Indian Kanoon : भारत मे कानून बनाने का अधिकार संसद के पास हैं। संसद अगर चाहे तो संघ सूची और समवर्ती सूची पर कानून बना सकती हैं। सरकार अगर किसी विषय पर कानून बनाना चाहती हैं तो सबसे पहले मंत्री-परिषद एक प्रस्ताव तैयार करेगा, प्रस्ताव को जब कानून बनाने के लिए संसद मे पेश किया जाएगा, तब उसे विधेयक यानि की बिल कहा जाएगा। विधेयक दो प्रकार के होते हैं।
- साधारण विधेयक
- वित्त विधेयक
साधारण विधयक क्या होता हैं?
साधारण विधयक भी दो प्रकार के होते हैं, अगर सरकार के मंत्री परिषद का कोई सदस्य किसी भी सदन मे अगर कोई प्रस्ताव लाता है तो उस विधयक को सरकारी विधेयक कहा जाएगा, इसके अलावा संसद का कोई भी सदस्य सदन में अध्यक्ष एवं सभापति की अनुमति से कोई विधेयक प्रस्तुत करता है तो उसे निजी विधयक कहा जाता है। साधारण विधेयक दो प्रकार के होते हैं जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, की एक सरकारी विधयक और दूसरा निजी विधयक।
वित्त विधेयक क्या होता हैं?(indian kanoon)
वित्त विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति लेकर वित्त मंत्री लोकसभा में ही प्रस्तुत कर सकता है।
विधयक का प्रथम वाचन मे क्या होता हैं?
सभापति की सहमति से मंत्री परिषद या फिर सदन का सांसद विधयक को प्रस्तुत करता है विधयक को प्रस्तुत करने वाले सदस्य प्रस्ताव का शीर्षक पढ़ते हैं, इसके बाद प्रस्ताव की एक कॉपी सदन में मौजूद सभी सदस्यों को उपलब्ध कराई जाती हैं। इस प्रस्ताव का केंद्रीय सरकार के सरकारी गजट में प्रकाशन होता है। समानताः इस पर बहस नहीं होती है।
विधयक का द्वितीय वाचन मे क्या होता हैं?
द्वितीय वाचन में प्रस्तुत किए गए विधयक पर विचार विमर्श होता है सरकारी पक्ष और विपक्ष द्वारा इस विधेयक के उपयोगिता और अनूपयोगिता पर बहस होती है। पेश किए गए विधयक के हर बिंदु तथा मुद्दों पर चर्चा होती है। विधयक को संशोधित किया जाएगा या नहीं किया जाएगा, बहुमत के आधार पर निर्णय लिया जाता है। विधेयक मे संशोधन के बाद द्वितीय वाचन को समाप्त माना जाता है।
विधयक का तृतीय वाचन मे क्या होता हैं?
दूसरे वाचन के बाद विधेयक का प्रारूप निश्चित हो जाता है, इसके बाद तृतीय वाचन का समय आता है। तृतीय वाचन के समय विधयक का प्रस्तावक सदन में एक प्रस्ताव रखता है। इस प्रस्ताव में सदन से विधयक को स्वीकार्य करने के लिए कहा जाता है। इस समय विधेयक में कोई संशोधन नहीं किए जाते और सदन विधयक को या तो स्वीकार करता है या तो उसे अस्वीकार कर सकता है। विधयक पर मतदान किया जाता है, जिससे यह पता चल सके की विधयक स्वीकार हुआ या नहीं। मतदान के बाद यह तृतीय वाचन भी पूरा हो जाता है।
यदि विधयक स्वीकार कर लिया जाता है तो उसे दूसरे सदन में स्वीकृति के लिए भेजा जाता है दूसरे सदन में भी विधेयक का प्रथम, द्वितीय और तृतीय वाचन होता है। विधयक दूसरे सदन में भी स्वीकार कर लिया जाता है। तब उस विधयक को भारत के राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक कानून बन जाता है, इस कानून को संघ सरकार के राजकीय गजट में प्रकाशित किया जाता है।
यदि दूसरा सदन विधयक का अस्वीकार्य कर दे अथवा 6 महीने तक उस विधयक पर विचार ना करें तो विकट स्थिति का निर्माण हो जाता है। इस प्रकार की स्थिति में राष्ट्रपति दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाते हैं। इस संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसभा का अध्यक्ष यानी कि स्पीकर करते हैं। दोनों सदनों के इस संयुक्त अधिवेशन में विधेयक को फिर से पारित जाता है और उसके बाद उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है, राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक कानून (indian kanoon) बन जाता है।
FAQ (कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर )
कानून का मुख्य स्रोत क्या हैं?
भारत में कानून के कई मुख्य स्रोत हैं जैसे की – संविधान, विधान, विधेयक, परंपरागत कानून और अदालतों के निर्णय। इन्ही के आधारित भारत मे कानून का निर्माण किया जाता हैं। भारत का संसद, सभी राज्यों के विधानमंडल और केंद्र सरकार के द्वारा शासित राज्यो के विधानसभा के माध्यम से विधान बनाए जाते हैं।
पुलिस की धारा कितनी होती है? (indian kanoon)
ज़्यादातर अपराधो से संबन्धित नियम भारतीय दंड सहिंता मे दिये गए हैं। इसे अङ्ग्रेज़ी मे इंडियन पीनल कोड यानि की IPC कहते हैं। इसमे 511 धाराए हैं। ज़्यादातर मामलो मे पुलिस IPC की मदद लेकर अपराधी के विरुद्ध मामला दर्ज करती हैं।
भारत मे दंड कितने प्रकार के होते हैं?
Indian Kanoon : भारतीय दंड संहिता, की धारा 53 में कुल छह तरह के दंड के बारे मे बताया गया हैं। लेकिन इन 6 दंड मे से एक दंड को निरस्त कर दिया गया हैं। वर्तमान मे अपराधी को निम्न प्रकार के दंड ही दिये जा सकते हैं। किसी व्यक्ति को दंड उसके अपराध के अनुसार, न्याय और नियम के अंतर्गत दिए जाने वाले दंड निम्नलिखित है–
- मृत्यु दंड
- आजीवन कारावास
- कारावास
- संपत्ति को जब्त करना
- जुर्माना।
देश में पहला संविधान संशोधन कब हुआ?
भारत मे पहली बार संविधान को 1951 मे संशोधित किया गया था। इस संशोधन को Constitution Act 1951 कहा गया था। इस विधेयक को उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 10 मई 1951 को संसद मे पेश किया था। इसके बाद 18 जून 1951 को यह संसद मे स्वीकार्य कर लिया गया था।