स्वामी विवेकानंद कहानी – सूरज भी बहुत छोटा हैं

स्वामी विवेकानंद कहानी – सूरज भी बहुत छोटा हैं

स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस के पास देवी काली की एक छोटी सी मूर्ति थी। वे सभी से कहते थे, ‘इस मूर्ति में पूरे ब्रह्मांड का वास है।’

एक दिन ये बात कुछ विदेशियों ने सुनी तो वे रामकृष्ण परमहंस से बोले, ‘दुनिया इतनी बड़ी है कि इसमें इस मूर्ति का कोई महत्व ही नहीं है। ये तो बहुत छोटी है। आप कहते हैं कि इसमें पूरे ब्रह्मांड का वास है। ये कैसे संभव है?’

परमहंस ने कहा, ‘एक बात बताइए, सूर्य बड़ा है या पृथ्वी?

विदेशी बोले, ‘सूर्य बड़ा है और वह पृथ्वी से कई गुना बड़ा है।’

परमहंस ने पूछा, ‘सूर्य बड़ा है तो हमें इतना छोटा क्यों दिखाई देता है? इतना छोटा कि अपनी मुट्ठी में आ जाए।’

विदेशियों ने जवाब दिया, ‘सूर्य पृथ्वी से करीब 15 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित है। इसी वजह से ये हमें बहुत छोटा दिखाई देता है।’

परमहंसजी ने कहा, ‘सही बात है। सूर्य हमसे इतना दूर है, इसीलिए इतना छोटा दिखाई देता है, लेकिन वास्तव में सूर्य बहुत बड़ा है। ठीक इसी तरह मेरी काली माई से आप भी बहुत दूर हैं। इसी वजह से आपको ये मूर्ति बहुत छोटी दिख रही है। लेकिन, मैं अपनी मां की गोद में हूं। उनके निकट हूं, इसलिए मुझे ये बड़ी दिखती हैं। आपको इस मूर्ति में पत्थर दिख रहा है और मुझे इसमें शक्ति का पुंज दिखाई देता है।’

परमहंस अपने अलग ढंग से बातों को समझाते थे। उनका कहना था, ‘हम मनुष्यों के अंदर जो शक्ति है, उससे अलग और उससे ऊपर भी एक और शक्ति है, जिसे हम कॉस्मिक एनर्जी कहते हैं। जब आप इसे महसूस करते हैं, तब ही आप इसे प्राप्त कर पाते हैं।’

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स्वामी विवेकानंद परमहंसजी की इन्हीं बातों से प्रभावित हुए और पूरा जीवन गुरु और धर्म की सेवा समर्पित कर दिया।

सीख- जीवन में हर बात को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए। कुछ बातें विज्ञान के नजरिए से तय नहीं की जा सकती हैं। भक्ति भी उन्हीं बातों में से एक है। भक्ति को भावनात्मक रूप से महसूस करेंगे तो इससे बहुत ज्यादा लाभ मिल सकता है।