स्वामी विवेकानंद के आश्रम में एक व्यक्ति लगातार प्रश्न पूछ रहा था और बहस भी कर रहा था। वह व्यक्ति कह रहा था कि मुझे किसी काम में सफलता नहीं मिलती। दिनभर मैं कई काम करता हूं, खूब प्रयास करता हूं, लेकिन कोई भी काम पूरा नहीं हो पाता है।
विवेकानंद जी उस व्यक्ति को कुछ समझाते, उससे पहले वह फिर से बोलना शुरू कर देता। स्वामी जी चुप हो गए, वे समझ गए कि इस व्यक्ति का कहना ये है कि ये परिश्रम बहुत करता है, लेकिन इसे सफलता नहीं मिलती है।
स्वामी जी ने उस व्यक्ति से कहा, ‘क्या आप मेरा एक काम कर सकते हैं?’
व्यक्ति ने कहा, ‘बताइए, क्या काम है?’
आश्रम में एक कुत्ता था, स्वामी जी ने कहा, ‘आप इसे घुमा लाइए। कोई व्यक्ति इसे घुमाता है, लेकिन आज आप घुमा लीजिए। ये बड़ा आज्ञाकारी है।’
स्वामी जी की बात मानकर वह व्यक्ति कुत्ते को घुमाने ले गया। एक घंटे बाद जब वह व्यक्ति कुत्ते को घुमाकर लौटा। व्यक्ति तो कम थका हुआ था, लेकिन कुत्ता बहुत ज्यादा थक गया था, उससे चलते भी नहीं बन रहा था।
विवेकानंद जी ने उस व्यक्ति से पूछा, ‘आप दोनों साथ में गए और साथ में लौटे, लेकिन ये कुत्ता बहुत अधिक थका हुआ है और आप कम थके हैं। ऐसा क्यों हुआ?’
उस व्यक्ति ने कहा, ‘जिस गली में इसे दूसरे कुत्ते दिख जाते, उस गली में ये दौड़ता, फिर मैं रस्सी पकड़कर इसे वापस लेकर आता। पूरे समय ये दौड़ता रहा तो इसे थकना ही था। इसके मुकाबले मैंने परिश्रम कम किया।’
स्वामी जी ने कहा, ‘आपको आपकी परेशानी का हल मिल गया होगा। आप दिनभर इस कुत्ते की तरह लगातार दौड़ते रहेंगे तो आपकी ऊर्जा नष्ट हो जाएगी। पहले तय करें, खुद को केंद्रित करें और फिर अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ें।’
सीख – हमें अनेक लक्ष्य के पीछे भटकने की जगह एक लक्ष्य तय कर लेना चाहिए। अपने परिश्रम को बहुत अधिक दिशाओं में व्यर्थ न करें। सोच-समझकर एक ही जगह अपनी ऊर्जा लगाएं।