊ जमीन नहीं है या फिर चीन पानी की कमी का सामना कर रहा है? आइए इस मुद्दे को विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं।

अमेरिका में चीन की जमीन

अमेरिका ने दुनिया के 110 देशों को खेती के लिए अपनी जमीन दे रखी है, जिनमें चीन 18वें नंबर पर आता है। अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर के अनुसार, चीन ने लगभग 3 लाख 84 एकड़ से अधिक जमीनों का अधिग्रहण किया है, जिसकी कीमत लगभग 250 मिलियन डॉलर आंकी गई है। इन जमीनों का उपयोग चीन विभिन्न फसलों की पैदावार के लिए करता है, लेकिन हाल के वर्षों में इस पर आपत्ति जताई जाने लगी है। कई अमेरिकी राज्यों ने ऐसे बिल पारित किए हैं, जो चीनी नागरिकों को खेती की जमीन खरीदने से रोकते हैं।

वर्ष 2023 में फ़ॉरेन एडवायजरी रिस्क मैनेजमेंट (FARM) ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। उनका दावा था कि जिस तरह से चीन और अन्य देशों ने अमेरिका में कृषि भूमि पर कब्जा जमाया है, वह अमेरिकी सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है। इनमें से कई देशों के साथ अमेरिका के संबंध अच्छे नहीं हैं, और यह आशंका जताई जा रही है कि इन जमीनों का इस्तेमाल जासूसी या अन्य राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी गतिविधियों के लिए किया जा सकता है।

See also  नेपोलियन तृतीय की विदेश नीति और पतन का कारण | napoleon tritiya ki videsh niti

चीन ने नॉर्थ डकोटा में एक अमेरिकी एयरफोर्स बेस के पास सैकड़ों एकड़ जमीन खरीदी, जिसने सुरक्षा चिंताओं को और गहरा कर दिया। ऐसी संवेदनशील जगहों के पास जमीन खरीदने से यह डर पैदा होता है कि चीन इन ठिकानों की निगरानी कर सकता है। यही कारण है कि अब अमेरिकी सरकार उन देशों के नागरिकों को जमीन बेचने से रोकने पर काम कर रही है जिनसे उसके संबंध मजबूत नहीं हैं।

चीन की पानी बचाने की रणनीति

चीन के जमीन खरीदने की एक और बड़ी वजह है—वर्चुअल पानी। चीन ने पानी की अत्यधिक खपत वाली फसलों को उगाने से बचने की नीति अपनाई है। इसके बदले, वह ऐसी फसलें उन देशों से खरीद रहा है जो पानी के मामले में समृद्ध नहीं हैं। ब्रिटिश भूगोलवेत्ता जॉन एंथनी एलेन ने 1993 में वर्चुअल पानी का टर्म दिया था। इसका मतलब है कि जब एक देश दूसरे देश से फसल या खाद्य पदार्थ खरीदता है, तो वह दरअसल उस फसल को उगाने में लगे पानी को भी खरीदता है। इस तरह, चीन खुद पानी की बचत करते हुए दूसरे देशों से अपनी खाद्य जरूरतें पूरी करता है।

अफ्रीका में चीनी विस्तार

चीन केवल अमेरिका में ही नहीं, बल्कि अफ्रीका के गरीब देशों में भी बड़े पैमाने पर जमीनें खरीद रहा है। वहां वह न केवल खेती कर रहा है, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी कर रहा है। अफ्रीका के गरीब देश अक्सर कम कीमत पर अपनी जमीनें चीन को बेच देते हैं, जिससे वे अपने प्राकृतिक संसाधनों की भी हानि करते हैं। जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी की किताब “विल अफ्रीका फीड चाइना?” इस विषय पर गहराई से चर्चा करती है, जिसमें अफ्रीकी देशों द्वारा चीन को जमीन बेचने और खाद्य पदार्थों के निर्यात की समस्या को उजागर किया गया है।

See also  Elizabeth Bathory : दुनिया की सबसे क्रूर और हत्यारी महिला,1590 की घटना

चीन की खाद्य जरूरतें

चीन की जनसंख्या 1.42 अरब से अधिक है, जो दुनिया की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा है। दुनिया की लगभग 20 प्रतिशत खाद्य पैदावार चीन में जाती है। लेकिन चीन के पास पर्याप्त खेती की जमीन नहीं है कि वह अपनी पूरी आबादी का पेट भर सके। यही कारण है कि चीन हर साल 105 बिलियन डॉलर का अनाज आयात करता है। यह डेटा 2017 में सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज द्वारा दिया गया था और तब से इसमें और वृद्धि हुई होगी।

चीन की रणनीति से केवल दूसरे देशों को आर्थिक नुकसान ही नहीं हो रहा है, बल्कि पर्यावरणीय नुकसान भी हो रहा है। जब गरीब देश भारी पानी खर्च करने वाली फसलें उगाते हैं और उन्हें चीन या अन्य देशों को बेचते हैं, तो उनकी जमीन सूखकर बंजर होने लगती है। इस तरह, उन्हें फसल की अच्छी कीमत नहीं मिलती, और उनकी जमीन भी बर्बाद हो जाती है। यह स्थिति देशों के लिए दोहरे नुकसान का कारण बन रही है।

चीन की विस्तारवादी नीति और उसकी वर्चुअल पानी की रणनीति ने दुनिया भर में चिंता पैदा कर दी है। अमेरिका और अफ्रीका जैसे देशों में चीन की जमीन खरीदने की प्रवृत्ति को सुरक्षा और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से खतरनाक माना जा रहा है। हालांकि, चीन अपनी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इन कदमों को आवश्यक मानता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *